मलकपुर उत्तर प्रदेश के शामली जिले का एक छोटा-सा गांव है. फरवरी 2016 में एक दिन यहां एक दिलचस्प वाकया हुआ. कुछ लोग पानी से भरे लोटे लेकर गांव में पहुंचे और उस काठा नदी की तरफ बढ़ने लगे जो वर्षों पहले सूख चुकी है. इन लोगों ने गांव वालों को बताया कि वे इस मरी हुई नदी को पुनर्जीवित करने आए हैं. यह सुनकर लोग भौचक्के हो गए. 10-12 लोग हाथों में पानी के लोटे लिए कैसे पूरी नदी को पुनर्जीवित कर सकते हैं, इस उत्सुकता के चलते गांववाले भी इन लोगों के साथ-साथ काठा नदी की ओर बढ़ गए.

वहां पहुंचने पर गांववालों ने देखा कि इन लोगों ने पानी के लोटे सूखी नदी के पाट में खाली कर दिए. इस पर गांववालों ने इनका खूब मजाक बनाया. उन्होंने सवाल भी किया कि लोटे से पानी डालकर भला एक नदी कैसे भर सकती है. नदी को पुनर्जीवित करने आए इन लोगों में पर्यावरण से जुड़े वैज्ञानिक डॉक्टर उमर सैफ भी शामिल थे. सैफ बताते हैं, ‘हमने गांववालों के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि आप लोग ही तो कहते हैं कि बूंद-बूंद से सागर भरता है, फिर हम तो सिर्फ एक नदी भरना चाहते हैं और वह भी लोटों से.’

‘गांव के लोगों ने जब इस नदी को जीवित करने के अलग-अलग उपाय सुझाना शुरू किये तो उन्हें यह भी यकीन होने लगा कि यह कोई असंभव काम नहीं है. इसके बाद तो कारवां बढ़ता ही चला गया.’

यह सुनकर गांववाले कुछ गंभीर हुए. चर्चा शुरू हुई कि कहावतें अपनी जगह हैं लेकिन, इस तरह थोडा-सा पानी डालने से नदी जीवित नहीं हो सकती. इस पर डॉक्टर सैफ ने गांववालों से सवाल किया कि यदि यह नदी ऐसे जीवित नहीं हो सकती तो वे ही बताएं कि यह कैसे जीवित होगी. जवाब में गांववालों ने नदी को पुनर्जीवित करने के उपाय सुझाना शुरू किये और बहस उस दिशा में बढ़ गई जिस दिशा में डॉक्टर सैफ और उनके साथी चाहते थे. स्वाभाविक ही था कि अगर डॉक्टर सैफ और उनके साथी गांव में जाकर लोगों को इकट्ठा कर उनसे नदी को दोबारा जिंदा करने की बात करते तो, ज्यादातर लोग तो उनकी बात सुनने को ही ना राजी होते, वहीं एक बड़ा हिस्सा इन बातों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल चुका होता. ऐसे में लोटे भर पानी ने लोगों का ध्यान खींचने में बहुत मदद कर दी.

डॉक्टर सैफ बताते हैं, ‘हमारी तरकीब काम कर गई थी. हम यही चाहते थे कि नदी को जीवित करने के उपाय स्वयं गांववाले सुझाएं और इस काम में साझीदार बनें. गांववालों की प्रतिभागिता के बिना नदी को पुनर्जीवित करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था.’ वे आगे कहते हैं, ‘गांव के लोगों ने जब इस नदी को जीवित करने के अलग-अलग उपाय सुझाना शुरू किये तो उन्हें यह भी यकीन होने लगा कि यह कोई असंभव काम नहीं है. इसके बाद तो कारवां बढ़ता ही चला गया. आज सैकड़ों गांववाले इस नदी को पुनर्जीवित करने का प्रण ले चुके हैं.’

