विचार-विमर्श
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स्टीफन हॉकिंग के जीवन का निचोड़ शायद यही था कि जहां अंत दिखता है, वहां नई शुरुआत होती है
राजेन्द्र धोड़पकर
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भगत सिंह की नजर में बोस संकीर्ण और नेहरू दूरदृष्टि वाले क्रांतिकारी थे
अपूर्वानंद
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क्यों गांधी परिवार को अब कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही नहीं, बल्कि पार्टी भी छोड़ देनी चाहिए
रामचंद्र गुहा
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हर पिता के भीतर एक नेहरू हो सकते हैं और हर बेटी में एक इंदिरा, बशर्ते कि वे आपस में दोस्त हों
अव्यक्त
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नरेंद्र मोदी, डोनाल्ड ट्रंप और बोरिस जॉनसन में जितनी समानताएं हैं उससे ज्यादा असमानताएं हैं
रामचंद्र गुहा
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भारत में न्याय अब एक ऐसा शब्द है जो अपना मतलब खोता जा रहा है
रामचंद्र गुहा
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इस्लामी सभ्यता पर मुंशी प्रेमचंद का वह लेख जिसे हर हिंदुस्तानी को पढ़ना चाहिए
सत्याग्रह ब्यूरो
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बलात्कार-मुक्त समाज हम बना तो सकते हैं, लेकिन उसकी शुरुआत कैसे और कहां से हो?
अव्यक्त
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राजनीति सहित तमाम क्षेत्रों में नेतृत्व की मौजूदा पीढ़ी सतीश धवन के जीवन से कई सबक ले सकती है
रामचंद्र गुहा
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2020 में हम भारतीयों को 1920 के इटली को जानने की जरूरत क्यों है?
रामचंद्र गुहा
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क्या कश्मीर समस्या का हल विनोबा भावे की उस पहल में छिपा है जिसकी तरफ हम देखना भी नहीं चाहते?
अव्यक्त
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कोरोना काल में हुआ यह क्रिकेट राष्ट्रवाद-नस्लवाद से दूर रही अपनी कमेंटरी के चलते भी शानदार था
रामचंद्र गुहा
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एक समय था जब भारत की एक कहानी हुआ करती थी
रामचंद्र गुहा
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अगस्त क्रांति दिवस : जब गांधी की भाषा अग्नि में पड़े कुंदन की तरह दमक उठी थी
अव्यक्त
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नई पीढ़ियां जिस राम को जानेंगी वह तुलसी का राम होगा, कबीर का? या फिर ठेठ राजनीतिक राम?
अव्यक्त
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व्यक्ति पूजा उस व्यक्ति के लिए भी सही नहीं है जिसके लिए की जाती है
रामचंद्र गुहा
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वह फर्क क्या है जो न होता तो नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी एक जैसे होते
रामचंद्र गुहा
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81 साल पहले जिस बालाकोट के लोग चरखा चलाना सीख रहे थे, आज वहां जिहादी बनना सिखाया जाता है
रामचंद्र गुहा
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संत कबीर का ‘मुल्ला बांग’ देता है, तो उनका पंडा भी पाखंडी है कि नहीं?
अव्यक्त
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आपातकाल के बाद से पत्रकारिता इतनी कम स्वतंत्र और इतनी ज्यादा उत्पीड़ित कभी नहीं रही
रामचंद्र गुहा