अगर इसी पल आपसे पूछा जाए कि पर्यटन मंत्रालय के ‘अतुल्य भारत’ अभियान का चेहरा अब कौन है? तो सही जवाब मालूम होने पर भी शायद आप कुछ सेकंड का वक्त लेंगे. बहुत संभावना है कि सामान्य ज्ञान के इस आसान से सवाल का हममें से ज्यादातर लोग गलत जवाब दें. यहां पर उद्देश्य यह नहीं है कि हम आपको ये बताएं कि इस अभियान का चेहरा कौन है. हम तो आपको बस यह बताना चाहते हैं कि इस अभियान का चेहरा किसे होना चाहिए. यह चेहरा बन सकती है दो साल की नन्ही बच्ची रिम्हस.

रिम्हस को सामान्य ज्ञान के किसी भी सवाल का जवाब देने में एक सेकंड का भी टाइम नहीं लगता. वह अतुल्य भारत का चेहरा बनने की योग्यता इसलिए भी रखती है कि इतनी छोटी सी उम्र में ही वह हमारे देश के बारे में किसी सामान्य भारतीय नागरिक से ज्यादा जानकारी रखती है. हैदराबाद की यह छोटी सी बच्ची देश के लगभग सभी राज्यों की राजधानियों, प्रमुख संस्थानों, स्मारकों और राजनेताओं के बारे में पल भर में बता सकती है. वह महापुरुषों के उद्गार और उनके उपनाम भी चुटकियों में बता देती है. उसकी जानकारी सिर्फ अपने देश तक ही सीमित नहीं है बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों की राजधानियां रिम्हस को जुबानी रटी हुई हैं. इसके अलावा भौतिक, रसायन और जीव विज्ञान और खगोलशास्त्र से जुड़े प्रश्नों के जवाब भी यह विलक्षण प्रतिभा फटाफट देती है. इस तरह के सवालों के जवाब देना किसी साइंस ग्रेजुएट के लिए भी इतनी आसान बात नहीं है.

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रिम्हस की मां आसिफुन्निशा कई बार उससे सवाल करते हुए अचकचा जाती हैं. उन्हें याद रखना पड़ता है कि उन्हें क्या सवाल पूछना है और इसके लिए वे कागज़ या किताबों की मदद लेती हैं. सवाल करने में मां से हुई भूल पर नन्ही सी बच्ची जिस तरह से खिलखिलाकर हंस पड़ती है, उससे पता चलता है कि वह न सिर्फ बातों को याद रख सकती है बल्कि उन्हें समझती भी है. दो साल की उम्र के बच्चे के लिए जहां यह समझना ही मुश्किल होता है कि उसके आस-पास क्या हो रहा है, वहीं सामने माइक लेकर खड़े अनजान व्यक्ति के प्रश्न का उत्तर भी रिम्हस बड़ी आसानी से दे देती है.

बेशक, बार-बार ऐसा करते हुए रिम्हस कई बार थोड़ी चिढ़ भी जाती है. इस स्टोरी के साथ दिये गये रिम्हस के वीडियो में आसिफुन्निसा जिस तरह से लगातार उसे सवालों का जवाब देने के लिए कहती हैं, उसे देखकर हमें भी थोड़ा बुरा लग सकता है. लेकिन भारतीय माता-पिता के लिए ऐसी जोर-जबरदस्ती कोई नई और बड़ी बात नहीं है. फिर भले ही उनका बच्चा दो साल की उम्र में ही चलता-फिरता एनसाइक्लोपीडिया क्यों न बन चुका हो! अगर इसका सकारात्मक पक्ष देखें तो रिम्हस की मां - जो आधुनिकता के तथाकथित पैमानों पर खरी नहीं उतरतीं - अपनी बच्ची को आगे बढ़ाने के लिए जिस तरह के प्रयास कर रही हैं, वह अपने आप में बड़ी बात है.

रिम्हस और उसकी मां एक ऐसे सामाजिक तबके से आते हैं जिसे हमेशा पिछड़ा समझा जाता रहा है. लेकिन बुर्का पहनने वाली एक मुसलमान महिला अपनी बेटी को एकदम अलग तरह की परवरिश दे रही है. आसिफुन्निसा बताती हैं कि उनकी बेटी दिन में 20 से ज्यादा शब्द या जानकारी सीख सकती है. सीखने-सिखाने का यह प्रयास भी रिम्हस और उसकी मां को समाज के असली नायकों में शामिल करता है.

जिन्हें लगता है कि सिर्फ अंग्रेजी माहौल में रह और पढ़ रहे बच्चे ही इंडिया को शाइनिंग बनाते हैं, उनके लिए यह बच्ची जवाब है जो कहती नजर आती है कि सादगी में लिपटा और देशज भाषाओं में बात करने वाला भारत भी इस देश की पहचान बनने का मजबूत दावेदार हो सकता है.