काठा नदी को पुनर्जीवित करने की इस मुहिम की शुरुआत मुस्तकीम मल्लाह ने की थी. 33 वर्षीय मुस्तकीम मलकपुर के पास ही स्थित रामडा गांव के रहने वाले हैं और काफी समय से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. बीते कई सालों में नदी बचाने के उनके अभियान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. इसमें दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सरकारों से मिले सम्मान के अलावा यूनीसेफ जैसी संस्था भी शामिल है. लेकिन काठा के पुनर्जीवन की शुरूआत करते हुए उन्हें यह कद हासिल नहीं था. इसलिए लोगों को साथ लाने और उन्हें इस असंभव लगने वाले काम के सच हो सकने का यकीन दिलाने के लिए भी बहुत मेहनत करनी पड़ी. मुस्तकीम मल्लाह बताते हैं, ‘हमने 2013 से काठा नदी पर काम करना शुरू किया था. यह नदी शामली और सहारनपुर के कुल 85 गांवों और 4 नगरों से होकर गुजरती है. लगभग इन सभी गांवों और नगरों के जनप्रतिनिधियों से हमने इस नदी को पुनर्जीवित करने की बात की. लेकिन किसी ने हमें गंभीरता से नहीं लिया.’ वे आगे बताते हैं, ‘मेरे अपने रामडा गांव के लोग भी शुरुआत में इस मुहिम में आगे नहीं आए. आखिरकार मलकपुर गांव के प्रधान आनंद सैनी जी ने हमारा साथ दिया और काठा नदी के लिए हर संभव मदद करने का वादा किया.’

पूरे गांव में यह मुहिम चलाई गई कि हर घर से एक-एक लोटा पानी काठा नदी में डाला जाएगा और हर व्यक्ति इसे पुनर्जीवित करने का संकल्प लेगा.

पांच साल पहले मलकपुर गांव के प्रधान आनंद सैनी और मुस्तकीम मल्लाह काठा नदी को पुनर्जीवित करने का विचार लेकर डॉक्टर उमर सैफ के पास पहुंचे थे. डॉक्टर सैफ इस क्षेत्र में एक जाना-पहचाना नाम हैं. वे देहरादून स्थित ‘हिमालयन इंस्टिट्यूट फॉर इकोलॉजी, एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट’ में निदेशक (रिसर्च) हैं और यमुना नदी पर काफी समय से काम कर रहे हैं. आनंद सैनी और मुस्तकीम ने जब काठा को पुनर्जीवित करने की बात उन्हें बताई तो उन्होंने न सिर्फ इसकी व्यावहारिक और वैज्ञानिक संभावनाएं तलाशना शुरू किया बल्कि गांववालों को इसमें प्रतिभागी बनाने की भी रणनीति बनाई. इसी रणनीति के तहत वे अपने कुछ साथियों के साथ लोटों में पानी लेकर काठा नदी में डालने पहुंचे थे. इसके बाद पूरे गांव में यह मुहिम चलाई गई कि हर घर से एक-एक लोटा पानी काठा नदी में डाला जाएगा और हर व्यक्ति इसे पुनर्जीवित करने का संकल्प लेगा. यानी, शुरूआत में जो काम ध्यान खींचने के लिए किया गया वह आगे चलकर संकल्प लेने की एक परंपरा की तरह निभाया जाने लगा.

