बात 18 नवंबर 2004 की है. एक टीवी चैनल पर इंटरव्यू के दौरान मुकेश अंबानी ने यह कहकर कॉर्पोरेट दुनिया और स्टॉक मार्केट की सांसें रोक दी थीं कि उनके और छोटे भाई अनिल अंबानी के बीच बंटवारे को लेकर कुछ मतभेद हैं. हालांकि फिर बात को तुरंत संभालते हुए उन्होंने कहा कि भाइयों के बीच विवाद एक घरेलू मसला है और कंपनी के कामकाज पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा.

लेकिन नुकसान हो चुका था. रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) का शेयर 12 फीसदी नीचे आ गया था. इत्तेफ़ाक़ की बात है कि उस वक़्त आरआईएल अपने शेयर बाज़ार से ख़रीद रही थी! तब से लेकर आजतक दोनों भाइयों के बीच जो ‘कारोवॉर’ हुआ वह किसी फ़िल्मी किस्से से कम नहीं है.

फिलहाल इस लड़ाई में अनिल अंबानी बुरी तरह हारे हुए हैं. आलम यह है कि मुकेश अंबानी ने उन्हें जेल जाने से बचाया है. उन्हें स्वीडिश कंपनी एरिक्सन को 462 करोड़ रु का बकाया इसी हफ़्ते बुधवार तक चुकाना था. नहीं तो सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तीन महीने के लिए जेल भेजने की बात कह दी थी. ऐस में मुकेश अंबानी अपने भाई का सहारा बने. इसके बाद अनिल अंबानी ने एक बयान जारी कर कहा कि मुश्किल घड़ी में उनके भैया मुकेश और भाभी नीता ने उन्हें बचा लिया.

2007 में यानी रिलायंस में बंटवारे के दो साल बाद फ़ोर्ब्स की अमीरों की सूची में अनिल अंबानी 45 अरब डॉलर के मालिक थे और मुकेश 49 अरब डॉलर के. तब तो कई लोगों का यह भी मानना था कि छोटा भाई, बड़े भाई से आगे निकल जाएगा. आज फ़ोर्ब्स की सूची के हिसाब से मुकेश अंबानी 47 अरब डॉलर के मालिक हैं. एशिया में सबसे अमीर. लेकिन 12 साल पहले 45 अरब डॉलर के मालिक अनिल अंबानी की दौलत का आंकड़ा दो अरब डॉलर तक आ गया है. 12 साल में 43 अरब डॉलर गंवाना कोई मजाक नहीं.

सवाल उठता है कि हालात यहां तक कैसे पहुंचे. आइए, इसे सिलसिलेवार तरीके से देखते हैं.

झगड़ा और कोकिलाबेन की पीड़ा

दरअसल, धीरूभाई अंबानी अपनी वसीयत लिखकर नहीं गए थे. 2002 में उनकी मृत्यु हुई तो कंपनियों के बंटवारे को लेकर विवाद हो गया. उस वक़्त रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) का सालाना टर्नओवर 80 हज़ार करोड़ के आसपास था. अंबानी परिवार की कंपनी में हिस्सेदारी लगभग 47 फीसदी की थी. मुकेश अंबानी चेयरमैन थे और अनिल अंबानी वाइस चेयरमैन. अनिल के पास कंपनी में लगभग न के बराबर अधिकार थे. बताते हैं कि उस वक़्त मुकेश ने अनिल को कंपनी बोर्ड से बाहर करने का प्लान बनाया था.

कोकिलाबेन अपने पति की मृत्यु के आघात से उबर भी नहीं पायी थीं कि दोनों भाई आपस में लड़ पड़े. कंपनी के गवर्निंग बोर्ड में मुकेश अंबानी की तूती बोलती थी और अंदरखाने की जो खबरें चल रही थीं कि उनके मुताबिक अनिल को कुछ नहीं मिलने वाला था. मां कोकिलाबेन दुविधा में पड़ गईं कि किसके साथ खड़ी हों. उन्होंने बीच का रास्ता अपनाया. दोनों बेटों के बीच मध्यस्थता की. आईसीआईसीआई बैंक के सीईओ केवी कामथ, धीरूभाई के जिगरी दोस्त और तब पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने भी इसमें अहम भूमिका निभायी.

