छह दिसंबर, 1992 को आज़ाद भारत के इतिहास का एक काला दिन माना जाता है. 25 साल पहले आज ही के दिन अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी. मस्जिद गिराने वाले कारसेवकों और उनकी अगुवाई कर रहे धार्मिक और राजनीतिक नेताओं का दावा था (और है) कि बाबरी मस्जिद से पहले वहां भगवान राम का मंदिर था जिसे तोड़कर मस्जिद बनवाई गई थी. वे मानते हैं कि भगवान राम उसी जगह पैदा हुए थे जहां मस्जिद बनी हुई थी और ख़ुद मुग़ल शहंशाह बाबर ने मंदिर तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण करवाया था.
राम का मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई गई या नहीं और ऐसा मुग़ल शहंशाह बाबर के कहने पर ही किया गया, इसे लेकर बीते सालों में नए दावे सामने आए हैं. कुछ इतिहासकारों और अन्य जानकारों का कहना है कि मंदिर बाबर नहीं बल्कि औरंगज़ेब के शासनकाल में तुड़वाया गया था. इसे लेकर भी दो बातें हैं. कुछ लोग कहते हैं कि मंदिर तोड़ने का आदेश औरंगजे़ब ने दिया था, तो कुछ कहते हैं कि औरंगज़ेब के एक गवर्नर फ़ेदाई ख़ान ने मंदिर तुड़वाया था. यह दावा करने वाले एक और पुराने दावे को ग़लत बताते हैं जिसके मुताबिक़ मस्जिद बाबर के सेनापति मीर बाकी ने बनवाई थी और बाबर ख़ुद कभी अयोध्या नहीं आया.
राम मंदिर मामले से अलग, राम को लेकर सबसे ज़्यादा बातें उनके जन्म के समय को लेकर होती हैं. इनमें राम का जन्म ईसा से 5000 साल से लेकर लाखों साल पहले तक का बताया जाता है.
दूसरी तरफ़, राम और अयोध्या को लेकर भी अलग-अलग मत सामने आते रहे हैं. उनके जन्म के समय की बात हो या स्थान की, जानकार अपने-अपने ज्ञानकोश के हिसाब से जानकारियां देते हैं. इस सिलसिले में दो व्यक्तियों के विचार ध्यान खींचते हैं. इनमें एक हैं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य रहे अब्दुल रहमान क़ुरैशी जिन्होंने दो साल पहले राम के जन्म को लेकर एक नया दावा करके हिंदू पक्ष के लोगों में हलचल मचा दी थी. दूसरे व्यक्ति हैं महापंडित राहुल सांकृत्यायन जिन्होंने अपनी किताब ‘वोल्गा से गंगा’ के ‘प्रभा’ नामक अध्याय में स्पष्ट संकेत दिया है कि भगवान राम असल में कौन थे.
राम मंदिर मामले से अलग, राम को लेकर सबसे ज़्यादा बातें उनके जन्म के समय को लेकर होती हैं. इनमें राम का जन्म ईसा से 5000 साल से लेकर लाखों साल पहले तक का बताया जाता है. उनका जन्म अयोध्या में हुआ इसे लेकर अधिकतर लोगों को कोई संदेह नहीं है, लेकिन मई 2015 में मुस्लिम नेता और लेखक अब्दुल रहीम क़ुरैशी ने चौंकाने वाला दावा किया. अपनी किताब ‘फैक्ट्स ऑफ़ अयोध्या एपिसोड’ में उन्होंने कहा कि भगवान राम का जन्म भारत में नहीं, आज के पाकिस्तान में हुआ था. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अधिकारी और पुरातत्वविद रहे जस्सू राम और अन्य विशेषज्ञों के शोधपत्रों के आधार पर उन्होंने कहा कि राम के जन्म के साथ जिस सप्त-सिंधु का ज़िक्र मिलता है वह अयोध्या में नहीं है. ‘सप्त-सिन्धु’ (अथवा सप्त सिंधव) के लिए कहा जाता है कि यह आर्यों का प्रारम्भिक निवास स्थान था. यह भारतवर्ष का उत्तर-पश्चिमी भाग था और कहते हैं कि इसका फैलाव कश्मीर, पाकिस्तान और पंजाब के अधिकांश भाग में था.
किताब में क़ुरैशी ने राम के त्रेतायुग में पैदा होने पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि अयोध्या में ईसा से सातवीं शताब्दी पूर्व ही इंसानों ने रहना शुरू किया जबकि राम के लिए कहा जाता है कि उनका जन्म 1.80 करोड़ साल पहले हुआ था.
