21 नवंबर, 1962. व्हाइट हाऊस के कैबिनेट रूम में एक महत्वपूर्ण मीटिंग चल रही है. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने मीटिंग में मौजूद नासा के मुख्य प्रशासक जेम्स वेब से पूछते हैं, ‘चंद्रमा तक पहुंचना नासा की पहली प्राथमिकता नहीं है?’ वेब इनकार में सिर हिलाते हैं, ‘यह हमारी शीर्ष प्राथमिकता नहीं है.’
कैनेडी को यह बात ठीक नहीं लगती. वे जेम्स वेब से नासा की ‘प्राथमिकताएं’ बदलने पर जोर देते हुए कहते हैं, ‘यह राजनीतिक वजहों, अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक वजहों से महत्वपूर्ण है. आपको ठीक लगे या न लगे अब यह काम एक दौड़ का हिस्सा बन चुका है.’ बैठक के दौरान अचानक राजनीति और विज्ञान आमने-सामने खड़े हो जाते हैं. जेम्स वेब, जॉन एफ कैनेडी को आगाह करते हैं कि नासा के वैज्ञानिक चंद्रमा पर मानव उतारने की किसी भी परियोजना को लेकर संदेह में हैं. वे कहते हैं, ‘हम चंद्रमा की सतह के बारे में कुछ भी नहीं जानते.’ उनकी राय थी कि अंतरिक्ष के बारे में और गहराई से अध्ययन के बाद ही अमेरिका इस दौड़ को जीत सकता है.
जब 1957 में सोवियत संघ ने पहले मानव निर्मित सेटेलाइट स्पूतनिक को अंतरिक्ष में स्थापित किया तो यह क्षेत्र अचानक ही शीत युद्ध का एक नया मोर्चा बन गया
कैनेडी इन तर्कों को स्वीकार करने को तैयार नहीं होते. चंद्रमा तक पहुंचने की दौड़ में सोवियत संघ (तत्कालीन यूएसएसआर) को हराने का महत्व बताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति कहते हैं, ‘हम उम्मीद करते हैं कि हम उन्हें हराएंगे. हमने कुछ ही साल पहले अपना कार्यक्रम शुरू किया है लेकिन हम उन्हें बताएंगे कि हमारा कार्यक्रम उनके बाद भले ही शुरू हुआ हो पर हम उनसे आगे निकल चुके हैं.’
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष की दौड़ दोनों देशों के बीच चल रहे शीत युद्ध का ही एक मोर्चा थी. शीत युद्ध मूल रूप से दोनों खेमों के बीच लोकतांत्रिक-पूंजीवादी बनाम सैन्य-साम्यवादी व्यवस्था का संघर्ष था जो सबसे पहले बड़े स्तर पर कोरिया युद्ध (1950-53) में दिखा. यहां उत्तर कोरिया की साम्यवादी सरकार को सोवियत खेमे का समर्थन था तो दक्षिण कोरिया की तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी देश थे. दोनों देशों के बीच यह तनाव एशिया से लेकर यूरोप में जर्मनी तक चलता रहा. यह एक तरह की जमीनी लड़ाई थी जहां ये देश एक दूसरे से सीधे उलझने के बजाय दूसरों के कंधों पर रखकर बंदूकें चला रहे थे.
यही जमीनी लड़ाई उस समय अंतरिक्ष की दौड़ में बदल गई जब 1957 में सोवियत संघ पहले मानव निर्मित सेटेलाइट स्पूतनिक को अंतरिक्ष में छोड़ने में कामयाब हो गया. कैनेडी वेब से जिन सालों की बात कर रहे थे उनमें सोवियत संघ अंतरिक्ष की दौड़ का सबसे तेज धावक था. स्पूतनिक के दो साल बाद उसने चंद्रमा पर लूना 2 नाम का प्रोब भी उतार दिया. उसी साल उसके लूना 3 मिशन ने चंद्रमा के उस हिस्से की तस्वीरें भी खींचीं जो धरती से नहीं दिखता. यूरी गैगरिन को 1961 में बाह्य अंतरिक्ष में भेजने के साथ ही सोवियत संघ वह पहला देश बना जो इंसानों को पृथ्वी की कक्षा में भेजकर सुरक्षित वापस ला सकता था. लूना 3 मिशन के बाद चंद्रमा तक पहुंचने के उसके और भी अभियान लगातार सफल हुए.
सोवियत संघ ने भी सत्तर के दशक के आखिर में एन1 नाम का एक ताकतवर रॉकेट बना लिया था जो इंसान को चंद्रमा तक पहुंचा सकता था. लेकिन इस रॉकेट के कई शुरुआती परीक्षण असफल रहे
इधर जमीन पर शीतयुद्ध एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच रहा था. 1961 में अमेरिका ने इटली और तुर्की में अपनी ज्यूपिटर मिसाइलें तैनात कर दीं. इनकी रेंज मॉस्को तक थी. इसके जवाब में एक साल बाद ही सोवियत संघ ने लैटिन अमेरिकी देश क्यूबा में अपनी परमाणु मिसाइलें तैनात करने का फैसला कर लिया. इससे विश्व के दो सबसे ताकतवर देश परमाणु युद्ध की कगार पर पहुंच गए थे. इसे क्यूबा मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है. हालांकि बाद में दोनों देशों के बीच समझौता हो गया और अमेरिका को यूरोपीय देशों से अपनी परमाणु मिसाइलें हटानी पड़ीं. सोवियत संघ ने भी क्यूबा से अपने हथियार हटा लिए.
