मैं यहां दो स्थितियों की बात करूंगा. एक स्थिति तो यह बनती है कि कोई पूरे होश में हो, और दूसरी यह कि कोई शख्स एकदम बेहोश हो. इन दोनों ही स्थितियों से आप भलीभांति परिचित हैं और आपको यह विश्वास भी है कि आप बेहोश आदमी को तो पहचान ही सकते हैं. दरअसल आप यह समझते हैं कि आदमी अगर होश में है तो वह आसानी से दिख ही जाता है. अब इसके अलावा जो भी है वह बेहोश है. कितना सरल है न सबकुछ? परंतु, वास्तव में सबकुछ ऐसा सरल है नहीं.
आदमी का ‘होश’ इतनी साधारण बात नहीं है. होश और बेहोशी के बीच बहुत-सी और स्थितियां भी हो सकती हैं जहां आदमी न तो पूरी तरह होश में होता है, न ही बेहोश. मान लें कि कोई आदमी एक बीच की स्थिति में है. वह बेहोश नहीं है, लेकिन पूरी तरह होश में भी नहीं है. तब? यही वास्तव में सबसे बड़े भ्रम की स्थिति होती है. ऐसे में, बाज वक्त स्वयं डॉक्टर भी ठीक से तय नहीं कर पाता कि आखिर यह हो क्या रहा है? इसी स्थिति को मेडिकल की भाषा में डेलीरियम कहते हैं. आम जनता की भाषा में इसे गफलत कहते हैं. हम इसे कुछ यूं कहते हैं कि यार, फलाने साहब तो कल से बड़ी गफलत में हैं.

तो हम आज इसी की बात करते हैं. आखिरकार यह डेलीरियम होता क्या है? इसे कैसे पहचानते हैं? क्या लक्षण होते हैं इसके? इसके कारण क्या होते हैं? इसका जोखिम किन लोगों को ज्यादा होता है? यह सब जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है. इसी ज्ञान के कारण अगर आप कभी समय रहते किसी परिचित में इस बीमारी को पकड़ पाये तो यह उसकी बहुत बड़ी मदद होगी.
एक उदाहरण से समझें.
मान लीजिए कि आपके घर परिवार में कोई वृद्ध सदस्य है. साठ-पैंसठ साल की उम्र वाला, या उससे ज्यादा. कुछ घंटे पहले तक तो वह एकदम ठीक था परन्तु अब अचानक ही, अकारण बहुत ज्यादा बेचैन और ओवर एक्टिव सा हो गया लग रहा है. वह ज्यादा बातें भी कर रहा है और बहकी-बहकी बातें भी कर रहा है. बातों में कुछ तालमेल भी नहीं है. तो ऐसे में आप तुरंत सतर्क हो जायें. यह डेलीरियम हो सकता है.
इसके ठीक विपरीत यह भी हो सकता है कि वह अचानक ही कुछ ज्यादा ही सो रहा हो. हिलाने-डुलाने पर ही थोड़ी देर को आंख खोलता हो परंतु फिर से वापस सो जाता हो. एक और स्थिति हो सकती है कि वह दिखता तो होश में हो परंतु न तो वह अपने आसपास की जगह को ठीक से पहचान पा रहा हो, न ही परिचित लोगों को ही. उसकी बॉडी लैंग्वेज से ऐसा लग सकता है कि वह शायद समझ ही नहीं पा रहा कि आसपास क्या चल रहा है.
फिर?
शायद यह सब देखकर हम यह मान लें कि आदरणीय बुढ़ापे के कारण सनक गए हैं, बस. ऐसे में हो सकता है कि हम उनकी सनक को इज्जत देते हुए, टेक्टफुली उन्हें समझा-बुझाकर, या कोई दवा खिलाकर उनको धीरे से सुला दें.
लेकिन यही बात बाद में खतरनाक साबित होती है. सोते-सोते ही उनकी बीमारी और बढ़ सकती है. ऐसे में बाद में जाकर हमें पता चल सकता है कि शुरुआत में वे जो बहकी-बहकी सी बातें कर रहे थे या उनका व्यवहार थोड़ा अलग सा लग रहा था वह वास्तव में किसी बड़ी बीमारी की चेतावनी थी जिसे हमने तब गलती से अनदेखा कर दिया.
आखिर किस बात की चेतावनी हो सकती है, यह गफलत या डेलीरियम?
यह कई बेहद सीरियस बीमारियों की चेतावनी हो सकती है. इसीलिए यदि कोई शख्स अचानक ही उपरोक्त व्यवहार करता दिखे तो मान लें कि उसके शरीर में कहीं न कहीं कुछ बहुत गलत हो रहा है, जिसे जांच-पड़ताल द्वारा तुरंत पकड़ना बेहद जरूरी है वरना बाद में तो बहुत देर हो जायेगी. गफलत या डेलीरियम के हर मरीज को तुरंत एक्सपर्ट मेडिकल जांच की आवश्यकता होती है. यदि हम यह करने में चूक गए तो फिर समय गुजरने के साथ उसकी स्थिति और जटिल भी हो सकती है.
