चुप्पी की एक अलग भाषा और अभिव्यक्ति तो होती ही है लेकिन, रायपुर के इस अनूठे कैफे में चुप्पी का एक अलग स्वाद भी मिलता है. यह नुक्कड़ चाय कैफे जिसे नुक्कड़ टीफे भी कहा जाता है, यूं तो कई मायनों में अलग है, लेकिन इसे सबसे अलग बनाता है यहां का स्टाफ. यहां काम करने वाले शेफ से लेकर परोसने वाले तक, ज्यादातर व्यक्ति न तो बोल सकते हैं और न ही सुन सकते हैं. यह कैफे चाय के साथ आपको कई चीजें फ्री में परोसता है. मसलन आप यहां मूक-बधिरों की सांकेतिक भाषा मुफ्त में सीख सकते हैं, किताबें पढ़ सकते हैं और कविताएं सुन या सुना सकते हैं. यहां चाय के साथ जो ‘वाय‘ मिलती है उससे आपकी चुस्की का स्वाद कई गुना बढ़ जाएगा.

इस नुक्कड़ टीफे की शुरुआत करने वाले 31 वर्षीय प्रियंक पटेल पेशे से इंजीनियर हैं. पांच साल एक कंपनी में काम करने के बाद 2011 में एक फेलोशिप प्रोग्राम का हिस्सा बनकर प्रियंक पहली बार ग्रामीण भारत के संपर्क में आए. गुजरात, उड़ीसा और महाराष्ट्र के गांवों में काम करने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि अपने देश की युवा पीढ़ी समाज से बहुत कटी हुई है और उसकी सामाजिक भागीदारी बहुत कम है. प्रियंक ने सोचा कि क्यों न वे स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़कर एक ऐसा मंच तैयार करें जहां युवा एक-दूसरे से मिलें, विचारों का आदान-प्रदान करें, समाज के लिये नया कुछ सोचें और करें भी. प्रियंक की यह सोच ही नुक्कड़ टीफे की बुनियाद बनी.
एक साक्षात्कार में प्रियंक कहते हैं, ‘इस नुक्कड़ टीफे के पीछे मेरा एक मकसद है कि मैं ऐसे लोगों को रोजगार दूं जो सुनने और बोलने में अक्षम हैं. साथ ही मेरी यह भी इच्छा थी कि मैं एक ऐसी जगह बनाऊं जहां स्वयंसेवी संस्थाएं, रचनात्मक लोग और समाज के युवा एक साथ उठ-बैठ सकें और मिलकर कुछ काम करें.‘
टीफे में सुन और बोल न सकने वाले लोगों को रोजगार देने के पीछे प्रियंक का मकसद ऐसे लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में अपना सहयोग देना है. साथ ही प्रियंक अलग-थलग पड़े ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना चाहते हैं. वे कहते हैं, ‘हमारे ग्राहकों ने यहां के स्टाफ से सांकेतिक भाषा में बात करना शुरू कर दिया है. हमारे स्टाफ का भी आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया है. अब वे अपने परिवार के ऊपर बोझ नहीं हैं और उनके परिवारों को भी उन पर गर्व है.‘
'मेरी यह भी इच्छा थी कि मैं एक ऐसी जगह बनाऊं जहां स्वयंसेवी संस्थाएं, रचनात्मक लोग और समाज के युवा एक साथ उठ-बैठ सकें और मिलकर कुछ काम करें.‘
एक तरह से देखा जाए तो चाय की गुमटी का आधुनिक संस्करण है रायपुर का यह टीफे. 2013 में शुरू हुए इस टीफे की आज रायपुर में दो शाखाएं हैं. इनमें 10 मूक-बधिर स्टाफ के रूप में काम करते हैं. इस़ कैफे में आपको 30 से ज्यादा तरह की चाय चखने को मिलेंगी जिनकी कीमत 30 से 150 रुपये तक है. नुक्कड़ टीफे में जितना स्वाद आपकी जबान को आयेगा, यकीन मानिये उससे ज्यादा स्वाद आपकी आंखें लेंगी. बेहद चटख रंगों, दीवारों पर हुई खूबसूरत पेंटिंग्स और बेहतरीन आंतरिक सज्जा ने नुक्कड़ टीफे को एक शानदार आर्ट गैलरी में तब्दील कर दिया है. यहां का खूबसूरत माहौल चाय की चुस्की के साथ मन को सुकून से भर देता है.
