इस साल जून में न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंदा आर्डन ने ऑकलैंड के एक अस्पताल में बेटी को जन्म दिया. आर्डन ने जनवरी में घोषणा की थी कि वे मां बनने वाली हैं. उस समय भी दुनियाभर में उनकी काफी चर्चा हुई थी. इस दौरान कई लोगों ने पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं बेनजीर भुट्टो को भी याद किया. दरअसल वे पहली राष्ट्रप्रमुख थीं, जो अपने पद पर रहने के दौरान मां बनी थीं. हालांकि आज बेनजीर भुट्टो को याद करने की एक वजह यह भी है कि आज उनकी पुण्यतिथि है.

वैसे तो किसी आम महिला के लिए भी मां बनना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन अगर हम राजनीति के क्षेत्र की और वह भी देश का शीर्ष कार्यकारी पद संभालने वाली महिला की बात करें तो ये चुनौतियां कई गुना बढ़ जाती हैं. बेनजीर भुट्टो ने मां बनने के दौरान पेश आई ऐसी ही मुश्किल परिस्थितियों का जिक्र अपनी आत्मकथा में किया है. राजपाल प्रकाशन द्वारा हिंदी में प्रकाशित उनकी आत्मकथा ‘मेरी आपबीती’ के नीचे दिए गए इस अंश को पढ़कर यह भी पता चलता है कि पाकिस्तान जैसे पुरुष प्रधान और रूढ़िवादी देश में बेनज़ीर के लिए राजनीति में आगे बढ़ना भी अपने आप में कितना मुश्किल था.
मैंने जितनी भी राजनीतिक लड़ाइयां लड़ीं, उनका कुछ न कुछ उद्देश्य था. उनका उद्देश्य सामाजिक न्याय और उदारवाद के पक्ष में ठहरता था. सचमुच ये मुद्दे ऐसे हैं, जिनके लिए लड़ा ही जाना चाहिए. लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि मेरी राजनीतिक यात्रा ज्यादा चुनौती भरी इसलिए रही है क्योंकि मैं एक औरत हूं. यह साफ है कि आज के समय में एक औरत के लिए, चाहे वह कहीं भी रह रही हो, यह आसान काम नहीं है. फिर भी, हम औरतों को जी-तोड़ मेहनत करके यह सिद्ध कर देना है कि हम पुरुषों से किसी भी मायने में कमतर नहीं हैं.
हमें ज्यादा देर तक काम करना होगा और कुर्बानियां देनी होंगी. हमें खुद को किसी भी तरह के भावनात्मक आक्रमण से बचाना होगा, जो ज्यादातर अपने परिवार के लोगों द्वारा ही हम पर दुर्भावनापूर्ण ढंग से किए जाते हैं. यह दुख की बात है कि बहुत से लोग अब भी यही मानते हैं कि औरतों की जिंदगी की डोर मर्दो के ही हाथ में होती है, इस तरह से वह मर्दो पर दबाव डालकर औरत तक पहुंच सकते हैं.
चाहे कुछ भी हो, हमें समाज के दोहरे मापदण्ड के लिए शिकायत नहीं करनी है, बल्कि उन्हें जीतने की तैयारी करनी है. हमें ऐसा हर हाल में करना है, भले ही हमें मर्दों के मुकाबले दोगुनी मेहनत करनी पड़े और दोगुने समय तक काम करना पड़े. मैं अपनी मां की शुक्रगज़ार हूं कि उन्होंने मुझे यह सिखाया कि मां बनने की तैयारी एक शारीरिक क्रिया है और उसे रोज़मर्रा के कामकाज में बाधा नहीं बनने देना चाहिए. अपनी मां की अपेक्षा पर खरी उतरने के लिए मैंने हर बार मां बनने की तैयारी के दौरान किसी भी शारीरिक या भावनात्मक लक्षण को अपना रास्ता नहीं रोकने दिया. फिर भी, मुझे इस बात का एहसास था कि यह ऐसा प्रसंग है जिसे हमारी पारिवारिक चर्चा से जोड़कर देखा जाएगा, इसलिए मैंने अपने इस दौर के विवरण को पूरी तरह गोपनीय रखा. मैं खुशकिस्मत थी कि मुझे डॉ फ्रेडी सेतना जैसी डॉक्टर की देख-रेख मिली थी. उन्होंने भी इस मामले को सिर्फ अपने तक ही सीमित रखा.