किसके हिस्से क्या आया?

हालांकि, केवी कामथ ने सुझाया था कि आरआईएल और आईपीसीएल का विलय करके एक कंपनी बनायी जाए और फिर उसे दो हिस्सों में करके दोनों भाइयों में बराबर बांट दिया जाए. कहते हैं कि मुकेश अंबानी ऐसा न होने देने पर अड़ गए. मुकेश अनिल से उम्र में दो साल बड़े हैं और कहा जाता है कि आरआईएल को खड़ा करने में अनिल से ज़्यादा उनका योगदान था. लिहाज़ा, आरआईएल और आईपीसीएल मुकेश के हिस्से में आईं. रिलायंस इन्फोकॉम (कम्युनिकेशन), रिलायंस कैपिटल और रिलायंस एनर्जी की कमान अनिल के हाथों में गयी.

यहीं से दोनों भाइयों के रास्ते अलग-अलग हो गए. स्टॉक मार्केट और निवेशकों में काफ़ी छातीकूट हुआ. किसी ने इसे नुकसानदायक कहा तो किसी ने फ़ायदेमंद. समझौते की एक अहम शर्त थी कि दोनों भाई 10 साल तक एक-दूसरे के कारोबारी क्षेत्र में नहीं उतरेंगे. अंग्रेजी में इसे ‘नॉन-कम्पीट एग्रीमेंट’ कहा जाता है.

कहते हैं कि मां कोकिलाबेन ने समझौते के तहत मुकेश को इस बात के लिए राज़ी किया था कि आरआईएल अनिल अंबानी की कंपनी, रिलायंस एनर्जी, को बाज़ार भाव से कम कीमत पर गैस की आपूर्ति करेगी. लेकिन मुकेश अंबानी ने ऐसा करने से मना कर दिया और अनिल इस मामले को कोर्ट में ले गए. इन दिनों यह चर्चा गर्म थी कि पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने ऐसा नहीं होने दिया था. अनिल ने तब देश के तकरीबन हर बड़े अखबार में अपना पक्ष रखा. उनका कहना था कि सरकार और मुकेश अंबानी मिलकर उन्हें ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हैं.

अनिल अंबानी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर भी बीच-बचाव की उम्मीद की थी. लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने इससे हाथ झाड़ लिया. उधर, तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने दोनों भाइयों से सुलह करने की अपील की जो दोनों ने ही नकार दी. दरअसल, धीरूभाई अंबानी के उदय में कुछ योगदान प्रणव मुखर्जी का भी था और फिर दोनों भाइयों के झगड़े से निवेशकों को नुकसान हो रहा था.

मानहानि का मुकदमा

2008 में मुकेश अंबानी ने न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में अनिल अंबानी पर इल्ज़ाम लगाया कि बंटवारे से पहले अनिल ने कुछ जासूसों की मदद से आरआईएल की मुखबिरी करवाई थी. बात ने तूल पकड़ लिया. झगड़ा इतना बढ़ा कि अनिल अंबानी ने बड़े भाई पर 10 हज़ार करोड़ का मानहानि का मुकदमा ठोक दिया.

यह ऐसा दौर था जब दोनों भाई एक-दूसरे से बुरी तरह होड़ करने लगे थे. यह होड़ संपत्ति के भौंडे प्रदर्शन तक भी पहुंच गई थी. मुकेश अंबानी ने अपनी पत्नी के लिए पांच करोड़ डॉलर का एक हवाई जहाज़ खरीदा जिसका ख़ूब प्रचार हुआ. कुछ दिनों बाद खबर आई कि अनिल ने टीना अंबानी को आठ करोड़ डॉलर का एक यॉट (समुद्री नाव) गिफ्ट किया है. ये वे दिन भी थे जब मुकेश अंबानी ने अपने नए निवास ‘एंटीलिया’ का निर्माण शुरू करवा दिया था.

