डिब्बाबंद खाने और बोतलबंद पानी को बाजार में आए ठीक-ठाक समय हो चुका है. फिर भी कुछ दिनों पहले तक हवा को डिब्बे या बोतल में बंद करके बेचने की बात बड़ी अजीब और अविश्वसनीय लगती थी. हालांकि 20वीं सदी के अंतिम दशकों में जब भारत में बिसलरी ने बोतलबंद पानी बेचना शुरू किया तो बोतल में पानी बिकता देखकर हमारे पारखी बुजुर्गो ने कहा था कि इस मुल्क में एक दिन हवा भी बिकेगी.
और वह दिन आ ही गया. जमीन और पानी के बाद अब हवा की बिक्री भी शुरू हो गई है. गंगा और हिमालय के शुद्ध पानी की तर्ज पर अब पहाड़ों की शुद्ध हवा के कैन भी भारतीय बाजार में आने को तैयार हैं. कनाडा की एक कम्पनी ‘वाइटैलिटी एयर‘ ने रॅाकी पर्वतमाला की शुद्ध हवा को बोतल में बंद करके बेचना शुरू किया है. कंपनी ने ‘बैंफ एयर‘ और ‘लेक लुईस‘ नाम की दो तरह की साफ हवा की बोतलें बाजार में उतारी हैं. बैंफ एयर के तीन और आठ लीटर वाले कैन की कीमत लगभग 1450 रुपये से 2800 रुपये के बीच है. हर एक कैन में कंप्रेस्ड हवा भरी गई है जिसे मास्क पहनकर इस्तेमाल किया जाता है. इनकी कीमत के हिसाब से देखा जाए तो एक सांस की कीमत 12.50 रुपये बैठती है.
जमीन और पानी के बाद अब हवा की बिक्री भी शुरू हो गई है. गंगा और हिमालय के शुद्ध पानी की तर्ज पर अब पहाड़ों की शुद्ध हवा के कैन भी भारतीय बाजार में आने को तैयार हैं
कंपनी के संस्थापक मोसेस लैम का कहना है कि हवा बेचने का विचार उन्हें मिनरल वाटर की बोतल देखकर आया. कंपनी ने 2014 में एक प्रयोग के तौर पर हवा का एक पैकेट आॅनलाईन बेचा. लैम को अंदाजा भी नहीं था कि हवा बेचने का उनका यह अव्यावहारिक सा विचार बड़ा कारोबार बनने वाला है. साल 2013 में जब कनाडा में कैलगरी के जंगलों में लगी आग के चलते वहां सांस लेना मुश्किल हो गया था तो साफ हवा के कैन का वहां बहुत इस्तेमाल हुआ.
‘वाइटैलिटी एयर‘ वैसे तो उत्तर अमेरिका से लेकर मध्य-पूर्व के देशों तक हवा बिक्री का कारोबार कर रही है, लेकिन सबसे ज्यादा सफलता उसे चीन में मिली है. 2015 के अंत में जब पहली बार चीन के बाजार में बोतलबंद हवा बेची गई, तो पहली ही बार में 500 बोतलें हाथों-हाथ बिक गई. आज स्थिति यह है कि बोतलबंद हवा को लोग अपने दोस्तों और प्रियजनों को उपहार तक में दे रहे हैं. बीजिंग और शंघाई जैसे शहरों में साफ हवा के कैन अब आम बात हो चुके हैं.
चीन में मिली सफलता के बाद अब भारतीय बाजार, खासतौर से दिल्ली, में साफ हवा के कैन बेचने की तैयारी चल रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 18 शहर एशिया में हैं, जिनमें से 13 तो अकेले भारत में ही हैं. दिल्ली भी इनमें से एक है. हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में होने वाला प्रदूषण का प्रकोप इस बाज़ार की बुनियाद को और मजबूत कर रहा है.
सवाल यह है कि क्या हवा की ये बोतलें प्रदूषण के बीच साफ और ताजी हवा की सांस के आम आदमी के सपने को पूरा कर सकेंगी?