बिलावल, बख्तावर और आसिफ़ा, मेरी तीन प्यारी-प्यारी संतानें है. ये मुझे खुशी और गौरव का भाव देती हैं. जब 1988 में, मैं अपने पहले बच्चे के जन्म की उम्मीद में थी और बिलावल होने वाला था, तब फौजी तानाशाह ने संसद भंग करके आम चुनावों की घोषणा कर दी थी. वह और उसके आला फौजी अफसर सोचते थे कि ऐसी हालत में कोई औरत कैसे चुनावी सभाओं के लिए निकल पाएगी, लेकिन वे गलत साबित हुए. मैं निकली और मैंने चुनाव अभियान में हिस्सा भी लिया. मैं अपने इस काम में लगी रही और मैंने वह चुनाव जीता, जो 21 सितम्बर, 1988 को बिलावल के जन्म के बस कुछ ही दिनों बाद कराए गए. बिलावल का पैदा होना मेरी जिंदगी के लिए एक बेहद खुशी का दिन था, साथ ही उन चुनावों का जीतना भी, जिनके बारे में अटकलें थी कि एक मुस्लिम औरत लोगों के दिल और उनकी सोच को कभी नहीं जीत पाएगी. ये दोनों ही बड़ी खुशियां मुझे मेरी जिंदगी में एक साथ मिलीं.
मेरे प्रधानमंत्री बनने के बाद मेरी मां ने जल्दी मचाई कि मैं दूसरे बच्चे की तैयारी करू. उनका सोचना था कि मांओं को बच्चे जनने का काम जल्दी-जल्दी पूरा कर लेना चाहिए, ताकि उनके पास आगे उनको पालने-पोसने की चुनौतियों के लिए काफी समय रहे. मैंने उनकी सलाह मान ली थी.
जब मेरे दूसरे बच्चे के पेट में होने की खबर अभी गुप्त ही थी, मेरे फौजी जनरल लोगों ने तय किया कि मुझे फौजियों से बातचीत करने के लिए पाकिस्तान की सबसे ऊंची चोटी सियाचिन ग्लेशियर जाना चाहिए. भारत और पाकिस्तान इसी सियाचिन सरहद पर 1987 में एक युद्ध लड़ चुके थे और 1999 में करीब-करीब युद्ध की स्थिति फिर आ गई थी. मुझे चिंता हुई कि उस ऊंचाई पर कम ऑक्सीजन के कारण कहीं मेरे अजन्मे बच्चे को कोई नुकसान न हो. मेरे डॉक्टर ने मेरा हौसला बढ़ाया कि मैं जा सकती हूं. उसने समझाया कि ऑक्सीजन की कमी का असर मां पर पड़ता है, जिसे ऑक्सीजन मास्क दिया जा सकता है और बच्चा सुरक्षित रहता है. खैर, ढेरों आशंकाओं के बावजूद भी मैं वहां गई.
यह हमारे फौजी दस्तों के लिए बहुत हौसला बढ़ाने वाली बात थी कि उनकी प्रधानमंत्री उनसे मिलने, बात करने सियाचिन ग्लेशियर की उस ऊंचाई तक आई हैं. वह एक दिलकश नज़ारा था. सब तरफ बर्फ की सफेदी थी जो दूर क्षितिज पर नीचे आसमान में मिलती नज़र आ रही थी. आगे सीमा पर मुझे हिंदुस्तानी फौजों की चौकियां नज़र आ रही थी, जिनका सीधा मतलब था कि वहां शांति का एहसास रखना, धोखा खाने जैसा है.
जैसे ही राजनीतिक विपक्ष को यह पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं, बेमतलब शोर-शराबा शुरू हो गया. उन्होंने राष्ट्रपति पर दबाव डाला कि मुझे बर्खास्त कर दिया जाए. उन्होंने तर्क दिया कि पाकिस्तान के सरकारी नियमों में इस बात की गुंजाइश नहीं है कि प्रधानमंत्री संतान को जन्म देने के लिए छुट्टी पर जाएं. उन्होंने कहा कि प्रसव के दौरान मैं सक्रिय नहीं रहूंगी और सरकारी काम-काज को परेशानी का सामना करना पड़ेगा. इसलिए गैर-संवैधानिक रूप से प्रेसिडेंट पर दबाव डाला गया कि इस सरकार को बर्खास्त करके एक अंतरिम सरकार बनाए जाने के लिए नए चुनाव कराए जाएं.
