बीते मंगलवार को मोदी सरकार ने हज यात्रा पर दी जाने वाली सब्सिडी खत्म कर दी. अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि यह फैसला बगैर किसी तुष्टिकरण के अल्पसंख्यकों का सशक्तिकरण करने की की नीति के तहत किया गया है. उन्होंने हज सब्सिडी के रूप में दी जा रही रकम का इस्तेमाल अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं की शिक्षा पर खर्च किए जाने की बात कही है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साल 2012 के एक आदेश में केंद्र सरकार को धीरे-धीरे अगले 10 वर्षों में इस सब्सिडी को खत्म करने के लिए कहा था. केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2012 में हज सब्सिडी के मद में 837 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे जो साल 2016 में घटकर 405 करोड़ रुपये रह गई थी. बीते साल यह रकम केवल 200 करोड़ रुपये थी.
बताया जाता है कि इस साल करीब पौने दो लाख लोग हज यात्रा पर सऊदी अरब जाने वाले हैं. इनमें से करीब 1.25 लाख हज कमेटी के जरिए इस धार्मिक यात्रा को करने वाले हैं. प्रावधानों के मुताबिक इस कमेटी के जरिए यात्रा करने वाले ही सब्सिडी के पात्र होते थे. इसके अलावा सब्सिडी हासिल करने के लिए यात्रियों को एयर इंडिया से ही सऊदी अरब जाना और वहां से आना होता है. हज यात्रा के वक्त एयर इंडिया के यात्री किराए में बढ़ोतरी देखने को मिलती है. साथ ही, हज यात्रा से वापसी का किराया भी जाने की तुलना में 50 फीसदी तक अधिक रखा जाता है. सरकार के फैसले के बाद हैदराबाद से एआईएमआईएम के लोक सभा सांसद असदुद्दीन औवेसी ने कहा कि हज सब्सिडी के नाम पर एयर इंडिया को पैसा मिलता है.
इस तरह की बाकी सब्सिडियों का क्या?
केंद्र सरकार के इस फैसले का मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहित करीब-करीब सभी ने स्वागत किया है. हालांकि, इसके साथ केंद्र सहित भाजपा शासित राज्यों में सरकारों द्वारा हिंदू धर्म से संबंधित आयोजनों पर जनता की गाढ़ी कमाई में से करोड़ों रुपये खर्च किए जाने को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. केंद्र की इस ताजा पहल का स्वागत करने वाले कई जानकारों का भी मानना है कि अगर केंद्र सरकार हज सब्सिडी को खत्म करने एक विशेष समुदाय के सशक्तिकरण की बात कर रही है तो इससे देश की 80 फीसदी हिंदू आबादी सहित दूसरे समुदायों को इस सशक्तिकरण से अलग क्यों रखा जा रहा है. क्यों नहीं कुम्भ मेले सहित अन्य धार्मिक आयोजनों पर खर्च होने वाली भारी रकम को बुनियादी सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर खर्च किया जाए?
असदुद्दीन औवेसी ने हज सब्सिडी खत्म करने का स्वागत करने के साथ कुंभ मेले (इलाहाबाद-2013) पर सरकारी खर्च (1150 करोड़ रु) को लेकर सवाल उठाया है. साथ ही, बीते मंगलवार को उन्होंने ट्वीट कर मोदी सरकार से पूछा कि क्या मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को मिलने वाली डेढ़ लाख रुपये की सब्सिडी रोक दी जाएगी. इसके अलावा उन्होंने मोदी सरकार द्वारा मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार को सिंहस्थ महाकुंभ के लिए 100 करोड़ रुपये दिए जाने पर भी सवाल उठाए. साथ ही, हैदराबाद के सांसद ने इस बहाने भाजपा शासित राज्यों- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा पर भी निशाना साधा. असदुद्दीन औवेसी ने कहा कि क्या भाजपा योगी आदित्यनाथ सरकार को अयोध्या, काशी, मथुरा के तीर्थयात्रियों पर 800 करोड़ रुपये खर्च करने से रोकेगी. इसके आगे उन्होंने हरियाणा सरकार द्वारा डेरा सच्चा सौदा समिति को एक करोड़ रुपये देने और मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सिंहस्थ कुंभ पर 3400 करोड़ रुपये खर्च को लेकर भी भाजपा को घेरे में लेने की कोशिश की.
उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ सरकार ने अयोध्या में सरयू नदी के किनारे 108 फुट लंबी राम की प्रतिमा स्थापित करने का ऐलान किया है. बताया जाता है कि यह पूरी दुनिया में राम की सबसे बड़ी मूर्ति होगी. इसके अलावा बीते साल आदित्यनाथ सरकार ने त्रेतायुग की थीम पर अयोध्या में दीपावली का आयोजन किया था. बताया जाता है कि इस मौके पर 1.71 लाख दिए जलाए गए थे. इससे पहले अगस्त, 2017 में उन्होंने गाजियाबाद में करीब 100 करोड़ रुपये की लागत वाले ‘कैलाश मानसरोवर भवन’ की नींव रखी थी. इसके अलावा राज्य सरकार ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले व्यक्ति को 50,000 रुपये की जगह एक लाख रुपये सब्सिडी देने का ऐलान किया गया है. साथ ही, आदित्यनाथ सरकार ने साल 2019 में इलाहाबाद अर्द्धकुंभ के लिए 2500 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला किया है.
दूसरी ओर, साल 2016-17 के मुकाबले चालू वित्तीय वर्ष के बजट में आदित्यनाथ सरकार ने शिक्षा पर कम रकम आवंटित की. बीते वित्तीय वर्ष में अखिलेश यादव सरकार ने माध्यमिक शिक्षा के लिए 9,990 करोड़ रुपये आवंटित किए थे. दूसरी ओर, आदित्यनाथ सरकार ने इसके लिए 9,414 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की है. दूसरी ओर, बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में हर साल प्रदेश में जापानी बुखार से सैकड़ों बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं. इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं कि सरकार धार्मिक आयोजनों के लिए दी जाने वाली सब्सिडियों का पैसा इस समस्या से निपटने के लिए खर्च क्यों नहीं करती.
न बाकी राज्य पीछे, न पार्टियां
उधर, बीते साल उत्तराखंड की सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा सरकार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय मातृ-पितृ तीर्थाटन योजना’ की शुरुआत की. इससे पहले कांग्रेस के शासन में मेरे बुजुर्ग-मेरे तीर्थ योजना चलाई जा रही थी. बताया जाता है कि इस योजना के तहत राज्य के कई धार्मिक स्थलों पर बुजुर्गों (65 साल से अधिक) को तीर्थाटन कराने का प्रावधान है. इसके अलावा बीते साल के बजट में हरिद्वार में हर साल आयोजित होने वाले कांवड़ मेले के लिए 50 लाख रुपये की रकम आवंटित की गई थी.
उत्तराखंड से पहले मध्य प्रदेश सरकार राज्य के बुजुर्गों को धार्मिक स्थलों की यात्रा कराने के लिए मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना चलाती आ रही है. बीते साल सितंबर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस योजना के लाभार्थियों की संख्या प्रतिवर्ष दो लाख करने का ऐलान किया था. बताया जाता है कि बीते पांच वर्षों में पांच लाख से अधिक लोगों ने इस योजना का लाभ उठाया है. साल 2017-18 के बजट में इस योजना के तहत गंगा सागर, गिरनार जी और पटना साहिब सहित राज्य के कई स्थलों को जोड़ने की बात की गई. इसके अलावा कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए अधिकतम सब्सिडी को 30,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया. साथ ही, ओंकारेश्वर में वेदांत पीठ की स्थापना के लिए भी 10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए.
धार्मिक आयोजनों को लेकर हरियाणा से पीछे नहीं है. दिसंबर, 2016 में राज्य की भाजपा सरकार ने कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का आयोजन किया था. सरकार द्वारा एक आरटीआई के जवाब में दी गई जानकारी के मुताबिक इस आयोजन पर सरकारी खजाने से 15 करोड़ रुपये खर्च किए थे. इनमें से करीब 3.80 लाख रुपये गीता की 10 प्रतियां खरीदने में लगाए गए. इसके अलावा दिल्ली से भाजपा अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी को एक कार्यक्रम के लिए 10 लाख रुपये दिए गए.