यानी भारत डिब्बाबंद साफ हवा के लिए बड़ा बाजार है. इसलिए ‘वाइटैलिटी एयर‘ अब इस बाजार की तरफ अपना रूख कर चुकी है. जल्द ही साफ हवा के ये कैन आपको अपने आसपास के शॉपिंग मॉल्स में दिख सकते हैं.
लेकिन क्या हवा के ये कैन प्रदूषण के बीच साफ और ताजी हवा की सांस के आम आदमी के सपने को पूरा कर सकेंगे? यदि हां तो कैसे और यदि नहीं तो क्यों? यह अपने आप में विडंबना ही है कि सालों पहले सिर्फ खाना, हवा और पानी बुनियादी जरूरत माने जाते थे. बढ़ते प्रदूषण और मिलावट के कारण अब हर जगह ‘साफ‘ शब्द की अहमियत बढ़ गई है. अब खाना, पानी और हवा मिलना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि साफ खाना, साफ हवा, साफ पानी का मिलना महत्वपूर्ण है.
अशुद्धता और मिलावट के दौर में जैसे-जैसे सफाई और शुद्धता की मांग बढ़ी, बाजार ने इसकी तरफ ध्यान दिया और ‘साफ‘ पानी, ‘साफ‘ हवा उपलब्ध कराने के बदले मनचाही कीमत वसूलनी शुरू कर दी. साफ हवा और पानी हर एक इंसान की बराबर जरूरत है, लेकिन बाजार द्वारा अलग से सफाई की कीमत तय करने के बाद ऐसी चीजें अब सिर्फ पैसे वाले तबके की पसंद और पहुंच तक सिमट के रह गई हैं. इसलिए साफ हवा के ये कैन पूरे समाज के साफ हवा में सांस लेने के सपने को पूरा नहीं कर सकते.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आण्विक जीव विज्ञान के विभागाध्यक्ष डाॅ सुनीत कुमार सिंह कहते हैं, ‘बोतलबंद हवा पर कब तक निर्भर रहा जा सकता है. अमीर लोग तो आसानी से इसे खरीद लेंगे, लेकिन गरीब आदमी का क्या? भारत जैसे देशों में बोतलबंद हवा की योजना बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं है.‘ जाहिर है जैसे साफ पानी की बोतलें हर किसी के लिए नहीं हैं, वैसे ही साफ हवा भी हर किसी के लिए नहीं है. वैसे भी जिस आबादी के पास दो वक्त भरपेट खाने और पानी तक की सुविधा नहीं है, उनके लिए साफ हवा के कोई मायने नहीं हैं.
‘बोतलबंद हवा पर कब तक निर्भर रहा जा सकता है. अमीर लोग तो आसानी से इसे खरीद लेंगे, लेकिन गरीब आदमी का क्या?
एक पूर्ण रूप से स्वस्थ इंसान एक मिनट में 12 बार सांस लेता है. इस हिसाब से वह पूरे दिन में 17280 सांसें लेता है। साफ हवा के कैन में एक सांस की कीमत 12.50 रुपये है. इस दर से किसी भी इंसान को एक पूरे दिन में साफ हवा के लिए दो लाख 16 हजार रुपये खर्च करने पड़ेंगे. जिस देश की प्रति व्यक्ति आय 7378 हजार रुपये प्रतिमाह हो वहां साफ हवा की बिक्री आम जनता के संग एक भद्दा मजाक नहीं तो क्या है?
असल में साफ पानी और हवा अब अभिजातीय सपना बन गए हैं. हम अपने बच्चों को सबसे कीमती, खूबसूरत और काम आने योग्य जो तोहफे दे सकते थे वे हमने उनसे हमेशा के लिए छीन लिये हैं. साफ हवा, साफ पानी और स्वच्छ पर्यावरण आने वाली पीढ़ियों के लिए सबसे बड़ा और कीमती तोहफा होते. बल्कि ये स्वस्थ जीवन की बुनियादी जरूरतें हैं. लेकिन एक चुनिंदा वर्ग के लिए किये जाने वाले अंधाधुंध विकास ने समाज के बड़े तबके की बुनियादी जरूरतों का हक हमेशा के लिए छीन लिया है. काश! अपने बच्चों को हम साफ हवा के कैन की जगह साफ पर्यावरण का तोहफा दे सकते!
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