यह आज से साढ़े चार साल पहले की बात है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने थे. राज्य की सत्ताधारी कम्युनिस्ट सरकार को चुनौती देने के लिए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कांग्रेस पार्टी साथ मिल कर चुनाव लड़ रहे थे. इस गठबंधन के पक्ष में प्रचार करने के लिए देश के तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम 25 अप्रैल, 2011 को कोलकाता पहुंचे. उन्होंने उस दिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करके बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को ‘अब तक की सबसे खराब सरकार’ बताते हुए उस पर कई आरोप लगाए. इन आरोपों में एक बेहद संगीन था. चिदंबरम का कहना था, ‘राज्य सरकार और वामपंथी कैडर ने हिंसा की सारी हदें पार करते हुए समूचे बंगाल को कत्लगाह में तब्दील कर दिया है.’

21 दिसंबर को भारतीय उड्डयन अधिकारियों ने थाईलैंड से कराची जा रहे एक ‘संदिग्ध’ एयरक्राफ्ट को मुंबई के ऊपर उड़ते वक्त ट्रैक किया और उसे नीचे उतरने पर मजबूर कर दिया

चिदंबरम के इस आरोप से माहौल अभी गरमा ही रहा था कि तब तक भारत के एक मोस्ट वांटेड अपराधी ने खुद उनकी पार्टी (कांग्रेस) के बारे में लगभग ऐसी ही बातें कह दीं. किम डेवी नाम के इस शख्स ने एक समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में यह कह कर सनसनी फैला दी कि 1995 में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने विदेशों से हथियारों का भारी भरकम जखीरा मंगवाकर समूचे पश्चिम बंगाल में कत्लोगारद मचाने का पूरा इंतजाम कर लिया था. डेवी के इस दावे के बाद चिदंबरम के आरोप तो राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गए और डेढ़ दशक पहले की वह घटना फिर से चर्चा में आ गई, जिसे हम ‘पुरुलिया हथियार कांड’ के नाम से जानते हैं. किम डेवी ने अपने दावे में इसी घटना का हवाला दिया था.
आधुनिक भारत की सबसे रहस्यमय घटनाओं में से एक माना जाने वाला पुरुलिया हथियार कांड एक ऐसा वाकया है जिसने भारत की जांच एजेंसियों और खुफिया संस्थाओं के कौशल को तो बेपर्दा किया ही साथ ही कई सारे खोजी पत्रकारों और जासूसों को भी अब तक बुरी तरह उलझा कर रखा है. वजह सीधी है. बीस बरस बीत जाने के बाद आज तक कोई साफ-साफ नहीं बता पाया है कि आखिर पुरुलिया हथियार कांड के पीछे की सच्चाई क्या है. अब तक जो सामने आया है वे हैं अनुमान, विरोधाभाषी विश्लेषण और कुछ हद तक बिलकुल असंभव सी लगने वाली व्याख्याएं. इन तमाम बातों पर चर्चा करने से पहले एक सरसरी नजर में इस पूरी घटना को समझ लेते हैं.
18 दिसंबर, 1995 को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया कस्बे के ग्रामीण सुबह-सबेरे जागने के बाद रोजमर्रा की तरह अपने खेतों की ओर जा रहे थे. इस दौरान उन्हें अचानक जमीन पर कुछ बक्से दिखाई दिए. जब इन बक्सों को खोला गया तो ग्रामीणों की आखें खुली की खुली रह गईं. इनमें भारी मात्रा में बंदूकें, गोलियां, रॉकेट लांचर और हथगोले जैसे हथियार भरे हुए थे. जितने विस्फोटक ये हथियार थे यह खबर भी उतने ही विस्फोटक तरीके से देशभर में फैल गई. यह इतनी बड़ी घटना थी कि सरकार को इस मामले में तुरंत ही देश के सामने नतीजे पेश करने थे. सरकार के लिए यह राहत की बात थी कि जांच एजेंसियों को चार दिन बाद ही एक बड़ी सफलता मिल गई. 21 दिसंबर को भारतीय उड्डयन अधिकारियों ने थाईलैंड से कराची जा रहे एक ‘संदिग्ध’ एयरक्राफ्ट को मुंबई के ऊपर उड़ते वक्त ट्रैक किया और उसे नीचे उतरने पर मजबूर कर दिया. इस जहाज में सवार लोगों से पूछताछ के बाद पता चला कि पुरुलिया हथियार कांड के तार इसी एयरक्राफ्ट और इसमें सवार लोगों से जुड़े हैं.