10 #Gita purchased for Rs. 3,79,500 By .@mlkhattar Govt. At #gitajayanti
— Dushyant Chautala B- (@Dchautala) January 7, 2018
Wah .@narendramodi ji what an Honest government we have in #Haryana.
Gita ke naam pe bhi chori
Uper Se Sina Jori #Scam .@cmohry pic.twitter.com/iUYsVQ3di4
दूसरी ओर, मध्य प्रदेश की तर्ज पर ही हरियाणा सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए तीर्थ दर्शन योजना शुरू करने की बात की है. इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवार के वरिष्ठ सदस्यों की यात्रा का पूरा खर्च सरकार उठाएगी. इसके अलावा अन्य वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी 70 फीसदी खर्च सरकार ही उठाएगी. इस योजना का लाभ हर जिले की एक लाख आबादी पर एक को दिए जाने की बात कही गई है.
भाजपा शासित राज्य राजस्थान में भी अन्य सरकारों की तरह हिंदू धार्मिक स्थलों की तीर्थाटन से संबंधित कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं. इनमें सिंधु दर्शन तीर्थ यात्रा (लद्दाख) योजना के तहत प्रति व्यक्ति द्वारा खर्च की गई रकम का आधा हिस्सा (अधिकतम 10,000 रुपये) सरकार वहन करती है. इसके अलावा दीनदयाल उपाध्याय वरिष्ठ तीर्थयात्री योजना के तहत 20,000 लोगों को प्रतिवर्ष तीर्थाटन करवाया जाता है. उत्तर प्रदेश की तरह राजस्थान सरकार भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले को एक लाख रुपये की मदद देती है. राजस्थान की तरह असम और कर्नाटक में इस तरह की सब्सिडियां दी जाती हैं, फिर भले ही सरकार भाजपा की हो या कांग्रेस की.
बिहार की राजधानी पटना में नीतीश सरकार ने साल 2016 में सिखों के 350वें प्रकाश पर्व को पूरे धूमधाम से मनाया. इसके अलावा बीते साल भी इसके समापन समारोह शुकराना की बड़े स्तर पर तैयारी की गई थी. बिहार के अलावा आंध्र प्रदेश की एन चंद्रबाबू नायडू की सरकार भी साल 2015 में गोदावरी पुष्करम पर्व के लिए 570 करोड़ रुपये जारी किए थे. इन राज्यों के अलावा देश में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने भी बुर्जुर्गों के लिए तीर्थ दर्शन योजना पर मुहर लगाई है. इसके तहत एक साल में 77,000 वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थाटन कराने की बात कही गई है. तमिलनाडु में मानसरोवर यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है. साथ ही, यरुशलम की यात्रा के लिए ईसाइयों को भी यह सुविधा मिलती है.
अपने एक लेख में वरिष्ठ पत्रकार स्वामीनाथन अय्यर हज सब्सिडी खत्म करने के सरकार के फैसले को काबिले तारीफ बताते हैं. लेकिन वे साथ ही एक सवाल भी उठाते हैं. वे लिखते हैं, ‘संविधान कहता है कि भारत धर्मनिरपेक्ष है जिसमें धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए. इसलिए राज्य को सभी धार्मिक समुदायों से दूरी बनाकर चलनी चाहिए और किसी को सब्सिडी नहीं देनी चाहिए.’
स्वामीनाथ अय्यर आगे लिखते हैं, ‘हज सब्सिडी हमेशा से इस सिद्धांत के खिलाफ थी. इसलिए हैरत नहीं कि 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे चरणबद्ध तरीके से हटाने को कहा. भाजपा ने हमेशा इस सब्सिडी को अल्पसंख्यक तुष्टीकरण कहा. अब मोदी सरकार ने इसे हटाने का फैसला कर लिया है. लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को निश्चित रूप से किसी भी धर्म के अनुयायी को सब्सिडी नहीं देनी चाहिए.’
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