काठा को पुनर्जीवित करने की दिशा में सबसे पहले डॉक्टर सैफ ने इस क्षेत्र की जीआईएस मैपिंग करवाई. इसके बाद इस पूरी योजना को कई चरणों में बांटा गया. डॉक्टर सैफ बताते हैं, ‘काठा को पुनर्जीवित करना एक बड़ा उद्देश्य है. इसमें अभी काफी समय लगेगा. साल 2016 में हमने इस नदी के एक किलोमीटर के क्षेत्र को गोद लिया था. यह क्षेत्र मलकपुर गांव के पास है.’ वे आगे बताते हैं, ‘पहले चरण में हमारा उद्देश्य था कि इस एक किलोमीटर के क्षेत्र को एक झील का रूप दिया जाए. इसके लिए नदी के इस दायरे में दोनों तरफ से पानी रोकने की व्यवस्था की गई थी. साथ ही यह झील उस तरफ बनाई जा गई जहां खेतों की ढाल का पानी भी जाता है. बरसात का सारा पानी भी हमें इस झील में जमा करना है. हमारा पहला उद्देश्य यही है कि आने वाली बरसात में इस क्षेत्र का एक-एक बूंद पानी यहीं रोक लिया जाए.’ हालांकि नदी को दोबारा जीवित करने के ये इरादे पहली बार में पूरे नहीं हो पाए क्योंकि इस साल 2016 और 2017 में इस इलाके में 35 फीसदी बारिश कम हुई. लेकिन इन सालों में इस तरह की छोटी-छोटी कई व्यवस्थाएं पूरी मुस्तैदी से तैयार की गईं. इसीलिए जब 2018 में बारिश का स्तर संतोषजनक हुआ और इन झीलों-बांधों अब जब लाखों क्यूबिक फीट पानी इकट्ठा होने लगा है तो नदी के दोबारा जीवित होने का ख्वाह सच होता सा लगने लगा है. यह और बात है कि इस अभियान से जुड़े लोग अभी इसे आधा सफर ही बताते हैं.

करीब पांच साल पहले लगभग 95 किलोमीटर लंबी काठा नदी पूरी तरह से सूखी हुई थी. अब भी इसके बड़े हिस्से में बरसात का जो पानी आता भी था तो वह भी बहकर यमुना में मिल जाता था.कुल मिलाकर काठा नदी का वजूद किसी नाले जितना ही था और इसीलिए बीते कई दशकों से इसे काठा नाला कहकर ही संबोधित भी किया जाता रहा है. डॉक्टर सैफ के अनुसार आज से लगभग 200 साल पहले काठा नदी को मार दिया गया था. अंग्रेजों ने उस दौर में पूर्वी यमुना नहर के निर्माण के लिए नदी का स्तर ऊंचा उठाया था. इसी प्रक्रिया में काठा का जलस्रोत काट दिया गया और तब से ही यह नदी पूरी तरह से सूखी हुई है. मुस्तकीम कहते हैं, ‘अच्छी बात यह है कि काठा नदी भले ही कई साल पहले मर गई लेकिन, इसका रिवरबेड आज भी वैसा ही बना हुआ है. इस पर कुछ लोग खेती जरूर करने लगे हैं लेकिन यह अतिक्रमण का वैसा शिकार बनने से बची हुई है जैसा कई अन्य नदियां बन चुकी हैं. साथ ही इसके आस-पास कोई फैक्ट्री भी नहीं है इसलिए इसमें कोई घातक रसायन नहीं हैं. इस नदी के तल में आज भी जीवन मौजूद है.’ यह तमाम बातें जहां इस बात को मजबूती देती हैं कि काठा नदी को पुनर्जीवित किया जा सकता है वहीं इस बात की तरफ भी इशारा करती हैं कि अगर पूरी तरह से ऐसा कर पाना संभव हो सका तो यह पर्यावरण को लाभ पहुंचाने के अलावा भी कई तरह से फायदेमंद साबित हो सकता है.

‘हमने प्रस्ताव रखा था कि इस काम को मनरेगा में शामिल कर लिया जाए. लेकिन आश्वासनों के अलावा हमें प्रशासन से कुछ नहीं मिला. इसलिए हम उनके भरोसे नहीं बैठे

