आज से 75 साल पहले के दो बयान या भाषण विश्व इतिहास की दिशा बदलने के बहुत बड़े संकेत माने जाते हैं. इनमें पहला छह अगस्त, 1945 का है. इस दिन अमेरिका के राष्ट्रपति ने एक बयान जारी किया, ‘सोलह घंटे पहले अमेरिका के एक विमान ने हिरोशिमा पर बम गिराया है और दुश्मनों के लिए इस शहर की उपयोगिता खत्म कर दी है... यह परमाणु बम है. ब्रह्मांड की मूलभूत ऊर्जा से तैयार किया गया बम. वही ऊर्जा जिससे सूरज अपनी शक्ति पाता है. यह शक्ति उन लोगों के खिलाफ इस्तेमाल की गई है जिन्होंने सुदूर पूर्व में युद्ध छेड़ा है.’
हैरी ट्रूमैन जब यह बयान जारी कर रहे थे तब तक जापान का हिरोशिमा एक जीवंत शहर से श्मशान में तब्दील हो चुका था. तकरीबन एक लाख लोग मारे जा चुके थे या उनकी मौत सुनिश्चित थी. इस तरह ‘सूरज की शक्ति’ वाले बम ने पहली बार ‘सूर्योदय के देश’ के साथ-साथ पूरी दुनिया को अपनी विनाशक ताकत से परिचित करवा दिया था. ट्रूमैन का भाषण इसी बात की गवाही देता था. इसपर जापान की तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई लेकिन पूरी दुनिया ने मान लिया था कि अब विश्व युद्ध का अंत ज्यादा दूर नहीं है. 72 घंटे के बाद नौ अगस्त को एक और परमाणु बम नागासाकी पर गिराया गया. इससे एक दिन पहले ही रूस की सेना भी जापान प्रशासित मंचूरिया में घुस चुकी थी. अब वह भी जापान के खिलाफ मित्र देशों के साथ आ गया और इनके हिसाब से जापानी साम्राज्य का ढहना बस औपचारिकता भर रह गई.
14 अगस्त, 1945 की रात हीरोहितो ने राजमहल में जापानी रेडियो सेवा के अधिकारियों को बुलाकर अपना संदेश रिकॉर्ड करवा दिया था लेकिन कुछ देर बाद ही यहां सेना के विद्रोही धड़े ने धावा बोल दिया
लेकिन मित्र देशों के लिए यह इंतजार पांच दिन लंबा खिंचा. ये पांच दिन जापान के इतिहास में सबसे उथल-पुथल भरे कहे जाते हैं. इन्हीं दिनों में एशिया की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताकत के पतन की कहानी लिखी गई.
नागासाकी को परमाणु बम से निशाना बनाए जाने की खबर जब जापान की युद्ध निर्देश परिषद (मंत्रियों का एक समूह) को मिली तब उसने पहली कोशिश शांति स्थापना या आत्मसमर्पण की नहीं की. बल्कि उसने पूरे देश में आपातकाल लगा दिया. नौ अगस्त की रात में मंत्रिमंडल की बैठक चल रही थी लेकिन वह आत्मसमर्पण की शर्तों पर एकमत नहीं हो पा रहा था. आखिरकार युद्ध मंत्री कोरिचिका अनामी सदस्यों के साथ जापान के सम्राट हीरोहितो से मिलने पहुंच गए. युद्ध या शांति में किसी एक को चुनने का फैसला सम्राट को करना था. जापान में ऐसी मीटिंग बहुत ही असाधारण मानी जाती थीं क्योंकि सम्राट किसी कैबिनेट मीटिंग में शामिल नहीं होता था. हालांकि इसबार स्थितियां असाधारण ही थीं.
जापान के प्रधानमंत्री कंतारो सुजूकी, अनामी और बाकी सदस्यों को राजमहल की लाइब्रेरी के नीचे 60 फीट गहराई में निर्मित एक बंकर में बैठाया गया. मध्यरात्रि के समय जापानी साम्राज्य के सम्राट हीरोहितो सैनिक वर्दी पहने हुए यहां पर आए. उस दिन उन्हें परंपरा के विपरीत मंत्रिमंडल के सभी 11 सदस्यों की बात ध्यान से सुननी थी और फैसला करना था. दस तारीख की सुबह होने में बस एक घंटा बाकी था और मंत्रिमंडल के सदस्य अपनी सारी बातें सम्राट के सामने रख चुके थे. इसी वक्त जापानी राजशाही की एक और परंपरा टूटी. प्रधानमंत्री ने वह काम किया जो अब तक किसी कैबिनेट प्रमुख ने नहीं किया था. सुजूकी ने सम्राट हीरोहितो से कहा कि वे राजाज्ञा जारी करें. यानी अपनी आवाज में जनता को संदेश दें. इतिहासकारों के मुताबिक उस बैठक में आखिरी शब्द हीरोहितो के ही थे. उन्होंने जापान को आगे युद्ध जारी रखने में अक्षम बताते हुए कहा, ‘समय आ गया है जब हम सहन न करने योग्य बातों को सहन करें... मैं खुद अपने आंसू पीकर मित्र राष्ट्रों के घोषणापत्र (जापान के आत्मर्पण की शर्तें) के प्रस्ताव को मानने की अनुमति देता हूं.’
