आमतौर पर माना जाता है कि गांधीजी ने सामाजिक रूप से वंचितों और उपेक्षित तबकों के लिए ‘हरिजन’ शब्द को ही लोकप्रिय बनाया था. कई बार इस कारण आज के दलित युवा गांधीजी की आलोचना भी करते पाए जाते हैं. लेकिन हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि गांधीजी को ‘दलित’ शब्द से परहेज नहीं था. बल्कि एक समय तो वे ‘दलित’ शब्द के ही पक्षधर थे. और यह शब्द या भाव उन्हें स्वामी विवेकानंद को पढ़ते हुए मिला था. विवेकानंद चूंकि ज्यादातर अंग्रेजी में संवाद करते थे, इसलिए उन्होंने पहली बार इन समुदायों के लिए ‘सप्रेस्ड’ शब्द का इस्तेमाल किया था. ‘सप्रेस्ड’ शब्द ‘दलित’ शब्द के लिए निकटतम अंग्रेजी शब्द है.


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1927 में गांधी पूरे देश में दलितों के कल्याण के लिए चंदा इकट्ठा कर एक कोष बना रहे थे. इस काम के लिए सरदार पटेल ने गुजरात राज्य से एक लाख रुपये जुटाने की घोषणा की थी. इस बारे में गुजराती ‘नवजीवन’ में 27 मार्च, 1927 को महात्मा गांधी लिखते हैं :

‘हमें यह पैसा केवल दलित वर्गों की सेवा के लिए चाहिए. दलित वर्गों में ‘अन्त्यज’ और रानीपरज जातियां आती हैं. अब तो जहां तक संभव होगा वहां तक हम ‘अन्त्यजों’ के लिए ‘दलित’ शब्द का ही इस्तेमाल करेंगे. ‘दलित’ शब्द स्वामी श्रद्धानंद ने चलाया था. उसी भाव को व्यक्त करनेवाला एक अंग्रेजी शब्द स्वामी विवेकानंद ने चलाया था. स्वामी विवेकानंद ने कथित अस्पृश्यों को ‘डिप्रेस्ड’ या दबे हुए नहीं, बल्कि ‘सप्रेस्ड’ या दबाए गए कहा. और यह ठीक भी है. तथाकथित उच्च वर्णों ने उन्हें दबाया, इसलिए वे दब गए और दबे हुए रहते हैं. इसके लिए हिंदी शब्द ‘दलित’ है. सारे दलित वर्गों में अस्पृश्य सबसे अधिक दलित कहे जा सकते हैं. ‘रानीपरज’ (काली) और चौधरा आदि ऐसी अन्य जातियां भी दलित ही हैं.’

महात्मा गांधी ने विवेकानंद के हवाले से ऐसा कोई पहली बार नहीं कहा था. इससे पहले 27 अक्टूबर, 1920 को भी ‘यंग इंडिया’ में उन्होंने लिखा था, ‘स्वामी विवेकानंद ‘पंचमों’ को ‘दलित जातियां’ कहा करते थे. स्वामी विवेकानंद द्वारा दिया गया यह विशेषण अन्य विशेषणों की अपेक्षा निस्संदेह अधिक सटीक है. हमने उनका दलन किया है और परिणामतः स्वयं ही पतन के गर्त में जा गिरे. गोखले ने जब यह कहा था कि ‘आज ब्रिटिश साम्राज्य में हमारी स्थिति अछूतों-जैसी हो गई है’ तो गोखले के इन शब्दों का अर्थ यही था कि यह ‘दलितों’ का हमारे द्वारा किए गए ‘दलन’ के बदले में हमारे प्रति न्यायी ईश्वर द्वारा किया गया न्याय ही है.’

इसके बाद 12 मार्च, 1925 को त्रावणकोर की नगरपालिका को संबोधित करते हुए भी गांधी ने विवेकानंद के हवाले से ही फिर से ऐसा कहा था, ‘मैं जानता हूं कि इस राज्य ने उनलोगों के लिए बहुत कुछ किया है जिन्हें भ्रमवश नीची जाति का कहा जाता है. मैं उन्हें नीची जाति का कहना गलत मानता हूं. उनके लिए सही शब्द होगा ‘दलित जाति’. स्वामी विवेकानंद ने हमें याद दिलाया था कि कथित ऊंची जातिवालों ने ही अपने में से कुछ लोगों को दलित किया था और ऐसा करके वे ऊंची जाति स्वयं अपने आप में नीच हो गए थे. आप अपने ही वर्ग के मनुष्यों को नीचा करके खुद ऊंचे नहीं बने रह सकते.’

दिलचस्प है कि आज भले ही ‘हरिजन’ शब्द को अपमानजनक मानकर कुछे दलित राजनेता महात्मा गांधी की आलोचना करते हों, लेकिन महात्मा गांधी ने हरिजन शब्द को चुनते हुए भी ‘सप्रेस्ड’ या ‘दलित’ शब्द को छोड़ा नहीं था. गांधी को ‘दलित’ शब्द से परहेज नहीं था. लेकिन ‘हरिजन’ शब्द को वे थोड़ा अधिक सकारात्मक और सुंदर मानते थे. 27 मार्च, 1936 को कुछ आर्य-समाजी हरिजन-सेवकों ने गांधी से पूछा- ‘पर लोग हमें हरिजन क्यों कहें, हिंदू क्यों नहीं?’

इसके जवाब में गांधी ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि आपमें से कुछ थोड़े से लोगों को हरिजन नाम बुरा लगता है. पर इस नाम की उत्पत्ति आपको जान लेनी चाहिए. आपलोगों को पहले ‘दलितवर्ग’ या ‘अस्पृश्य’ या ‘अछूत’ कहा जाता था. ये सब नाम स्वभावतः आपमें से अधिकांश लोगों को बुरे लगते थे, अपमानजनक से मालूम होते थे. आपमें से कुछ लोगों ने इस पर अपना विरोध भी प्रकट किया और मुझे एक अच्छा सा नाम ढूंढ़ने के लिए लिखा. अंग्रेजी में ‘डिप्रेस्ड’ से बेहतर शब्द ‘सप्रेस्ड’ मैंने ले लिया था, पर जबकि मैं अच्छा हिंदुस्तानी नाम सोच रहा था, एक मित्र ने मुझे ‘हरिजन’ शब्द बतलाया...यह शब्द उन्होंने एक महान संत (नरसिंह मेहता) के भजन से लिया था. यह शब्द मुझे जंच गया. क्योंकि यह आपकी दीन-दशा को बड़ी अच्छी तरह व्यक्त करता था, और साथ ही, इसमें कोई अपमान जैसी बात भी नहीं थी.’