डेलीरियम का इशारा किन जटिलताओं की तरफ हो सकता है?
यह इस बात पर निर्भर होता है कि आदमी डेलीरियम में जा क्यों रहा है? डेलीरियम या गफलत कई कारणों से पैदा हो सकती है. तो पहले डेलीरियम के महत्वपूर्ण कारणों का ज्ञान जरूरी है.
आइए जानते हैं कि डेलीरियम के क्या कारण हो सकते हैं :
1. यह किसी दवा का दुष्प्रभाव हो सकता है.
पता करें कि संबंधित व्यक्ति कोई दवा तो नहीं ले रहा था? केवल नशे के साइड इफेक्ट वाली दवाइयां ही नहीं बल्कि कोई साधारण सी दवा भी ऐसा असर पैदा कर सकती है. जी हां, कोई भी दवा. तो यह पता करें कि इनको इधर कोई नई दवा तो चालू नहीं की गई थी? मैं फिर बता दूं कि हर दवा ऐसा कर सकती है. हर ऐसी नई-नई शुरू की गई दवा को फिर डाक्टर को बताकर बंद कर देना चाहिए.
2. यह सब किसी इन्फेक्शन का नतीजा भी हो सकता है
थोड़ा पता लगाइए कि मरीज को कुछ समय से हल्का या तेज बुखार, पेशाब में रुकावट या जलन, पेट में दर्द, खांसी या श्वास की कोई हल्की सी भी तकलीफ तो नहीं थी? बिल्कुल छोटी सी लगती तकलीफें भी किसी गंभीर इन्फेक्शन की निशानी हो सकती हैं. ऐसे यूरो या गेस्ट्रो इन्फेक्शन ही पूरे शरीर में फैलकर सेप्सिस नामक स्थिति पैदा कर सकते हैं जो जानलेवा साबित हो सकती है. और सेप्सिस का एक बड़ा लक्षण ऐसी गफलत (डेलीरियम) भी हो सकती है.
निमोनिया, यूरिनल इन्फेक्शन, गेस्ट्रो या चमड़ी तक के साधारण से प्रतीत होते इन्फेक्शन भी, खासकर बूढ़े लोगों में अचानक ही बिगड़कर सेप्सिस में तब्दील हो सकते हैं. इसीलिए अपने बूढ़े परिवारजनों में से कभी-भी कोई डेलीरियम में जाता दिखे तो सतर्क हो जायें. यह तेजी से बिगड़कर जानलेवा हो जाने वाली स्थिति हो सकती है.
3. डेलीरियम कुछ अन्य बेहद सीरियस बीमारियों का पहला लक्षण भी हो सकता है.
यह किडनी या लिवर के फेल होने की पहली चेतावनी तक हो सकती है. यह दिमाग की अनेक बीमारियों का भी लक्षण हो सकता है. दिमाग की कोई पुरानी हल्की चोट भी खून के धीरे-धीरे रिसाव से क्रोनिक सब ड्यूरल हीमेटोमा में बदल सकता है जो केवल धीरे-धीरे बढ़ती गफलत के तौर पर सामने आ सकती है.
इसी तरह दिमाग में होने वाले इन्फेक्शन (मेनिंजाइटिस और इंसैफेलाइटिस) भी ऐसे ही डेलीरियम के रूप में पहली चेतावनी हो सकते हैं.
4. शरीर में कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम आदि के घटने-बढ़ने मात्र से भी ऐसा हो सकता है.
समय रहते अगर इन तत्वों की कमी-बढ़त पकड़ में आ जाए इसका पूरा इलाज भी संभव है, जबकि देर हो जाने पर ये जानलेवा साबित हो सकती है. शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) और बहुत अधिक पानी रुके होने पर भी गफलत पैदा हो सकती है. इन सबका भी यदि समय पर ठीक से इलाज न हो तो ये सब भी जानलेवा साबित हो सकते हैं.
5. यदि आपका कोई वृद्ध रिश्तेदार आईसीयू में भर्ती है, उसे पेशाब की केथेटर आदि भी लगी है तो उसके डेलीरियम में जाने की रिस्क ज्यादा है. यदि उसे किसी तरह की दवाएं भी दी जा रही हैं तब तो डेलीरियम की रिस्क और भी बढ़ जाती है. यह पाया गया है कि हिप की सर्जरी के बाद के पोस्ट ऑपरेटिंग वक्फे में डेलीरियम कुछ ज्यादा ही देखा जाता है. हालांकि इसका कोई सीधा सरल कारण अभी तक ज्ञात नहीं है.
तो? इतने ज्ञान का क्या हासिल है?
बस दो बातें. एक तो इस ज्ञान के द्वारा डेलीरियम को पहचानना जानें. दूसरा कि इसे कभी-भी नजरअंदाज न करें. कभी किसी में आपको ऐसा लगे तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें. याद रखें कि इसे नजरअंदाज करना बड़ा महंगा साबित हो सकता है.
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