आखिरकार बीते शुक्रवार से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है. आम तौर पर इसकी शुरुआत लुटियन्स दिल्ली में ठंडक महसूस होने के साथ ही हो जाती है, लेकिन इस बार गुजरात चुनाव की वजह से इसे करीब तीन हफ्ते की देरी से बुलाया गया. इस देरी को लेकर विपक्षी दलों ने केंद्र की मोदी सरकार पर सवाल खड़े किए. उन्होंने सरकार पर संसदीय परंपरा को कमजोर करने का आरोप लगाया. दूसरी ओर, सरकार का कहना था कि केंद्र में कांग्रेसनीत यूपीए की सत्ता के समय भी संसद का सत्र आगे खिसकाया जाता रहा है.

शीतकालीन सत्र पांच जनवरी तक चलेगा. बीच में पड़ने वाली छुट्टियां देखें तो संसद कुल 14 दिन बैठेगी. इससे पहले साल 2016 में शीतकालीन सत्र की अवधि 16 नवंबर से लेकर 16 दिसंबर तक थी. बीते साल सत्र के दौरान संसद की कुल 21 बैठकें बुलाई गई थी. इस लिहाज से देखें तो इस साल का सत्र न केवल देरी से बुलाया गया बल्कि, पहले की तुलना में यह छोटा रखा गया है. इसके बावजूद कई मायनों में देश के साथ-साथ कई दूसरे देशों के लोगों के लिए भी यह काफी अहम साबित हो सकता है. सबसे पहले उन अहम विधेयकों की बात करते हैं जो इस सत्र में पेश होने हैं.

तीन तलाक पर विधेयक

इस साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस्लाम धर्म में तीन तलाक प्रथा को गैर-कानूनी करार दिए जाने के बाद केंद्र इस पर एक कानून लाने की तैयारी में है. माना जा रहा है कि सरकार इससे संबंधित विधेयक को संसद के सामने पेश कर सकती है.

बताया जाता है कि प्रस्तावित कानून में तीन तलाक को गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा. इसके अलावा इसमें दोषी के खिलाफ तीन साल तक की सजा तय की जा सकती है. उधर, पीड़ित पक्ष के लिए भी राहत का प्रावधान शामिल किया जा सकता है. इसके तहत पीड़िता द्वारा अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता पाने के मकसद से मजिस्ट्रेट के पास गुहार लगाने का भी प्रावधान शामिल किए जाने की खबर है.

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से संबंधित 123वां संशोधन विधेयक- 2017

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग कानून -1993 की जगह लाए जाने वाले इस संशोधन विधेयक को बीते मानसून सत्र में लोकसभा ने पारित कर दिया था. हालांकि, इसके बाद राज्य सभा ने इसमें संशोधन के साथ इसे पारित किया. इसकी वजह से शीतकालीन सत्र में इसे एक बार फिर पारित किए जाने के लिए लोकसभा में पेश किया जाना है.

इस विधेयक के जरिए आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने का प्रावधान प्रस्तावित है. साथ ही, आयोग को पिछड़ा वर्ग से संबंधित शिकायतों की जांच करने और सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए कदम उठाने के अधिकार दिए जाने की बात कही गई है. बताया जाता है कि इस पांच सदस्यीय आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी.

नागरिक संशोधन विधेयक-2016

बीते साल केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मानसून सत्र में इस विधेयक को लोक सभा में पेश किया था. यह विधेयक 1955 के नागरिक कानून में संशोधन किए जाने के लिए लाया गया है. इसके तहत भारत आने वाले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू , सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासियों के दायरे से बाहर रखा गया है. साथ ही, उन लोगों को भी यह छूट दी गई है जिन्हें सरकार द्वारा पासपोर्ट कानून- 1920 और विदेशी कानून-1946 से राहत प्रदान की गई है. इस संशोधन विधेयक के मुताबिक अवैध प्रवासी वह विदेशी है जो, वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज के बिना भारत आता है, या फिर तय किए गए वक्त के बाद भी भारत नहीं छोड़ता है.

इस विधेयक में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले गैर-मुसलमान समुदाय के लिए भारत की नागरिकता हासिल करने के प्रावधान में भी राहत दी गई है. इसके तहत इनके लिए तय 11 साल की अवधि (भारत में गुजारना अनिवार्य) को घटाकर छह साल कर दिया गया है.

