क्राइम पेट्रोल, सावधान इंडिया, सीआईडी आम जनता को जागरूक करते हैं या अपराधियों की मदद करते हैं, इस सवाल पर लंबी बहस की जा सकती है और की भी जानी चाहिए. पूरे हफ्ते में लगभग सातों दिन सुबह से रात तक कई-कई घंटे प्रसारित होने वाले इन क्राइम शो का एक आम और एक अपराधिक मानसिकता वाले व्यक्ति पर क्या प्रभाव होता है, यह बहस हमेशा से चलती रही है. इस बहस के सार्थक परिणाम निकलें, इसके लिए ज़रूरी है कि मुद्दे के दोनों पक्षों पर गंभीरता से विचार किया जाए.
आम धारणा के अनुसार सभी खाकी वर्दी वाले भ्रष्ट होते हैं. यह धारणा कहती है कि जब एक आम आदमी पुलिस के पास जाता है तो उसकी एफआईआर नही लिखी जाती है, सडक पर किसी घायल को देखकर पुलिस को जानकारी इसलिए नहीं देनी चाहिए क्योंकि बाद में पुलिस जानकारी देने वाले को खासा परेशान करती है और पुलिस से जुड़ा कोई भी काम बिना ‘लिये-दिये’ नहीं होता है. लेकिन क्राइम पेट्रोल जैसे शो में वही केस दिखाए जाते हैं जिनको पुलिस हल कर चुकी है. इन मामलों में दिखाए गए पुलिस और क्राइम ब्रांच आदि के अधिकारी जिस ईमानदारी और शालीनता से अपना काम करते हैं, वह काफी सकारात्मक असर छोड़ता है.
इन शोज को देखकर आम आदमी को लग सकता है कि हकीकत में पुलिस इतनी ही तत्परता, ईमानदारी और तेज़ी से मामलों को निपटाती होगी; ऐसा करने में उसे खासी मशक्कत करनी पड़ती होगी और जान का जोखिम तक उठाना पड़ता होगा; किसी को मार देना या अपराध करना किसी भी बात का समाधान नहीं होता; और देर सवेर ही सही लेकिन अपराधी कानून की गिरफ्त में आ ही जाते हैं. ये शो बच्चों को यह समझाने में भी सक्षम हैं कि उन्हें किसी अनजान व्यक्ति के हाथों टॉफी नहीं लेनी चाहिए, बिना पूछे दरवाज़ा नही खोलना चाहिए आदि-इत्यादि...
लेकिन कुछ दूसरे पहलुओं पर गौर किया जाये तो आसानी से यह भी लग सकता है कि क्राइम शो आपराधिक मानसिकता वाले लोगों के ज्यादा सहायक सिद्ध होते हैं. अच्छे को अच्छा भले आकर्षित न करे, लेकिन बुरी बातें बुरों को अपनी ओर जल्दी आकर्षित करती है. क्राइम शो में अधिकतर मामले सुलझाने में पुलिस का सबसे बड़ा मददगार मोबाइल फ़ोन बनता है. सिम डिटेल, फोन डिटेल, कॉल डिटेल, जगह इन सबके डेटा को इकठ्ठा करके पुलिस अपराधी तक पहुंचने का पहला रास्ता खोल देती है. इस तरह से अपराध करते समय फोन का इस्तेमाल न के बराबर करने की राय अप्रत्यक्ष रूप से क्राइम शो का हर भाग देता है. बड़े और अनुभवी अपराधी इन सब पैंतरों से पहले ही वाकिफ होते हैं लेकिन नौसिखिये अपराधियों के लिए ये जानकारियां कम उपयोगी नहीं होतीं.