14 अगस्त तक जापान सरकार की कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न देख हैरी ट्रूमैन ने ब्रिटेन के राजदूत को बुलाकर सूचना दी कि अमेरिका टोक्यो पर भी परमाणु बम गिराने पर विचार कर रहा है
दस अगस्त को जापान के विदेश मंत्री ने मित्र देशों के संदेश भिजवा दिया कि जापान पोट्सडाम घोषणा पत्र के अनुसार आत्मसमर्पण को तैयार है. जुलाई, 1945 में अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और रूस के बीच जर्मनी के बीच पोट्सडाम में एक सम्मेलन आयोजित हुआ था जिसमें जापान के आत्मसमर्पण की शर्तें तय की गई थीं. हालांकि जापान ने इस संदेश के साथ यह भी साफ किया कि आत्मसमर्पण के समय जापानी सम्राट के प्रति कोई असम्माजनक शर्त नहीं मानी जाएगी और वे देश के प्रमुख बने रहेंगे.

अगले ही दिन मित्र देशों की तरफ से भी जापानी सरकार को जवाब मिल गया. इसमें कहा गया, ‘सम्राट की सत्ता और जापान की सरकार द्वारा शासन करने के अधिकार का फैसला मित्र देशों की संयुक्त सेना के कमांडर के हाथ में होगा.’ अमेरिका में ज्यादातर लोगों को भरोसा हो चला था कि स्थायी शांति आ चुकी है. दस तारीख में न्यूयॉर्क टाइम्स ने पहले पन्ने पर पहली खबर का शीर्षक दिया, ‘जापान ने आत्मसमर्पण का प्रस्ताव दिया’. जापान में आम जनता इससे अनजान थी कि सरकार आत्मसमर्पण के लिए तैयार है. उसके लिए युद्ध जारी था. इसी दिन वहां अखबारों में अनामी के हवाले से खबर छपी थी कि उन्होंने सेना को संबोधित करते हुए कहा है कि उसे आखिरी दम तक लड़ना है चाहे इसका मतलब घास खाकर जिंदा रहना और खुले में सोना क्यों न हो.
12 अगस्त को अमेरिका ने घोषणा कर दी कि वह जापान का आत्मसमर्पण स्वीकार कर लेगा. यह भी कि सम्राट पर युद्ध अपराध से जुड़ा कोई मुकदमा नहीं चलेगा. अमेरिकी प्रशासन की तरफ से यह भी कहा गया कि सम्राट जापान के शीर्ष व्यक्ति बने रह सकते हैं लेकिन सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से. इसके बाद जापान के मंत्रिमंडल में बहस छिड़ गई कि इस प्रस्ताव को माना जाए कि नहीं. अमेरिका इस बीच जापान के इरादों को लेकर सशंकित हो गया और 13 अगस्त से जापान के शहरों पर फिर हवाई हमले शुरू हो गए. इनमें हजारों लोग फिर मारे गए.
दस अगस्त को जापानी अखबारों में युद्धमंत्री के हवाले से खबर छपी. उन्होंने सेना को संबोधित करते हुए कहा था कि उसे आखिरी दम तक लड़ना है चाहे इसका मतलब घास खाकर जिंदा रहना क्यों न हो
14 अगस्त तक जापान सरकार की कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न देख हैरी ट्रूमैन को यह आशंका हो गई कि शायद जापान आत्मसमर्पण को तैयार नहीं है. ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक उन्होंने इसी दिन ब्रिटेन के राजदूत को बुलाकर बात की और सूचना दी कि अमेरिका टोक्यो पर परमाणु बम गिराने पर विचार कर रहा है. उधर अमेरिकी बी-29 बमवर्षक विमानों ने इस दिन जापान के सैन्य ठिकानों पर भारी बमबारी की. कुछ विमानों ने टोक्यो को ऊपर उड़ान भरी और हजारो पैंफलेट गिराए. इनमें अमेरिका द्वारा आत्मसमर्पण के प्रस्ताव का वही संदेश था जो उसने 12 अगस्त को जापानी सरकार के सामने पेश किया था. इसदिन पहली बार जापानियों को पता चला कि उनका देश आत्मसमर्पण करने जा रहा है.
