हर शहर की अपनी अलग तासीर होती है. इसके बावजूद हर शहर एक तरह से ही उठता है. बिल्कुल इंसान की तरह ही. मंदिर में घंटों की आवाज और अजान के बीच थोड़ा अलसाया सा.

ललितपुर में भी छह मई की सुबह ऐसी ही रही होगी. चाय की गुमटियों पर अखबार ताजा से बासी हो जाने की सनातन यात्रा के बीच कस्बे के कृष्णा सिनेमा के पास से गुजरते लोग अचानक ठिठक गए. वहां पर एक बुजुर्ग की लाश पड़ी हुई थी. ये बुजुर्ग रात को यहां पर घूमते दिखाई दिए थे. वे इससे पहले भी कई बार यहां पर घूमते देखे गए थे.

नत्थू की पत्नी मुन्नी बताती हैं कि पिछले तीन दिन से वे राशन के लिए चक्कर लगा रहे थे. पिछले चार दिन से उनके यहां कुछ नहीं बना था.

पुलिस के रिकॉर्ड में लाश बेनामी थी. इस बेनामी लाश के पास से जो चीजें पुलिस ने बरामद कीं वे रिकॉर्ड में कुछ इस तरीके से दर्ज हैं. पानी की खाली बोतल, एक बीड़ी ,माचिस की तीलियां और रोटी के कुछ सूखे टुकड़े. बुजुर्ग का पेट रीढ़ की हड्डी से चिपका हुआ पाया गया. खबरनवीस इस लाश में भूख से हुई मौत की एक्सक्लूसिव स्टोरी की संभावना देख रहे थे. लेकिन पुलिस ने इस संभावना को यह यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि ‘हो सकता है मृतक मानसिक विक्षिप्त हो.’ हालांकि यह कोई स्थापित तथ्य नहीं है कि मानसिक विक्षिप्त आदमी भूख से नहीं मर सकता.

जनवरी की 13 तारीख को योगेंद्र यादव और स्वराज अभियान के 30 सदस्यों ने बुंदेलखंड का दौरा खत्म किया था. इस दौरे के बाद अपने सर्वेक्षण को पेश करते हुए योगेंद्र यादव ने कहा था कि बुंदेलखंड में स्थितियां सूखे से अकाल की तरफ बढ़ रही हैं. करीब चार महीने बाद सूखा अकाल की तरफ अपनी इस यात्रा में काफी आगे बढ़ चुका है.

बांदा जिले की नरैनी तहसील का गांव ऐला. यहां के मोहल्ला मंगूसपुरवा में रहने वाले खेत मजदूर नत्थू अहिरवार की बीती पांच तारीख को मौत हो गई. 40 साल के इस दलित की मौत की खबर स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय समाचारों में पहुंच चुकी है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या सरकार से जवाबदेही की मांग कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ने पांच लाख की सहायता देने की घोषणा और लखनऊ में मिलने का आमंत्रण भेज दिया है.

लेकिन एक मौत और उस पर उठे सियासी बवाल के बीच कई बातों के अनदेखे, अनसुने और अनलिखे रह जाने का खतरा बना हुआ है. 40 साल के नत्थू दरअसल खेत मजदूर थे. इसके अलावा वे मनरेगा जॉबकार्डधारक भी थे. उनका परिवार गरीबों में भी हाशिए के परिवारों में से था और सरकारी रिकॉर्ड में अंत्योदय योजना के तहत पंजीकृत था. उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अप्रैल से खाद्य सुरक्षा कानून को सूबे में प्रभावी किया है. इसी कानून के तहत मिलने वाले ‘समाजवादी राशन’ को लेने के लिए नत्थू अपने घर से निकले थे. रास्ते में वे पानी पीने के लिए एक एक हैंडपंप पर रुके. वहां उन्होंने पानी पिया और छटपटा कर मर गए. नत्थू की पत्नी मुन्नी बताती हैं कि पिछले तीन दिन से वे राशन के लिए चक्कर लगा रहे थे. पिछले चार दिन से उनके यहां कुछ नहीं बना था. सरकार से मिलने वाला राशन 15 दिन के भीतर खत्म हो जाता है. इसके बाद उनको मांग कर काम चलाना पड़ता है.