काठा को जीवित करने की पहल में इन लोगों ने पहले प्रशासन से भी मदद मांगी थी. मलकपुर के प्रधान आनंद सैनी बताते हैं, ‘हमने प्रस्ताव रखा था कि इस काम को मनरेगा में शामिल कर लिया जाए. लेकिन आश्वासनों के अलावा हमें प्रशासन से कुछ नहीं मिला. इसलिए हम उनके भरोसे नहीं बैठे. हम खुद ही फावड़े उठाकर रोज़ काम पर निकल जाते हैं. जल्द ही हम अपना पहला उद्देश्य पूरा भी कर लेंगे.’ मलकपुर के लोगों को प्रशासन से मदद की उम्मीद इसलिए भी कम है क्योंकि पिछली सरकार ने भी इन लोगों से एक वादा किया था जो आज तक पूरा नहीं हुआ है. 2015 में हुए विधानसभा उपचुनाव के दौरान प्रदेश के सिंचाई मंत्री शिवपाल यादव इस क्षेत्र में आए थे. तब उन्होंने ग्रामीणों से यह वादा किया था कि यदि इस सीट पर समाजवादी पार्टी की जीत हुई तो वे यमुना नहर और गंगा का अतिरिक्त पानी काठा में भेजना सुनिश्चित करेंगे. इसके लिए सर्वे भी हुआ और योजना के लिए साढ़े पांच करोड़ का प्रस्ताव भी बनाया गया. समाजवादी पार्टी इस सीट से चुनाव जीत भी गई लेकिन, आज भी यह प्रस्ताव स्वीकृत होकर वापस गांववालों तक नहीं पहुंच पाया है.

इस मुहिम में शुरुआत से ही जुड़े रहे मलकपुर निवासी उमैद हसन अल्वी कहते हैं, ‘सरकार मदद करे तो ठीक लेकिन हम उसके भरोसे नहीं बैठेंगे. हमने सोच लिया है कि हमारा पानी हमें ही बचाना है.’ नदी पुनर्जीवन के लिए बनाई गई कई समिति-संगठनो की अगुराई कर रहे अल्वी आगे कहते हैं, ‘रोज़ सुबह प्रधान जी खुद फावड़ा उठा कर नदी की ओर बढ़ जाते हैं. इससे गांववालों का जबरदस्त उत्साह बढ़ता है और दर्जनों लोग बढ़-चढ़ कर नदी बचाने को उतर आते हैं. हम जिस तरह से लगे हुए हैं अभी और एक किलोमीटर की झील का काम हम अगले हफ्ते तक पूरा भी कर लेंगे.’ गांव के सिर्फ बड़े-बुजुर्ग ही नहीं बल्कि बच्चे भी इस मुहिम में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं. मुस्तकीम बताते हैं, ‘गांव के स्कूलों में हम लोगों ने जल-सेना बनाई है. इस सेना में शामिल बच्चे इस योजना में तो मदद कर ही रहे हैं, साथ ही वे अपने घर वालों को भी प्रेरित करते हैं कि सबमर्सेबल का इस्तेमाल कम-से-कम किया जाए.’ काठा नदी से जुड़े इस अभियान को मिली शुरूआती सफलता ने लोगों में जोश भी भर दिया है.

इस अभियान की शुरूआत से कुछ समय पहले मलकपुर और उसके आसपास के इलाकों में जलस्तर तेजी से घटा था. इसका एक मुख्य कारण सबमर्सेबल की बहुतायत भी है. गांव के जितने भी परिवार सबमर्सेबल लगाने में सक्षम हैं, उन्होंने यह लगा लिए हैं. हालांकि इसके बावजूद मलकपुर में पानी का वैसा संकट नहीं है जैसा उत्तरप्रदेश के ही बुंदेलखंड या महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में है. इसलिए भी मलकपुर में चल रहा नदी बचाने का यह प्रयास कुछ और ख़ास हो जाता है क्योंकि यहां लोग स्थिति के नियंत्रण से बाहर हो जाने से पहले ही पानी के संकट को भांप गए हैं और इस दिशा में काम करने लगे हैं. इन कोशिशों का नतीजा यह हुआ है कि गांवों में भूमिगत जल का स्तर घटना रुक गया है. गांववालों को उम्मीद है कि आने वाले सालों में यह बढ़ भी सकता है.

