प्रधानमंत्री से मुलाकात
प्रधानमंत्री के साथ साक्षात्कार करना एक लंबा और बेहद मुश्किल काम हो सकता है. मुझे इसे खुद अनुभव करने का मौका पिछले साल अगस्त में मिला था.
नरेंद्र मोदी की सऊदी अरब की यात्रा से पहले मैंने दोनों देशों के संबंधों और अरब जगत में भारत की भूमिका को लेकर एक साक्षात्कार करने का अनुरोध उनसे किया था. कई दिनों तक चले ई-मेलों के आदान-प्रदान के बाद मुझे एक बेहद सीनियर अधिकारी का फोन आया. उनका कहना था - बॉबी मेरे पास एक अच्छी और एक बुरी खबर है. आप इनमें से कौन सी पहले सुनना चाहते हैं?
मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या कहूं. मैं कुछ कहता इससे पहले उन्होंने ही कहा कि ‘प्रधानमंत्री तैयार हो गए हैं.’ फिर उन्होंने कहा कि साक्षात्कार के दौरान मेरे साथ दो और पत्रकार मौजूद रहेंगे. मुझे यह सुनकर बेहद निराशा हुई क्योंकि इस वजह से यह एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू नहीं रह गया था. मेरे पास न चाहते हुए भी इसे मानने के अलावा कोई चारा नहीं था.
आखिरी क्षण तक हमें पता नहीं था कि मुलाकात कब और कहां होनी है. हमें बस इतना बताया गया था कि 15 अगस्त को लाल किले पर प्रधानमंत्री के भाषण के बाद यह कभी भी हो सकता है.
इसके बाद जो सवाल मुझे पूछने थे, मुझसे उन्हें भेजने के लिए कहा गया. फिर सिक्योरिटी क्लीयरेंस के लिए मुझसे कई जानकारियां मांगी गईं : मेरे ड्राइवर का नाम क्या है, मेरी कार का रजिस्ट्रेशन नंबर, फोटोग्राफर और उसके साज-सामान आदि के बारे में जानकारी...
आखिरी क्षण तक हमें पता नहीं था कि मुलाकात कब और कहां होनी है. हमें बस इतना बताया गया था कि 15 अगस्त को लाल किले पर प्रधानमंत्री के भाषण के बाद यह कभी भी हो सकता है. 14 अगस्त को कई फोन करने के बाद दिल्ली में जिससे मुझे संपर्क करना था, उसका नंबर दिया गया. उस युवा अधिकारी ने मुझे अगले दिन 12 बजे से पहले दिल्ली आने को कहा और यह भी कि साक्षात्कार की जगह और समय हमें बाद में बताये जाएंगे.
हवाई जहाज में चढ़ने से ठीक पहले, मेरे पास एक अजीबोगरीब फोन कॉल आया. यह कॉल प्रधानमंत्री के काफी नजदीक माने जाने वाले एक महत्वपूर्ण मुस्लिम व्यक्ति का था. ‘कर लीजिए पीएम साहब का इंटरव्यू, बड़े-बड़े लोग लाइन में बैठे हैं उनसे मिलने के लिए.’
मैं यह सोचकर चकित रह गया कि मेरी मुलाकात के बारे में उन्हें पता कैसे चला क्योंकि वे सरकार में शामिल नहीं थे.
अगले दिन दिल्ली में एक और झटका मेरा इंतजार कर रहा था. मेरे संपर्क अधिकारी ने मुझे बताया कि मेरा फोटोग्राफर मेरे साथ नहीं जा सकता और तस्वीरें प्रधानमंत्री का आधिकारिक फोटोग्राफर लेगा. मैंने इस बात को न मानने का फैसला किया और उनसे कह दिया कि मैं ऐसा नहीं कर सकता. काफी बहस के बाद फोटोग्राफर को सिर्फ एक शर्त पर अंदर जाने की अनुमति दी गई - वह केवल पांच मिनट वहां पर रुकेगा.
वहां पर हमें एक ऐसे कमरे में ले जाया गया जहां से एक बेहद हरा-भरा लॉन साफ दिख रहा था. वहां हमें इंटरव्यू किस तरह से होगा यह बताया गया.