नौ लोगों के इस परिवार के लिए सरकार ने 35 किलो गेहूं तय किया है. यदि इसे 30 दिन और दो वक़्त के हिसाब से तोड़ कर देखें तो एक समय में एक आदमी के हिस्से में लगभग 65 ग्राम अनाज आता है.

नौ लोगों के इस परिवार के लिए सरकार ने 35 किलो गेहूं तय किया है. यदि इसे 30 दिन और दो वक़्त के हिसाब से तोड़ कर देखें तो एक समय में एक आदमी के हिस्से में लगभग 65 ग्राम अनाज आता है. मंगूसपुरवा से 40 किलोमीटर दूर बांदा में बने जिला कारागार में एक दोषसिद्ध कैदी के लिए निर्धारित खुराक में प्रतिदिन 700 ग्राम आटा, 90 ग्राम दाल, और 230 ग्राम सब्जी शामिल है.

खैर कहानी यहीं खत्म नहीं होती. नत्थू के मरने की खबर मिलने के बाद लेखपाल नत्थू के घर पहुंचते हैं. लेखपाल साहब के हाथ में कुछ कागजात और यह चेतावनी है कि यह बात किसी को मत कहना कि घर में राशन नहीं था. इसके अलावा वे लाश के जल्द से जल्द दाहसंस्कार पर जोर डालते हैं. वे किसी कागज पर मुन्नी देवी के अंगूठे के निशान भी चाहते हैं जिससे वे साफ इनकार कर देती हैं. ये सारी बातें हमें मुन्नी देवी ही बताती हैं. महाराष्ट्र में काम कर रहे उनके बच्चों, 17 साल के दिलीप और 14 साल के संदीप के घर पहुंचते ही अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.

यहां से लीपापोती की कवायद शुरू होती है. डीएम योगेश कुमार भूख की वजह से मौत की किसी संभावना से इनकार कर देते हैं. उनके हिसाब से क्योंकि घर वालों के दबाव के चलते लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो पाया था इसलिए मौत के कारणों के बारे में कुछ भी कहना असंभव है. शायद मौत 'हीट स्ट्रोक' या फिर 'हार्ट स्ट्रोक' की वजह से हुई है.

मौके पर पहुंचे तहसीलदार महेंद्र सिंह के पास अपनी व्याख्या है जिससे वे भूख से मौत की सभी अटकलों को ख़ारिज कर देते हैं. उन्होंने मौके का दौरा किया था. महेंद्र सिंह के अनुसार नत्थू को मरने से पहले उल्टी हुई थी. उल्टी के निरीक्षण में पाया गया कि उसमें सब्जी और रोटी के अंश थे. इस वजह से भूख से मरने की बात बेबुनियाद है. इसके अलावा वे कहते हैं कि नत्थू दिखने में हट्टा-कट्टा था इसलिए ऐसे आदमी की भूख से मौत का सवाल ही नहीं उठता.

लगातार पड़े सूखे ने बुंदेलखंड की कमर तोड़कर रख दी है
लगातार पड़े सूखे ने बुंदेलखंड की कमर तोड़कर रख दी है

इस बयान के खिलाफ मुन्नी देवी का बयान है. वे कहती हैं कि पिछले कई दिनों से वे पड़ोसियों से मांग कर काम चला रही थीं. पिछले चार दिन से पड़ोसियों से मिलने वाली यह मदद भी बंद थी और घर के सात सदस्य उपवास पर थे. मुन्नी देवी के पक्ष में ठंडे पड़े चूल्हा और आटे के खाली डब्बे की गवाही भी दर्ज है. लेकिन क्योंकि घरवालों के दबाव के चलते पोस्टमार्टम नहीं हो पाया इसलिए कुछ भी दावे से कहना संभव नहीं है. या फिर कुछ भी दावे से कहना असंभव बना दिया गया है.

