जे जयललिता की ज़िंदगी एक फिल्म की कहानी की तरह थी. जिसकी नायिका भी वही थीं और निर्देशक भी. बस इस फिल्म का अंत उन्होंने नहीं लिखा. अम्मा की कहानी शुरू होती है अम्मू से. जयललिता की कहानी अम्मू के अम्मा बनने की ही कहानी है. लेकिन इसमें से ज्यादातर है अनसुनी ही. लेकिन कुछ ऐसे किस्से हैं जिन्हें जयललिता ने खुद सुनाया था. उन्हें कुछ और के साथ जोड़ने से यह कहानी कुछ यों बनती है.

जयललिता न नेता बनना चाहती थीं, न अभिनेता. वे तो एक धाकड़ वकील बनना चाहती थीं. वे अदालत के चक्कर नहीं काटना चाहती थीं बल्कि वहां ज़िरह करना चाहती थीं. वे पढ़ने में सबसे आगे थीं. स्कूल की टॉपर थी. लेकिन मां ने उन्हें वकील की जगह एक्टर बना दिया. जयललिता ने एक इंटरव्यू में खुद बताया कि वे फिल्मों से दूर रहना चाहती थीं. डांस करना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था. वे नहीं चाहती थीं कि उनकी मां भी फिल्मों में काम करें.

लेकिन दो साल की उम्र में उनके पिता का देहांत हो गया. इसके बाद अम्मू की मां वेदवल्ली ने उसे तब के बैंगलोर में दादा-दादी के पास छोड़ दिया और संध्या के नाम से तमिल फिल्मों में एक्टिंग करने लगीं. अम्मू दस साल की उम्र तक अपनी मां से दूर रही. जयललिता का कहना था कि जब उनकी मां बैंगलोर आतीं तो वे अपनी मां की साड़ी अपने कपड़ों से बांध लेतीं ताकि वे उन्हें छोड़कर ना जाएं. लेकिन सुबह होने पर मां जा चुकी होती थी और अम्मू अकेले वक्त गुजारती थी.

जयललिता वकील बनने के लिए अंग्रेजी बोलने की प्रैक्टिस कर रही थीं. लेकिन होना कुछ और ही था. 13 साल की उम्र में एक दिन जयललिता अपनी मां के पास एक फिल्म के सेट पर आयीं. उस दिन फिल्म में पार्वती का रोल निभाने वाली बाल कलाकार नहीं आई थी. तो निर्देशक के कहने पर उनकी मां ने अम्मू से वह रोल करने के लिए कहा. जयललिता पहले तो ऐसा करने के लिए तैयार ही नहीं हुईं. फिर सोचा कि एक दिन की ही तो बात है. लेकिन उस एक दिन ने उनकी आने वाली जिंदगी का फैसला कर दिया था.

जयललिता ने अपनी ज़िंदगी में सिर्फ दो लोगों की बातें सुनी - अपनी मां और अपने गुरु एमजीआर की. दोनों जयललिता को छोड़कर अचानक चले गए

जयललिता ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे सिर्फ चार साल तक ही बेफिक्री से ज़िंदगी जी पाईं. उसके बाद की ज़िंदगी बंधी हुई थी: सुबह, क्लासिकल गाने का रियाज़, शाम चार बजे तक स्कूल, स्कूल के बाद खेलने पर प्रतिबंध लगा हुआ था. घर लौटते ही दो डांस टीचर उनका इंतजार करते थे. जयललिता को न गाना पसंद था, न नाचना. फिर भी वे सब करतीं थीं क्योंकि वे अपनी मां का दिल नहीं दुखाना चाहतीं थीं.

जयललिता जब 15 साल की थीं तब उन्हें एक अंग्रेजी फिल्म में काम करने का मौका मिला. जयललिता ने उसे भी न कह दिया. लेकिन किस्मत इस बार भी उनके के खिलाफ थी. मां की कमाई कम हो चुकी थी और घर की ज़रूरतें बढ़ गई थीं. मां के कहने पर अम्मू ने हां तो कह दी लेकिन एक शर्त पर - वह फिल्म में एक्टिंग तो करेगी लेकिन सिर्फ छुट्टियों के वक्त. एक्टिंग के लिए वह पढ़ाई से समझौता नहीं करेगी. इसलिेए सिर्फ शनिवार और रविवार को ही वह शूटिंग के लिए जाती थीं. लेकिन जब घर के खर्चें बढ़ गए तो जयललिता को फिल्में ज्यादा और पढ़ाई कम करनी पड़ी.

