उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में विकास भवन के भीतर शुक्रवार को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच एक जनसुनवाई चल रही थी. उसी वक्त इस भवन के बाहर सैकड़ों प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे. ‘बिना जानकारी जन-सुनवाई धोखा है - महाकाली की आवाज़’ और ‘बांध नहीं विकास दो – महाकाली की आवाज़’ जैसे नारों की तख्तियां अपने हाथ में लिये सैकड़ों लोग चिल्ला रहे थे- ‘जनसुनवाई बंद करो, ये जनसुनवाई धोखा है.’
कहानी भारत-नेपाल सीमा पर बन रहे पंचेश्वर बांध की है. पंचेश्वर में महाकाली नदी के साथ चार अन्य नदियों गोरीगंगा, धौली, सरयू और रामगंगा का संगम होता है. पंचेश्वर बांध इसे बांधने की विशाल परियोजना है. कुल 5040 मेगावॉट की यह परियोजना दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट कही जा रही है. यह अगले साल सितंबर में शुरू होकर 2026 में पूरी होनी है. इसके लिये दोनों देशों की कुल 14000 हेक्टेयर ज़मीन पानी में समा जायेगी. उत्तराखंड के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत ज़िलों के कई हिस्से इसके लिए बनने वाले बांध के डूब क्षेत्र में हैं. सरकार की प्राथमिक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) में करीब 134 गांवों के 54,000 लोगों के विस्थापित होने की बात कही गई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पिछली नेपाल यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच बांध के लिये संधि पर हस्ताक्षर किये हैं. केंद्र सरकार इसे बड़ी परियोजना के रूप में दिखा रही है. लेकिन स्थानीय लोगों की चिंता और गुस्सा वैसा ही है जैसा राज्य में पहले आयी परियोजनाओं पर दिखायी देता रहा है.
लोगों का कहना है कि बात महज़ आंकड़ों की नहीं उस भरोसे की भी है जिसके दम पर लोकतंत्र में विकास की ऐसी परियोजनायें लाई जाती हैं. शुक्रवार को जनसुनवाई के लिये पहुंचे लोगों की कई शिकायतें थीं. सरहदी इलाकों से आये लोगों का कहना था कि उन्हें पर्याप्त समय दिये बगैर यह सुनवाई की जा रही है. बरसात के मौसम में पहाड़ों में रास्ते खराब होना एक साधारण बात है. यहां पहुंचे लोगों ने कहा कि बहुत से लोग इस वजह से प्रशासन के आगे अपनी बात कहने नहीं पहुंच पाये. पिथौरागढ़ से कुछ दूरी पर बसे एक गांव से आये व्यक्ति ने अधिकारियों से कहा, ‘हमें आपकी प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) की भाषा ही समझ में नहीं आ रही है. हम आपसे किस हिसाब से मुआवज़ा मांगे?’ ‘हमें ये बांध नहीं चाहिये. क्या देश में सारी हाइड्रो पावर बनाने की ज़िम्मेदारी उत्तराखंड की ही है’, गंगोलीहाट के पास पनार से आये प्रदीप गिरी का सवाल था. पनार का बड़ा हिस्सा इस बांध से डूब जायेगा.
जनसुनवाई के दौरान प्रशासन जल्दबाज़ी में दिखा. उसकी प्रक्रिया में कई कमियां साफ देखी जा सकती थीं. ज़िलाधिकारी आशीष चौहान जनसुनवाई में नहीं बैठे बल्कि बाहर ‘क्राउड मैनेजमेंट’ करते दिखे. उनकी जगह लोगों की शिकायतें सुन रहे अपर ज़िला अधिकारी मोहम्मद नासिर के साथ मंच पर जो लोग विराजमान थे उनकी उपस्थिति को लेकर लोगों को आपत्ति रही. इनमें से अधिकतर लोग सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े नेता थे. इनमें डीडीहाट के विधायक बिशन सिंह चुफाल, बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष केदार जोशी, राज्य के वित्तमंत्री प्रकाश पंत के प्रतिनिधि कृपाल वाल्दिया थे. इनके अलावा बीजेपी नेता महेन्द्र लुंठी, मनोज भट्ट, गोपू मेहर और गिरीश जोशी भी मंच पर थे.
उत्तराखंड क्रांति दल के नेता और पूर्व विधायक काशीसिंह ऐरी ने आरोप लगाया कि हॉल में बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं की मौजूदगी से जनसुनवाई का कोई मतलब नहीं रह गया है. झूलाघाट से आये एक आक्रोशित व्यक्ति- जिसकी जमीन डूब क्षेत्र में पड़ रही है- का कहना था, ‘हम प्रशासन के आगे अपनी शिकायत लेकर आये हैं. यहां बांध परियोजना को हर हाल में मंज़ूरी दिलाने के लिये जुटे बीजेपी के नेता और ठेकेदार सुनवाई कर रहे हैं. इन लोगों का यहां क्या काम है?’
दूसरी ओर भाजपा के कई स्थानीय नेताओं का कहना था कि उन्हें लोगों की चिंता है और प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों की हर समस्या को सुना जाना चाहिये. वे बार-बार यह दलील दे रहे थे कि विकास के लिये यह बांध परियोजना ज़रूरी है. पंचेश्वर बांध 4800 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा जबकि इसके दूसरे चरण में रुपालीगाड़ नाम की एक जगह में 240 मेगावॉट बिजली पैदा की जायेगी.
वैसे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत कांग्रेस के कई नेता बांधों के समर्थन में रहे हैं. लेकिन फिलहाल कांग्रेस नेता बांध का विरोध करते दिखे. धारचूला के विधायक हरीश धामी सुनवाई के दौरान बीजेपी विधायक बिशन सिंह चुफाल से भिड़ गये. पूर्व विधायक और उत्तराखंड क्रांति दल के काशी सिंह ऐरी बंद गेट से कूदकर भीतर गये और उन्होंने सुनवाई सभागार में हंगामा किया. ऐरी का कहना था कि जन सुनवाई के नाम पर धोखा हो रहा है और लोगों को ठगा जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हम ईंट से ईंट बजा देंगे लेकिन ये बांध नहीं बनने देंगे.’
बांध के लिये पर्यावरण पर पड़ने वाले आकलन की रिपोर्ट (ईआईए) तैयार कर ली गई है. लेकिन राज्य के वन अधिकारियों को अभी यही पता नहीं है कि कौन से जंगल और कितना हिस्सा डूब रहा है. इस बारे में पिथौरागढ़ के डीएफओ का कहना था, ‘हमें अभी कुछ पता नहीं है कि क्या हो रहा है. अभी तक हमें एक भी पत्र प्राप्त नहीं हुआ है. पंचेश्वर बांध प्राधिकरण ने अभी तक हमें कुछ नहीं बताया है. अभी तक हमें यह मालूम नहीं है कि कितना क्षेत्र डूबेगा.’
हृदयेश जोशी एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडीटर हैं और इन दिनों हिमालय के पर्यावरण और जनजीवन पर शोध कर रहे हैं.
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