होली की रंगों भरी बेला में सबसे पहले हरिवंश राय बच्चन जी को हर्बल गुलाल का टीका! जो किसी भी किस्म के नशे में टल्ली होने का सुख भोग चुके उनकी तरफ से भी, जो टल्ली होने की आस में पता नहीं कितनी देर से सूखी होली-दिवाली मना रहे उनकी तरफ से भी....और जो टल्लियों की गली से भी गुजरना पाप समझते हैं उनकी तरफ से भी. कुल मिलाकर हम सब सूखे-गीलों की तरफ से, नशे की आत्मा से हमारा साक्षात्कार कराने वाले बड़े बच्चन साहब को सलाम! और मंझले बच्चन को भी, नशे की इस आत्मा का अपनी बेरीटोन आवाज के जरिये हमारी आत्मा से एकाकार कराने के लिए.

‘‘मुस्लमान औ‘ हिन्दू हैं दो, एक, मगर, उनका प्याला

एक, मगर, उनका मदिरालय, एक मगर, उनका हाला

दोनों रहते साथ न जब तक, मस्जिद मन्दिर में जाते

बैर बढ़ाते मन्दिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला‘‘

हरिवंश राय बच्चन ने अपनी मधुशाला में शराब (मधु) की जो खासियत बताई है, वह असल में सिर्फ शराब की नहीं है, बल्कि दुनिया के दूसरे कुछ नशों पर लागू होती है. वह दुनिया की इकलौती ऐसी चीज है जो सच्चे अर्थों में हर एक किस्म का भेद खत्म करके लोगों को एक मंच पर ले आता है! जो काम धर्म और धर्मग्रंथ इतनी सदियों बाद भी नहीं कर सके, वह काम सुरा चुटकी में, वह भी पूरा करती है. दुनिया का कोई भी धर्म/धर्मग्रंथ आज तक जात, रंग, मजहब, क्षेत्र, भाषा, संस्कृति, का भेद मिटाकर इंसानों को एक छत के नीचे नहीं ला सका. पर छलकते जाम बिना कहे-लिखे ऐसा करते हैं.

नशे की दुनिया में कोई छुआछूत नहीं है, न कुछ झूठा है. न कोई छोटा, न कोई बड़ा. एक रिक्शा वाले का दिया हममें से कई खाने के बारे में सोचेंगे भी नहीं. पर उसका दिया ‘माल‘ वे शौक से पी जाएंगे

नशे की दुनिया में कोई छुआछूत नहीं है, न कुछ झूठा है. न कोई छोटा, न कोई बड़ा. एक रिक्शा वाले का दिया हममें से कई खाने के बारे में सोचेंगे भी नहीं. पर उसका दिया ‘माल‘ वे शौक से पी जाएंगे, बिना कोई सवाल किये. एक ही प्याले, सिगरेट, चिलम या हुक्के को अलग-अलग संप्रदाय, जात, वर्ग और संस्कृति के लोग बिना छुआ-छूत के, बिना झूठा कहे या बिना नाक-भौं सिकोड़े आपस में बांट लेते हैं जैसे वह कोई खराब चीज नहीं बल्कि मन्दिर का प्रसाद हो!....ना ना ना...मंदिर का प्रसाद झूठा किसी को नहीं दिया जाता! और सबको दिया भी नहीं जाता.

धर्म के नाम पर दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी समय दंगे हो सकते हैं...कितने ही लोग मर सकते हैं, यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शा जाएगा...! पर किसी भी नशे के नाम पर आप दंगे नहीं करवा सकते - कि एक नशा करने वाले ने दूसरे नशे की बुराई कर दी, या उसे छू लिया. शराब पीकर भी भारतीय पति ज्यादा से ज्यादा अपनी पत्नी को लतिया सकता है या मन किया तो बच्चों पर भी हाथ साफ कर सकता है, पर दंगों जैसा कत्लेआम नहीं मचा सकता...!