उनके बारे में एक बड़ी दिलचस्प बात यह है कि जब जयललिता ने पहली बार किसी फिल्म में लीड रोल किया तो उन्हें वह फिल्म देखने को ही नहीं मिली. लीड रोल वाली उनकी पहली तमिल फिल्म वेन्नीरा अदाई को ए सर्टिफिकेट मिला था और जयललिता की उम्र उस वक्त सिर्फ 16 साल ही थी. उस वक्त का सेंसर बोर्ड आज के मुकाबले सौ गुना ज्यादा सख्त था. फिल्म में जयललिता साड़ी पहन कर झरने में डांस कर रहीं थी इसलिए उसे ए सर्टिफिकेट दिया गया था. लेकिन फिल्म सुपरहिट हुई और जयललिता तमिल फिल्मों की स्टार बन गईं. तमिल फिल्मों में स्कर्ट पहनने का चलन जयललिता ने ही शुरू किया और स्लीवलेस कपड़े भी वहां पहली बार जयललिता ने ही पहने थे.

जयललिता ने अपनी ज़िंदगी में सिर्फ दो लोगों की बातें सुनी - अपनी मां और अपने गुरु एमजीआर की. दोनों जयललिता को छोड़कर अचानक चले गए. एक इंटरव्यू में जयललिता ने बताया कि जब उनकी मां की मौत हुई तो वे बहुत अकेली पड़ गई थीं. क्योंकि उनकी दुनिया अपनी मां से ही शुरू होती थी और उन पर ही खत्म होती थी. वे डिप्रेशन में जा रहीं थीं. उन्होंने बताया कि कई बार उन्होंने अपनी मां के पास ही चले जाने के बारे में सोचा. खुदकुशी करने का ख्याल बार-बार आया लेकिन तभी ज़िंदगी में नया मोड़ आया. जयललिता की मुलाकात सुपरस्टार एमजी रामाचंद्रन से हुई.

फिल्म के एक गाने में जयललिता को नंगे पांव डांस करना था. उस गर्म रेत पर जयललिता के लिए चलना भी मुश्किल हो रहा था. यह देखकर एमजीआर ने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया था

जयललिता और एमजी रामचंद्रन की जोड़ी तमिल फिल्मों की सबसे हिट जोड़ी है. दोनों की उम्र में 31 साल का फर्क था. लेकिन एमजीआर जयललिता के लिए सबकुछ थे. उस ज़माने में जयललिता और एमजीआर को लेकर अखबारों में कई तरह की मसालेदार खबरें छपा करती थीं. लेकिन एक इंटरव्यू में जयललिता ने कहा कि उनके बीच वही रिश्ता था जो एक गुरु और शिष्य में होता है. जयललिता ने यह जरूर माना कि एमजीआर उन्हें दुनिया की मुश्किलों और छल-कपट से बचाकर रकना चाहते थे. जयललिता की जीवनी में एक किस्सा है जो इस बारे में बहुत कुछ कह जाता है. राजस्थान के रेगिस्तान में उन दोनों की एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी. फिल्म के एक गाने में जयललिता को नंगे पांव डांस करना था. उस गर्म रेत पर जयललिता के लिए चलना भी मुश्किल हो रहा था. यह देखकर एमजीआर ने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया था.

सत्तर के शतक में फिल्मों में हीरो का राज होता था. एमजीआर तो सुपरस्टार थे. पब्लिक उन्हें भगवान की तरह पूजती थी. लेकिन जयललिता भी कम नहीं थीं. एमजीआर ने जयललिता के सामने शर्त रखी कि वे किसी दूसरे हीरो के साथ काम न करें. लेकिन जब एमजीआर ने दूसरी हीरोइनों के साथ काम करना शुरू किया तो जयललिता ने भी ऐसा करना शुरू कर दिया. इस बात पर दोनों के बीच अनबन तो हुई लेकिन फिर मामला सुलझ गया.

एमजी रामचंद्रन ने जब जयललिता को अपनी पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया तो उन्होंने ऐसा करने के लिए करीब डेढ़ साल का वक्त लिया. जयललिता ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि वे राजनीति से दूर रहना चाहती थीं. लेकिन एक दिन एमजीआर की एक बात ने उन्हें अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर कर दिया. साल 1982 में एमजीआर ने जयललिता से कहा कि वे बीमार हैं और सिर्फ जयललिता पर ही सौ फीसदी भरोसा कर सकते हैं इसलिए उन्हें जया की ज़रूरत है. इसके बाद जयललिता राजनीति का हिस्सा बन गईं.

साल 1984 में वे राज्यसभा की सांसद बन गईं. लेकिन तीन साल बाद सियासत फिर बदली. एमजी रामचंद्रन का निधन हो गया और जयललिता एक बार फिर अकेली पड़ गईं. उस वक्त एमजीआर के पैर छूने के लिए भी जयललिता को धक्का-मुक्की सहनी पड़ी. उन्हें एमजी रामचंद्रन के घर में घुसने तक नहीं दिया गया. जिस राजाजी हॉल में जयललिता का शव रखा था उसी में एमजीआर के सिरहाने वे दो दिनों तक खड़ी रहीं. जयललिता को एमजीआर के आखिरी सफर में भी शामिल नहीं होने दिया गया. उन्हें उनकी शवगाड़ी से जबरन नीचे उतार दिया गया.

