सिनेमा
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क्या कंगना रनोट का व्यवहार उस भारतीय संस्कृति से मेल खाता है जिसकी अब वे झंडाबरदार बन गई हैं?
अब कंगना रनोट जिस तरह की बातें करती हैं उन्हें सिर्फ उनकी बेबाकी मान पाना संभव नहीं है
अंजलि मिश्रा
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‘दिल बेचारा’ वह फिल्म नहीं है जिसके लिए ‘अभिनेता’ सुशांत सिंह राजपूत को याद रखा जाना चाहिए
सुशांत सिंह राजपूत के अभिनय की यात्रा-कथा में ‘दिल बेचारा’ की जगह सिर्फ उस पूर्ण विराम जितनी ही है जिससे पहले के शब्द हमें असली कहानी बताते हैं
अंजलि मिश्रा
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क्या कोरोना वायरस बॉलीवुड के ‘स्टार कल्चर’ में भी बड़े बदलाव लाने वाला है?
कोरोना वायरस के चलते सिनेमा और दर्शकों के समीकरण पूरी तरह से बदल गये हैं और अगर यह दौर लंबा चला तो बॉलीवुड के ‘स्टार कल्चर’ में भी बड़े बदलाव ला सकता है
अंजलि मिश्रा
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क्या सुशांत सिंह राजपूत का असमय जाना बॉलीवुड में नेपोटिज्म के मीटू आंदोलन की शुरूआत बन गया है?
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद नेपोटिज्म पर छिड़ी बहस के दौरान कई फिल्मी हस्तियों ने बॉलीवुड में भेदभाव और दबंगई होने की बात कही है
अंजलि मिश्रा
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क्या फिल्मों के सैकड़ों करोड़ कमाने के दिन अब लद चुके हैं?
अमिताभ बच्चन-आयुष्मान खुराना की ‘गुलाबो सिताबो’ एमेजॉन प्राइम पर रिलीज हो चुकी है और कई दूसरे फिल्म निर्माता भी इस नए रास्ते पर चलने वाले हैं
अंजलि मिश्रा
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सत्यजीत रे की फिल्मों को पुनर्जीवन मिलना भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है
पाथेर पांचाली सहित सत्यजीत रे की तीन सबसे चर्चित फिल्मों के प्रिंट कुछ साल पहले तक ऐसी हालत में पहुंच गए थे कि हम उन्हें शायद ही फिर कभी देख पाते
शुभम उपाध्याय
क्विज
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क्विज़: आप इरफान खान के कितने बड़े फैन हैं?
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क्विज: क्या आप एसपी बालासुब्रमण्यम को चाहने वालों में से एक हैं?
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क्विज़: अदालत की अवमानना के तहत आप पर कब कार्रवाई हो सकती है?
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इस साल हज यात्रा पर रोक लगााए जाने के अलावा आप इसके बारे में क्या जानते हैं?
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क्विज: भारत-चीन सीमा विवाद के बारे में आप कितना जानते हैं?
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ज़ंजीर : जिसने हिंदी सिनेमा को एक नए व्याकरण से बांधा था
1973 में आई ज़ंजीर में विजय के जिस किरदार ने सिनेमा में एंटी हीरो का चलन शुरू किया उसके लिए अमिताभ बच्चन निर्देशक की आखिरी पसंद थे
अनुराग भारद्वाज
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शैलेंद्र : जिंदगी के हर रंग और फलसफे को गीतों में ढालने वाला फनकार
आम आदमी की भावनाओं को अपने अनेकों कालजयी गीतों के जरिये जुबान देने वाले शैलेंद्र की आज पुण्यतिथि है.
अभय शर्मा
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कभी जंग में सिपाही रहे खय्याम का संगीत सुकून का दूसरा नाम है
गायक और श्रोता, दोनों को एक अलग स्तर पर ले जाने वाले संगीतकार खय्याम का निधन हो गया है
सत्याग्रह ब्यूरो
समाज और संस्कृति
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जिंदगी का शायद ही कोई रंग या फलसफा होगा जो शैलेंद्र के गीतों में न मिलता हो
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रानी लक्ष्मीबाई : झांसी की वह तलवार जिसके अंग्रेज भी उतने ही मुरीद थे जितने हम हैं
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किस्से जो बताते हैं कि आम से भी भारत खास बनता है
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क्यों तरुण तेजपाल को सज़ा होना उनके साथ अन्याय होता, दूसरे पक्ष के साथ न्याय नहीं
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कार्ल मार्क्स : जिनके सबसे बड़े अनुयायियों ने उनके स्वप्न को एक गैर मामूली यातना में बदल दिया
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तीन उदाहरण जो बताते हैं कि बॉलीवुड में हिंदी के चाहने वाले भी उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं
बॉलीवुड में हिंदी से पहचान बनाने वाले हों या फिर खुद हिंदी की पहचान बन जाने वाले, दोनों तरह के लोग अकसर गलत तरीके से हिंदी लिखते-पढ़ते देखे जा सकते हैं
अंजलि मिश्रा
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क्या कंगना रनोट खुद को देश मानने लगी हैं?
हाल ही में कंगना रनोट द्वारा जारी किए गए एक वीडियो को देखकर लगता है कि वे खुद को हर तरह की आलोचनाओं से परे मानती हैं
अंजलि मिश्रा
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क्यों ‘कबीर सिंह’ इस साल की सबसे रिग्रेसिव फिल्मों में से एक होने वाली है
शाहिद कपूर की मुख्य भूमिका वाली ‘कबीर सिंह’ में महिलाओं और नायक को जिस तरह से दिखाया जाने वाला है, वह आज से दशकों पहले की पुरातनपंथी सोच है
शुभम उपाध्याय
विशेष रिपोर्ट
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सर्दी हो या गर्मी, उत्तर प्रदेश में किसानों की एक बड़ी संख्या अब खेतों में ही रात बिताती है
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कैसे किसान आंदोलन इसमें शामिल महिलाओं को जीवन के सबसे जरूरी पाठ भी पढ़ा रहा है
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हमारे पास एक ही रेगिस्तान है, हम उसे सहेज लें या बर्बाद कर दें
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क्या आढ़तिये उतने ही बड़े खलनायक हैं जितना उन्हें बताया जा रहा है?
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक गांव जो पानी और सांप्रदायिकता जैसी मुश्किलों का हल सुझाता है