14 अगस्त को सम्राट हीरोहितो ने कैबिनेट की मीटिंग बुलाई. यहां सेना समर्थक सदस्य इस बात पर अड़ गए कि यह युद्ध मरते दम तक जारी रहना चाहिए. लेकिन सम्राट इसपर सहमत नहीं थे. उन्हों सीधे शब्दों में कहा कि मित्र देशों की तमाम शर्तों को मान लिया जाए और जापानी सरकार युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दे. सम्राट की यह स्वीकारोक्ति भी मित्र देशों तक पहुंचा दी गई. हीरोहितो ने यह भी आदेश दिया कि जापानी जनता के लिए उनका एक संदेश रिकॉर्ड किया जाए और इसका रेडियो पर प्रसारण हो. अब तक यह बात आम लोगों तक पहुंच चुकी थी जापान आत्मसमर्पण करने वाला है और इसकी घोषणा खुद सम्राट करेंगे. जापान के अखबार बताते हैं कि उसी दिन सैकड़ों जापानी राजमहल के सामने इकट्ठे हो गए और मांग करने लगे कि सम्राट ऐसा न करें. इसी समय जापानी सेना का एक धड़ा कुछ अधिकारियों के साथ सरकार का तख्तापलट करने की योजना बना रहा था.
14 अगस्त की रात हीरोहितो ने राजमहल में जापानी रेडियो सेवा के अधिकारियों को बुलाकर अपना संदेश रिकॉर्ड करवा दिया था. इसके कुछ देर बाद ही राजमहल पर सेना के विद्रोही धड़े ने धावा बोल दिया. उस घटना के बारे में जापान के उपन्यासकार कजूतोशी हांडो ने अपनी एक किताब में लिखा है, ‘सेना के युवा अधिकारियों को लगता था कि सम्राट के करीबी लोगों ने उन्हे बरगलाकर उनसे आत्मसमर्पण की बात कहलवाई है. उनमें से एक अधिकारी (मेजर केंजी हतानाका) ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर राजमहल के शाही सुरक्षा दस्ते के प्रमुख पर हमला कर उसे मार दिया. उन्होंने सम्राट के संदेश की रिकॉर्डिंग भी ढूंढ़ने की कोशिश की लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं रहे.’ 15 अगस्त की सुबह सम्राट के वफादार सैनिकों ने इन विद्रोहियों को काबू कर लिया.
अब वह दिन आ चुका था जब जापान आत्मसमर्पण की घोषणा करने वाला था. उस दिन देश की आम जनता ने अपने ‘भगवान’ सम्राट हीरोहितो की आवाज पहली बार रेडियो के माध्यम से सुनी
अब वह दिन आ चुका था जब जापान मित्र देशों सहित अपनी जनता और दुनिया के सामने आत्मसमर्पण की घोषणा करने वाला था. उस दिन जापान की आम जनता ने अपने ‘भगवान’ सम्राट हीरोहितो की आवाज पहली बार रेडियो के माध्यम से सुनी, ‘हमने अपनी सरकार को आदेश दिया है कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, चीन और सोवियत संघ को यह संदेश भिजवाए कि हमारा साम्राज्य उनके संयुक्त घोषणा पत्र के प्रावधानों को स्वीकार करता है.’ अपने साढ़े चार मिनट के भाषण में जापान के सम्राट ने बिना शर्त आत्मसमर्पण की मांग स्वीकार करते हुए यह भी कहा, ‘शत्रुओं ने एक नए और सबसे विनाशक बम का इस्तेमाल शुरू किया है. तबाही की इसकी ताकत को मापा नहीं जा सकता, इसने कई निर्दोष लोगों को मार दिया है. यदि हम लड़ाई जारी रखते हैं तो इसका नतीजे में जापानी राष्ट्र ढह जाएगा और विलुप्त हो जाएगा. साथ ही आगे जाकर यह पूरी मानव सभ्यता के खत्म होने का कारण बनेगा.’
यह उस साम्राज्य के प्रतिनिधि का भाषण था जिसके देश का झंडा उस समय तक रूस के साइबेरिया, चीन के मंचूरिया और बहुत बड़े तटीय भाग, हांगकांग, ताइवान, आधे मंगोलिया, पूरे कोरिया और दक्षिण पूर्व एशिया के तकरीबन सभी देशों पर फहरा रहा था. अंडमान निकोबार भी उसी साम्राज्य के अधीन थे. लेकिन इस एक भाषण के साथ ही एशिया का यह सबसे बड़ा साम्राज्य खत्म हो गया. इस भाषण को ऐतिहासिक रूप से साम्राज्यवाद की समाप्ति की घोषणा भी माना जा सकता है. हालांकि इस घोषणा के दस्तावेजों पर जापान ने 2 सितंबर, 1945 को हस्ताक्षर किए थे और यह द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने की आधिकारिक तारीख है.
15 अगस्त, 1945 के दिन जापान में कई सैनिकों ने आत्महत्या कर ली थी. यहां तक कि इस भाषण का प्रसारण होने के कुछ घंटे पहले देश के युद्धमंत्री अनामी भी आत्महत्या कर चुके थे. यह एक तरह से साम्राज्यवादी जापान के अंत का दिन जरूर था लेकिन इसने एक शांतिपूर्ण जापान को भी जन्म दिया. मित्र देशों के नियंत्रण में ही जापान ने ‘शांति संविधान’ अपनाया था और इसी पर चलकर उसका पुनर्निर्माण हुआ और आज वह फिर से विश्व की सबसे प्रमुख ताकतों में शुमार है.
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