वैसे महापुरुषों ने कहा है कि धर्म भी एक नशा ही है. लेकिन धर्म के नशे की तुलना में दूसरे नशे कहीं कम अलाभकारी हैं! तो अगर कोई नशा करना ही है तो इन्हें क्यों न किया जाए. अगर धर्म नशा हो सकता तो नशा भी तो धर्म हो ही सकता है. या धर्म को बीच में घसीटा ही क्यों जाए! जहां धर्म से पाला पड़ा, वहा नया कोई टंटा खड़ा. तो बिना धर्म का नाम लिए सब अपनी-अपनी पसंद की टोलियां चुन लें. भांग टोली, सुरा टोली, बीयर टोली, सुट्टा टोली या ऐसा ही कुछ!

धर्म के नाम पर दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी समय दंगे हो सकते हैं. पर किसी भी नशे के नाम पर आप दंगे नहीं करवा सकते - कि एक नशा करने वाले ने दूसरे नशे की बुराई कर दी, या उसे छू लिया.

सारी नशा टोलियों के लिए पूजास्थलों टाइप मधुशालाएं बना दी जाएं, जहां लोग साप्ताहिक पूजा की तरह सप्ताहांत में मिल-बैठ सकें! पूजा-अर्चना का काम जिस मन की शक्ति को दिलाने का था वह मिलने-बैठने से मिलने की शर्तिया गारंटी है. नशा वह जिगरा पैदा करता है कि हम अपनी बुराई खुद कर सकते हैं और दूसरों से सुन भी सकते हैं। लेकिन क्या किसी बड़े से बड़े धर्म के ठेकेदार में इतना गूदा है कि वह अपनी खामियों/बुराइयों को मान सके? जबकि पूरी दुनिया जानती है कि किसी धार्मिक नशे की अति से न सिर्फ उसके समाज, बल्कि पूरे देश-दुनिया का स्वास्थ्य बिगड़ता है!

इस ‘नशा स्तुति‘ में हम कतई नहीं भूले कि दूसरे नशों की अति से भी व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ता है. और नशा कतई कोई जरूरी चीज नहीं है. लेकिन अगर हमने अपनी टोली बना ही ली तो उन टोलियों के कुछ नियम होने चाहिए:

1- नशा सेवन का पहला रूल ही यह होना चाहिए कि कोई भी अपने घर के भीतर नशा सेवन नहीं करेगा, ताकि बच्चों को उसकी हानियों से बचाया जा सके. सब सामूहिक रूप से निकट की किसी ‘शाला‘ में जाकर नशा करें.

2 -सारे नशों की कीमत एक समान होनी चाहिए. ताकि बीड़ी पीने वाले को यह न लगे कि वह चतुर्थ क्लास का है और मंहगी शराब या सिगरेट पीने वाले को यह न लगे कि उसका तो क्लास ही अलग है. क्लास या वर्ग का भेद पैदा करने वाले नशे को तत्काल प्रभाव से बैन किया जाए. नहीं तो नशे को धर्म बनते देर नहीं लगेगी.

सारे नशों की कीमत एक समान होनी चाहिए. ताकि बीड़ी पीने वाले को यह न लगे कि वह चतुर्थ क्लास का है और मंहगी शराब या सिगरेट पीने वाले को यह न लगे कि उसका तो क्लास ही अलग है.

3- दोहरा नशा खतरनाक बताया गया है, सो एक वक्त पर एक ही नशे की टोली में आप शामिल हो सकते हैं. हां टोली बदलने में कोई बहुत झाम नहीं है. आप अपनी वर्तमान ‘शाला‘ से अपनी सदस्यता खत्म करवा के, दूसरी नशा टोली की ‘शाला‘ में अपना नाम रजिस्टर करवा सकते हैं!

4- अलग-अलग नशे की खोज करने वालों को खोजा जाए और उनकी जन्मतिथियों को त्यौहार की तरह मनाया जाए. उन दिनों में छुट्टियां घोषित की जाएं.

