टाइगर को ‘दिशा’ कौन दिखाए?
टाइगर श्रॉफ और दिशा पाटनी प्यार में है यह बात सिर्फ वही नहीं जानते जो हिंदुस्तान से किसी भी तरह जुड़े हुए नहीं हैं. दोनों एयरपोर्ट से लेकर छुट्टियों, पार्टियों तक में साथ दिखते हैं और छिपा-छिपाकर प्यार करने को कुछ यूं अंजाम देते हैं कि सभी को पता चल जाता है कि दोनों लव-बर्ड्स हैं. फिल्मी दुनिया भी पूरी तरह से यह बात जानती है और अपने मिजाज के अनुसार इस नयी प्रेम-कहानी को लेकर एकदम कूल है. लेकिन अमर होने की चाहत रखने वाली इस प्रेम-कहानी से फिल्म उद्योग के कुछ प्रभावी लोग तब परेशान होना शुरू हो गए जब टाइगर श्रॉफ अपनी हर फिल्म में दिशा पाटनी को बतौर हीरोइन लेने के लिए निर्देशकों-निर्माताओं से जिद करने लगे.

कुछ महीने पहले हिट फिल्म बागी के सीक्वल की घोषणा के दौरान सबसे पहले ऐसा हुआ. साजिद नाडियाडवाला द्वारा इसकी घोषणा करने के बाद से ही टाइगर हाथ धोकर उनके पीछे पड़े कि फिल्म में उनके अपोजिट सिर्फ और सिर्फ दिशा पाटनी को लिया जाए. लेकिन साजिद ने उनकी हां में हां नहीं मिलाई और पहली फिल्म की हीरोइन श्रद्धा कपूर को ही दूसरी फिल्म के भी लायक समझा. टाइगर जाहिर तौर पर नाराज हुए, लेकिन खामोश नहीं क्योंकि जब हाल ही में उनकी पहली फिल्म हीरोपंती के सीक्वल की घोषणा का वक्त आया, टाइगर बाबा ने एक बार फिर वही कोशिशें दोहराना शुरू कर दीं.
पहले वे निर्माता साजिद नाडियाडवाला के पास गए और उन्हें दिशा पाटनी की प्रतिभाओं की लिस्ट थमाकर कृति सेनन की जगह उन्हें ही इस सीक्वल की हीरोइन बनाने की जिद करने लगे. साजिद ने मुस्कुराकर एक बार फिर मना कर दिया लेकिन पिछली बार की गई गलतियों को सही करने के जोश में टाइगर फिल्म के निर्देशक सब्बीर खान के पास पहुंच गए, दिशा पाटनी का आवेदन लेकर. बाद में यह खबर जब नाडियाडवाला के पास पहुंची तो उन्होंने गुस्से में टाइगर को अच्छे से समझाइश दी कि वे हर वक्त दिशा-दिशा नहीं कर सकते हैं और अपनी गर्लफ्रेंड को रिकमेंड करने की जगह उन्हें अपने काम पर ध्यान देना चाहिए. नहीं तो, कुछ अरसे बाद कहीं वे अपनी ही दिशा न भटक जाएं!
शाहरुख खान की रईसियत!
यह खबर असल में इस बात का उदाहरण है कि शाहरुख खान एक मेथड एक्टर हैं! 2017 की असली धमाकेदार शुरुआत शाहरुख की फिल्म रईस से होने वाली है और फिल्म में रईस नाम का किरदार प्ले कर रहे शाहरुख ने हाल ही में अपनी रियल लाइफ में उस स्तर की रईसियत दिखाई, कि लगा जैसे वे खुद को रईस के किरदार में ढालने के लिए ही ऐसा कर रहे होंगे!
अपने परिवार संग शाहरुख ने इस बार का न्यू ईयर विदेश में न मनाकर अलीबाग स्थित अपने फार्महाउस में मनाया,जहां वे मन्नत से स्पीडबोट में सपरिवार पहुंचे. उनकी ख्वाहिश नए साल में अपने बेटे अबराम के खेलने के लिए एक ट्री-हाउस बनाने की थी जिसके लिए अलीबाग के विशाल फार्महाउस से बेहतर जगह उन्हें कोई और नहीं मिली. लेकिन एक विशाल पेड़ पर उससे भी विशाल घर बनाने का यह काम उन्होंने किसी लोकल कारीगर से नहीं करवाया. बल्कि चार बार नेशनल अवॉर्ड जीत चुके हमारे वक्त के सबसे महंगे कला निर्देशक साबू सिरिल की सेवाएं ली गईं.
