क्या आप बता सकते हैं कि शराब पीने वालों के काम सबसे ज्यादा कौन सी चीज आती है? हो सकता है आपको लग रहा हो कि शराब पीने वालों से जुड़ा सवाल है तो इसका जवाब भी शराब ही होगा. लेकिन नहीं. हमारा ख्याल है कि शराब के शौकीनों के सबसे ज्यादा काम बहाने आते हैं. अगर कभी ध्यान दिया हो तो आप इन्हें पीने के पहले, पीने का बहाना खोजते पाएंगे, वहीं जब कोई चूक हो जाएगी तो भी बहाना शराब हो जाएगी. आसानी से कह दिया जाएगा कि – भई, पी रखी थी सो गलती हो गई या गलती से सच बात निकल गई. इस बात की तस्दीक अफसानानिगार सआदत हसन मंटो भी यह कहकर कर गए हैं - दुनिया में सबसे ज्यादा सच शराबखाने में शराब पीकर बोला जाता है और दुनिया में सबसे ज्यादा झूठ अदालतों में मुकद्दस किताब पर हाथ रखकर बोला जाता है.

मंटो की इस बात के दूसरे हिस्से के कानूनी सबूत मिलते ही रहते हैं, तो अब यहां रह गया पहला हिस्सा, जो हमारा असली सवाल है. शोध बताते हैं कि शराब पीकर लोग इसलिए सच नहीं बोलते हैं कि वे सिर्फ नशे में होते हैं या उन्हें मालूम ही नहीं होता कि वे क्या कर रहे हैं. असल में शराब का असर लोगों की तर्कशक्ति और फैसले लेने की क्षमता को कम कर देता है. ऐसे में वे इसकी परवाह नहीं करते कि वे किससे क्या बात कर रहे हैं और इसीलिए वे जो भी मन में आए वह कहना शुरू कर देते हैं. यही कारण है कि अक्सर गुस्से या प्यार का इजहार करने के मामले में शराब काम की चीज साबित होती है. फिर भी इस बात का यह मतलब नहीं कि वे जो भी कह रहे हों वह पूरी तरह सच हो.

एल्कोहल मस्तिष्क के कई हिस्सों जैसे हिप्पोकैम्पस, मोटर कॉर्टेक्स और निओफ्रंटल कॉर्टेक्स पर असर डालती है. हिप्पोकैम्पस दिमाग का वह हिस्सा होता है जो हमारी याददाश्त का केंद्र होता है. इसी कारण शराब पीने के बाद अगले दिन लोगों को ब्लैकआउट होता है और उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता. साथ ही मोटर कॉर्टेक्स पर शराब के प्रभाव में व्यक्ति लड़खड़ाने लगता है क्योंकि यह हिस्सा शारीरिक नियंत्रण के लिए उत्तरदायी होता है. तीसरे नंबर पर यह निओफ्रंटल कॉर्टेक्स पर असर छोड़ती है. शराब से सबसे आखिर में प्रभावित होने वाला यह भाग दिमाग का सबसे जरूरी हिस्सा होता है जो हमें तर्कशक्ति का इस्तेमाल करने और निर्णय लेने में मदद करता है. यही हिस्सा इंसान को बोलने, लिखने या सोचने लायक बनाता है यानी कि उन सारे कामों के लायक जो सिर्फ मनुष्य कर सकता है.

एक अमेरिकन यूनिवर्सिटी में हुए प्रयोग में कुछ लोगों को शराब और कुछ को साधारण पेय पीने के लिए दिए गए. इसके बाद उन्हें कुछ टास्क पूरे करने के लिए कहा गया जो उन्हें तर्कक्षमता का इस्तेमाल करते हुए करने थे. इसके साथ ही टास्क के दौरान हुई गलती भी उन्हें खुद ही बतानी थीं. प्रयोग के दौरान पाया गया कि वे लोग जिन्होंने साधारण ड्रिंक्स पी थीं, वे गलती न करने या उसे न दोहराने के प्रति ज्यादा सचेत थे. इसके उलट एल्कोहल पीने वाले सदस्यों को गलती करने या उसे सुधारने की कोई परवाह नहीं थी. इस प्रयोग के आधार पर माना गया कि शराब व्यक्ति के अंदरूनी अलार्म सिग्नल को कम कर देती है जो उसे कुछ गलत करने पर चेताता है.

मस्तिष्क के इस तरह से प्रभावित होने से समझा जा सकता है कि शराब पीकर कोई बात कहना दिमाग में चली ऐसी प्रक्रिया नहीं है जिसमें मन के अंदर के भाव निकलकर बाहर आएं. दूसरे शब्दों में, इस प्रक्रिया में ऐसा कुछ नहीं होता कि शराब के नशे के दौरान किसी व्यक्ति की मानसिक दशा में परिवर्तन के साथ कुछ हार्मोनल बदलाव हो जाएं और वह अपना संकोच छोड़कर मन की बात कह दे.

असल बात तो यह है कि शराब सीधे दिमाग को प्रभावित करती है और उसके सही तरीके से काम करने की प्रक्रिया में बाधा डालती है. इससे लोग बेपरवाह हो जाते हैं. वहीं वे कुछ समय के लिए बेवजह खुश या उत्साहित हो सकते हैं और अगर दुखी हैं तो और दुखी हो सकते हैं. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शराब आपको असली नहीं बनाती है और सच बोलने के लिए प्रेरित करने जैसा कोई प्रभाव यह आप पर नहीं डालती. इसके उलट यह आपको बेवकूफ बनाकर उसी मानसिक दशा का तीव्रता से अनुभव करवाती है जिसमें आप पहले से होते हैं.