‘लोग अपने आप फैसला ले सकते हैं. मैं भारत सरकार के लिए फिल्में नहीं बना रहा हूं.’ यह फिल्म निर्देशक एसके शशिधरन का बयान है. जाहिर है कि इस बयान पर सूचना प्रसारण मंत्रालय कभी सहमत नहीं हो सकता था और इसके बाद उनकी फिल्म ‘सेक्सी दुर्गा’ (शीर्षक तस्वीर इसी फिल्म की है) को गोवा फिल्म महोत्सव की सूची से बाहर कर दिया गया. निर्णायक मंडल या ज्यूरी ने सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा एक और फिल्म ‘न्यूड’ पर आपत्ति जताने के बाद इस फिल्म को चुना था.
इसके बाद जानेमाने फिल्मकार सुजॉय घोष ने ज्यूरी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. सरकार का यह रवैया बताता है कि क्यों हमारे फिल्म महोत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर का रुतबा हासिल नहीं कर पाए हैं.

दुनिया के लिए आज भी भारत का मतलब सिर्फ बॉलीवुड है. लेकिन इसके कारण कई छोटे लेकिन काबिल फिल्मकारों की गंभीर मुद्दों पर बनी फिल्में आगे नहीं आ पातीं. जहां तक ताजा घटनाक्रम की बात है तो इसकी काफी संभावना है कि मंत्रालय को इन दोनों फिल्मों के नाम पर ऐतराज हो गया होगा. हालांकि दुर्गा किसी देवी से संबंधित नहीं है बल्कि यह एक उत्तर भारतीय महिला की कहानी है जिसकी शादी एक दक्षिण भारतीय के साथ हो जाती है. वहीं ‘न्यूड’ चित्रकारों के लिए मॉडल का काम करने वाली महिलाओं की कहानी कहती है.
नैतिकता की यही अजीबो-गरीब समझ सेंसर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी भी दिखाते रहे हैं. निहलानी की कैंची उन फिल्मों पर भी चल जाती थी जिनमें कहीं से भी कुछ अशोभनीय या आपत्तिजनक नहीं होता था. खैर उनकी तो छुट्टी हो गई है लेकिन अब सूचना और प्रसारण मंत्रालय उनकी कमी पूरी करता दिख रहा है. यह भी दिलचस्प है कि जब हमारे यहां सरकार तय कर रही है कि जनता कौन सी फिल्म देखे और कौन सी नहीं, हमसे ज्यादा रूढ़िवादी देश साहसी मुद्दों पर केंद्रित फिल्मों के लिए अपने मानदंड ढीले कर रहे हैं.
ईरान में समलैंगिकता अपराध है लेकिन इस विषय पर वहां कई फिल्में बनी हैं. ‘बी लाइक अदर्स’ और ‘सर्कम्सटेंसेज’ जैसी ईरानी फिल्मों को कई अंतरराष्ट्रीय समारोहों में सराहा गया है. भारत में समस्या सिर्फ अधिकारियों की मानसिकता नहीं है. यहां किसी भी संगठन की भावनाएं आहत होने पर फिल्मों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं. संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावती’ फिलहाल ऐसे ही विवाद में फंसी है.
फिल्में एक रचनात्मक उत्पाद हैं और सिर्फ गुणवत्ता के आधार पर इनको लेकर कोई राय दी जा सकती है. नैतिकता का मानदंड यहां लागू नहीं होना चाहिए. भारत और तमाम दुनिया के दर्शक सर्वश्रेष्ठ भारतीय सिनेमा देखना चाहते हैं और इसलिए इन दो फिल्मों को महोत्सव से बाहर करना उनको इस मौके से वंचित करना है. (स्रोत)
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