फिल्मी गायक ज्यादातर सुने ही जाते हैं लेकिन, अगर वे खूबसूरत हैं तो अपने आसपास के माहौल की वजह से इस बात की पूरी संभावना होती है कि कैमरे के सामने भी आ जाएं. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे कई गायक हैं और इस कड़ी में सबसे ताजा नाम हैं, सुनिधि चौहान.

सुनिधि वैसे तो कुछ एक फिल्मों में अपनी हल्की सी झलक दिखा चुकी हैं लेकिन, दो हफ्ते पहले उनकी मुख्य भूमिका वाली एक शॉर्ट फिल्म – प्लेइंग प्रिया, रिलीज हुई है. इम्तियाज अली के भाई आरिफ अली इसके निर्देशक हैं और यह फिल्म हुमारा मूवीज वेब चैनल पर रिलीज हुई है.

प्लेइंग प्रिया एक थ्रिलर है जिसकी कहानी थोड़ी उलझाने वाली लगती है लेकिन, सुनिधि इसमें बखूबी ध्यान आकर्षित करती हैं. इस फिल्म के बाद सवाल उठता है कि क्या यह 32 वर्षीय गायिका अब एक्टिंग में करियर बनाने वाली है? सुनिधि 11 साल की उम्र से गा रही हैं और उन्होंने बचपन से ही अपने पिता, दुष्यंत कुमार चौहान को थियेटर में काम करते देखा है. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि अब वे गानों के बोल रटने के साथ-साथ फिल्मों की स्क्रिप्ट भी ध्यान से पढ़ रही हों. भविष्य की इन संभावनाओं और अपनी गायिकी के सफर पर सत्याग्रह से उनकी बातचीत :

आपको अतीत में भी फिल्मों के कई प्रस्ताव मिलते रहे हैं लेकिन, तब आपने एक्टिंग क्यों नहीं की?

मैं पिछले 20 साल से इंडस्ट्री में हूं और मुझे तब से ही एक्टिंग के प्रस्ताव मिल रहे हैं. कुछ जाने-माने बैनर्स की तरफ से भी प्रस्ताव आए लेकिन मैं तब तैयार नहीं थी. मैं उस समय काफी गाने गा रही थी. तब मेरी उम्र 14 साल थी और मैं तकरीबन हर दिन गाने रिकॉर्ड करती थी.

मेरे भीतर एक्टिंग का कीड़ा तो था. मेरे पिताजी ने 12 साल तक एक्टिंग की है. वे दिल्ली में होने वाली एक रामलीला में राम की भूमिका निभाया करते थे. मुझे याद है कि एक दिन गौरी का रोल करने वाली लड़की किसी वजह से नाटक के दिन नहीं आई तो मेरे पिताजी ने मुझे स्टेज पर खड़ा कर दिया. तब मैं चार साल की थी. मुझे वो डायलॉग आज भी याद हैं. तकरीबन दस लाइनें थीं जो मुझे सीता से कहनी थीं और वो मैंने बोल दीं. हर कोई हैरान था कि इतनी छोटी सी लड़की को डायलॉग याद कैसे हो गए! दरअसल मैं बचपन से चीजें सीखने-याद करने में माहिर हूं. अपने पिताजी को नाटकों में काम करते देखते हुए मुझे पता था कि एक दिन मैं भी ऐसा ही करूंगी, लेकिन कब, यह नहीं पता था.

प्लेइंग प्रिया में काम करने के लिए आप कैसे तैयार हुईं?

पिछले चार-पांच साल से मैं फिल्मों को एक अलग नजर से देखने लगी हूं. अब मेरी दिलचस्पी फिल्मों को एक्टर, निर्देशक, राइटर और आर्ट डायरेक्टर की नजर से समझने में हो गई है. जब इम्तियाज अली ‘तमाशा’ बनाने की तैयारी कर रहे थे तब मैंने उन्हें मनाया था कि वे मुझे भी फिल्म का हिस्सा बनाएं. उन्होंने मुझे इस फिल्म के लिए अपना असिस्टेंट बनाया था. हालांकि तकनीकी-तौर पर ऐसा नहीं था लेकिन मैं 80 फीसदी शूटिंग के समय सेट पर रही हूं और उससे मैंने बहुत कुछ सीखा है. वो सब देखने के बाद मैं चाहती थी कि अब कैमरे के सामने आऊं.