इसके बाद हम लोग - मेरा ड्राइवर, मेरा फोटोग्राफर पंकज, मेरा भाई सैफी और मैं - भारत के सबसे मशहूर पते पर पहुंच गए. उस दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी. 7 आरसीआर के सबसे पहले चेकपॉइंट पर पहले तो एक बहुत ही तेज फ्लैशलाइट ने हमें कुछ पलों के लिए अंधा सा कर दिया, फिर एक सुरक्षा अधिकारी हमारे पास आया. तेज बारिश की वजह से हम एक-दूसरे को ठीक से सुन और समझ नहीं पा रहे थे. वह केवल इतना समझ पाया कि ‘हम दुबई से आये हैं’. उसने पूरी तसल्ली करने के लिए इन शब्दों को कई बार दोहराया.
इसके बाद वह अन्य सुरक्षाकर्मियों के पास चला गया. कुछ ही मिनट बाद वह लौटा और उसने हमें अपनी कार बैरियर से हटाकर लगाने के लिए कहने के बाद अपने पीछे आने का इशारा किया. वहां एक सुरक्षा अधिकारी ने फिर से हमारे बारे में जानकारियां लीं और उन्हें अंदर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के रेडियो सेट पर भेज दिया. कुछ समय के बाद मुझसे कहा गया कि हमारे फोटोग्राफर को अंदर जाने की अनुमति नहीं है. मैंने फिर से अपने संपर्क अधिकारी को फोन किया और अपनी समस्या बताई. तनाव भरे कुछ समय के बाद हमें अंदर जाने की अनुमति मिल गई. वहां से हमें विजिटर्स पार्किंग भेजा गया जो रिसेप्शन हॉल से कुछ ही दूरी पर स्थित है.
अंदर कड़ी सुरक्षा जांच के बाद हमें एक दूसरे कमरे में इंतजार करने के लिए कहा गया जहां पर बाद में एक स्निफर डॉग को भी लाया गया. इसके तुरंत बाद हमें एक एसपीजी अधिकारी द्वारा शटल कार में मुख्य इमारत में ले जाया गया. वहां पर हमें एक ऐसे कमरे में ले जाया गया जहां से एक बेहद हरा-भरा लॉन साफ दिख रहा था. वहां हमें इंटरव्यू किस तरह से होगा यह बताया गया.
मुलाकात समाप्त होने के तकरीबन एक घंटे के बाद, मुझे बातचीत की एक छपी हुई कॉपी दी गई जिसमें उन सवालों के जवाब भी थे जिन्हें मैं पूछ नहीं सका था.
‘तस्वीरें खिंचाने और हाथ मिलाने के बाद, प्रधानमंत्री आप की तरफ देखेंगे और तब आपको अपनी बात शुरू करनी है’ एक अधिकारी ने नम्र लेकिन दृढ़ स्वर में हमसे यह कहा. इसके बाद एक और झटका - मैं प्रधानमंत्री से केवल एक ही सवाल पूछ सकता हूं और मेरे बाकी सवालों के जवाब मुझे बाद में लिखित में मिल जाएंगे.
ब्रीफिंग के बाद हमें प्रधानमंत्री की टीम के सदस्यों से मिलवाया गया जिनमें बिहार के एक मुसलमान अधिकारी भी शामिल थे (हमें बताया गया कि प्रधानमंत्री का सिलिकॉन वैली वाला मशहूर भाषण उन्होंने ही लिखा था).
मुलाकात जैसे कहा गया था बिलकुल वैसी ही हुई. गर्मजोशी से हाथ मिलाने के बाद, हमने हिंदी में मेरी देर रात की फ्लाइट और उनके लाल किले के भाषण के बारे में बात की. एक अन्य पत्रकार ने, जिन्हें इसके बाद बात करनी थी (वे अमेरिका से आये थे और ड्यूटी फ्री शॉप से पीएम के लिए एक उपहार भी लाए थे) एक अनुवादक की मदद से, जोकि पब्लिसिटी डिवीजन की एक वरिष्ठ महिला अधिकारी थीं, बात की. मुलाकात समाप्त होने के तकरीबन एक घंटे के बाद, मुझे बातचीत की एक छपी हुई कॉपी दी गई. इसमें वे सवाल भी थे जिन्हें मैं पूछ नहीं सका था.
आज मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ जब मैंने यह पढ़ा कि टाइम्स नाउ से साक्षात्कार के पहले ही पूछे जाने वाले सवाल मांग लिये गये थे. मुझे नहीं पता कि ऐसा सारे प्रधानमंत्रियों के साथ होता है या फिर केवल यही सरकार ऐसा करती है.
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