लेकिन नुक्कड़ टीफे की विशेषताएं यहीं खत्म नहीं होतीं. यहां अक्सर अलग-अलग विषयों पर चर्चा और वाद-विवाद के कार्यक्रम होते रहते हैं. कैफे में एक बार आने वाले लोग यहां बार-बार आना पसंद करते हैं. इस तरह यहां के ग्राहक इस नुक्कड़ टीफे के परिवार का हिस्सा बन जाते हैं.
अपने ग्राहकों के लिए यह टीफे चाय और स्नैक्स से अलग और भी कई बेहद अलग-अलग तरह की चीजें परोसता है. ‘डिजिटल डिटॉक्स‘, ‘ज्ञान दान‘, ‘टी एंड टोन्स‘, ‘बिल बाय दिल‘, ‘सुपर मॉम सेलिब्रेशन‘ आदि इस नुक्कड़ कैफे के मुख्य आकर्षण हैं. ‘ज्ञान दान‘ के तहत लोग यहां अपनी कोई किताब दे सकते हैं और बदले में यहां की कोई किताब तीन दिनों के लिये ले जा सकते हैं. ‘डिजिटल डिटॉक्स‘ का मतलब है कि जो लोग यहां आने पर अपने मोबाइल जमा कर देते हैं, उन्हें कैफे की तरफ से बिल में छूट दी जाती है.
‘हम नहीं चाहते कि हमारे यहां आकर ग्राहक अपने फोन से चिपके रहें या उन लोगों से चैटिंग करते रहें जो असल में यहां मौजूद ही नहीं हैं'
इस बारे में प्रियंक कहते हैं, ‘हम नहीं चाहते कि हमारे यहां आकर ग्राहक अपने फोन से चिपके रहें या उन लोगों से चैटिंग करते रहें जो असल में यहां मौजूद ही नहीं हैं. हम चाहते हैं कि वे यहां आकर मस्ती करें, किताबें पढ़ें, नए लोगों से मिलें और कुछ सीखकर जाएं‘. ‘टी एंड टोन्स‘ के तहत कैफे में ऐसे आयोजन किये जाते हैं जिनमें कोई भी ग्राहक माइक पर अपनी पसंद की कविता सुना सकता है. यह कैफे हर साल अपनी वर्षगांठ को ‘बिल-मुक्त दिवस‘ के रूप में मनाता है. ग्राहकों को बिल की जगह एक खाली लिफाफा पकड़ा दिया जाता है, जिसमें वे अपनी खुशी से पैसे डाल देते हैं, इसी को नाम दिया है ‘बिल बाय दिल‘. एक अन्य मजेदार योजना है ‘सुपर मॉम सेलिब्रेशन‘. इसके तहत यदि कोई ग्राहक अपनी मां को कैफे में लाता है तो मां की पसंद की कोई भी एक डिश यह कैफे बिल्कुल मुफ्त देता है.
रायपुर के इस अलहदा ठिकाने की चर्चा बढ़ती जा रही है. ट्रिप एडवाइजर ने नुक्कड टीफे को शहर की ‘मस्ट विजिट‘ जगहों में शुमार किया हुआ है. एक अखबार से बात करते हुए प्रियंक कहते हैं, ‘मैं नहीं चाहता था कि नुक्कड़ एक आम सी जगह हो जहां लोग आएं, चाय पियें और चले जाएं. मैं चाहता था कि लोगों का यहां आना एक अनुभव हो, वे अपने आस-पास के लोगों को जानें और यहां से नयी-नयी चीजें सीख के जाएं‘. उनका सपना रंग ला रहा है.
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