2013 के सितंबर में जब भारतीय जनता पार्टी ने आधिकारिक तौर पर नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया तो उसके बाद से ही यह खबर मीडिया में आती रही कि 2014 के लोकसभा चुनावों में संभवत: पार्टी उन लोगों को टिकट नहीं देगी जिनकी उम्र 75 साल से अधिक है. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पार्टी में 75 से अधिक उम्र के कई नेता ऐसे थे जिनका तब की परिस्थितियों में टिकट काटना बेहद मुश्किल काम था. इनमें प्रमुख तौर पर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और शांता कुमार का नाम लिया जा रहा था. ये तीनों भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े और जीते.
जब 2014 के लोकसभा चुनावों के नतीजे आए तो स्थितियां बदल गई थीं. जो नतीजे आए उन्होंने नरेंद्र मोदी को भाजपा में सबसे ताकतवर व्यक्ति के तौर पर स्थापित कर दिया. ऐसे में उस वक्त यह नियम आया कि भले ही 75 से अधिक उम्र वाले कुछ बड़े नेताओं को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सका लेकिन उनके लिए नरेंद्र मोदी की सरकार में कोई जगह नहीं होगी. जब मोदी के मंत्रिमंडल ने 26 मई, 2014 को शपथ ली तो 75 से अधिक उम्र के किसी भी नेता को इसमें जगह नहीं दी गई थी.
उस फॉर्मूले का जो राजनीतिक मकसद था, वह पूरा हो गया है. आडवाणी और जोशी की न सिर्फ सियासी हैसियत इस दौरान घटी है बल्कि पार्टी के अंदर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं हैं. दोनों उस मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं, जिसकी जरूरत अभी की भाजपा चलाने वाले किसी भी नेता को नहीं हैं
दरअसल, 75 साल का जो कट ऑफ चुनाव लड़ने के वक्त रखने की कोशिश हुई और जिसे सरकार गठन के वक्त लागू किया गया था, उसके बारे में राजनीतिक जानकार स्पष्ट तौर पर मानते हैं कि मोदी और उनके सहयोगियों ने यह फॉर्मूला सीधे तौर पर आडवाणी और जोशी को रोकने के मकसद से तैयार किया था. वैसे आडवाणी के बारे में तो माना ही जा रहा था कि वे नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगे लेकिन मुरली मनोहर जोशी के बारे में यही बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती थी. कई लोगों को लगता था कि अगर जोशी को मानव संसाधन या और कोई प्रमुख मंत्रालय देने की पेशकश की जाएगी तो संभवत: वे इसके लिए मना नहीं करेंगे. ऐसे में यदि जोशी को भी रोकना था तो 75 साल की उम्र सीमा तय करने वाला फॉर्मूला उस वक्त बेहद काम का था.
उस फॉर्मूले का जो राजनीतिक मकसद था, वह पूरा हो गया है. आडवाणी और जोशी की न सिर्फ सियासी हैसियत इस दौरान घटी है बल्कि पार्टी के अंदर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं हैं. दोनों उस मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं, जिसके मार्गदर्शन की जरूरत अभी की भाजपा को चलाने वाले नेता समझते ही नहीं हैं. कहा जा सकता है कि दोनों में से कोई या दोनों मिलकर भी ऐसी स्थिति में नहीं हैं कि भाजपा के मौजूदा नेतृत्व के लिए कोई चुनौती पेश कर सकें. कभी पार्टी के अंदर दो धुर विरोधी खेमों का नेतृत्व करने वाले आडवाणी और जोशी के पास आज पार्टी में कोई खेमा ही नहीं है. कई लोगों को यह लगता है अब दोनों की आखिरी उम्मीद अगले साल होने वाले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों पर टिकी है.
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या अब भी मोदी मंत्रिमंडल के लिए 75 साल की उम्र सीमा का कोई औचित्य है? यह सवाल इस वक्त प्रासंगिक इसलिए है क्योंकि मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.
इस फॉर्मूले के मुताबिक कलराज मिश्र को इस साल 1 जुलाई को मंत्रिमंडल से रिटायर हो जाना है. लेकिन मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल और आगे की परिस्थितियों को देखते हुए तो ऐसा नहीं लगता.
