इस साल 11 मार्च को जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो सभी की आंखें खुली की खुली रह गईं. इससे पहले पिछले 40 सालों में राज्य में किसी भी दल ने इतनी बड़ी जीत नहीं दर्ज की थी. माना जाता है कि ऐसे नतीजे तभी संभव हो सकते हैं जब हर कोई जाति और धर्म से ऊपर उठकर वोट दे. भारत जैसे देश में यह कितना मुश्किल है यह इसमें 40 साल का समय लग जाने से पता लगता है. कई जानकार कहते हैं कि ऐसा तभी देखने को मिलता है जब हर किसी के दुःख, दर्द और परेशानियां लगभग एक जैसे हों और ऐसा तभी संभव होता है जब सरकार से हर कोई निराश हो जाए.

यानी साफ़ है कि उत्तर प्रदेश के लोगों ने सपा और बसपा की राजनीति से त्रस्त आकर एक नई सुबह की आस में भारतीय जनता पार्टी का चुनाव किया था. चुनाव के दौरान भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं को लेकर कई वादे किए गए थे जिनमें ‘महिला सुरक्षा’ और ‘सामाजिक न्याय’ सबसे प्रमुख था. नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ तक, भाजपा का हर नेता चुनाव के दौरान ये दो शब्द जरूर बोलता था.

इसके बाद जब सरकार की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपने का फैसला किया गया तो उत्तर प्रदेश की जनता को यह सोने पर सुहागा जैसा लगा. मशहूर गोरखधाम के मुखिया की छवि जिस तरह की थी उसके आधार पर अधिकतर लोग मान रहे थे कि कम से कम योगी के राज में अच्छी कानून व्यवस्था मिलना तो तय ही है.

लेकिन, योगी सरकार के छह महीने के कार्यकाल को देखें तो गृहमंत्रालय का प्रभार संभालने वाले मुख्यमंत्री ही सबसे ज्यादा निराश करते दिखते हैं. इन छह महीनों में राज्य की महिलाओं के साथ ऐसी तक घटनाएं हुई हैं जो किसी को भी झकझोर सकती हैं. साथ ही इन घटनाओं से यह भी पता चलता है कि यूपी के बेहद कड़क मुख्यमंत्री से न तो गुंडे खौफ खाते हैं और न ही उनकी पुलिस.

1-लखीमपुर खीरी में महिला का सरेआम हाथ काटने की घटना

24 अगस्त को प्रदेश के लखीमपुर खीरी में बाबू सर्राफ नगर में एक नेत्रहीन मां और बीमार पिता की बेटी का उसके पड़ोसी ने सरेआम तलवार से हाथ काट दिया. लड़की के मुताबिक रोहित नाम के इस व्यक्ति ने पहले उसे बहाने से घर बुलाया और फिर उस पर मोबाइल चार्जर की चोरी का आरोप लगाया. बातचीत बढ़ने पर वह लड़की को सड़क पर खींच कर ले गया और उसका एक हाथ काट डाला. लड़की का एक हाथ कटकर अलग हो गया जबकि दूसरा हाथ बुरी तरह जख्मी.

इस दौरान न तो राहगीरों ने उसे बचाने के लिए कुछ किया और न ही प्रदेश सरकार के बहुप्रचारित ऐंटीरोमियो स्क्वैड ने. आधे घंटे बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और उसे अस्पताल में भर्ती करवाया. इस मामले से जुड़ा एक तथ्य काफी चौंकाने वाला है. बताते हैं कि पुलिस और स्वास्थ्य विभाग मिलकर भी पीड़ित लड़की को लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर भेजने के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं कर पाये. नागरिकों ने चंदा करके एम्बुलेंस मंगाकर उसे लखनऊ भेजा. वहां डाक्टरों ने अथक प्रयास से उसका हाथ तो जुड़ गया, लेकिन उसके आगे के जीवन निर्वाह की अभी भी कोई व्यवस्था नहीं है.

