23 मार्च को पुणे से दिल्ली आते हुए शिवसेना सांसद रविंद्र गायकवाड़ ने एअर इंडिया के विमान पर एक बुज़ुर्ग कर्मचारी के साथ जो कुछ किया, वह बदसलूकी नहीं, सीधे-सीधे अपराध था. इसके बाद गायकवाड़ जिस तरह टीवी चैनलों पर अपने अपराध की शेखी बघारते नज़र आए, वह बताता था कि कानून के राज्य ही नहीं, सहज मानवीय गरिमा के प्रति उनमें कितनी गहरी उपेक्षा और हिकारत का भाव है. उनके अपराध के लिए दो-दो प्राथमिकियां दर्ज कराई गईं. लेकिन मामूली-मामूली आरोपों पर आम आदमी पार्टी के विधायकों को गिरफ़्तार करने वाली दिल्ली पुलिस ने रविंद्र गायकवाड़ को गिरफ़्तार करना तो दूर, छूने तक की कोशिश नहीं की.

रविंद्र गायकवाड़ ने जो कुछ एक विमान में किया था, शिवसेना के दूसरे सांसद लगभग वही काम संसद में करते नज़र आए. लोकसभा में उन्होंने नागरिक उड्डयन मंत्री गजपति राजू से लगभग बदतमीजी की जिसके लिए बाद में खेद जताया और एक तरह से सरकार को चेतावनी दी कि विमानन कंपनियों ने रविंद्र गायकवाड़ पर जो पाबंदी लगाई है, वह अगर हटाई नहीं गई तो वे एनडीए की बैठक में आना बंद कर देंगे.

यह सही है कि रविंद्र गायकवाड़ पर आजीवन पाबंदी नहीं लगाई जा सकती थी. लेकिन उनके बिल्कुल आपराधिक व्यवहार के लिए अगर उन पर पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही है तो क्या यह उचित है कि उन्हें बिना कोई सबक सिखाए निकल जाने दिया जाए?

लोकसभा में इस पूरे प्रकरण को कुछ इस तरह देखा गया जैसे रविंद्र गायकवाड़ ने गुस्से में एक हरकत कर दी है जिसे उनके विशेषाधिकारों का खयाल रखते हुए नज़रअंदाज कर दिया जाना चाहिए 

दुर्भाग्य से इस पूरे प्रकरण में वे सबक सीखते नज़र नहीं आए हैं. उल्टे इसके सबक उन लोगों के लिए हैं जिन्होंने उनके व्यवहार का प्रतिरोध किया. इस पूरे प्रकरण का यह साफ़ संदेश है कि जो लोग ताकतवर हैं, उनके द्वारा किया गया अपमान आप झेल लें. अगर उनके साथ ऐसा संगठन है जो मुंबई से विमान न उड़ने की धमकी देने से लेकर उड्डयन मंत्री का घेराव तक कर सकता है. अगर उनके ऐसे साथी हैं जो अपने विशेषाधिकारों के कुतर्क के आधार पर उनके मानवाधिकारों के हनन की दलील तैयार कर सकते हैं तो उन्हें बेख़ौफ़ रहने का हक़ है, वे किसी भी कानून को अपने हाथ में ले सकते हैं, किसी की भी पिटाई कर सकते हैं और उन्हें एक 55 साल के बुज़ुर्ग को 25 चप्पल मारने की बात कहकर कतई शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं है.

दुर्भाग्य से एक सांसद के इस अपराधी व्यवहार का बचाव पहले उनकी पार्टी ने किया और बाद में लगभग पूरी संसद ने. लोकसभा में इस पूरे प्रकरण को कुछ इस तरह देखा गया जैसे रविंद्र गायकवाड़ ने गुस्से में एक हरकत कर दी है जिसे उनके विशेषाधिकारों का खयाल रखते हुए नज़रअंदाज कर दिया जाना चाहिए. यह सही है कि किसी ने उनके व्यवहार का समर्थन नहीं किया, लेकिन यह भी सही है कि किसी ने यह नहीं कहा कि रविंद्र गायकवाड़ ने जो कुछ किया है, वह कानूनी कार्रवाई लायक है. गृह मंत्री से किसी ने नहीं पूछा कि एअर इंडिया की दर्ज प्राथमिकी पर दिल्ली पुलिस क्या कार्रवाई कर रही है. कानून कहीं भी अपना काम करता नज़र नहीं आया. उल्टे रवींद्र गायकवाड़ मज़ाक उड़ाते दिखे कि वे तो दिल्ली आते-जाते रहे, कहीं छुप कर नहीं बैठे, किसी ने उनके बारे में पूछा तक नहीं. उल्टे सदन में शिवसेना ने जो व्यवहार किया, उससे संसद की गरिमा कम हुई.