इस सबके बीच दोनों भाई स्टॉक मार्केट में आये दिन ख़बर बनाने लगे थे. रिलायंस कम्युनिकेशंस की माली हालत बेहद ख़राब थी. कंपनी के पास नेटवर्क का विस्तार करने के पैसे नहीं थे, एयरटेल और अन्य कंपनियां उससे कहीं आगे निकल चुकी थीं. लेकिन हैरानी की बात थी कि रिलायंस कम्युनिकेशंस का शेयर दिनों-दिन बढ़ता जा रहा था. कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन एक लाख 65 हज़ार करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. आज जो शेयर 10 रुपये के आसपास मंडरा रहा है वह तब यानी 2008 में यह 700 रुपये के आसपास था.

खैर, अनिल गैस क़रार वाले मुद्दे बॉम्बे हाईकोर्ट में जीत गए तो मुकेश इस मसले को सुप्रीम कोर्ट तक गए. वहां अनिल अंबानी केस हार गए. बाद में उन्होंने मानहानि का मुकद्दमा भी वापस ले लिया था.

एक-दूसरे को नीचे गिराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी

2008 के आसपास अनिल अंबानी रिलायंस कम्युनिकेशंस का दक्षिण अफ्रीका की टेलिकॉम कंपनी ‘एमटीएन’ के साथ विलय करना चाहते थे. अगर ऐसा हो जाता तो नतीजे में बनने वाली कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनियों में शुमार हो जाती. जानकार बताते हैं कि एमटीएन में दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के कुछ बड़े लोगों की भागीदारी थी. डील लगभग हो चुकी थी. अनिल अंबानी निश्चिंत थे कि तभी एमटीएन ने करार करने से मना कर दिया. अंदरखाने यह बात उड़ी कि मुकेश ने रिलायंस कम्युनिकेशंस के अंदरूनी हालात से एमटीएन को अवगत करा दिया था.

दरअसल, बात यह थी कि उस वक़्त टेलिकॉम में विलय को लेकर कोई पक्की नीति नहीं थी और दोनों भाइयों के बीच हुए करार के तहत, जैसा कि अमूमन है, रिलायंस कम्युनिकेशंस को बेचने की सूरत में इसे ख़रीदने का पहला अधिकार मुकेश अंबानी का था. यहीं यह बताना भी जरूरी है कि टेलिकॉम मुकेश का ड्रीम प्रोजक्ट था. जब रिलायंस इन्फ़ोकॉम की शुरुआत हुई थी तो अनिल अंबानी उद्घाटन के मौके पर बुलाये भी नहीं गए थे.

‘नो कंपीट एग्रीमेंट’ पांच साल में ही टूट गया

यह मई 2010 की बात है जब एक दिन ख़बर आई कि दोनों भाइयों के बीच 10 साल के लिए एक-दूसरे के कारोबारी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा न करने वाला क़रार टूट गया. कॉर्पोरेट जगत ने इसे दोनों भाइयों के लिए अच्छा माना. इसे सुलह की पहली पहल माना गया. लेकिन बहुतों ने माना कि यह सुलह से ज़्यादा अनिल अंबानी की मजबूरी थी. टेलिकॉम में वे कुछ ख़ास नहीं कर पा रहे थे और उन पर क़र्ज़ बढता ही जा रहा था. चर्चाएं होने लगी थीं कि अनिल टेलिकॉम क्षेत्र से निकलना चाहते हैं. उधर, मुकेश अंबानी नए क्षेत्रों में हाथ आज़माना चाहते थे. जैसा ऊपर जिक्र हुआ है, टेलिकॉम मुकेश का ड्रीम प्रोजक्ट था. वे हर हालत में इसमें आना चाहते थे.

