नीरजा भनोट असल जिंदगी की एक ऐसी नायिका हैं जिनकी बेमिसाल हिम्मत को सारी दुनिया ने सलाम किया लेकिन, अगर उन पर फिल्म नहीं आती तो शायद उनका देश ही उन्हें ठीक से नहीं जानता. जिंदगी 100 साल जीने से बड़ी नहीं होती. इंसान का काम उसे बड़ा बनाता है. नीरजा भनोट सिर्फ 23 साल जी सकीं लेकिन, इस छोटी सी जिंदगी में ही उन्होंने खुद को इतिहास में अमर कर लिया.
सितंबर 1986 में मुंबई से न्यूयाॅर्क जा रहे एक विमान को कराची के जिन्ना एयरपोर्ट पर चार आतंकियों ने हाईजैक कर लिया था. विमान सहायिका नीरजा ने आतंकियों से मुठभेड़ करते हुए 359 लोगों की जान बचाई. आखिर में तीन बच्चों को आतंकियों की गोलियों से बचाने के दौरान गोली लगने से उनकी मौत हो गई.
नीरजा के साहस ने देशों के भेद पाट दिए. वे भारत की इकलौती ऐसी नागरिक हैं, जिन्हें न सिर्फ भारत, बल्कि पाकिस्तान और दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने भी सम्मानित किया है. नीरजा अपने देश की सबसे कम उम्र की नागरिक हैं जिन्हें वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र प्रदान किया गया. 2004 में भारतीय डाक विभाग ने उनकी बहादुरी को सम्मानित करते हुए उन पर एक डाक टिकट भी जारी किया.

जिन 359 लोगों की जान नीरजा ने बचाई उनमें 44 पाकिस्तानी नागरिक भी थे. इसी कारण पाकिस्तान ने नीरजा को अपने सर्वोच्च सम्मान ‘तमगा-ए-इंसानियत‘ से नवाजा. इस घटना के 19 साल बाद 2005 में अमेरिका के न्याय विभाग ने 41 अमेरिकियों की जान बचाने के कारण नीरजा को ‘जस्टिस फाॅर क्राइम अवार्ड‘ सम्मान‘ से सम्मानित किया. अपने अदम्य साहस के चलते नीरजा दुनिया भर की सबसे साहसी महिलाओं में हमेशा गिनी जाएंगी.
पांच सितंबर 1986 की सुबह पांच बजे राइफल, पिस्तौल, हैंड ग्रेनेड और विस्फोटकों की पेटियां बांधे चार आतंकियों ने पैन एम फ्लाइट 73 को उस समय हाईजैक कर लिया जब विमान कराची से उड़ान भरने की तैयारी में था. अपहरण की सूचना मिलते ही नीरजा ने तुरंत विमान चालक दल को आगाह किया. लेकिन चालक दल के तीनों अमेरिकी कर्मचारी (पायलट, सह-पायलट और विमान इंजीनियर) विमान को छोड़कर भाग खड़े हुए. उस समय नीरजा ने विमान की सबसे वरिष्ठ विमान कर्मी के तौर पर मोर्चा संभाला और विमान में बने रहने का फैसला किया.
अपहरण करने वाले चारों आतंकवादी फिलिस्तीन के ‘अबु निदाल आतंकी संगठन’ के सदस्य थे. विमान में घुसते ही उन्होंने सबसे पहले सारे लोगों के पासपोर्ट इकट़ठे करने को कहा ताकि वे उसमें बैठे अमेरिकी नागरिकों का पता लगा सकें. नीरजा और उनके निर्देश पर काम कर रहे अन्य सहयोगियों ने बड़ी होशियारी से विमान में बैठे 41 अमेरिकी नागरिकी के पासपोर्ट सीट के नीचे और इधर-उधर छिपा दिये. विमान को बंधक बनाने के 17 घंटे बाद जब आतंकियों ने उसमें गोलीबारी करना और बम लगाना शुरू किया तो नीरजा ने उसका इमरजेंसी दरवाजा खोलकर यात्रियों की विमान से निकलने में मदद करनी शुरू कर दी.
यह दूसरा मौका था जब नीरजा विमान से भागकर अपनी जान बचा सकती थीं. लेकिन उन्होंने अभी भी अपने जीवन से ज्यादा कीमती अपने फर्ज को समझा और डटी रहीं. आखिर में बच्चों को आतंकियों की गोलियों से बचाते हुए वे खुद उन्हीं गोलियों का शिकार हो गईं.
व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन, दोनों में नीरजा ने कभी भी मुश्किलों के आगे घुटने नहीं टेके. चंडीगढ़ में जन्मीं और मुंबई से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाली नीरजा अरेंज मैरिज के बाद अपने पति के साथ दोहा चली गई थीं. लेकिन शादी के दो महीने बाद ही दहेज के दबाव के कारण वे भारत अपने माता-पिता के पास लौट आईं और पैन एम में विमान सहायिका के तौर पर काम करने लगीं. वे न दहेज की गलत मांग के आगे झुकीं और न हथियारों से लैस आतंकियों के सामने.
हमारे देश की नई पीढ़ी असली नायक-नायिकाओं को उतना नहीं जानती-पहचानती, जितना फिल्मी नायक-नायिकाओं को. इसी कारण देश की सबसे साहसी महिलाओं में से एक नीरजा भनोट को भी कुछ समय पहले तक ज्यादातर लोग नहीं जानते थे. ऐसे में इस गुमनाम नायिका को याद करने के लिए फिल्म निर्देशक राम माधवानी ने 2016 में ‘नीरजा’ फिल्म बनाई थी. इसमें नीरजा की भूमिका मशहूर फिल्म अभिनेत्री सोनम कपूर ने निभाई थी. इस फिल्म को सात फिल्मफेयर और दो नेशनल पुरस्कार मिले थे.
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