वीडियो | गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर : जिन्होंने दुनिया को सबसे ज्यादा, सबसे मीठे राष्ट्रगान दिये
गुरूदेव अपने शब्दों और संगीत से भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका को एक सूत्र में बांध देते हैं
हमारे राष्ट्रगान - जन-गण-मन - की रचना गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी. वे एक कवि होने के साथ-साथ शिक्षक, चित्रकार और संगीतकार भी थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें सम्मान देते हुए गुरूदेव की उपाधि दी थी. हमारा ‘जन-गण-मन’ बांग्ला गीत ‘भारत-भाग्य-बिधाता’ का एक हिस्सा है. इसे पहली बार 27 दिसंबर 1911 को कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गाया गया था. 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने इसे राष्ट्रगान घोषित किया.
यह गीत भाषाई कलात्मकता का एक अद्भुत उदाहरण है. इसमें संज्ञाओं (नामों) का इस्तेमाल क्रियाओं के रूप में किया गया है – जैसे उच्छल जलधि तरंग. यह पंक्ति जहां एक तरफ गंगा-यमुना की विशाल जलराशि का बखान करती है वहीं दूसरी ओर यह भारतीय प्रायद्वीप (अरब सागर, हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी) के लिए संबोधन भी है.
हमारे पड़ोसी देशों - बांग्लादेश और श्रीलंका - के राष्ट्रगानों में भी टैगोर का योगदान है. बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ टैगोर ने ही लिखा है. यह एक लंबी कविता की शुरूआती 10 लाइनें हैं. इसे 1905 में बंगाल के पहले विभाजन के समय लिखा गया था. 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान इसे बतौर राष्ट्रगान स्वीकार कर लिया गया.
श्रीलंका का राष्ट्रगान ‘नमो नमो माता’ आनंद समराकून ने लिखा और कंपोज किया. आनंद समराकून विश्व भारती विश्वविद्यालय के छात्र थे. इसी दौरान (1939-40 में) उन्होंने टैगोर से प्रभावित होकर इस गीत की रचना की थी. 1951 में इसे श्रीलंका के राष्ट्रगान के रूप में चुन लिया गया. उन्होंने इस सिंहली गीत का तमिल संस्करण भी तैयार किया. 1960 में समराकून से पूछे बिना ‘नमो नमो माता’ को ‘श्रीलंका माता’ कर दिया गया. कहा जाता है कि इस बात से परेशान होकर 1961 में आनंद समराकून ने आत्महत्या कर ली.
समराकून की रचनाओं ने श्रीलंका में सिंहली और रबींद्र संगीत के मेल वाले एक नए म्यूजिक कल्चर की शुरूआत भी की. उनके द्वारा लिखे सिंहली और तमिल, दोनों ही संस्करण आज श्रीलंका में राष्ट्रगान की तरह गाए जाते हैं. पिछले दिनों श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे ने राष्ट्रगान का तमिल संस्करण गाने पर एक अघोषित पाबंदी लगा दी थी जिसका देश में काफी विरोध किया गया. हालांकि नई सरकार के आने के बाद यह पाबंदी हटा दी गई.
इन तीनों राष्ट्रगानों में खास यह है कि ये उन्मादी देशभक्ति की बजाय मातृभूमि की वंदना की बात करते हैं. इस तरह गुरूदेव अपने शब्दों और संगीत से इन तीनों देशों को एक सूत्र में बांधते हैं.
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