सोशल मीडिया पर इन दिनों महिला और बाल विकास का काम करने का दावा करने वाली एक कथित ग़ैर-सरकारी संस्था ‘विमन एंड चाइल़्ड डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन (ट्रस्ट)‘ काफ़ी चर्चा में है. वेबसाइट के ज़रिए लोगों को बताया गया कि अध्यापक पदों के लिए हज़ारों नौकरियां निकली हैं. सैकड़ों लोगों ने इन पदों के लिए अप्लाई किया. नीचे एनजीओ की वेबसाइट का स्क्रीनशॉट दिया गया है.

अब ख़बर आई है कि यह संस्था फ़र्ज़ी है. इसके पीछे काम कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के एक छात्र को गिरफ़्तार कर लिया गया है. यह कार्रवाई महिला व बाल विकास मंत्रालय की शिकायत पर की गई है. वेबसाइट पर मंत्रालय के लोगो का इस्तेमाल किया जा रहा था जिसकी शिकायत दिल्ली पुलिस से की गई थी. ख़बर की मानें तो सरकारी नौकरी देने के नाम पर 4000 लोगों से 20 लाख रुपये ऐंठ लिए गए. पुलिस के मुताबिक़ आरोपित सुमित कुमार ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया है. संस्था की वेबसाइट भी अब नहीं खुल रही है.
इंटरनेट पर ठगी का यह कोई पहला मामला नहीं है. दुनिया के सबसे सस्ते स्मार्टफोन से लेकर पर क्लिक भुगतान जैसी कई स्कीमों से जुड़े घोटाले समय-समय पर सुर्खियां बनते रहे हैं. लेकिन ठगी का यह सिलसिला थमता नजर नहीं आता. हालांकि जरा सा सावधान रहकर ऐसे घोटालों से बचा सकता है. विमन एंड चाइल़्ड डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन के ही मामले को लें तो जरा सा गौर करने पर ही इसके बारे में कई संदेह हो रहे थे जिनसे यह अनुमान लग रहा था कि इसकी परिणिति भी एक और घोटाले के रूप में होने वाली है.
हज़ारों सरकारी नौकरियां दे रही इस वेबसाइट की शुरुआत एक चेतावनी से होती थी. ख़ुद को ट्रस्ट अधिनियम 1882 के तहत रजिस्टर्ड बताने वाले एनजीओ का कहना था कि सोशल मीडिया पर उसके बारे में ग़लत जानकारियां फैलाई जा रही हैं. वेबसाइट के ज़रिए एनजीओ ने धमकी दी थी कि उसके ख़िलाफ़ ग़लत जानकारी फैलाने वालों पर क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी.
यूट्यूब पर कुछ वीडियो भी मिलते हैं जिनमें एनजीओ के बारे में बताया गया है कि देशभर में इसकी कई शाखाएं हैं. लेकिन देशभर की तमाम ग़ैर-सरकारी संस्थाओं की जानकारी रखनी वाली एनजीओज़ इंडिया वेबसाइट पर इस नाम से किसी संस्था के बारे में पता नहीं चलता. यहां पर ‘विमन एंड चाइल़्ड डेवलेपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन’ (डब्ल्यूसीडीओ) के नाम से सर्च करने पर कुछ नहीं मिलता. कोई सर्च करता तो यहीं साफ हो जाता डब्ल्यूसीडीओ नाम की कोई संस्था है ही नहीं.
एनजीओ की वेबसाइट पर अधिकतर लिंक काम ही नहीं करते थे. दूसरी तरफ, फ़ीस सबमिट करने से संबंधित सभी लिंक बहुत अच्छी तरह काम कर रहे थे. ऑनलाइन फ़ीस भरने का पेज, फ़ीस कैसे भरें इसकी जानकारी का पेज, एग्ज़ाम एप्लीकेशन फ़ॉर्म और कुछ दूसरे लिंक जो यूज़र को भुगतान विकल्प तक ले जाते हैं, अच्छे से खुल रहे थे. इस पर सरकारी संस्थाओं के लिंक भी दिए गए थे जिन पर क्लिक करने पर वेबसाइट का चेतावनी वाला पेज ही खुलता था. संस्था का कोई फ़ेसबुक या ट्विटर अकाउंट नहीं था फिर भी वेबसाइट पर इनके लिंक दिए हुए थे. साफ था कि दाल में कुछ काला है.
जरा सा गौर करने पर वेबसाइट की भाषा भी इसकी पोल खोल सकती थी. इसमें ग़लतियों की भरमार थी जो असामान्य बात है. एनजीओ की चेतावनी पढ़कर ही इसका पता चला जाता था. अंग्रेज़ी में दी गई जानकारी में भी ग़लतियां थीं. इसके अलावा संस्था के उद्देश्य को लेकर दी गई जानकारी मात्र दो-चार वाक्यों में समेट दी गई थी. देशभर में चल रही संस्था का मिशन और विज़न इतना छोटा कैसे हो सकता है? कुल मिलाकर ये सभी बातें संस्था के वजूद पर सवाल खड़ा करती थीं. फिर भी हजारों लोग इसकी ठगी का शिकार हो गए.

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