लेकिन संसद की गरिमा कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो पहली बार सांसदों के व्यवहार से घटी हो. दुर्भाग्य से हमारी लोकसभा और राज्यसभा ने अतीत में ऐसे कई अशालीन और असंसदीय प्रसंग देखे हैं जिनसे हमारे जनप्रतिनिधियों के गैरज़िम्मेदार और अहंकार भरे व्यवहार की पुष्टि होती है.

अगर यह तंत्र नागरिकों का है तो वे नागरिक सबसे ज़्यादा ख़तरे में हैं. उन्हें कहीं भी मारा-पीटा, सताया जा सकता है. मारने-पीटने वालों के ख़िलाफ़ शिकायत या कार्रवाई भी उनका अपराध बन सकती है

लेकिन यह संसद नहीं, पूरे लोकतंत्र की अवमानना है. अगर यह तंत्र नागरिकों का है तो वे नागरिक सबसे ज़्यादा ख़तरे में हैं. उन्हें कहीं भी मारा-पीटा, सताया जा सकता है. मारने-पीटने वालों के ख़िलाफ़ शिकायत या कार्रवाई भी उनका अपराध बन सकती है. शिवसेना सांसद ने जो कुछ किया वह विमान में किया, इसलिए उनकी कलई खुल गई और उन्हें 14 दिन की असुविधा झेलनी पड़ी, लेकिन इस देश के दूर-दराज के इलाकों में ताकत और विशेषाधिकार का यही तर्क चलता है जिसमें कोई जन प्रतिनिधि, बाहुबली, जातिगत आधार पर कोई दबंग, कोई अफ़सर, कोई पुलिसवाला, कोई नेता किसी भी आदमी को पीट-पिटवा सकता है, प्रतिरोध करने पर जेल भिजवा सकता है, उसके घर में आग लगा सकता है, उसके खेतों की फ़सल जला सकता है, उसके घर की महिलाओं से बलात्कार तक कर सकता है. कहने की ज़रूरत नहीं कि कई इलाकों में यही हो रहा है और जो विरोध कर रहे हैं, वे नक्सली या आतंकवादी कुछ भी बताए जा रहे हैं.

गायकवाड़ के प्रसंग ने बस यह बताया है कि अगर किसी के साथ ऐसा कुछ हो, उसके अधिकार छीने जाएं, उसकी मानवीय गरिमा कम हो रही हो तो भी इस देश की लोकसभा या राज्यसभा उसके साथ नहीं खड़ी होगी. वह अपने सांसद के साथ खड़ी होगी जिसे विमान में न उड़ने देने के फैसले की वजह से कुछ असुविधा झेलनी पड़ रही है.

लोकसभा में जब रविंद्र गायकवाड़ ठसके से कह रहे थे कि वे शिक्षक हैं और विनम्र हैं, और सदन से माफी मांगेंगे उस शख़्स से नहीं जिसे उन्होंने चप्पलों से मारा है तो वे दरअसल उस व्य़क्ति का नहीं, अपना और हमारी संसद का अपमान कर रहे थे और इस अपमान में संसद उनके साथ थी. यह वैसा ही था जैसे कौरवों की सभा में दु:शासन द्रौपदी पर चीरहरण का आरोप लगाए या कृष्ण को धोखेबाज बताए क्योंकि इससे उसके चीरहरण में असुविधा हुई.

इस संसद से हम कैसे यह उम्मीद करें कि वह हमारे बिल्कुल बुनियादी अधिकारों की भी रक्षा कर पाएगी?