किम डेवी का कहना है कि ये हथियार बंगाल के स्थानीय लोगों और नक्सलियों में बांटे जाने थी ताकि वे राज्य सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ सकें

जांच एजेंसियों के मुताबिक ‘एन्तोनोव-26’ नाम के इस रूसी एयरक्राफ्ट ने ही 17 दिसंबर, 1995 की रात को पुरुलिया कस्बे में हथियार गिराए थे. पैराशूटों की मदद से गिराए गए उन बक्सों में बुल्गारिया में बनी 300 एके 47 और एके 56 राइफलें, लगभग 15,000 राउंड गोलियां (कुछ मीडिया रिपोर्टें राइफलों और गोलियों की संख्या इससे कहीं ज्यादा बताती हैं), आधा दर्जन रॉकेट लांचर, हथगोले, पिस्तौलें और अंधेरे में देखने वाले उपकरण शामिल थे. ‘एन्तोनोव-26’ में मौजूद एक ब्रिटिश हथियार एजेंट पीटर ब्लीच और चालक दल के छह सदस्यों को फौरन गिरफ्तार करके उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी गई. लेकिन इस कांड का असली सूत्रधार बताया जाने वाला किम डेवी, जिसका जिक्र हमने ऊपर किया है, आश्चर्यजनक रूप से हवाई अड्डे से बच निकलने और अपने मूल देश डेनमार्क पहुंचने में कामयाब हो गया.
किम डेवी इसके बाद कभी भी भारत की गिरफ्त में नहीं आ सका. दूसरी तरफ आजीवन कारावास की सजा पाने वाले उसके सहयोगी पीटर ब्लीच और चालकदल के सभी सदस्यों को भी भारत सरकार ने माफी देकर रिहा कर दिया है. लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि इस कांड के पीछे असल वजह आखिर क्या थी ? इस घटना को लेकर अब तक इतनी सारी कहानियां सामने आ चुकी हैं जिन्हें पढ़ने-सुनने के बाद ‘जितने मुंह उतनी बातें’ वाली कहावत का मतलब आसानी से समझा जा सकता है. इनमें सबसे पहले किम डेवी की उस थ्योरी की चर्चा करते हैं जिसका थोड़ा-सा जिक्र हमने इस रिपोर्ट की शुरुआत में किया है. साजिश की सूत्रधार भारत सरकार थी! 29 अप्रैल, 2011 को टाइम्स नाऊ पर प्रसारित एक इंटरव्यू में किम डेवी ने दावा किया कि पुरुलिया हथियार कांड भारत सरकार के इशारे पर अंजाम दिया गया था. उसके मुताबिक तब केंद्र की कांग्रेस सरकार पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी कम्युनिस्ट सरकार को अस्थिर करना चाहती थी. पीवी नरसिंह राव की सरकार बंगाल में सत्ताधारी दल के कैडर की हिंसा का जवाब हिंसा से देना चाहती थी इसलिए उसने ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई-5 के साथ मिल कर एक योजना बनाई. डेवी ने इंटरव्यू में बताया कि इस योजना के तहत विदेश से हथियारों की खेप लाकर बंगाल के स्थानीय लोगों और नक्सलियों में बांटी जानी थी ताकि वे राज्य सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ सकें. डेवी का यह दावा अगले दिन ही खारिज कर दिया गया. इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने इसे बरगलाने वाला बयान बताते हुए कहा कि वह अपनी पहले वाली दलील पर कायम है, जिसके मुताबिक इस घटना के पीछे बंगाल के एक धार्मिक-आध्यात्मिक संगठन आनंद मार्ग का हाथ था. हालांकि सीबीआई के इस खंडन के बाद भी कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके आधार पर डेवी का दावा भले ही 24 कैरट का न लगे पर आसानी खारिज होने लायक भी नहीं लगता.

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या बिना भारत सरकार की जानकारी और इजाजत के कोई विदेशी एयरक्राफ्ट (वह भी हथियारों से भरा) भारत के वायुक्षेत्र में प्रवेश कर सकता था?