1961 में कैनेडी ने अमेरिकी संसद के एक संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि उनका लक्ष्य है कि दशक के आखिर तक अमेरिका चांद पर मानव भेज दे. लेकिन क्यूबा मिसाइल संकट ने इसे उनका सबसे पहला राजनीतिक लक्ष्य बना दिया. क्यूबा मिसाइल संकट अक्टूबर, 1962 की बात है और कैनेडी और नासा के मुख्य प्रशासक के बीच जिस बातचीत की चर्चा हमने शुरू में की वह इसके एक महीने बाद नवंबर की है. 2011 में बोस्टन स्थित जॉन एफ केनेडी प्रेजिडेंशियल लाइब्रेरी एंड म्यूजियम ने इस बातचीत के टेप सार्वजनिक किए थे जिनसे साफ पता चलता है कि अमेरिका का चंद्र अभियान राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते इतनी तेजी से आगे बढ़ा था.
व्हाइट हाउस की बातचीत आगे बढ़ती है और कैनेडी, जेम्स वेब को याद दिलाते हैं कि संघीय सरकार नासा के कार्यक्रमों पर भारी-भरकम रकम खर्च कर चुकी है. वे यह भी कहते हैं कि भविष्य में उनकी सरकार सिर्फ चंद्रमा से जुड़े अभियानों को ही धन देगी. चंद्र अभियान को प्रथमिकता न बनाने के लिए वे नासा को चेतावनी देते हुए अपनी अंतिम बात कहते हैं, ‘यदि ऐसा नहीं होता है तो हमें इतना पैसा दूसरे अभियानों पर खर्च करने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेरी अंतरिक्ष में कोई दिलचस्पी नहीं है.’
इस समय तक नासा चंद्रमा के अध्ययन के लिए रेंजर अभियान शुरू कर चुका था. लेकिन इसके छह अभियान असफल होने और सोवियत संघ के लगातार सफल होने से अमेरिकी नागरिकों के बीच हताशा का माहौल था. कैनेडी को अमेरिका का राष्ट्रपति बने दो साल पूरे होने जा रहे थे. उन्हें लगता था कि अमेरिका को अब किसी भी कीमत पर अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल करनी है. जॉन एफ कैनेडी एंड द रेस टू द मून के लेखक जॉन लॉग्सडन एक रिपोर्ट में बताते हैं, ‘सोवियत संघ ने सफल अभियानों के जरिए एक तरह से अंतरिक्ष को खेल का मैदान बना दिया था और कैनेडी के पास इस चुनौती को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.’
नासा चंद्रमा के अध्ययन के लिए रेंजर अभियान शुरू कर चुका था. लेकिन इसके छह अभियान असफल होने और सोवियत संघ के अभियान लगातार सफल होने से अमेरिका में हताशा का माहौल बन गया
कैनेडी के पहले आइजनहॉवर अमेरिका के राष्ट्रपति थे और उन्होंने रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रमों का जवाब देने के लिए अमेरिका में विज्ञान और तकनीक की शिक्षा में भारी निवेश किया था. 1970 के दशक की शुरुआत में यहां से ऐसे ग्रेजुएट निकलने लगे थे जो नासा के अपोलो मिशन की जरूरतों को पूरा कर सकें. संस्थान के पास अब मानव संसाधन पर्याप्त संख्या में था. कैनेडी की वजह से उसे भारी फंड भी मिल गया. चंद्रमा के अध्ययन के लिए चल रहे नासा के रेंजर अभियान अब सफल होने लगे थे.
उधर सोवियत संघ का अंतरिक्ष अभियान भी चंद्रमा पर किसी इंसान को पहुंचाने की दिशा में काफी आगे बढ़ चुका था. उसने सत्तर के दशक के आखिर में एन1 नाम का एक ताकतवर रॉकेट बना लिया था जो इंसान को चंद्रमा तक पहुंचा सकता था. लेकिन इस रॉकेट के कई परीक्षण असफल रहे. इसी समय अमेरिका ने भी इस मकसद के लिए सेटर्न 5 नाम का रॉकेट तैयार करके उसके सफल परीक्षण भी कर लिए थे. अपोलो 11 मिशन में इसी रॉकेट का उपयोग किया जाना था. अब नासा के ऊपर दबाव कुछ कम हो गया था. फिर यह दबाव पूरी तरह हटने का वह दिन 16 जुलाई, 1969 को आया. इस दिन अपोलो-11 मिशन चंद्रमा के लिए रवाना हुआ. अंतरिक्ष की दौड़ में अमेरिका इसी दिन सोवियत संघ से आगे हो गया क्योंकि उसका रॉकेट पहले प्रयास में ही चंद्रमा की कक्षा तक पहुंच गया था.
इस पूरी अंतरिक्ष दौड़ का सबसे ऐतिहासिक दिन 20 जुलाई का रहा. इस दिन जब नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एडविन एल्ड्रिन चंद्रमा पर उतरे तो दोनों देशों के बीच यह प्रतियोगिता खत्म हो चुकी थी. अमेरिका इस दौड़ का सबसे तेज धावक बन चुका था. साथ ही पूरी दुनिया को यह भी पता चल गया कि शीतयुद्ध का विजेता भी अमेरिका ही है. चंद्रमा पर अपना झंडा फहराने के साथ ही अमेरिका विश्व का सिरमौर बन गया. कैनेडी अपने देश की यह उपलब्धि देखने के लिए जीवित (1963 में ही उनकी हत्या हो गई थी) नहीं थे. लेकिन उन्होंने साबित कर दिया था कि कभी-कभार जब राजनीतिक महत्वाकांक्षा का विज्ञान से मेल होता है तो मानवीय सभ्यता दुर्लभतम उपलब्धियां हासिल करती है.
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