वैसे तो न सीखने की कोई उम्र होती है और न ही सिखाने की, लेकिन वासी और कस्तूरी एक ही समय पर छात्राएं और अध्यापिकाएं दोनों हैं. वासी गोयल और कस्तूरी शाह दोनों अमेरिका के प्रिंस्टन विश्वविद्यालय से इकॉनोमिक्स और फिजिक्स में स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं. इन दोनों ने मिलकर भारत के गरीब तबके के बच्चों को फोन पर ही अंग्रेजी सिखाने की मुहिम शुरू की है, जिसका नाम है ‘हैलो सीखो.’
‘हैलो सीखो’ नाम के इस प्रोग्राम में एक टोल फ्री नम्बर (180030000881) दिया गया है. जिस तरह कस्टमर केयर पर फोन करके बटन दबाकर सेवाएं ली जाती हैं, ठीक उसी तरह इस नम्बर पर फोन करके अंग्रेजी का पाठ सुना जा सकता है. ‘हैलो सीखो’ की पहल सबसे पहले 2014 में पश्चिमी दिल्ली के एक झोपड़-पट्टी इलाके में शुरू की गई. फिर 2015 में मुम्बई के धारावी में इसकी सेवाएं शुरू हुईं.

‘हैलो सीखो’ में कुल 65 पाठ (ऑडियो चैप्टर) हैं और हर पाठ लगभग 3-4 मिनट का है. इन सभी पाठों में आसान हिंदी के माध्यम से अंग्रेजी सिखाई जाती है. यह पूरी प्रक्रिया बेहद असान और यूजर फ्रेंडली है ताकि तकनीक को बेहतर तरीके से न समझने वाले लोग भी इसका प्रयोग करके फायदा उठा सकें.
बच्चों को अंग्रेजी सिखाने की अपने मुहिम के बारे में बात करते हुए वासी एक साक्षात्कार में कहती हैं, ‘हम भाग्यशाली हैं कि हमें बचपन से ही अच्छी इंग्लिश सीखने के बहुत सारे मौके और संसाधन मिले. लेकिन भारत में आज भी ऐसे बहुत से बच्चे हैं जिनके पास इंग्लिश सीखने के लिए न मौके हैं और न संसाधन. हम इन बच्चों की पढ़ाई को और बेहतर बनाने और उन्हें इंग्लिश सिखाने में मदद कर रहे हैं. हमारा मकसद हैं कि बच्चे अपने-अपने स्कूलों में जाते हुए ही अपनी इंग्लिश को सुधार सकें. मुझे लगता है भारत में इंग्लिश सीखकर आपको नौकरी पाने में भी काफी सुविधा होती है.’
अपने प्रोग्राम के बारे में बताते हुए वासी आगे कहती हैं, ‘उस नम्बर पर फोन करके कोई भी बच्चा या वयस्क व्यक्ति अंग्रेजी की वर्णमाला से लेकर, रोजमर्रा की जरूरत वाले शब्द, वाक्य, ग्रामर के साथ-साथ टेंन्स भी सीख सकता है. शुरूआत में हमने तीसरी से नौवीं कक्षा तक के बच्चों को टारगेट किया था, लेकिन अब बड़े लोग भी इस प्रोग्राम से जुड़ गए हैं.’
प्रोग्राम शुरू होने के बाद लगभग दो सालों में ‘हैलो सीखो’ के पास तकरीबन 165000 फोन आ चुके हैं.
वासी और कस्तूरी ने रोजमर्रा की गतिविधियों से जुड़े शब्दों, वाक्यों और बातों के इर्द-गिर्द ही अंग्रेजी के पाठों का निर्माण किया गया है. इस पाठों को शिक्षा से जुड़े विद्वानों की मदद से तैयार किया गया है.
इन दोनों छात्राओं ने अक्टूबर, 2013 में जब इस विचार पर काम शुरू किया तो सबसे बड़े सवाल थे कि भारत से इतनी दूर रहकर इस विचार को जमीन पर कैसे उतारा जाए और इसके लिए कौन-सा टूल सबसे कारगर रहेगा. इन सवालों का जवाब वासी को बच्चों के लिए काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था से जुड़कर मिला. वे बताती हैं, ‘यह आइडिया बच्चों के साथ कम्यूनिटी में रहने और उन्हें मोबाइल का प्रयोग करते देखकर ध्यान आया. मैंने देखा कि मोबाइल सबके पास है और अपने आइडिया के लिए यह सबसे बेहतर माध्यम हो सकता है.’
अपनी नियमित पढ़ाई के दौरान ही वासी और कस्तूरी ने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया था. पढ़ाई से समय निकालकर कभी क्लास के बीच में तो कभी छुट्टियों में इन दोनों ने कड़ी मेहनत करके इसका कंटेंट तैयार किया. इसके बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए एक साक्षात्कार में कस्तूरी बताती हैं, ‘हम एक हफ्ते साथ-साथ बैठकर काम किया और फिर आठ हफ्ते तक अकेले काम करते रहे. हमारे सामने ढेर सारी चुनौतियां थीं. भारत से दूर होने के कारण और भी ज्यादा मुश्किलें थीं. लेकिन हमने मिलकर यह कर दिखाया. जब आप पूरी धुन से किसी काम में लग जाते हैं तो हर चीज का हल निकल ही आता है.’
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