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या बिना भारत सरकार की जानकारी और इजाजत के कोई विदेशी एयरक्राफ्ट (वह भी हथियारों से भरा) भारत के वायुक्षेत्र में प्रवेश कर सकता था? और तो और यह एयरक्राफ्ट आठ घंटे तक बनारस के एयरपोर्ट पर रुका भी रहा. यहां से ईंधन भरवाने के बाद ही इसने पुरुलिया में हथियार गिराए थे. फिर वह कोलकाता होते हुए थाइलैंड निकल गया. जानकार सवाल उठाते हैं कि एक ऐसा विमान जो आठ घंटे एक एयरपोर्ट पर रुकने के बाद अगले गंतव्य के लिए आधी रात को उड़ान भरता हो, क्या उस पर देश की सुरक्षा एजेंसियों की नजर नहीं होनी चाहिए थी? और यदि एजेंसियों ने ऐसा किया होता तो क्या वह विमान पुरुलिया में इतनी आसानी से हथियार गिरा सकता था?
डेवी ने भी अपने दावे के पक्ष में दलील दी थी कि उसका विमान कराची से भारतीय वायु सीमा में तभी दाखिल हो सकता था जब भारत सरकार को पहले से इसकी जानकारी हो. इस दलील के आधार पर कई लोग आज भी मानते हैं कि उस वक्त सरकार के अंदर कोई तो ऐसा जरूर था जिसे सब पता था.
पुरुलिया हथियार कांड की जांच सीबीआई कर रही है लेकिन जांच में उसकी एक कथित ‘भूल’ खुद ही डेवी के दावे को मजबूत करती है. सीबीआई अब तक डेवी का डेनमार्क से प्रत्यर्पण नहीं करवा पाई है. मई, 2011 में सीबीआई ने डेनमार्क सरकार से उसके प्रत्यर्पण की मांग की थी. लेकिन यह मांग इस आधार पर ठुकरा दी गई क्योंकि जो वारंट सीबीआई ने डेवी के खिलाफ जारी किया था, उसकी मियाद पहले ही खत्म हो चुकी थी. सीबीआई से यह लापरवाही भूलवश हुई या जानबूझकर ऐसा किया गया इस पर भी बस अनुमान ही लगाए जा सकते हैं.

सीबीआई का दावा है कि बंगाल का धार्मिक-आध्यात्मिक संगठन आनंद मार्ग इन हथियारों की मदद से बंगाल सरकार के खिलाफ विद्रोह छेड़ना चाहता था

क्या पूरा मामला आनंद मार्गी बनाम वामपंथी टकराव का नतीजा था? अब सीबीआई की आनंद मार्ग वाली थ्योरी पर आते हैं. इस मामले में सीबीआई ने जो चार्जशीट बनाई है उसके मुताबिक पुरुलिया हथियार कांड के पीछे आनंद मार्ग है. सीबीआई का कहना है कि आनंद मार्गी इन हथियारों की मदद से बंगाल सरकार के खिलाफ विद्रोह छेड़ना चाहते थे. इस दावे के पक्ष में सीबीआई की तीन मुख्य दलीलें हैं. पहली यह कि आनंद मार्गी और वामपंथी आपस में ‘सनातन बैरी’ रहे हैं और इनके बीच अक्सर खूनी वारदातें होती रहती हैं. दूसरी दलील है कि जिस स्थान पर हथियारों का जखीरा गिराया गया वह आनंद मार्ग के मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर था. सीबीआई की तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण दलील है कि गिराए गए हथियारों की जो मात्रा पीटर ब्लीच ने बताई थी, उससे बहुत कम हथियार ही मौके से बरामद हुए और इसका मतलब है कि कुछ हथियार आनंद मार्गी उठाकर ले जा चुके थे.
सीबीआई ने अपने निष्कर्ष सच साबित करने के लिए यह दावा भी किया कि इस कांड का मुख्य आरोपी किम डेवी खुद एक आनंद मार्गी है. अदालत सीबीआई की इन सभी दलीलों को खारिज कर चुकी है. हालांकि इसके बाद भी एक बड़ा तबका मानता है कि इस कांड के पीछे आनंद मार्गी ही थे. बीबीसी ने भी अपनी एक रिपोर्ट में ऐसा ही दावा किया था. अमेरिका, म्यांमार, बांग्लादेश और लिट्टे तक का नाम इस मामले में आ चुका है कुछ लोगों द्वारा पुरुलिया हथियार कांड को लेकर एक और दिलचस्प थ्योरी दी गई है. इन लोगों में अधिकतर रक्षा विशेषज्ञ हैं. इनका मानना है कि ये हथियार बांग्लादेश के उग्रवादी गुटों के लिए थे लेकिन भौगोलिक सीमा की पहचान करने में गलती होने की वजह से इन्हें पुरुलिया में गिरा दिया गया. कुछ लोग इसे अमेरिका की करतूत बताते हुए कहते हैं कि उसकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने म्यांमार के काचेन विद्रोहियों की मदद के लिए हथियारों से भरे इस एयरक्राफ्ट को भेजा था. रक्षा और खुफिया मामलों के विशेषज्ञों का एक तबका इस घटना को श्रीलंका सरकार के खिलाफ लड़ रहे अलगाववादी संगठन लिट्टे से भी जोड़ता है. उनके मुताबिक ये हथियार लिट्टे के लिए थे हालांकि ऐसा मानने वालों की तादाद बहुत कम है.
इन सब तर्कों और अनुमानों के बीच पुरुलिया हथियार कांड की सीबीआई जांच ऐसे किसी अंतिम नतीजे पर पहुंचती नहीं दिख रही है जो सभी दूसरे अनुमानों को खारिज कर दे. जाहिर है कि जब तक ऐसा नहीं होता यह मामला देश के सबसे बड़े रहस्यों में से एक बना रहेगा.