2-बरेली में दो बहनों को घर में घुसकर जिंदा जलाया

रोंगटे खड़े कर देने वाली यह घटना बरेली के गांव देवरनिया जागीर की है. बीते 11 अगस्त को दो बहनों गुलशन (19) और फिजां (17) को सोते समय पेट्रोल डालकर जिंदा जलाने की कोशिश की गई. खबरों के अनुसार रात करीब दो बजे कुछ अज्ञात लोग घर में घुसे और दोनों बहनों पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी. दोनों बहनों ने शोर मचाया तो परिवार के लोग इकट्ठा हुए और आनन-फानन में आग बुझाई. लेकिन, तब तक दोनों लड़कियां बुरी तरह जल चुकी थीं. इस हादसे में 95 फीसदी तक जल चुकी गुलशन की मौत हो गई.

50 फीसदी से ज्यादा जली फिजां ने इस घटना के पीछे पड़ोसी गांव के ही एक लड़के को जिम्मेदार बताया. उसने बयान दिया कि यह लड़का उसे बीते एक साल से परेशान कर रहा था और स्कूल जाते वक्त उसे छेड़ता था. लड़की के बयान के बाद पुलिस ने आरोपित और उसके एक साथी को गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया.

3-बलिया में छेड़खानी के विरोध में छात्रा की सरेआम चाकुओं से गोदकर हत्या

बीते आठ अगस्त को बलिया जिले के एक गांव में कालेज जा रही छात्रा रागिनी की चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई. रागिनी का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने अपने साथ हुई छेड़खानी का विरोध किया था. बताते हैं कि गांव के ही दबंग प्रधान के बेटे रागिनी को अक्सर छेड़ा करते थे. पहले तो उसने नजर अंदाज किया लेकिन जब मामला हद से आगे बढ़ने लगा तो उसने घर में पूरी बात बताई जिसके बाद परिजनों ने उसे स्कूल न भेजने का निर्णय लिया. करीब हफ्ते भर जब घर वालों ने आरोपित लड़के के पिता से मिलकर उन्हें सारी बात बताई तो उन्होंने आश्वासन दिया कि अब ऐसा नहीं होगा और वे रागिनी को स्कूल भेजें. इसके अगले ही दिन जब रागिनी स्कूल के लिए निकली तो इन लड़कों ने उससे फिर छेड़खानी की. रागिनी के विरोध करने पर इन्होंने उसकी चाकू से गोदकर हत्या कर दी.

4-गाजियाबाद में नर्स का अपहरण कर गैंगरेप

यह घटना दिल्ली से सटे गाजियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन इलाके की है. खबरों के अनुसार, पीड़िता राजनगर एक्सटेंशन स्थित एक प्राइवेट हॉस्पिटल में नर्स है. बीती 23 सितम्बर की रात करीब 9 बजे वह छुट्टी के बाद अस्पताल से अपने घर जा रही थी. राजनगर एक्सटेंशन चौराहे पर उतरने के बाद वह पैदल चल रही थी. इसी दौरान पीछे से दो युवक आए और उसे खींच कर खेतों में ले गए. इसके बाद उसके साथ गैंगरेप किया गया. जब पीड़िता ने बचने का प्रयास किया तो बदमाशों ने उसके साथ मारपीट की. इस मामले में अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है. यह घटना उस जगह की है जहां पुलिस सख्त पेट्रोलिंग का दावा करती है.

5-कानपुर देहात की इस घटना के बाद उठे सवालों के जवाब किसी के पास नहीं

कानपुर देहात जिले की यह घटना पुलिस प्रशासन के रवैय्ये की पोल खोलती है. बीते 11 सितम्बर को यहां के रनियां कस्बे की तीन लड़कियां योगिता, हिमानी और लक्ष्मी लापता हुईं. जब इनके परिजन गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने गए तो उन्हें कोतवाली से बैरंग लौटा दिया गया. इसके ठीक दो दिन बाद इटावा जिले में क्वारी नदी के किनारे दो लडकियों के शव मिले. मेडिकल में इनके साथ गैंगरेप की पुष्टि हुई. इसके बाद 14 सितम्बर को कानपुर देहात पुलिस ने दावा किया कि इटावा में मिली दो लड़कियों की लाशों में से एक रनियां कस्बे से गायब हुई योगिता की है. पुलिस के अनुसार योगिता के माता पिता ने शिनाख्त कर ली. शव योगिता के परिजनों को सौंप कर उसका अंतिम संस्कार भी करा दिया गया. इसके बाद भी योगिता के माता-पिता मीडिया से यही कहते रहे कि यह उनकी लड़की नहीं थी.