किशोरावस्था में कम मेहनत में ज्यादा नंबर पाने की चाहत, बिना मेहनत पैसा कमाने की इच्छा और महंगे महंगे शौक पूरे करने की ख्वाहिशें रखने वाले लोगों के लिए क्राइम शो एक गाइड जैसा काम करते हैं
इकतरफा प्यार में आम समझ कहती है कि माफ़ कीजिये और आगे बढ़ जाइए. लेकिन क्राइम शो में दिखाए जाने वाले मामलों में, जिस तरह इकतरफा और असफल प्रेम कहानियों में बदला लिया जाता है, उसके तरीके रोंगटे खड़े करने वाले होते हैं. ब्लैकमेलिंग, एसिड अटैक, स्नूपिंग, छेड़खानी, साइबर क्राइम, बलात्कार और अपहरण जैसे अपराधों के शिकार लडके-लड़कियां इन क्राइम शो में जिस पीड़ा से गुज़रते हुए दिखाई देते हैं, वह अकल्पनीय होती है. और बदले में जो सज़ा अपराधी को मिलती है वह मुश्किल से मुश्किल 7-10 साल. असल जिंदगी में इकतरफा या असफल प्रेम से त्रस्त कई युवक-युवतियां बदले की भावना में इस तरह जल रहे होते हैं कि शो में दिखाए जाने वाले तरीके, पीड़ित को मिलने वाला दर्द, अपराधी को मिलने वाली संतुष्टि, थोड़ी सजा और फिर जमानत उसके हौसलों को बढ़ाने का काम कर सकती है.
टीवी पर रात में 10 बजे दिखाए जाने वाले ये क्राइम शो पूरे दिन ही दोहराए जाते हैं. कामकाजी मां-बाप के लिए हर वक्त अपने बच्चों पर पहरा देना मुमकिन नही होता. इस बात में कोई दोराय नहीं कि बच्चों को यौन शिक्षा समेत हर तरह की जानकारियां देना ज़रूरी है. लेकिन ये उन्हें अपराधों के ऐसे नाट्य रूपांतरों द्वारा तो नहीं ही मिलनी चाहिए जैसे कि क्राइम शो में प्रसारित किये जाते हैं. बच्चों को ऐसी बातें एक स्वस्थ माहौल और संवेदनशील ढंग से ही सिखाई और समझाई जानी चाहिए.
बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों से उन्हें बचाने के लिए क्राइम शो का इस्तेमाल परिवार वाले तो कर सकते हैं, लेकिन इतने हिंसक, नकारात्मक और भय से भर देने वाले शो बच्चों को दिखाना असंभव है. अमेरिकी मनोवैज्ञानिक सांड्रा एंडरेड अनुसार ऐसे क्राइम शो बच्चों और युवाओं में एक मानसिक भय पैदा करते हैं. इनसे बच्चों के अन्दर एक नकारात्मक भाव पैदा होता है और उन्हें लगता है कि समाज असुरक्षित है और अधिकतर लोग बुरे होते हैं. ये उनमें बेचैनी और डर पैदा करता है.
क्राइम शो में बाल यौन शोषण के मामलों में बच्चों के बर्ताव और उनके अंदर की जद्दोजहद और सच न बता पाने की मानसिकता से बाल यौन अपराध करने की सोच रखने वाले शख्स की हिम्मत को जो बढ़ावा मिलता है उससे इनकार नहीं किया जा सकता. एंडरेड के अनुसार इन शो का परिणाम पूरी तरह से विषम भले न हो, लेकिन इनका एक बड़ा असर नकारात्मक ही होता है, क्योंकि अपराधिक सोच इनकी वजह से आसानी से अपराध की तरफ आकर्षित हो सकती है. उनके मुताबिक किशोरावस्था में कम मेहनत में ज्यादा नंबर पाने की चाहत, बिना मेहनत पैसा कमाने की इच्छा और महंगे महंगे शौक पूरे करने की ख्वाहिशें रखने वाले लोगों के लिए क्राइम शो एक गाइड जैसा काम करते हैं.
क्राइम शो कभी-कभी अपनी ही सीख से पलटते भी दिखाई देते हैं. उदाहरण के तौर पर क्राइम पेट्रोल के एक शो में दिखाया जाता है कि एक बच्चा सडक पर किसी की मदद मांग रहा था लेकिने आने-जाने वाले उसकी मदद नहीं करते और वह गलत हाथों में पड़ जाता है. मदद न करने वालों के लिए यह एक सबक की तरह था. लेकिन किसी और दिन दिखाया गया कि एक सडक पर रोते बच्चे को जब एक औरत उसकी मां के पास पहुंचाने जाती है तो वह खुद एक ऐसे शख्स के चंगुल में फंस जाती है जो बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर देता है.