5- सभी नशा टोलियों के लिए जरूरी है कि वह उस खास नशे से देह और दिमाग पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों को साफ तौर पर स्वीकार करे. उस नशे से होने वाले दुश्प्रभावों के बारे में हर एक सदस्य को विस्तार से बताए. नशे की किसी भी कमी या दुष्प्रभाव को छिपाया नहीं जाए.

6- नास्तिकों की तरह लोगों को किसी भी नशा टोली से दूर रहने की भी पूरी स्वतंत्रता है. जिस तरह से नास्तिकों में आस्तिकों की अपेक्षा सामाजिक सौहार्द की संभावना कहीं ज्यादा होती है, उसी तरह नशा टोलियों से दूर रहने वाले लोगों से इस दुनिया-समाज को कहीं ज्यादा स्वस्थ रखने की उम्मीद की जाएगी. उनका कर्तव्य होगा कि वे समय-समय पर स्वस्थ बहस करके लोगों को नशा टोलियों से दूर रहने की सलाह/तर्क दें और अपनी संख्या में इजाफा करें! (आखिर दुनिया को कुछ होशमंद लोगों की सख्त जरूरत है और हमेशा रहेगी!)

सजा कई किस्म की हो सकती है, मसलन उनकी चॉकलेट बैन की जा सकती है, सारे खिलौने छीने जा सकते हैं या गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड से मिलने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जा सकता है,

7- अलग-अलग धर्मों के लोग बच्चों को जन्म से ही अपने धर्म का उत्तराधिकारी मान लेते हैं, बचपन से ही उन्हें अपने धर्म के रीति-रिवाज सिखाने लगते हैं. इसके विपरीत सभी नशा टोलियों के सदस्य बच्चों को किसी भी नशा टोली का जन्मजात सदस्य कतई नहीं मानेंगे. साथ ही 20 साल तक बच्चों को किसी भी किस्म के नशे से दूर रहने की सख्त हिदायत होगी।(कम से कम देह और दिमाग की बुनियाद तो स्वस्थ बनी रहे!) 20 साल से पहले नशा करते पाए जाने पर बच्चों/युवाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. उन्हें कई किस्म की सजा दी जा सकती है, मसलन उनकी चॉकलेट बैन की जा सकती है, सारे खिलौने छीने जा सकते हैं या गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड से मिलने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जा सकता है, या फिर उनसे उनका फोन ले लिया जाए...या ऐसी ही कुछ सख्त रचनात्मक कार्रवाई की जा सकती है...!

8- जैसे सभी धर्मों ने अपनी-अपनी धार्मिक किताबों के हर तरह के संस्करण निकाल रखे हैं - विस्तृत या गुटका संस्करण आदि - उसी तरह सभी नशा टोलियां अपने-अपने नशों पर किताबें लिखें...फिर उन पर टीकाएं भी लिखी जाएं. नशा विशेष की उत्पत्ति से लेकर पूरी यात्रा के बारे में विस्तार से लिखा जाए.

9- पर्यावरण दिवस पर धुंआ पैदा करने वाले सभी नशों पर सख्त पाबंदी होगी।

सभी नशा टोलियों की तरफ से एक अग्रिम माफीनामा-

‘हमें खेद है कि भारत के संदर्भ में अभी नशा लिंगभेद को नहीं भेद सका है! यहां अभी भी लड़कियों का सिगरेट, शराब पीना पुरुषों से ज्यादा बुरा समझा जाता है. पर समय के साथ काफी बदलाव है. कम से कम अब लड़कियां/स्त्रियां इस हीनता से निकल गई हैं कि वे नशा करके कोई बड़ा अपराध कर रही हैं! हम बताना चाहते हैं कि सभी नशा टोलियां लड़कियों/स्त्रियों की जबरदस्त रचनात्मक क्षमता को स्वीकार करती हैं और स्त्रियों में बढ़ रहे मानसिक तनाव को समझती हैं. हम सभी नशा टोलियां इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि आने वाले वर्षों में नशे को पूरी तरह लिंगभेद से मुक्त किया जाए.’

नोट: सभी तरह का नशा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है!

जोर से बोलो होली है, बुरा न मानो होली है.