मलकपुर में चल रहा नदी बचाने का यह प्रयास कुछ और ख़ास हो जाता है क्योंकि यहां लोग स्थिति के नियंत्रण से बाहर हो जाने से पहले ही पानी के संकट को भांप गए हैं और इस दिशा में काम करने लगे हैं.

इस योजना के आगे के चरणों के बारे में डॉक्टर सैफ बताते हैं, ‘काठा नदी लगभग 90 किलोमीटर लम्बी है. हमारी योजना है कि धीरे-धीरे इस पूरी नदी में ऐसे ही पानी के कई कटोरे बना दिए जाएं जैसा अभी मलकपुर में बना है. कई अन्य गांवों के लोग अभी से हमसे जुड़ने भी लगे हैं. वे अपने-अपने यहां ऐसा ही करने को तैयार हैं. यदि ऐसा हुआ तो लगभग पानी की 90 झीलें तैयार हो जाएंगी जिनमें साल भर पानी होगा. यह लगभग 45 लाख वर्ग मीटर स्वच्छ और साफ पानी होगा. दूसरे शब्दों में कहें काठा फिर से पुनर्जीवित हो उठेगी. और यदि उत्तरप्रदेश सरकार अपने वादे के अनुसार यमुना का पानी इस तरफ मोड़ देती है तब तो यह काम बहुत ही जल्दी हो सकता है.’

हालांकि इस मुहिम का उद्देश्य सिर्फ काठा को पुनर्जीवित करना नहीं है. डॉक्टर उमर सैफ यह भी बताते हैं कि मकसद उस पूरी इकोलॉजी को भी फिर से स्थापित करना है जो कभी यहां हुआ करती थी. इसकी शुरुआत आने वाली दस जुलाई को गांव के लोग इस क्षेत्र में 50 हजार पेड़ लगाकर करेंगे. साथ ही आने वाले समय में यहां एक ‘बटरफ्लाई पार्क’ बनाने की योजना भी डॉक्टर सैफ ने गांववालों के साथ मिलकर बनाई है. अब इसके लिए भी प्रयास शुरू किए जाने लगे हैं. अच्छा यह है कि लोग अपने स्तर पर भी कई बार छोटी-छोटी कोशिशें करते दिख जाते हैं. फिर चाहे वह कोई छोटी आर्थिक मदद हो या नदी के पाटों के आसपास पेड़-पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने का काम. लेकिन मुहिम का मुख्य फोकस अभी मलकपुर जैसी झीलें बनाने का है जो वाटर चैनल को सुचारू बना सकें.

मलकपुर गांव में चल रही इस पहल का एक बेहद दिलचस्प पहलू और भी है. उत्तर प्रदेश का जो शामली जिला कुछ साल पहले सांप्रदायिक तनावों के चलते सुर्ख़ियों में था, जहां हज़ारों लोगों को सांप्रदायिक दंगों के चलते बेघर होना पडा था, उसी जिले का मलकपुर गांव आज सांप्रदायिक सौहार्द का उदाहरण बन रहा है. मलकपुर गांव की 55 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है लेकिन, इनका प्रतिनिधित्व एक हिंदू ग्राम प्रधान करता है. और इस मुहिम में यह हिंदू ग्राम प्रधान एक मुस्लिम वैज्ञानिक के दिशा-निर्देशों पर उन तमाम लोगों को अपने साथ लिए आगे बढ़ रहा है जो धार्मिक भेद-भाव से ऊपर उठकर अपनी साझी विरासत और अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की जिद्द पाले हुए हैं.

इसलिए शामली जिले का यह छोटा-सा गांव सिर्फ पानी की उस विराट समस्या से ही निपटने की प्रेरणा नहीं देता, जिसके चलते हजारों किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं, बल्कि उस सांप्रदायिक भेदभाव से उभरने की प्रेरणा भी देता है जिसके चलते देश में दर्जनों नरसंहार हो चुके हैं.