बचपन में धर्मयुग पत्रिका में एक व्यंग्य लेख पढ़ा था. लेखक का नाम इस वक्त याद नहीं है. उस अनाम लेखक की कुछ लाइनें कोट कर रहा हूं जो बुद्धिजीवियों के बारे में लिखी गई थीं - ‘बुद्धिजीवी वह होता है, जो जीने के लिए बुद्धि का इस्तेमाल करे, जैसे गधा. यकीनन गधा बुद्धि का इस्तेमाल करता है, इसलिए घास चरता और धूल में लोट लगाता है. अगर वह बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करता तो धूल फांक रहा होता और घास पर लोट रहा होता.’
अगर ये पंक्तियां आज के दौर में लिखा जातीं तो यकीनन लेखक को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल जाता, क्योंकि पूरे देश में एक असाधारण किस्म का बुद्धिजीवी विरोधी माहौल है. लोग डेंगू और चिकनगुनिया के मच्छरों से उतने परेशान नहीं हैं, जितने बुद्धिजीवियों से हैं. बुद्धिजीवी इस देश में कितने हैं, इसकी गिनती अब तक किसी सरकार ने नहीं करवाई. बुद्धिजीवियों को भ्रम है कि उनकी तादाद बहुत ज्यादा होगी, तभी तो भारत विश्वगुरू है. इस भ्रम को दूर करने के लिए सरकार को यह बताना पड़ता है कि भारत विश्वगुरू बाबा रामदेव जैसे लोगों की वजह से है. ये बुद्धिजीवी तो एक तरह बौद्धिक आतंकवादी हैं. ये लोग तो वे हैं जो देशवासियों को खटमल की तरह काट रहे हैं. जूं बनकर उनकी खोपड़ी पर खलबली मचा रहे हैं. बेचारे देशवासी क्या करें, कोई बुद्धिजीवी मार पाउडर भी तो नहीं है, मार्केट में.
बुद्धिजीवियों को लेकर बढ़ती नफरत
एक वक्त था, जब मूर्ख होना गाली था. अब बुद्धिजीवी होना गाली है, क्योंकि दौर मूर्खता के संस्थागत होने और उसके सशक्तिकरण का है. बात गाली तक होती तब भी ठीक था. समाज में बुद्धिजीवियों से नफरत इस तरह है कि उन्हे मिटाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं. कर्नाटक और महाराष्ट्र में तीन बूढ़े बुद्धिजीवी गोविंद पानसारे, नरेंद्र दोभाल और कलबुर्गी मारे जा चुके हैं. मुंह पर कालिख मलना, सोशल मीडिया पर कीचड़ उछालना, ये सब रोज के सिलसिले हैं. लेकिन देश का गुस्सा है कि थमने के बदले बढ़ता जा रहा है. बुद्धिजीवियों से चिढ़ने वालों को उम्मीद है कि कोई अवतारी पुरुष आएगा और इस भारत भूमि को पूरी तरह बुद्धिविहीन बना देगा, जिस तरह कभी परशुराम ने क्षत्रिय विहीन बनाया था.
धरती के बुद्धि विहीन होने का मतलब है, अक्ल का समान वितरण, न किसी के पास कम, न ज्यादा. सही मायने में साम्यवाद. लेकिन साम्यवाद बुद्धिजीवियों द्वारा फैलाई गई गाली है, इसलिए रामराज कहना ज्यादा ठीक होगा. लेकिन रामराज तो तब आएगा जब बुद्धिजीवी जाएंगे. भारत भूमि को बुद्धिविहीन कौन बनाएगा? धर्म की उतनी हानि अभी हुई नहीं है, शायद. इसलिए बुद्धिजीवियों के समूल नाश के लिए कोई अवतारी पुरूष अब तक नहीं आया है.
