भारतीय क्रिकेट टीम लंबे समय तक अपने स्पिन गेंदबाजी आक्रमण के लिए जानी जाती रही है. 1970-80 के दशक में टीम में चार स्पिनर – ई प्रसन्ना, एस वेंकटराघवन, बी चंद्रशेखर और बिशन सिंह बेदी हुआ करते थे. इनमें भी चंद्रशेखर को जादुई माना जाता था. उनका एक हाथ पोलियो से प्रभावित था. आम इंसान के लिए यह कमजोरी हो सकता है लेकिन उन्होंने क्रिकेट में इसी को अपनी मजबूती बनाया. कहते हैं कि यह लेगस्पिनर जिस दिन अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होता था उस दिन इसे खेलना बल्लेबाजों के लिए तकरीबन नामुमकिन हुआ करता था. तब उनकी बॉल पिच पर गिरकर रहस्यमयी रूप से उछल सकती थी, स्पिन हो सकती थी और घूम सकती थी.
इंग्लैंड ने जब अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की तो इसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि इसी टीम ने पहली पारी में 355 रन बनाए थे. सारे बल्लेबाज चंद्रशेखर के आगे बेबस हो गए थे
टेस्ट क्रिकेट में भारतीय टीम को जो शुरुआती यादगार सफलताएं मिली हैं उनमें से एक का श्रेय चंद्रशेखर को ही जाता है. यह 1971 की गर्मियों की बात है. अजित वाडेकर के नेतृत्व में भारतीय टीम इंग्लैंड के दौरे पर थी. इससे पहले भारतीय टीम वेस्टइंडीज को टेस्ट सीरीज में हरा चुकी थी लेकिन इंग्लैंड में उसी के खिलाफ खेलना कोई आसान बात नहीं थी फिर भी भारतीय टीम किसी तरह से पहले दो टेस्ट मैच ड्रा करवाने में सफल रही. इस सीरीज का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण मैच लंदन के ओवल में होना था.
ओवल में आधा मैच खत्म होने तक भारतीय टीम पिछड़ने लगी थी. इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करके 355 रन बनाए थे. इसके जवाब में भारतीय टीम 284 रन ही बना पाई और 71 रन से पिछड़ गई. दो मैच ड्रा होने के बाद इस तीसरे मैच में बाजी इंग्लैंड के हाथ में जाती दिख रही थी. आंकड़े भी उसकी तरफ थे. फिर घरेलू मैदान का अतिरिक्त फायदा तो था ही. लेकिन इसी दौरान टीम का सामना चंद्रशेखर से होना था और उस समय यह भारतीय लेग स्पिनर अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में चल रहा था.
इंग्लैंड ने जब अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की तो इसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि इसी टीम ने पहली पारी में 355 रन बनाए थे. सारे बल्लेबाज चंद्रशेखर के आगे बेबस नजर आ रहे थे. इस लेग स्पिनर ने इंग्लैंड की बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी थी. उन्होंने इस पारी में 38 रन देकर छह खिलाड़ियों को आऊट किया था और इसके चलते इंग्लैंड की पूरी टीम 101 रन बनाकर आऊट हो गई. भारतीय टीम के सामने यह बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं था. उसने छह विकेट खोकर यह लक्ष्य हासिल कर लिया और इसके साथ भारतीय टीम ने पहली बार इंग्लैंड में उसी के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीतने का करिश्मा कर दिखाया था. अभी चंद्रशेखर को और करिश्मे करने थे लेकिन उससे पहले ही वे इस ऐतिहासिक जीत के नायक बनकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा चुके थे.
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