भारत में हिंदू धार्मिक व्रत करते हैं, मनौतियां मानते हैं और पूरी होने पर सत्यनारायण का व्रत रखते हैं और उनकी कथा सुनते-सुनाते हैं. सत्यनारायण व्रत कथा असल में उनके लिए ईश्वर को धन्यवाद देने का सबसे आसान तरीका है. इसलिए लगभग सभी हिंदू परिवारों में अलग-अलग संस्कारों के दौरान, किसी खास मौके पर या कभी-कभी बेमौके भी यह आयोजन चलता रहता है. ऐसे में, ऐसे किसी को ढूंढना जिसने सत्यनारायण की कथा नहीं सुनी होगी मुश्किल है. लेकिन क्या कथा सुनने वालों को - यहां तक कि कथा बांचने वालों को भी - यह पता है कि सत्यनारायण की कथा असल में है क्या?

मध्य प्रदेश के सुदूर गांव के एक पुरोहित लालजी शास्त्री से जब सत्याग्रह ने यह सवाल किया तो वे थोड़े नाराज हो गए. उनका कहना था, ‘आप सत्यनारायण पर सवाल कैसे उठा सकते हैं! सत्यनारायण की कथा जो है सो है. आप कथा करवाइए और पुण्य कमाइए. ऐसे भगवान और उनकी कथा पर सवाल उठाना आपको पाप का भागी बनाएगा.’
कथा के नाम पर कथा के पात्र क्या करवाते हैं यह किसी को पता नहीं है. वे तो हमारी वाली सत्यनारायण की कथा भी नहीं करवा सकते थे क्योंकि यह तो लिखी ही उनके ऊपर गई है
इसके बाद शास्त्री जी ने अनौपचारिक बातचीत के बीच बताया कि कैसे वे दक्षिणा में मिलने वाली मुद्राओं के अनुपात में सत्यनारायण भगवान की छोटी और बड़ी कथा सुनाते हैं. यानी कि पुरोहित को मिलने वाली दक्षिणा भी कथा के स्वरुप में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. लेकिन शास्त्री जी से मिली इस छोटी-बड़ी कथा की जानकारी के बाद भी हमारा मूल सवाल ज्यों का त्यों बना हुआ है.
इस वक्त जो पांच अध्यायों वाली सत्यनारायण की कथा हमारे घरों में आने वाले पंडित जी हमें सुनाते हैं उसके पहले अध्याय में यह बताया जाता है कि जो भी भक्त सत्यानारायण का व्रत करेगा, पूजन करेगा और उनकी कथा करवाएगा, उसके सारे मनोरथ पूरे होंगे. दूसरे से पांचवें अध्याय तक सूत जी पांच पात्रों शतानंद ब्राह्मण, काष्ठ विक्रेता भील, राजा उल्कामुख, साधु नाम के बनिये और राजा तुंगध्वज की कहानी बताते हैं. इस कथा के सबसे लोकप्रिय पात्र साधु बनिया की पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती हैं.
पहले से ही पांच अध्यायों में बंटी सत्यानारायण की जो कथा आज हममें से ज्यादातर लोग सुनते और पढ़ते हैं उसे दो और हिस्सों में बांट सकते हैं: इसके एक हिस्से में भक्त संकल्प करके सत्यनारायण भगवान का पूजन और कथा करते हैं और भगवान उनपर कृपा करते हैं. दूसरे हिस्से में वे संकल्प भूल जाते हैं जिसकी वजह से भगवान उन्हें पहले तो सजा देते हैं फिर व्रत और कथा करने पर क्षमा करते हुए उनका कल्याण करते हैं. लेकिन कथा के नाम पर वे पात्र - जो इस कथा में हैं - क्या करते-सुनते हैं यह किसी को पता नहीं है. वे हमारी वाली सत्यनारायण की कथा तो सुन और सुना नहीं सकते क्योंकि यह तो लिखी ही उनके ऊपर गई है.
सत्यनारायण की कथा अपने ही महात्म्य की कथा है जो सैकड़ों सालों से लोगों को सुनाई जा रही है. इसमें व्रत करने के प्रभाव और न करने पर भगवान द्वारा दी जाने वाली सजा का जिक्र किया गया है
यह प्रश्न जब हमने नोएडा के एक पुरोहित राजेश्वर त्रिपाठी से किया तो वे कहते हैं कि ‘सत्य बोलना चाहिए. सत्य धरती पर भगवान का रूप है और सत्यनारायण की कथा में यही बात कही गई है. यह भगवान नारायण की सच्ची कथा है. यह कथा स्वयं भगवान ने महर्षि नारद को सुनाई थी.’ बार-बार सत्यनारायण का असली किस्सा पूछने पर वे कहते हैं कि ‘कहानी ही यही है कि भगवान नारायण ने कहा कि सत्यनारायण की कथा करवाओ तो वे तुम्हारे दुःख दूर कर देंगे. इससे अलग मैं आपको सत्यनारायण की कथा क्या बताऊं?’
जो त्रिपाठी जी ने कहा वह एक प्रकार से सही है. जिसे अभी हम सत्यनारायण की कथा कहते हैं वह सत्यनारायण भगवान की नहीं बल्कि उनके पूजन की महिमा की कथा है. इसमें व्रत करने के प्रभाव और न करने पर भगवान द्वारा दी जाने वाली सजा का जिक्र है. धर्मशास्त्रों में रूचि रखने वाले और अपने घर के ज्यादातर धार्मिक अनुष्ठानों को खुद ही करने वाले प्रणय वागले हमें बताते हैं कि ज्यादातर व्रत कथाएं असल में किसी देव या देवस्वरूप के महत्व का वर्णन हैं. सत्यनारायण की कथा, वट सावित्री की कथा, वैभव लक्ष्मी कथा और ऐसी सभी व्रत कथाएं असल में किन्ही पात्रों की कहानियां न कहकर ज्यादातर उनके महात्म्य की बात करती हैं. इस तरह की लगभग सभी कथाओं की खास बात यह होती है कि इनमें भगवान पूजा और कथा कहने से प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं और पूजा या कथा अधूरी रहने पर नाराज होकर उन्हें दंड भी देते हैं.
