सबसे बढ़िया सस्पेंस कहानियां अक्सर क्लाइमेक्स में विस्फोट करने से पहले थोड़ा-थोड़ा बारूद कहानी के कई सारे दृश्यों में छिपा आती हैं. अगर आप अति के समझदार हैं तो पहले ही उन दृश्यों को ढूंढ लेते हैं (जो इस शॉर्ट फिल्म के केस में मुश्किल है!), वरना चाबुक से पड़ते क्लाइमेक्स के बाद अभी-अभी नजरों से गुजरी कहानी को दिमाग में रिवाइंड करते वक्त ‘वाह!’ कहते हुए दोबारा उसकी स्टोरीटेलिंग के मुरीद हो जाते हैं.

‘चटनी’ में सबसे खास है कि अवाक करती कहानी के अलावा वो अपने कई सारे दृश्यों में उन कई सारे सवालों के जवाब रखती है जो आप इस शॉर्ट फिल्म के खत्म होने के बाद हर हाल में जानना चाहेंगे. सबसे बड़े सवाल का जवाब तो आपको शायद पहले ही दृश्य में मिल जाएगा, लेकिन बाकी के सवालों के लिए भी आप इस शॉर्ट फिल्म को बार-बार देखेंगे. शायद यही, सुलझाई गईं कहानियों की छोड़ी हुईं उलझनें ही, जब देखने वाले के जेहन में देर तक छपी रहती हैं, कहे, सुने या देखे गए अफसानों की जीत होती है.

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ज्योति कपूर दास निर्देशित इस लघु-कथा में अधेड़ उम्र की टिस्का चोपड़ा (जिन्होंने इसकी कहानी भी लिखी है) मोहल्ले की एक पार्टी में अपने पति आदिल हुसैन को पड़ोस की खूबसूरत लड़की से फ्लर्ट करते हुए देखती हैं और अगले दिन जब वो लड़की (रसिका दुग्गल) टिस्का के घर पहुंचती है, खाना बनाना सीखने, टिस्का उसे एक खौफनाक कहानी बनाकर खिलाती हैं. आपकी रूह कांपती है, जॉनी डेप की एक फिल्म ‘सीक्रेट विंडो’ याद आती है, और पटकथा की मारक क्षमता पर दिल आते-आते टिस्का चोपड़ा के अभिनय को देखकर ‘मॉन्स्टर’फिल्म की चार्लीज थेरॉन याद आने लग जाती हैं. थोड़ी-थोड़ी, और ये क्यों कमाल बात है आप तभी समझ सकते हैं जब आपने ‘मॉन्सटर’ देखी हुई हो.

टिस्का का मेकअप आलातरीन है. इतना उम्दा कि उन्हें पहचानना मुश्किल है. तिस पर उनका अभिनय एक नयी टिस्का चोपड़ा हमारी नजर करता है – वो जो फिल्मों की मेलोड्रामा-ग्रसित ‘मां’ रूपी टिस्का से अलग है - और जिन्हें इस तरह का रोल अगर किसी फीचर फिल्म में करने को मिलता, तो लंबे अरसे तक मिलते रहने वाली वाहवाही का इंतजाम हो जाता.

इंटरनेट एक्टिविज्म और सही-गलत के सिद्धांतों से अक्सर दूर रहने वाली असल दुनिया का आइना बनती ‘चटनी’ खुद को खत्म करते वक्त एक घर से जूम ऑउट करते हुए पूरे एक शहर का नक्शा भी दिखाती है. यह बताने के लिए कि दिल्ली के एक घर की कहानी जो उसने अभी सुनाई वो अनगिनत घरों में भी घटती है, आपको बस पता नहीं चलता.

...क्योंकि आप गाजियाबाद से जो नहीं हैं!