इस बीच मुन्नी देवी की शिकायत यह है कि इतने लोग उनके घर आ रहे हैं लेकिन कोई मदद नहीं कर रहा. वे कहती हैं कि अगर उनके यहां पहुंचने वाले लोग 100, 200 या 500 रुपए की मदद कर दें तो उनका संकट दूर हो सकता है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस बीच पांच लाख की सहायता की घोषणा कर दी है. घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया जा चुका है. परिजनों को लखनऊ भी बुला लिया गया है. कोटेदार ने मौत के अगले दिन ही राशन घर पर पहुंचा दिया है. जिन प्रधान जी के घर पर नत्थू का जॉबकार्ड बंधक पड़ा हुआ था वे मुआवजा दिलवाने के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ने की कसमें खा रहे हैं.

उधर, मुख्य सचिव आलोक रंजन ने सूखा प्रभावित जिलों के अधिकारियों के साथ बैठक में इस घटना पर गहरा रोष जताया है. रंजन से सूखा प्रभावित जिलों के जिलाधिकारियों को चेतावनी दी है कि यदि उनके जिले में भूख की वजह से कोई मौत होती है तो इसके लिए जिलाधिकारी को जिम्मेदार माना जाएगा. इसके अलावा उन्होंने राहत राशि के वितरण में हो रही देरी पर भी चिंता व्यक्त की है. उन्होंने बताया कि 867 करोड़ की आवंटित राशि में से महज 54 करोड़ का ही वितरण हुआ है. उन्होंने शेष राशि के वितरण के लिए जिलाधिकारियों को दस दिन का समय दिया है. इसके अलावा हर गांव में कम से कम एक तालब जिंदा रखने के निर्देश भी दिए गए. पेयजल के संकट से निपटने के लिए सूखे क्षेत्रों में 3226 नए इंडिया मार्क-2 हैंडपंप लगाने के निर्देश दिए गए हैं.

मुख्य सचिव के निर्देशों से उनकी नेकनीयती के बारे में संदेह नहीं किया जा सकता. लेकिन इन निर्देशों के अमल को थोड़ा समझना जरुरी है. सूखा राहत के तहत वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए 867 करोड़ रुपए आवंटित हुए. 54 करोड़ की राशि बांटने में जिस प्रसाशन को एक महीना लगा वह बाकी बची 814 करोड़ की रकम 10 दिन में कैसे बांटेगा? मान लीजिए चुस्त नौकरशाही ने इसे बांट भी दिया तो क्या राशि जरुरतमंदों तक पहुंच पाएगी? डीएम को साफ़ चेतावनी दी गई है कि भुखमरी से मौत की घटना अगर उनके जिले में होती है तो इसके लिए जिलाधिकारी को दोषी जिम्मेदार माना जाएगा. जानकारों की मानें तो इसके परिणाम यह होंगे कि भूख से होने वाली अगली हर मौत को प्रशासन दबाने में लग जाएगा. लाशें इसी तरह से बिना पोस्टमार्टम जला दी जाएंगी ताकि दावे से कुछ भी कहा न जा सके.

54 करोड़ की राशि बांटने में जिस प्रसाशन को एक महीना लगा वह बाकी बची 814 करोड़ की रकम 10 दिन में कैसे बांटेगा? चुस्त नौकरशाही ने इसे बांट भी दिया तो क्या राशि जरुरतमंदों तक पहुंच पाएगी?

मुख्य सचिव हर गांव में एक तालाब जिंदा रखने के निर्देश दे रहे हैं. ताकि पशुओं के लिए पीने की पानी की किल्लत ना हो. सूखे बुंदेलखंड में हर गांव में कम से कम एक तालाब जिन्दा रखने की बात सुनना बहुत अच्छा लगता है. लेकिन फिर सवाल उठता है कि तालाबों की हत्या आखिर किसने की. हालांकि पिछले चार साल में बारिश औसत से कम रही है लेकिन, जो भी पानी बरसा वह तालाबों में रुका ही नहीं. जानकार बताते हैं कि मनरेगा के नाम पर कुछ और नहीं सूझा तो गांवों में बेतरतीब तरीके से तालाबों को खोदना शुरू कर दिया गया. इस प्रक्रिया में जरुरी ढाल का ध्यान रखे बिना तालाब को उबड़-खाबड़ गड्ढों के समूह में बदल दिया गया.