उन्होंने ऐसा किया भी. मुकेश अंबानी के टेलिकॉम में आने के बाद से अन्य टेलिकॉम कंपनियों के पसीने छूट गए, सबसे खराब हालत तो रिलायंस कम्युनिकेशंस की हुई. कंपनी पर ताला लग गया. अब उसने दिवालिया प्रक्रिया के लिए आवेदन कर दिया है. अनिल रक्षा क्षेत्र में हाथ आजमा रहे थे, लेकिन रफाल मामला भी उनके गले की फांस बन गया है.

11 साल बाद

झगड़े की वजह से हुए बंटवारे को अब करीब 12 साल हो गए हैं. इस दौरान मुकेश अंबानी एशिया के सबसे रईस व्यक्ति बन गए हैं तो अनिल अंबानी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आज मुकेश अंबानी के लिए दुनिया भर में कहीं से भी सबसे सस्ती दर पर निवेश उपलब्ध है. कुछ दिनों पहले उन्होंने डॉलर बांड बेचकर बेहद कम ब्याज पर पैसा उठाया है. उधर, अनिल को कर्ज का ब्याज चुकाने के लाले पड़ गए हैं.

जानकारों के मुताबिक़ इस सबके पीछे दोनों भाइयों का मूल स्वभाव है. जहां मुकेश परदे के पीछे रहकर काम करते हैं तो वहीं अनिल सुर्खियों में रहना पसंद करते हैं. जानकार बताते हैं कि अनिल की समाजवादी पार्टी से नज़दीकी मुकेश को पसंद नहीं थी. मुकेश किसी भी प्रोजेक्ट के पीछे अपना सब कुछ झोंक देते हैं, छोटी से छोटी बात पर उनकी नज़र रहती है. अनिल फाइनेंस के क्षेत्र में दिग्गज माने जाते हैं. बताया जाता है कि शुरुआत से ही इन दोनों भाइयों के मिजाज का फर्क साफ देखा जा सकता था. मुकेश अंबानी के बारे में कहा जाता है कि उन पर काम का भूत सवार रहता था. उधर, अनिल में एक किस्म की आभिजात्यता थी

कोकिलाबेन आज दोराहे पर खड़ी नज़र आती है. कहते हैं कि मुकेश को लेकर उन्हें संतुष्टि है तो अनिल को लेकर चिंता. मुकेश के हाथ तो मानो कोई पारस पत्थर लग गया है जबकि अनिल के सामने भविष्य का संकट खड़ा हो गया है. मां होने के नाते वे नाथद्वारा के मंदिर में दोनों के लिए दुआ मांगती हैं. दोनों के ही निजी उत्सव में शरीक होती हैं. वही तो हैं जो दोनों के बीच एक आख़िरी कड़ी हैं.

फिलहाल मुकेश अंबानी ने छोटे भाई को जेल जाने से बचा लिया है. इसके साथ ही दोनों के बीच की दरार भी कुछ हद तक भरती दिखी है. लेकिन अनिल अंबानी की मुश्किलें कई मोर्चों पर हैं. देखना दिलचस्प होगा कि मुकेश आगे किसी ऐसे मौके पर क्या करते हैं.

अनिल अंबानी को मैराथन दौड़ने का शौक है, लेकिन कारोबार की मैराथन में फिलहाल तो मुकेश अंबानी उनसे मीलों आगे आ चुके हैं. यही एक मां का धर्मसंकट है. एक तरफ़ तो वह जीतती हुई नज़र आती है तो दूसरी तरफ़ अपने छोटे बेटे की हार पर उसके साथ हांफती हुई खड़ी दिखाई देती है. 12 साल बाद भी एक मां की दुविधा जस की तस है.