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इम्तियाज के भाई आरिफ अली मेरे दोस्त हैं. हम फिल्मों के बारे में खूब बातें करते हैं. अभी मार्च के दौरान मैं एक कार्यक्रम में परफॉर्म करने बैंगलोर गई थी. आरिफ मुझे स्टेज पर देखने के लिए काफी उत्सुक था. शो खत्म होने के बाद वो मुझसे मिला और कहा, ‘सुनिधि, अब मुझे पक्का यकीन है कि तुम्हें एक्टिंग करनी चाहिए.’ फिर वो एक दिन स्क्रिप्ट लेकर भी आ गया और इस तरह ये फिल्म बन गई.

एक थ्रिलर में काम करने का आपका अनुभव कैसा रहा?

मैंने सोचा था कि यह पांच मिनट की फिल्म है तो मुश्किल से छह या सात घंटे में बन जाएगी. मुझे बिल्कुल आइडिया नहीं था कि इसके लिए 23 घंटे तक, बिना सोए लगातार शूटिंग करनी पड़ेगी! एक्टिंग के बारे में तो अब क्या कहूं... मेरे मन में अब एक्टर्स के लिए बहुत इज्जत है. दिमागी-तौर इतने घंटों तक एक जैसी स्थिति में रहना... यह बहुत मेहनतभरा काम है. मुझे नहीं लगता कि बिना आरिफ के मैं यह कर पाती.

क्या अभी आपके पास एक्टिंग के और भी असाइनमेंट हैं?

अभी तो नहीं हैं लेकिन मैं इंतजार कर रही हूं. मुझे लोगों मिलने और उनसे काम मांगने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मेरी काबिलियत के हिसाब मुझे काम मिलेगा. प्लेइंग प्रिया में काम करके मैं बस यह चाहती थी कि मेरे फैन सिंगर सुनिधि चौहान को एक्टर सुनिधि चौहान से अलग करके देखने लगें और मुझे खुशी है कि यह मैसेज उनतक पहुंच गया है.

यूट्यूब पर एक वीडियो है जिसमें आप बिलकुल छोटी बच्ची लग रही हैं और गाना गा रही हैं. उस उम्र में भी आपने ‘मेरे मेहबूब ना जा’ को बहुत ही सधे हुए ढंग से गाया था. उस समय आपकी उम्र क्या थी और आप क्या करना चाहती थीं?

वो गुलाबी स्वेटर वाला वीडियो! मैंने वो देखा है. तब मैं टेपरिकॉर्डर के जैसी हुआ करती थी. मैं स्टेज के बाजू में खड़ी रहती थी और मेरे पिताजी मुझे हाथों से आगे बढ़ाते हुए कहते थे, ‘बेटा, स्टेज पर जाओ.’ वहां स्टेज पर पहुंचकर मैं गाने लगती थी. गाना खत्म होने के बाद वहीं चुपचाप सबको देखते हुए खड़ी रहती थी. फिर कोई आता था और माइक लेकर कहता था कि तुमने काम कर दिया है अब जाओ. उस पांच साल की बच्ची के दिमाग में तो तब क्या ही चलता होगा?

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आपने 1996 में भारत का पहला ‘टैलेंट हंट’ रिएलिटी शो – मेरी आवाज सुनो, जीता था. इसमें लता मंगेशकर और मन्ना डे जज बनकर आए थे. आपकी आवाज के बारे में उनका क्या कहना था?

मैं उस समय 13 साल की थी और सिर्फ उन्हें (लता मंगेशकर) देखना चाहती थी. वो मेरे लिए देवी हैं. जब मैं शो के मेगा फाइनल में पहुंची तो लता जी ठीक मेरे सामने बैठी थीं. मन्ना डे, पंडित जसराज जी, परवीन सुल्ताना जी और यश चोपड़ा जी भी वहां थे. स्टेज पर गाने के पहले मैं डरी हुई थी कि यदि मैंने उन्हें देख लिया तो मैं रोना शुरू कर दूंगी. तो फिर मैंने उन्हें बिना देखे ही गाना शुरू किया. पूरे समय मैं नीचे देखती रही. जब गाना पूरा हुआ तो मैंने सीधे दर्शकों की तरफ देखा. मैं इतनी नर्वस थी कि जजों की तरफ देख भी नहीं पा रही थी. जब मैं जीती तो लता जी ट्रॉफी के साथ खड़ी हुईं. फिर मेरी आंखों से आंसू बहने शुरू हुए. उन्होंने मेरे आंसू पोंछे और मेरे कान में कहा, ‘तुम्हें जो भी जरूरत हो मुझसे कहो, अगर तुम किसी से कुछ सीखना चाहती हो तो मुझे बताओ.’