मोटर व्हीकल संशोधन विधेयक -2016

इस संशोधन विधेयक पर लोक सभा अपनी मुहर लगा चुकी है. इसके बाद इसे राज्य सभा से पारित किया जाना है. इस विधेयक के जरिए 1988 के मूल कानून में कई तब्दीलियां की गई हैं. इसके तहत ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने संबंधी नए प्रावधान शामिल किए गए हैं. साथ ही प्रस्तावित कानून प्रावधानों के उल्लंघन का दोषी पाए जाने पर सजा भी तय की गई है. इसके अलावा इसके कानून के रूप में लागू होने पर सरकार को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले वाहनों को वापस लेने का अधिकार दिया गया है.

इस विधेयक में केंद्र सरकार पर मोटर वाहन दुर्घटना कोष बनाने की जिम्मेदारी डाली गई है. इसके तहत सड़क का इस्तेमाल करने वाले सभी लोगों को बीमा की सुविधा देने की बात कही गई है. साथ ही, सड़क दुघर्टना के शिकार लोगों का कैशलेस इलाज करने की योजना लाने का भी प्रस्ताव इसमें शामिल किया गया है. इसके अलावा इसमें हिट एंड रन मामलों में मौत होने पर मुआवजे की रकम को 25,000 रुपये से बढ़ाकर न्यूनतम दो लाख रुपये किए जाने का प्रस्ताव है.

इन महत्वपूर्ण विधेयकों के अलावा बीते दिनों जारी कई अध्यादेशों को कानून की शक्ल देने के लिए इन्हें विधेयक के रूप में पेश किए जाने की संभावना है. इनमें इन्सॉल्वेन्सी एंड बैकरप्सी कोड (संशोधन) और भारतीय वन कानून (संशोधन) शामिल हैं.

ये सब विधेयक पेश होने के अलावा भी संसद के इस शीतकालीन सत्र में काफी कुछ होना है

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट

इस शीतकालीन सत्र में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) केंद्र के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम नमामि गंगे की ऑडिट रिपोर्ट संसद के पटल पर रख सकता है. इसके अलावा खाद्य सुरक्षा और मानक कानून, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा प्लांट (तमिलनाडु) और ट्रेनों में बॉयोटॉयलेट के साथ करों से संबंधित कैग की चार अन्य रिपोर्टो भी संसद में पेश की जा सकती हैं.

इस साल मानसून सत्र के दौरान सीएजी ने रेलवे, रक्षा, फसल बीमा योजना सहित कई क्षेत्रों और कार्यक्रमों पर अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की थी. इसमें सरकारी मशीनरी की लापरवाही और भ्रष्टाचार की बात सामने आने के बाद केंद्र की मोदी सरकार को काफी असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था.

विपक्ष के लिए सरकार को कई मोर्चों पर घेरने का मौका

शीतकालीन सत्र देरी से बुलाने को लेकर विपक्ष पहले से ही सरकार के खिलाफ हमलावर रुख अख्तियार कर चुका है. इसके अलावा वह सरकार को नोटबंदी के नतीजों, जीएसटी को हड़बड़ाहट में बिना पूरी तैयारी से लागू करने, कश्मीर में आतंकवाद और चीन के साथ डोकलाम विवाद जैसे मुद्दों पर घेर सकता है.

दूसरी ओर, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावी नतीजे इस सत्र के दौरान ही सामने आने हैं, इसलिए माना जा रहा है कि इसका असर भी संसदीय कार्यवाही पर पड़ सकता है. यदि चुनावी नतीजे सत्ताधारी भाजपा के खिलाफ आते हैं तो विपक्ष सरकार पर और अधिक आक्रामक हो सकता है. इसके ठीक उलट स्थिति में सरकार नोटबंदी और जीएसटी को लेकर लगाए जा रहे आरोपों को खारिज कर सकती है.

नई भूमिका में पहली परीक्षा

कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी का यह पहला संसदीय सत्र होगा. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वे सरकार को किन मुद्दों पर और कितने असरदार ढंग से घेर पाते हैं. साथ ही, इस सत्र में दो राजनीतिक प्रतिद्वंदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अहमद पटेल एक साथ संसदीय कार्यवाही में हिस्सा लेते हुए दिख सकते हैं.

उधर, राज्यसभा के सभापति के रूप में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू का भी यह पहला संसदीय सत्र होगा. जानकार बताते हैं कि बीते दिनों उनके कई बयान इस ओर इशारा करते दिखाई देते हैं कि वे अब तक भाजपा नेता की भूमिका से पूरी तरह निकल नहीं पाए हैं. ऐसे में राज्य सभा के सभापति के रूप में वे किस तरह की भूमिका निभाएंगे, इस सत्र के दौरान यह साफ हो सकता है.