इसके बाद अन्य परिजनों के बवाल करने पर पुलिस सक्रिय हुई और बची हुई दो लड़कियों हिमानी और लक्ष्मी को ढूंढने में लग गई. इसे लेकर लक्ष्मी के दोस्त कुलदीप पर अपहरण और हत्या का मुकदमा भी दर्ज कर लिया गया. लेकिन, फिर 17 सितम्बर को लड़कियां मध्य प्रदेश के इटारसी में घूमती हुई पाई गईं. चौंकाने वाली बात ये है कि इन लड़कियों में हिमानी और लक्ष्मी के साथ मृत बताई गई योगिता भी मिलती है. इस मामले में पुलिस की लापरवाही के अलावा एक सवाल जो शायद अब हमेशा बना रहेगा और जिसका पुलिस के पास कोई जवाब नहीं है कि जिन लड़कियों की लाशें क्वार नदी के किनारे मिली थीं, आखिर वे कौन थीं और उनके न्याय का क्या?

6-बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में लाठी चार्ज

वाराणसी न सिर्फ ऐतिहासिक महत्व का शहर है बल्कि, इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां से सांसद हैं. बीती 23 सितम्बर को जब यहां के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में लड़कियों पर लाठी चार्ज हुआ तो लाठीचार्ज की वजह और प्रधानमंत्री का क्षेत्र होने के कारण राजनीति गर्मा गई. छात्राएं बताती हैं कि विश्वविद्यालय परिसर में छेड़छाड़ और भेदभाव से त्रस्त होकर उन्होंने धरने पर बैठने का फैसला किया था. इनकी सिर्फ इतनी मांग थी कि वाइस चांसलर आकर उन्हें आश्वासन दें कि अब ऐसा उनके साथ नहीं होगा. दो दिन के बाद भी जब ये छात्राएं धरने पर डटी रहीं तो पुलिस ने उन्हें हटाने के लिए लाठी चार्ज किया.

इस पूरे मामले पर वाइस चांसलर का तर्क था कि लड़कियों को अन्य दलों के नेताओं ने भड़काया है इसलिए वे उनसे मिलने नहीं गए. लेकिन, वाइस चांसलर का तर्क कितना सही है इसका पता इस 30 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई एक याचिका से लगता है. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा दायर की गई इस याचिका में लड़कियों के साथ बीएचयू छात्रावास में बड़े भेदभाव किए जाने की बात कही गई है. उनके मुताबिक छात्राओं को रात आठ बजे के बाद हॉस्टल छोड़ने की इजाजत नहीं है. रात में लाइब्रेरी जाने की इजाजत नहीं, जबकि छात्रों को रात 10 बजे तक इजाजत है. छात्राओं को हॉस्टल के कमरे में वाई-फाई लगाने की इजाज़त नहीं. साथ ही उन्हें अपने कमरे के बाहर सभ्य पोशाक पहनने को कहा गया है, जबकि छात्रों के लिए कोई ड्रेस कोड नहीं है. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है.

बहरहाल, उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के साथ घटी इन छह घटनाओं के अलावा भी तमाम ऐसी घटनाएं हैं जो किसी के भी रोंगटे खड़े कर देंगी. लेकिन, यहां इन घटनाओं को केवल इसलिए लिया गया है कि ये बताती हैं कि महिलायें घर के अंदर और बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. साथ ही ये घटनाएं महिलाओं को लेकर पुलिस, प्रशासन और सरकार के नजरिये की पोल भी खोलती हुई दिखती हैं. इनसे यह भी पता लगता है कि उत्तर प्रदेश में एक छोटे से गांव से लेकर बड़े-बड़े शहरों तक और यहां तक कि एक शिक्षण संस्थान जिसकी दुनिया में एक अलग पहचान है, में लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है.