रा.वन से लेकर बाहुबली जैसी फिल्मों में काम कर चुके साबू ने मुंबई के महबूब स्टूडियो में इसे तैयार किया और इसके अंदर फर्नीचर, कमरों से लेकर बालकनी और सीढ़ियां तक बनाईं. पूरी तरह बनकर तैयार हो जाने के बाद शाहरुख ने इस पर अपनी पसंद की मुहर लगाई और तभी इस विशाल ट्री-हाउस को बाय रोड ले जाकर अलीबाग वाले फार्महाउस के विशाल पेड़ पर इंस्टॉल किया गया. वो भी नए साल के आयोजन से ठीक पहले, ताकि शाहरुख तीन वर्षीय अपने सबसे छोटे बेटे अबराम को नए साल पर एक अनोखा तोहफा दे सकें.
‘सेक्स सिंबल कहे जाने पर मुझे आपत्ति नहीं होती क्योंकि मैं एक अभिनेत्री हूं और आब्जेक्टिफाई होना मेरे काम का हिस्सा है.’
— प्रियंका चोपड़ा
फ्लैशबैक - जब बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया ने यश चोपड़ा के साथ काम करने से इनकार किया
एक जमाने में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया मशहूर संतूर वादक शिवकुमार शर्मा के साथ मिलकर फिल्मों के लिए संगीत दिया करते थे. शिव-हरि की इस जोड़ी ने पहली बार 1962 में मदन मोहन के लिए ‘फिर वही शाम वही गम’ (जहान आरा) गीत में काम किया और अगले कई सालों तक अपने क्लासिकल कॉन्सर्ट्स के अलावा उस समय के ज्यादातर संगीत निर्देशकों के लिए बांसुरी और संतूर वादन करना जारी रखा. जाहिर तौर पर इसके बाद उनका अगला मुकाम हिंदी फिल्मों में बतौर संगीतकार जोड़ी पदार्पण करना था. इसी दौरान, कहते हैं, बीआर चोपड़ा की एक फिल्म के लिए बैकग्राउंड स्कोर कंपोज करते वक्त बीआर चोपड़ा के छोटे भाई यश चोपड़ा उनके पास आए और उनसे पूछा कि क्या वे उनकी अगली फिल्म ‘काला पत्थर’ (1979) में बतौर संगीतकार काम करना चाहेंगे. शिव-हरि की जोड़ी ने इससे इनकार कर दिया.
उस समय तक यश चोपड़ा की निर्माणधीन फिल्म ‘काला पत्थर’ का संगीत राजेश रोशन दे रहे थे लेकिन निर्देशक और संगीत निर्देशक के बीच पनपे मतभेदों की वजह से फिल्म के लिए सिर्फ दो गीत तैयार हो सके थे. यश चोपड़ा, राजेश रोशन को मनाने के लिए तैयार नहीं थे और इस स्थिति में चाहते थे कि ब्रेक का इंतजार कर रहे शिव-हरि उनके लिए फिल्म के बाकी बचे चार गीत कंपोज करें. लेकिन राजेश रोशन के पिता – गुजरे जमाने के मशहूर संगीतकार रोशन – हरिप्रसाद चौरसिया के पुराने मित्र थे जिस वजह से अपने दोस्त के पुत्र का काम छीनने से उन्होंने साफ इंकार कर दिया. बाद में ‘काला पत्थर’ के बचे गीत राजेश रोशन ने ही कंपोज किए और फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर सलिल चौधरी ने दिया.
लेकिन यश चोपड़ा शिव-हरि को भूले नहीं. अमिताभ-रेखा-जया को साथ लाकर अभूतपूर्व कास्टिंग करने के बाद ‘सिलसिला’ (1981) का संगीत तैयार करने की जिम्मेदारी परेशानी भरे दिनों में उन्हें इनकार करने वाले शिव-हरि को ही सौंपी. नए संगीतकार और नए ही गीतकार (जावेद अख्तर) से सजे ‘सिलसिला’ के संगीत ने फिर रिलीज के बाद इतिहास रचा और सबके सामने यह उदाहरण पेश कर दिया कि यश चोपड़ा के जीवन में अहं का कोई स्थान नहीं है. यह भी कि नयी प्रतिभाओं को मंच मुहैया कराने में भी उनका कोई मुकाबला नहीं है.
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