इस कहानी में मोड़ तब आया जब शिप्रा ने कबूला कि अपने अपहरण की कहानी उन्होंने क्राइम पेट्रोल को देखकर रची थी
क्राइम शो किस तरह अपराध करने के लिए बढ़ावा देते हैं, इसके कई उदहारण सामने आये हैं. कानपुर के किदवई नगर में रहने वाली गुरप्रीत ने सावधान इंडिया देखकर अपनी पत्नी को मारने की योजना बनाई. पूरे दिन सावधान इंडिया देखने के बाद उसने चाकू लेकर पत्नी पर ताबड़तोड़ हमले किये और छत से फेंक दिया. बाद में पकडे जाने के डर से वह बालकनी से कूद गया.
एक और मामले में 29 फरवरी को नॉएडा की फैशन डिज़ाइनर शिप्रा मालिक ने घर से भागकर खुद के अपहरण की साजिश रची. शिप्रा ने यह कदम संपत्ति के विवाद को लेकर उठाया. हालांकि बाद में वह अपने परिवार और बच्चे की तस्वीर टीवी पर देखकर लौट आई थी. लेकिन उसके पहले नोएडा–गुडगांव की पुलिस को शिप्रा की खोजबीन में खासी मशक्कत करनी पड़ी. इस कहानी में मोड़ तब आया जब शिप्रा ने कबूला कि अपने अपहरण की कहानी उन्होंने क्राइम पेट्रोल को देखकर रची थी.
दिल्ली के चांदनी महल इलाके के एक शख्स ने क्राइम शो देखकर अपनी पत्नी की हत्या को अंजाम दिया. फरीद नाम के इस शख्स को जब अपनी 25 वर्षीय पत्नी के शादी से पूर्व प्रेम संबंध के विषय में पता लगा तो उसने अपनी पत्नी की खाना बनाने वाले तवे और चाकू से गोद कर हत्या कर दी. हत्या वाली रात वह अपने रिश्तेदारों के यहां रुका था जहां से चुपचाप अपने घर आकर उसने अपनी पत्नी को मारा. क्राइम शो से मिली जानकारी के मुताबिक उसने पूरे अपराध को अंजाम देते वक़्त एक भी बार मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं किया.
29 अगस्त, 2016 को बेगुसराय के नगर थाना क्षेत्र में 18 वर्षीय घनश्याम और 11 वर्षीय करण राय ने अपने ही नाना से 10 लाख रुपए की फिरौती हड़पने के लिए अपने अपहरण की साजिश रची. पुलिस ने पूरी टीम के संग इस मामले को सुलझाया और दोनों बच्चों को बरामद किया, लेकिन बाद में जब पूरा सच सामने आया तो यहां भी क्राइम शो से मिली सीख ही अपहरण की प्रेरणा बनी थी.
18 जून, 2016 को लखनऊ में एक मामा द्वारा अपने दोस्त के साथ मिलकर भांजे का अपहरण करने का मामला सामने आया. जब इस पूरे कांड का खुलासा हुआ, तो आरोपी के रूप में सगा मामा सामने आया, जो बच्चे को जान से मारने ही वाला था. चौंकाने वाली बात तब हुई, जब पता लगा कि पूरे अपहरण की साजिश टीवी पर आने वाले क्राइम शो को देखकर बनाई गयी थी.
इसी तरह के हजारों मामले हैं जिनमें क्राइम शो देखकर आपराधिक मानसिकता को बढ़ावा मिला और संगीन अपराधों को अंजाम दिया गया. आम आदमी के जीवन में इन शो से सीख लेने का वक़्त जितना है अपराधियों के पास अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए, उससे कई गुना ज्यादा हो सकता है. ऐसे में समाज पर यदि क्राइम शोज का नकारात्मक प्रभाव ज्यादा हो तो उस पर आश्चर्य कैसा!
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