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1996 में आई फिल्म ‘शस्त्र’ के लिए आपने ‘लड़की दीवानी देखो, लड़का दीवाना’ गाया था. फिल्मों में यह आपका पहला गाना था और इसका संगीत आदेश श्रीवास्तव ने दिया था. इससे जुड़ी कुछ खास यादें?

मैं 11 साल की थी जब मैंने यह गाना रिकॉर्ड किया था लेकिन यह फिल्म दो साल बाद रिलीज हुई. जब मैंने रिकॉर्डिंग खत्म की तो आदेश जी ने कहा, ‘बेटा, ये तुमने हीरोइन के लिए गाया है.’ यह सुनकर मैंने कहा था, ‘क्या!’

हालांकि फिल्म का दूसरा गाना - क्या अदा क्या जलवे तेरे पारो, ज्यादा हिट हुआ था. उस दिन जब मैं घर पहुंची तो काफी खुश थी. तीन तक मुझे बुखार चढ़ा रहा. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैंने हीरोइन के लिए गाना गाया है.

1999 में ‘मस्त’ फिल्म के गाने ‘रुकी रुकी सी जिंदगी’ के लिए आपको पहली बार फिल्मफेयर नॉमिनेशन मिला था, यह आपके करियर के लिए सबसे बड़ा निर्णायक मोड़ था या कोई और?

यह बड़ी अजीब बात थी लेकिन अगले साल मुझे न्यू म्यूजिक टैलेंट कैटिगरी में ‘बूमरो’ (‘मिशन कश्मीर’ का गाना, यह फिल्म साल 2000 में आई थी) गाने के लिए फिल्मफेयर आरडी बर्मन अवॉर्ड मिला था जबकि यह अवॉर्ड मुझे ‘रुकी रुकी सी जिंदगी’ के लिए मिलना चाहिए था. इस गाने के लिए मुझे मुख्य कैटिगरी में नॉमिनेट किया गया था. ‘रुकी रुकी सी...’ बहुत बड़ा मौका था क्योंकि मैं उर्मिला मातोडकर के लिए गा रही थी. उसके बाद सबकुछ बदल गया.

अपने 20 साल के करियर के वे पांच गाने बताइए जो आपके हिसाब से सबसे अच्छे हैं.

माई ब्रदर निखिल का ले चलें, मर्डर 2 का आ जरा, फना का देखो ना, दस का दीदार दे, और दिल धड़कने दो का स्विंग. वैसे कुल 15-20 गाने हैं जो मुझे बहुत पसंद हैं.

साल 2001 में आई फिल्म नायक के लिए आपने सैंयां गाया था. यह थोड़ा मुश्किल गाना था और पहली बार आप एआर रहमान के संगीत निर्देशन में गा रही थीं. उसकी रिकॉर्डिंग आसान थी?

इस गाने की रिकॉर्डिंग चार बजे हुई थी. उन्होंने प्यानो पर कुछ बजाया और कहा कि मैं इस धुन पर गाना गाऊं. मैं वैसा करती रही. मैं माइक पर गाते हुए अपना गला साफ करती जा रही थी. कुछ लाइन ऐसे ही गाईं. तकरीबन 25 मिनट के बाद उन्होंने कहा, ‘ठीक है, गुडनाइट’. और मेरा उनसे कहना था कि मैंने अभी गाया ही कहां है, मैं तो बस रिहर्सल कर रही थी.

किस संगीत निर्देशक के साथ काम करना आपको सबसे ज्यादा पसंद है?

मुझे विशाल-शेखर के साथ काम करना पसंद है. वे मेरे दोस्त हैं. मैंने आनंद राज आनंद के साथ काफी काम किया है लेकिन पता नहीं वे कहां गायब हो गए हैं. उन्होंने कुछ बहुत ही जबर्दस्त गाने बनाए हैं.

लता मंगेशकर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें आपकी आवाज सुनना पसंद है लेकिन उन्हें लगता है कि आपकी आवाज लोरी के लिए सही नहीं बैठेगी. क्या आपने कभी इसकी कोशिश की है?

हां, मैंने फिल्म ‘नीरजा’ के लिए पहली बार लोरी गाई है – ऐसा क्यूं मां. यह सुनने में बहुत अच्छी है.

कोई तीन गाने जिन्हें सुनते ही आप उनकी गिरफ्त में होती हैं

हाईवे (2014) का सूहा साहा, इसे जेब बंगश ने गाया है. मैं अपने गाने नहीं सुनती लेकिन मर्डर 2 का आ जरा इसका अपवाद है. ओंकारा में रेखा भारद्वाज का लाकड़ जल के कोयला, और सुरेश वाडेकर का जग जा को आप ऐसे गाने मान सकते हैं.