गणेश चतुर्थी को लेकर अमूमन महाराष्‍ट्र में खूब उल्‍लास रहता है. गणेश चतुर्थी और महाराष्‍ट्र एक दूसरे के पूरक भी बने हुए हैं. महाराष्‍ट्र से हजार किलोमीटर दूर भारत तिब्‍बत सीमा से सटे उत्‍तरकाशी में कुछ साल पहले तक गणेश चतुर्थी को लेकर किसी तरह का उल्लास नहीं था. उत्‍तरकाशी जनपदवासियों के लिए गणेश चतुर्थी उतना ही मायने रखती थी जितना महाराष्‍ट्र को छोड़कर देश के अन्‍य राज्‍यों और जिलों के लिए.

लेकिन, बीते दो-तीन सालों से यह तस्‍वीर पूरी तरह से बदली हुई नज़र आ रही है. गणेश चतुर्थी को लेकर इस बार यहां खूब उल्‍लास है और गणेश की प्रतिमा भी स्‍थापित की गई है. दरअसल इस दफा उत्‍तरकाशी जनपद से सटे केलसू क्षेत्र के लोग गणेश पर अपना दावा जताते हुए अपने यहां भी गणेश चतुर्थी का आयोजन कर रहे हैं.

केलसू क्षेत्र असी गंगा नदी घाटी के सात गांवों को मिलाकर बना है. 2012 की विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आया यह क्षेत्र लगातार मानसूनी आफत से दो-चार होता रहा है. आपदाओं से इस क्षेत्र का पुराना नाता है. 1991 में उत्‍तरकाशी में आए विनाशकारी भूंकप का केंद्र भी केलसू क्षेत्र का ढासड़ा गांव ही रहा था जिसके निशान आज भी यहां मौजूद है. हालांकि, अब आपदाओं के चलते बेजार हो चुका यह क्षेत्र 2012 से पहले तक पर्यटकों की पसंदीदा जगह रहा था. अस्‍सी गंगा घाटी जहां कैंपिंग के लिए मशहूर थी तो वहीं संगमचट्टी से 18 किमी लंबे ट्रेक के जरिए डोडीताल तक जाने के लिए मार्च से नवंबर तक यहां पर्यटकों की भीड़ जमा रहती थी. लेकिन 2012 की आपदा के बाद यहां के ज्यादातर रास्‍ते टूट गए और अस्‍सी गंगा घाटी कैंपिंग लायक न रही.

इस आयोजन में गणेश की प्रतिमा स्‍थापित करने से लेकर पूजा-पाठ तक जो कुछ भी किया जा रहा है उस पर महाराष्ट्र में किये जाने वाले आयोजनों की छाप साफ नजर आती है

डोडीताल को केलसू क्षेत्र के लोग पहले भी गणेश की जन्‍मभूमि कहते रहे हैं. वे पुराणों में शामिल श्‍लोकों के जरिए भी इस बात की पुष्टि करने की कोशिश करते रहे हैं. लेकिन बीते सालों तक इस बात को कभी बहुत जोर-शोर से प्रचारित नहीं किया गया. यहां के लोगों का माना है कि डोडीताल, जोकि मूल रूप से बुग्‍याल के बीच में काफी लंबी-चौड़ी झील है, वहीं गणेश का जन्‍म हुआ था. यहां एक अन्‍नपूर्णा का मंदिर भी है. यह भी कहा जाता है कि केलसू, जो मूल रूप से एक पट्टी है (पहाड़ों में गांवों के समूह को पट्टी के रूप में जाना जाता है) का मूल नाम कैलाशू है. इसे स्‍थानीय लोग शिव का कैलाश बताते हैं. हालांकि, मूल कैलाश यहां से सैकड़ों किमी दूर है.

बीते सालों तक दबी जुबान में इस क्षेत्र को गणेश की जन्‍मभूमि के रूप में प्रचारित करने वाले स्‍थानीय लोगों - खासकर स्‍थानीय नेताओं - ने इस बार गणेश चतुर्थी का भव्‍य आयोजन कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि डोडीताल ही मूल रूप से गणेश भगवान का जन्‍मस्‍थल है और केलसू क्षेत्र शिव का कैलाश.

इस आयोजन में गणेश की प्रतिमा स्‍थापित करने से लेकर पूजा-पाठ तक जो कुछ भी किया जा रहा है उस पर महाराष्ट्र में किये जाने वाले आयोजनों की छाप साफ नजर आती है. यहां तक कि गणेश प्रतिमा स्‍थापित करने से पहले निकाले गए जुलूस में शामिल केलसू के ग्रामीणों ने सिर पर महाराष्‍ट्र के लोगों द्वारा पहनी जाने वाली सफेद टोपी और सफेद कुर्ता-पायजामा भी पहना हुआ था. यहां तक कि गणेश की पूजा करने के लिए भी उत्‍तरकाशी में निवास कर रहे एक मराठी मानुष को ही तैनात किया गया है.

गणेश भगवान को स्‍थानीय बोली में डोडी राजा कहा जाता हैं जो केदारखंड में गणेश के लिए प्रचलित नाम डुंडीसर का अपभ्रंश है

साहसिक पर्यटन के लिए प्रसिद्ध रहे डोडीताल को अब गणेश जन्‍मस्‍थल तीर्थ के रूप में प्रचारित प्रसारित करने की कोशिश पर स्‍थानीय निवासी और इस मामले पर गहन अध्‍ययन कर चुके डॉ. राधेश्‍याम खंडूड़ी बताते हैं कि गणेश भगवान को स्‍थानीय बोली में डोडी राजा कहा जाता हैं जो केदारखंड में गणेश के लिए प्रचलित नाम डुंडीसर का अपभ्रंश है. उनकी मानें तो डोडीताल क्षेत्र मध्‍य कैलाश में आता था और डोडीताल गणेश की माता और शिव की पत्‍नी पार्वती का स्‍नान स्‍थल था.

स्‍वामी चिद्मयानंद के गुरु रहे स्‍वामी तपोवन ने अपनी किताब हिमगिरी विहार में भी डोडीताल को गणेश का जन्‍मस्‍थल होने की बात कही है. उन्‍होंने डोडीताल का भ्रमण कर और वेद पुराणों का अध्‍ययन कर अपना ऐसा मत रखा था. वे बताते हैं कि मुद्गल ऋषि की लिखी मुद्गल पुराण, जो कि पूरी तरह से गणेश को समर्पित है, में भी इस बात का जिक्र किया गया है. मुद्गल ताल भी केलसू क्षेत्र में आता है. माना जाता है कि इसी ताल के नाम पर मुद्गल ऋषि का भी नामकरण हुआ था.

जैसाकि देश में इस तरह के अन्य दावों के साथ होता है, जिनमें सभी मिथकीय चरित्रों से ही जुड़े नहीं हैं, इसके बारे में स्‍थानीय ग्रामीण जब हमें कोई ठोस सुबूत नहीं दे पाते तो अपनी सुविधानुसार गढ़े गये एक श्‍लोकनुमा नारे को सुनाते हैं:

‘गणेश जन्‍मभूमि डोडीताल कैलासू

असी गंगा उद्गम अरू माता अन्‍नपूर्णा निवासू’