जयललिता की एक कमजोरी थी. उनका ज्योतिष विद्या पर अगाध विश्वास था. वे ज्योतिषी की सलाह पर सरकारों तक को गिरा और बना सकती थीं

लेकिन जयललिता ने हार नहीं मानी. वे किसी न किसी तरह से एमजीआर की शवयात्रा का हिस्सा बनी रहीं. एमजीआर की पत्नी जानकी ने जयललिता को पार्टी में हाशिये पर पहुंचा दिया. लेकिन जयललिता ने अपनी बारी का इंतजार किया. जब जानकी के नेतृत्व में पार्टी बुरी तरह हारी तो वह खुद चलकर जयललिता के पास आ गई. इसके बाद 1989 में जयललिता कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ीं और तमिलनाडु असेंबली में विपक्ष की नेता बन गईं. उस वक्त सुब्रहमण्यम स्वामी जयललिता के करीबी थे. वे चंद्रशेखर सरकार में मंत्री थे. चंद्रशेखर की सरकार ने तमिलनाडु की डीएमके सरकार को बर्खास्त कर दिया. इसके बाद एक बार फिर से जयललिता ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 1991 में वे सबसे कम उम्र में प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं.

जयललिता लोगों पर जल्दी भरोसा नहीं करती थीं. मर्दों पर तो बिल्कुल भी नहीं. उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा था कि मर्दों को लेकर उनके मन में एक अजीब सी शंका रहती थी. जयललिता ने अपने ज़िंदगी में कई बार रिश्तों को टूटते देखा. अपने पिता को लेकर भी उनकी यादें कुछ खास अच्छी नहीं थी. इसीलिए उन्होंने कभी शादी नहीं की. बस एमजीआर इसका अपवाद थे. एमजीआर के जाने के बाद जयललिता की ज़िंदगी में शशिकला का प्रवेश हुआ. 1991 के चुनाव में शशिकला को फंड मैनजर का रोल दिया गया था. लेकिन 1996 आते-आते शशिकला की वजह से उन्हें खासी बदनामी भी मिली. शशिकला के भतीजे सुधाकरन को जयललिता ने अपना बेटा मान लिया था.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जब 2011 में गुजरात और आज देश के सबसे ताकतवर नेता ने उन्हें बताया कि शशिकला उनके खिलाफ साजिश रच रही हैं तो जयललिता ने उन्हें अपने घर, ज़िंदगी और पार्टी से निकाल बाहर किया. चार महीने बाद शशिकला ने जयललिता से माफी मांगी और वापस उनकी जिंदगी में प्रवेश पा लिया.

जयललिता के बारे में कहा जाता है कि जब वे कोई कसम खाती थीं या वादा करती थीं तो उसे पूरा जरूर करती थीं. तमिलनाडु विधानसभा में डीएमके ने जयललिता के साथ बदसलूकी की. उसके एक नेता ने उनकी साड़ी का पल्लू खींच लिया था, उसे फाड़ दिया था. जयललिता ने खुद बताया कि उन्हें उस दिन गालियां दी गई थी. इसके बाद जयललिता ने कसम खाई कि वे तभी विधानसभा में कदम रखेंगी जब विधानसभा महिलाओं के लिए महफूज होगी. और ऐसा हुआ भी. जयललिता फिर चुनाव जीतीं और उन्होंने इसका ऐसा बदला लिया जो डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि की पार्टी कभी नहीं भूल सकती. उऩकी सरकार में करुणानिधि को आधी रात को गिरफ्तार किया गया. कहा जाता है कि अपना बदला पूरा होने के बाद जयललिता ने मंदिर में हाथी दान में दिया था.

जयललिता की एक कमजोरी थी. उनका ज्योतिष विद्या पर अगाध विश्वास था. वे ज्योतिषी से सलाह लेकर सरकारों तक को गिरा और बना सकती थीं. जब 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार उन्होंने गिराई तो ज्योतिषियों ने समर्थन वापस लेने की चिट्ठी लिखने का वक्त सुबह 9 से 10 के बीच मुकर्रर किया था. जयललिता ने ठीक वैसा ही किया. जब 2016 में चुनाव हो रहे थे तो ज्योतिषियों ने कहा कि 28 अप्रैल 2016 को दोपहर 12:50 से 1:20 के बीच शुभ मुहूर्त है. इसी दौरान पार्टी के सभी उम्मीदवार अपने नॉमिनेशन फाइल करें. इसके चलते मात्र 20 मिनट में उस दिन एआईडीएमके के 233 उम्मीदवारों ने नामांकन भरा था और जयललिता चुनाव जीत गईं.

जयललिता पांच और सात को ही अपना भाग्यशाली अंक मानती थीं और यह भी विचित्र संयोग है कि पांच दिसंबर को ही उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा था.