गौरक्षा के नाम पर आक्रामकता और राजनीति भले ही चरम पर हो, लेकिन जमीन पर गौसेवा की पूरी व्यवस्था पटरी से उतर चुकी लगती है. गायों की मौत को लेकर चर्चा में आई जयपुर की हिंगोनिया गौशाला में गायों के पेट से भारी मात्रा में जहरीला कचरा निकल रहा है. इसमें न सिर्फ पॉलीथीन की थैलियां बल्कि प्लास्टिक की बोतलों के ढक्कन, लोहे की कीलें, सिक्के, ब्लेड, सेफ्टी पिन, पत्थर और मंदिरों में चढ़ावे से निकला कचरा शामिल है.
इस गौशाला में सहायकों की मदद से वेटनरी सर्जन रोजाना चार से पांच गायों का ऑपरेशन कर रहे हैं, जिनके पेट से ऐसी चीजें निकल रही हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक गायों के पेट में कचरे का जमाव बेहद सख्त होता है जिसे काटकर बाहर निकालने के लिए कई बार आरी की मदद भी लेनी पड़ती है.
हिंगोनिया गौशाला को 2002 में बनाया गया था. यहां पर आठ हजार गायों के लिए 24 शेड्स बने हुए हैं. इसके अलावा एक आईसीयू भी है, जहां बहुत ज्यादा बीमार गायों का इलाज होता है.
जयपुर शहर से 50 किमी दूर पर बनी हिंगोनिया गौशाला की जिम्मेदारी जयपुर नगर निगम के पास है. यहां गायों को देखभाल के लिए लाया जाता है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक गौशाला में गायों के लिए साफ सफाई और चारे की स्थिति उसके बाहर की स्थिति से ठीक उलट है. अंदर गंदगी है, चारे की कमी है. बाहर हरियाली है जहां पर दूसरी गायें, भेड़ और ऊंट चरते हैं और वे स्वस्थ हैं. अंदर और बाहर की परिस्थितियों में इतने अंतर की वजह बारिश भी है. बारिश ने बाहर हरियाली पैदा करने का काम किया जबकि गौशाला के भीतर सफाई के अभाव में दलदल जैसे हालात पैदा कर दिए.
हिंगोनिया गौशाला को 2002 में बनाया गया था. यहां पर आठ हजार गायों के लिए 24 शेड्स बने हुए हैं. इसके अलावा एक आईसीयू भी है, जहां बहुत ज्यादा बीमार गायों का इलाज होता है. यहां एक बायोगैस प्लांट, अस्पताल, ओपीडी, लेबर रूम और 34 पोस्ट-ऑपरेशन वार्ड बने हुए हैं. अस्पताल और अन्य चिकित्सा उपकरणों की सुविधा 2012 में स्थापित की गई है. गौशाला की जिम्मेदारी दो विभागों के पास है. आवास और शहरी विकास विभाग के तहत आने वाले जयपुर नगर निगम के पास शेड्स के रखरखाव का जिम्मा है जबकि पशुधन विभाग के पास मवेशियों के इलाज का.
खबरों के मुताबिक जिन दिनों गायों की मौत की खबर आई, उन दिनों गौशाला के भीतर हालात इसलिए भी बुरे हो गए थे कि जयपुर नगर निगम के संविदा कर्मियों ने भुगतान न होने के चलते साफ-सफाई करने से इंकार कर दिया था. ऊपर से भारी बारिश की वजह से गायों के रखरखाव के लिए बनाए गए शेड के भीतर दलदल जैसी स्थिति बन गई थी.
क-एक गाय के पेट से 50 से 70 किलो तक पॉलिथीन निकलती है. गायों के पेट में इतना कचरा जमा हो जाता है कि चारे के लिए जगह ही नहीं बचती और भूख से उनकी मौत हो जाती है.
गौशाला के अस्पताल में पशु विशेषज्ञ और डिप्टी डायरेक्टर पीसी कनखेडिया इससे इनकार करते हैं कि गायों की मौत की वजह डॉक्टरों और स्टाफ की कमी है. वे बताते हैं कि सामान्य तौर पर पांच हजार मवेशियों पर एक पशु डॉक्टर नियुक्त करने का नियम है लेकिन, इस गौशाला में 8000 पशुओं पर 17 डॉक्टर और 61 सहायक स्टाफ हैं. उनके मुताबिक इस गौशाला में आवारा और पालतू पशुओं को लाया जाता है. पालतू पशुओं में ज्यादातर बीमार होते हैं और इलाज के लिए लाए जाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक गौशाला के एक लैब टेक्नीशियन नका कहना है कि यहां पर आने वाली 80 फीसदी गायें बीमार होती हैं, उनमें खून की कमी होती है और उनका पेट प्लास्टिक खाने से फूला होता है जिसके चलते उन्हें बचा पाना मुश्किल होता है.
जयपुर नगर निगम में अतिरिक्त कमिश्नर राकेश शर्मा बताते हैं कि वास्तव में यह गौशाला नहीं बल्कि पुनर्वास केंद्र है, इसलिए यहां पर आने वाली ज्यादातर गायें बीमार होती हैं. गायों की मौत की वजह पॉलीथीन खाने से हो रही है. एक-एक गाय के पेट से 50 से 70 किलो तक पॉलिथीन निकलती है. गायों के पेट में इतना कचरा जमा हो जाता है कि चारे के लिए जगह ही नहीं बचती और भूख से उनकी मौत हो जाती है.
पिछले दिनों गौरक्षा के नाम पर मारपीट करने वाले गौरक्षकों को नसीहत देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गायों के प्लास्टिक खाने और खराब स्वास्थ्य का जिक्र किया था. गुजरात में मुख्यमंत्री रहने के दौरान के अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा था कि पशु स्वास्थ्य कैंप के दौरान ऑपरेशन में गायों के पेट से दो-दो बाल्टी प्लास्टिक निकलता था. गौरक्षा के नाम पर हिंसा करने वालों को संबोधित करके प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर गायों को प्लास्टिक और कचरा खाने से बचा लिया जाए तो यही सबसे बड़ी गौरक्षा हो जाएगी.
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