हिंदू धर्म में श्रुति परंपरा के चलते साहित्य हो या धार्मिक अनुष्ठान से जुड़ी कथाएं, वे एक से दूसरे, तीसरे, चौथे आदि तक पहुंचते-पहुंचते हर बार एक नया रूप ले चुकी होती हैं
सत्यनारायण की कथा स्कन्दपुराण के रेवाखंड से संकलित की गई है. इसके मूल पाठ में संस्कृत भाषा के करीब 170 श्लोक हैं जो पांच अध्यायों में बांटे गए हैं जिनका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं. इसके पहले अध्याय के बारे में थोड़ा विस्तार से जानें तो ऋषि शौनक और उनके साथी नैमिष वन में रहने वाले महर्षि सूत के आश्रम में पहुंचते हैं. यहां पर बातों-बातों में शौनक महर्षि सूत से पूछ बैठते हैं कि इंसान को इच्छा पूर्ति और उसके बाद स्वर्ग का सुख पाने के लिए अपने जीते-जी क्या करना चाहिए. यहां पर जवाब में सूत जी भी शौनक ऋषि को एक कहानी सुनाते हैं. महर्षि सूत, ऋषि शौनक को बताते हैं कि ऐसा ही सवाल एक बार महर्षि नारद ने भगवान् विष्णु से किया था. उसके जवाब में नारद जी को भी एक कहानी सुनने को मिली थी जो उन्हें विष्णु जी ने सुनाई थी. इस कहानी में विष्णु भगवान सांसारिक कष्टों से मुक्ति के लिए अपने ही एक रूप सत्यनारायण भगवान का व्रत और पूजा करने को कहते हैं.
लेकिन जानकारों के मुताबिक कालांतर में स्कंद पुराण की इस कहानी में यह भी जोड़ दिया गया कि भगवान विष्णु ने व्रत और पूजा के साथ सत्यनारायण की वह कथा सुनने के लिए भी कहा था जो स्कंद पुराण के रेवाखंड में हैं. बस यहां से एक अजीब सा घालमेल पैदा हो जाता है. क्योंकि अब यह कथा जिन पात्रों का जिक्र करती है वे खुद भी इस कथा को सुनते-सुनाते नजर आते हैं.
लेकिन इसके बाद भी एक सवाल दिमाग में रह ही जाता है - सत्यनारायण के महात्म्य की जो मूल कथा है उसमें भगवान विष्णु को खुद की पूजा करने और व्रत रखने के लिए कहते हुए क्यों दिखाया गया है. 'यह असल में कलियुग के घोर निराशावादी चित्रण से डरे एक पुरोहित या कथाकार की कथा है. जिसका उद्देश्य धर्म को उसके न्यूनतम स्वरुप में ही सही बचाए रखने का था' गांधीवादी चिंतक अव्यक्त बताते हैं, 'पुराणों में कलयुग की अवधारणा शामिल होने के बाद, आम जनता से लेकर पुरोहित तक धर्म की चिंता में आ गए. ऐसे में धर्म अपनी जगह पर स्थापित रहे इसके लिए ज्ञान कांड की बजाय कर्म कांड पर जोर दिया जाने लगा. जनमानस के लिए कर्म कांड को समझना कहीं ज्यादा आसान और सुविधाजनक था. इस मौके ने सत्यनारायण जैसी कर्मकांडी धार्मिक विधियों को पनपने का मौका दिया. पुरोहितों को धर्म के नाश का डर उसके सरलीकरण के लिए प्रेरित कर रहा था.'
कर्मकांड की स्थापना करने के अलावा कहानी बनाने वालों के मन में शायद ये बात भी रही होगी कि कभी तो कोई समझेगा कि सत्य ही नारायण है
अव्यक्त सत्यनारायण की कथा के स्वरूप को लेकर एक और संभावना व्यक्त करते हैं, ‘कर्मकांड की स्थापना करने के अलावा कहानी बनाने वालों के मन में शायद ये बात भी रही होगी कि कभी तो कोई समझेगा कि सत्य ही नारायण है.’
अंत में एक सवाल और - सत्यनारायण व्रत कथा में ऐसा क्या है जिसने इसे भारत के घर-घर तक पहुंचाकर हमेशा के लिए स्थापित कर दिया है? इसे जाने-माने दार्शनिक ओशो इन शब्दों समझाते हैं, ‘जहां बुद्धपुरुषों की सौ में से एकाध बात ही किसी को ठीक लगेगी वहीं पंडितों की सौ में से सौ बातें सही लगेंगी. पंडित सुनने वाले को उसकी इच्छानुसार रामकथा या सत्यनारायण की कथा सुनाता है. उसे (श्रोता को) जो ठीक लगता है, कह देता है.’
सीधे शब्दों में कहें तो सत्यनारायण की कथा को इतना लोकप्रिय बनाने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात वह धारणा ही है जिसके मुताबिक इस कथा को करने मात्र से जो मांगो वह मिलता है, जो मिल चुका है वह बना रहता है और संभव हो तो बढ़ता भी रहता है.
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