हर तालाब के बनने की एक प्रक्रिया होती है. बारिश के पानी के साथ बह कर आई महीन मिट्टी जब सालों जमीन में जा कर बैठती है तो वह लगभग पक्के फर्श का रूप ले लेती है. इससे पानी का रिसाव कम हो जाता है. तालाब साल भर पानी से भरा रहता है. तालाब के गहरीकरण के नाम पर उस फर्श को तोड़ दिया गया. रोजगार देने के चक्कर में किसानों के हाथ में कुदालें दे कर सालों से चली आ रही जल संरक्षण की परम्परा का क़त्ल करवा दिया गया.

सूखे क्षेत्रों में पेयजल की समस्या से निपटने के लिए मुख्य सचिव ने 3226 नए हैंडपंप स्थापित करने की बात कही है. जबकि भूजल स्तर ऐतिहासिक रूप से गिरा है. पिछले एक साल में भूजल स्तर औसतन 50 से 100 फीट तक नीचे गिर गया है. झांसी से 50 किलोमीटर दूर खिसनी बुजुर्ग 2500 की आबादी वाला गांव है. लेकिन यहां जनवरी के महीने में ही 28 में से 26 हैंडपंप करना बंद कर चुके थे.

बांदा के सबमर्सेबल पम्प व्यवसायी शान सिंह इसे पूरी कवायद को अर्थहीन बताते हैं. वे कहते हैं, 'बांदा,महोबा,चित्रकूट हर जगह मोनोब्लाक पम्प फेल होते जा रहे हैं. सबमर्सेबल में भी पानी नहीं है जबकि सरकार यहां पर ठेकेदारों को नए हैंडपंप लागाने के टारगेट दे रही है. मुझे समझ में नहीं आ रहा इससे क्या फायदा होने वाला है? वे आगे कहते हैं, 'पहले से ही हैंडपंप सूखे पड़े हैं. मान लीजिए आपने 100 फीट बोर करके हैंडपंप में पानी ला भी दिया तो वह कितने दिन चल पाएगा. जिस तेजी से जलस्तर गिर रहा है उसमें इन हैंडपंप का 15 से 20 दिन में सूख जाना तय है.'

सूखे क्षेत्रों में पेयजल की समस्या से निपटने के लिए मुख्य सचिव ने 3226 नए हैंडपंप स्थापित करने की बात कही है. जबकि भूजल स्तर ऐतिहासिक रूप से गिरा है. 

खैर 'सरकार सूखे ने निपटने के हर संभव प्रयास कर रही है.; इस बात को तब तक दोहराया जाएगा जब तक अगली बारिश नहीं आ जाती. चुनाव नजदीक है. एक दलित की भूख से मौत हुई है. पानी एक्सप्रेस अपने रीते हुए डब्बों के साथ कई दिन से झांसी में खड़ी है. केंद्र राज्य को और राज्य केंद्र को घेर रहा है. सड़क के किनारे एक बुजुर्ग की बेनामी लाश पड़ी हुई है.

हालांकि ताजा अपडेट यह है कि इस लाश की शिनाख्त कर ली गई है. मृतक का नाम सुकलाल रायकवार है. उनकी उम्र 52 साल थी. पास ही के गांव गुगरवारा के रहने वाले थे. पांच बच्चे और चार एकड़ जमीन भी थी. पिछले दो साल से मजदूरी कर रहे थे. किसान क्रेडिट कार्ड और साहूकार का मिलाकर उन पर करीब एक लाख का कर्जा था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह साफ नहीं हो पाई है. उनकी पत्नी तेजा का कहना है कि पिछले पांच दिन से घर में चूल्हा नहीं जला था. पिछले तीन महीने से उन्हें सरकारी राशन नहीं मिल रहा है. कोटेदार ने बिना कोई ठोस कारण बताए इस परिवार का नाम अन्त्योदय योजना के लाभार्थियों की सूची से काट दिया था. सो सूखी रोटी के कुछ टुकड़ों, पानी की खाली बोतल, एक बीड़ी और चंद यतीम तीलियों के साथ मरना सुकलाल का अंजाम हुआ.