हमारे देश में इतनी सारी लाइलाज बीमारियों का इतनी तरह का ‘शर्तिया इलाज’ उपलब्ध है और फिर भी नोबेल पुरस्कार वाले इनको नजरंदाज करते रहे हैं, यह बात किसी को भी हैरान कर सकती है. हमारे यहां गली-गली में डायबिटीज, मिर्गी, अस्थमा, सफेद दाग, श्वेत प्रदर, बांझपन, नपुंसकता, गंजेपन, दिल की बीमारियों तथा लकवे इत्यादि का ‘शर्तिया इलाज’ वर्षों से उपलब्ध है. इसके विषय में छापकर, दीवारों पर पोतकर तथा पर्चे बंटवाकर सामान्य जन को शिक्षित भी किया जाता है. तब भी यदि आप अब तक इनके चक्करों में नहीं फंसे हैं तो यह लेख आपके लिए ही है. हां यदि ऐसा ‘शर्तिया इलाज’ लेकर आप भुगत चुके हों तो यह लेख पढ़ना भीगने के बाद बरसाती ओढ़ने जैसा कहलाएगा.

ध्यान दें कि ये सारे इलाज उन्हीं बीमारियों के लिए बनते/आविष्कृत होते/तैयार किए जाते हैं जो या तो पूरी तरह ठीक ही नहीं होतीं, या जिनका इलाज जीवनभर होना होता है. ऐसी स्थिति में मरीज को यदि यह आशा की किरण (बल्कि पूरा सूरज ही) दिखलाया जाए कि तुम्हारी बीमारी मात्र एक माह के गारंटीड कोर्स से एकदम ठीक हो जाएगी और ऐसी ठीक हो जाएगी कि जिसे कहते है जड़ से ही मिट जाना तो कौन सा ऐसा मूर्ख होगा जो इस कोर्स को ट्राई न करेगा!
मेरे पास बाद में बिगड़कर आने वाले दसियों मरीज इस तरह का कोई कोर्स ले चुके होते है. जड़ी-बूटी, मल्हम, पुड़िया, सिकाई, जिंदा मछली आदि पचासों तरह के कोर्स उपलब्ध हैं. जब इस तरह के कोर्स लेकर भी वे ठीक नहीं होते, तब भी वे इन ‘शर्तिया इलाजों’ का अपना खराब अनुभव किसी को नहीं कहते, न ही इनकी बुराई किसी से करते हैं. वे अपनी मूर्खता को इस तसल्ली से ढंकते है कि ऐसे भी तो यह बीमारी लाइलाज बताई जाती है – ठीक न भी हुई तो क्या हुआ, पर हमने एक कोशिश तो की! इसी सोच के कारण नित्य नए मरीज इन शर्तिया इलाजों के शिकार होते हैं और अपना नुकसान कराते रहते हैं.
मैं उस पिता को कभी नहीं भूल पाता जो अपनी विवाह योग्य बिटिया को मेरे पास लाया था. ‘डॉक्टर साहब, आपको याद है इसकी?... पहचाना इसे?’ पूछने लगा वह. मैं कैसे पहचानता? परंतु पिताजी को जानने के कारण किंचित पहचान गया... मेरे सामने एक मोटी, गोलमटोल लड़की बैठी थी. पिताजी बताने लगे, ‘आपके पास हम इसे अस्थमा के लिए लाया करते थे, याद है सर? तब मुझे यही चिंता बनी रहती थी कि इससे कौन शादी करेगा? अस्थमा तो एक देसी दवा से एकदम ठीक हो गया. चित्रकूट से मंगाते हैं और खीर में डालकर देते हैं. बस, मोटी हुई जा रही है - इसके लिए कुछ बताइए.’ अब मैं उन्हें क्या बताता? उन्होंने दमा को जड़ से मिटाने के चक्कर में बिटिया को देसी दवा के नाम पर सालों तक स्टेरॉयड्स खिला दिए थे जिसके दुष्प्रभाव से वह ऐसी मोटी हो गई थी कि अब शादी वास्तव में कठिन थी. दमे के शर्तिया इलाज के नाम पर, न जाने कितने शातिर लोग स्टेरॉयड्स के अनाप-शनाप डोज की गोलियां पीस-पासकर देसी दवा के नाम पर खिलाते रहते है. अस्थमा तो ‘ठीक’ हो जाता है पर उससे भी बड़ी बीमारियां पैदा कर देते हैं और ‘पुड़िया’ बंद होने पर दमा भी वापस आ ही जाता है.
मिर्गी, पागलपन और हिस्टीरिया के रोगी तो इस तरह के ‘शर्तिया इलाज’ की चपेट में आने को लगभग अभिशप्त हैं. झाड़-फूंक करने वाले गुनिया, चमत्कारी बाबा तथा सीधे ‘हिमालय’ से लाई जड़ी-बूटियों के सौदागरों का एक बड़ा गिरोह है जो इनका इलाज करते रहते हैं. हिस्टीरिया के बारे में तो सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि यह कोई बीमारी ही नहीं. पर इस बात को मरीज के साथ वाले प्राय: नहीं समझते. दरअसल कोई इलाज न करना ही हिस्टीरिया का इलाज है.
जहां तक मिर्गी की बात है तो इसका वैज्ञानिक इलाज मरीज तथा उसके घरवालों की तरफ से, तपस्या तथा धैर्य मांगता है. दौरा बार-बार आने पर आदमी इन ‘शर्तिया इलाजों’ की शरण में चला जाता है जो जानलेवा साबित होते हैं. यदि मिर्गी का दौरा बार-बार आ ही रहा है तो या तो दवाई ठीक टाइम पर नहीं ली जा रही, या फिर बताए गए डोज से कम डोज में ली जा रही है, या शायद एकाध और दवा जोड़ने की आवश्यकता है. ऐसे मामलों कभी-कभी दवा बदलने की जरूरत भी पड़ती है. वैसे एक डोज को भी लेना भूल जाएं, रात देर तक जागते रह जाएं तो भी अच्छे-भले कंट्रोल वाले रोगी को मिर्गी का दौरा पड़ सकता है.
कुल मिलाकर कहना यह है कि देखें, समझें, बीमारी उभरने का कारण समझने में डॉक्टर की मदद करें. इलाज छोड़कर इन ‘शर्तिया इलाजों’ के चक्कर में मरीज की बीमारी न बढ़ाएं. डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, एंजायटी तथा साईकोसिस आदि के लिए बेहद कारगर दवाइयां अब उपलब्ध है. धैर्य से इलाज कराएं तो प्राय: मानसिक व्याधियों का इलाज आजकल संभव है.
40 सालों की डॉक्टरी प्रैक्टिस में मैंने आज तक किसी ‘शर्तिया इलाज’ द्वारा एक भी डायबिटीज, हार्टअटैक, लकवा आदि बीमारियों का मरीज ठीक होते नहीं देखा है. काश कि ऐसा कोई ‘शर्तिया इलाज’ वास्तव में होता और मुझे मिल जाता तो न केवल मैं अपने सारे ऐसे मरीजों को यह भेजकर उन्हें शर्तिया ठीक करा लेता बल्कि मीडिया के पास जाकर इन खोजों के लिए चिकित्सा विज्ञान को कायल करता. पर ऐसा है ही नहीं, ऐसे कोई इलाज नहीं होते तो कृपया इनके चक्करों में न पड़ें.
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