यहां तक अब्दुल क़ुरैशी की बात चौंकाती है, लेकिन आगे यह दिलचस्प भी हो जाती है. किताब में क़ुरैशी ने एक नहीं दो अयोध्या होने का दावा किया. वे कहते हैं कि एक अयोध्या का निर्माण राम के परदादा राजा रघु ने करवाया था और दूसरी अयोध्या का निर्माण ख़ुद राम ने करवाया. उन्होंने कहा कि दोनों अयोध्या पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम हिस्से में पड़ने वाले डेरा इस्माइल प्रांत के नज़दीक हैं. क़ुरैशी ने कहा कि फ़ैज़ाबाद जिले में स्थित अयोध्या को 7वीं सदी ईसा पूर्व में साकेत कहा जाता था. उनके मुताबिक़ इस बात की संभावना है कि 11वीं सदी में हिंदुओं ने इसका नाम अयोध्या रखा हो.
राहुल सांकृत्यायन ने यह बताने का प्रयास किया है कि भगवान राम कोई और नहीं बल्कि मौर्य साम्राज्य के सेनापति पुष्यमित्र थे जिन्होंने मौर्य वंश के आखिरी सम्राट बृहदत्त मौर्य को मारकर खुद को राजा घोषित कर दिया था
हिंदू संतों ने कु़रैशी के दावों को नाराज़गी के साथ सिरे से ख़ारिज कर दिया था. लेकिन अयोध्या को साकेत बताने के उनके दावे पर राहुल सांकृत्यायन की किताब ‘वोल्गा से गंगा’ का अध्याय ‘प्रभा’ ध्यान में आता है. उन्होंने यह दावा तो नहीं किया कि अयोध्या पाकिस्तान में थी, लेकिन यह ज़रूर कहा है कि इसका प्राचीन नाम साकेत ही था. वहीं, राम के अस्तित्व को लेकर वे क़ुरैशी से एक क़दम आगे ही जाते हैं. जानकारों के एक वर्ग के मुताबिक सांकृत्यायन ने यह बताने का प्रयास किया है कि भगवान राम कोई और नहीं बल्कि मौर्य साम्राज्य के सेनापति पुष्यमित्र थे जिन्होंने मौर्य वंश के आखिरी सम्राट बृहदत्त मौर्य को मारकर खुद को राजा घोषित कर दिया था. माना जाता है कि पुष्यमित्र ने ही साकेत को सबसे पहले राजधानी का दर्जा दिया था.
सांकृत्यायन लिखते हैं कि (पुष्यमित्र से पहले) साकेत (अयोध्या) कभी किसी राजा की प्रधान राजधानी नहीं बना. उन्होंने लिखा है, ‘पुष्यमित्र या उसके शासन काल में रामायण लिखते हुए वाल्मीकि ने (साकेत की जगह) अयोध्या नाम का प्रचार किया. कोई ताज्जुब नहीं कि वाल्मीकि शुंग वंश (पुष्यमित्र का वंश) के आश्रित कवि रहे हों जैसे कालिदास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के.’ सांकृत्यायन बताते हैं कि महाकवि कालिदास ने अपने काव्य में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को रघुवंश का रघु और उनके पुत्र कुमारसंभव को कुमार कहकर उनकी ख़ूब प्रशंसा की है.
इसी आधार पर राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं, ‘शुंग वंश की राजधानी की महिमा बढ़ाने के लिए ही उन्होंने (वाल्मीकि न) जातकों के दशरथ की राजधानी वाराणसी से बदलकर साकेत या अयोध्या कर दी और राम के रूप में शुंग सम्राट पुष्यमित्र की प्रशंसा की.’ जातक शब्द बौद्ध कथाओं के लिए उपयोग किया जाता है जिनमें बुद्ध के पूर्वजन्मों की बातें होती हैं. कहा जाता है कि रामायण बुद्ध के बाद ‘दशरथ जातक’ से प्रेरणा लेकर लिखी गई. राहुल सांकृत्यायन की किताब के मुताबिक़ पुष्यमित्र के शासनकाल में शुरुआती दिनों में अयोध्या का ख़ासा महत्व था और उस समय भी इसका नाम अयोध्या नहीं बल्कि साकेत था. जानकारों के मुताबिक जब यवन (यूनान) के राजा मिनांडर ने साकेत पर घेरा डाला तो पुष्यमित्र के गुरु पतंजलि ने भी इसी नाम (साकेत) से उसका ज़िक्र किया था.
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