मोदी मंत्रिमंडल का गठन जब हुआ था तो केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री नजमा हेपतुल्ला 75 साल की नहीं थीं. लेकिन अब उनकी उम्र 76 साल हो गई. इस आधार पर कयास लगाया जा रहा है कि मोदी मंत्रिमंडल से उनकी छुट्टी हो जाएगी और संभव है कि उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बना दिया जाए. आने वाली 1 जुलाई को कलराज मिश्र भी 75 साल के हो जाएंगे. इस आधार पर मोदी सरकार से उनकी छुट्टी के भी कयास लगाए जा रहे हैं.
इन स्थितियों में सवाल पर एक और सवाल यह भी उठता है कि क्या 75 साल की उम्र सीमा मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने भर के लिए तय की गई थी या फिर यह सीमा मंत्रिमंडल से सेवानिवृत्त के लिए भी है. अगर 75 साल मंत्रिमंडल से रिटायरमेंट की उम्र है तो फिर नजमा हेपतुल्ला को पिछले साल 13 अप्रैल को ही रिटायर हो जाना चाहिए था.
इस फॉर्मूले के मुताबिक कलराज मिश्र को इस साल 1 जुलाई को मंत्रिमंडल से रिटायर हो जाना है. लेकिन मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल और आगे की परिस्थितियों को देखते हुए तो ऐसा नहीं लगता. उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में मंत्रिमंडल से कलराज मिश्र की छुट्टी को लेकर राजनीति को समझने वाले लोगों के मन में संदेह है. वह भी ऐसे समय में जब भाजपा में उत्तर प्रदेश अध्यक्ष एक पिछड़े नेता केशव प्रसाद मौर्य को बनाया है. ऐसी स्थिति में अगर कलराज मिश्र को मोदी सरकार से हटाया जाता है तो खास तौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के भाजपा से बिदकने का खतरा बना रहेगा. ऐसे में कलराज मिश्र को हटाना आसान नहीं होगा और अगर वे नहीं हटते हैं तो इससे फिर एक बार यह बात स्थापित हो जाएगी कि 75 साल मोदी मंत्रिमंडल से रिटायरमेंट की उम्र नहीं है.
अगर वाकई मोदी उन्हें मंत्री बनाते हैं तो इससे साफ हो जाएगा कि अब 75 साल की उम्र सीमा मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए भी नहीं है, रिटायरमेंट की बात तो काफी दूर है.
एक और बात ऐसी है जो इस बात का संकेत दे रही है कि 75 साल की उम्र सीमा का मोदी मंत्रिमंडल के लिहाज से कोई मतलब नहीं रहा. नेपाल के नए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली कुछ दिनों पहले अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए थे. उनके आने से पहले दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत की पृष्ठभूमि तैयार करने के मकसद से नरेंद्र मोदी ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी को अपने दूत के तौर पर नेपाल भेजा. स्वामी की यह यात्रा आधिकारिक नहीं थी लेकिन गुजरात सरकार के विमान से नेपाल गए स्वामी को वहां की सरकार ने पूरा राजकीय सम्मान दिया. स्वामी की वहां न सिर्फ ओली से मुलाकात हुई बल्कि वे माओवादी नेता प्रचंड से भी मिले.
इसके बाद से यह कयास लगाया जा रहा है कि सुब्रमण्यम स्वामी को नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल में जगह दे सकते हैं. स्वामी की उम्र 76 साल है और अगले 15 सितंबर को वे 77 साल के हो जाएंगे. अगर वाकई मोदी उन्हें मंत्री बनाते हैं तो इससे साफ हो जाएगा कि अब 75 साल की उम्र सीमा मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए भी नहीं है, रिटायरमेंट की बात तो काफी दूर है.
76 साल के स्वामी के मंत्री बनते ही यह बात भी पूरी तरह से स्थापित हो जाएगी कि 2014 में सरकार बनते वक्त मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए तय की गई 75 साल की उम्र सीमा सिर्फ और सिर्फ आडवाणी और जोशी को दूर रखने के मकसद से तय की गई थी.
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