सरकार भले ही कुछ करे न करे लेकिन जनता अपना रास्ता निकाल लेती है. गली-मुहल्ले पान की दुकान और फेसबुक-ट्विटर पर बुद्धिजीवियों से निपटने का सिलसिला शुरू हो गया है, अपने-अपने ढंग से. अभी यह सिलसिला डराने तक है, जैसे टीन पीटकर खेतों में कौव्वों को उड़ाया जाता है, अगर इससे भी बात नहीं बनी तो फिर आगे वही किया जाएगा महाराष्ट्र-कर्नाटक के बूढ़े बुद्धिजीवियों के साथ किया गया क्या हो सकता है, आनेवाले दिनों में उसका एक नमूना नीचे पेश है.
पीट-पीटकर मार डाला गया ‘बुद्धिजीवी’
चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही है - भीड़ ने पीट-पीटकर एक आदमी को मार डाला.
एंकर चीख-चीख कर ख़बर बता रहा है कि भीड़ उस आदमी को देखते ही बेकाबू हो गई और पैरो तले रौंद दिया.
एंकर ने संवाददाता से पूछा, ‘क्या उसने बीफ खाया था?’
संवाददाता ने कहा, ‘पुलिस बीफ खाने वाले एंगिल को खारिज कर रही है.’
एंकर ने अगला सवाल किया, ‘क्या उस पर गौ तस्कर होने का शक था?’
संवाददाता ने जवाब दिया, ‘नहीं भीड़ को इस बात का शक था कि वह बुद्धिजीवी है.’
अब एंकर ने दूसरे संवाददाता का रुख किया जो मृतक के घर पर मौजूद है. मृतक की मां छाती पीट-पीटकर रो रही है और लगातार कह रही है, ‘मेरे बेटे का बुद्धि से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था. किसी तरह 12वीं पास की थी और नौकरी ढूंढने निकला था.’
एंकर फिर से चीखने लगा, ‘हद हो गई इस देश में अंधेरगर्दी की. बुद्धिजीवी होता और मारा जाता तो बात समझ में आती. बुद्धिहीन था, फिर भी बुद्धिजीवी होने के शक में मार दिया गया, क्या कर रही है सरकार? आखिर ये अफवाह फैलाई किसने?’
शाम तक चैनल पर मौत की पूरी पड़ताल भी आ गई. एक एक्सक्लूसिव खोजी रिपोर्ट. दरअसल बुद्धिविरोधी दस्ता बुद्धिजीवियों की तलाश कर रहा था. दस्ते के जासूस एक घर के बाहर कान लगाकर खड़े थे. अंदर एक मां अपने बेटे से कह रही थी, ‘तेरे बापू ठीक कहते हैं, तेरे दिमाग में गोबर भरा है.’
दस्ते के जासूस ने जानकारी अपने लीडर की दी. लीडर की आंखें चमक गईं. वो बोला, ‘घर से निकलते ही चौराहे पर घेर लो.’
एक कम अक्ल कार्यकर्ता ने शक जताया, ‘लेकिन वह बुद्धिजीवी थोड़े ना है, उसके दिमाग में तो गोबर है.’
लीडर ने डांट लगाई, ‘गधे हो, गधे ही रहोगे. गोबर जैसी पवित्र चीज़ जिसके दिमाग़ में होगी, बुद्धिहीन कैसे होगा. ससुरा बुद्धिजीवी होगा. ये लोग आजकल चालाक हो गये हैं. लाल गमछे की जगह भगवा डालकर घूमते हैं…ऐ लाल फरेरे तेरी कसम की जगह.. रंग दे तू मोहे गेरुआ गाते हैं. देखो बचकर जाने ना पाये.’
बुद्धि विरोधी दस्ते ने अपना काम कर दिया. बुद्धिजीवी होने के आरोप में मारे गये आदमी की बॉडी पोस्टमार्टम के लिये भेजी गई है. हत्या के इल्जाम में दस्ते के कुछ कार्यकर्ता गिरफ्तार कर लिये गये हैं. बुद्धिविरोधी दस्ता पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने का इंतज़ार कर रहा है. अगर दिमाग़ में सचमुच गोबर पाया गया तो मरने वाला आदमी बुद्धिजीवी साबित होगा और हत्या का आरोप झेल रहे कार्यकर्ता बरी हो जाएंगे, क्योंकि उन्हें यकीन है कि इस देश में बुद्धिजीवियों की हत्या अब पुण्य का काम है.
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