मैंने विपक्ष की इस मांग को ठुकरा दिया. मैंने दिखाया कि कामकाजी स्त्रियों के लिए प्रसव के दौरान छुट्टी की व्यवस्था है, जिसे मेरे पिता के समय में लागू किया गया था. मैंने जोर देकर कहा कि यह नियम प्रधानमंत्री पर भी लागू होता है, भले ही ऐसा स्पष्ट रूप से सरकार चलाने वाले लोगों के बारे में कहा नहीं गया है. मेरी सरकार के लोग मेरे साथ थे. कहा गया कि जिस स्थिति में पुरुष प्रधानमंत्री हटाया नहीं जा सकता, उस स्थिति में महिला प्रधानमंत्री को भी हटाए जाने का प्रश्न नहीं उठता.
विपक्ष जिद पर था और उसने तय किया कि मुझे हटाए जाने के लिए हड़ताल की जाएगी. अब मुझे भी अपनी योजनाएं बनानी थी. मेरे पिता ने मुझे सिखाया था कि राजनीति में समय का बड़ा महत्व है. मैंने उनसे इजाजत लेकर यह तय किया कि मैं उसी दिन, जिस दिन हड़ताल की घोषणा थी, ऑपरेशन से बच्चे को जन्म दे दूंगी.
मैं नहीं चाहती थी कि कोई पारम्परिक बात, जो प्रसव से जुड़ी हुई हो, मेरे काम में बाधा बने. इसलिए अपनी कैसी भी हालत के बावजूद मैंने शायद किसी मर्द प्रधानमंत्री से भी ज्यादा काम निपटाया, उसी दिन अपने सांसदों के साथ एक मीटिंग की और कराची के लिए चल पड़ी. सवेरे मैं बहुत जल्दी उठी और अपनी एक सहेली के साथ, उसकी कार में बैठकर निकल गई. वह एक बहुत छोटी कार थी, उस काली मर्सडीज़ से अलग, जिसे मैं सरकारी काम-काज के दौरान इस्तेमाल करती थी. ड्यूटी पर हाजिर पुलिस वाले ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया. उनका ध्यान मेरे घर से बाहर जाने वाली कारों के बजाय, मेरे घर में आने वाली कारों की तरफ ज्यादा होता था.
जब मेरी कार अस्पताल पहुंची, जहां डॉक्टर सेतना हमारा इंतज़ार कर रही थीं, मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था. जब मैं कार से उतरी, मैंने अस्पताल के लोगों के चेहरों पर गहरी हैरत का भाव देखा. मुझे पता था कि यह खबर मोबाइल फोनों के ज़रिये तेज़ी से फैलनी शुरू हो जाएगी क्योंकि दक्षिण पूर्व और मध्य एशिया में मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाला पाकिस्तान पहला देश था. मैंने जल्दी से हॉल का रास्ता पार किया और ऑपरेशन थियेटर में चली गई. मुझे पता था कि मेरी मां और मेरे पति भी, हमारे कार्यक्रम के अनुसार पीछे-पीछे आ रहे होंगे. मैंने जैसे ही बेहोशी की धुंध से आंखें खोलनी शुरू कीं और अस्पताल की ट्राली को ऑपरेशन थियेटर से प्राइवेट कमरे की तरफ आते देखा, मैंने सुना कि मेरे पति ने खुशी से कहा, ‘हमारी बेटी आई है!’ मेरी मां का चेहरा भी खिल उठा था. मैंने अपनी बेटी का नाम रखा, बख्तावर, जिसका मतलब है भाग्यशाली और वह सौभाग्य लेकर आई. हड़ताल ठप्प हो गई और विपक्ष का मंसूबा टूट गया.
मेरे पास सारी दुनिया से बधाई संदेश आए. देशों के प्रधानमंत्री से लेकर आम नागरिकों तक, सबने मुझे बधाई दी और अपनी खुशी का इज़हार किया. खासतौर से एक युवती के लिए यह एक बड़ा आदर्श सामने रखने वाली बात थी, कि एक औरत काम करते-करते और देश की शीर्ष स्थिति में रहते हुए भी एक संतान को जन्म दे सकती है. अगले दिन मैं काम पर वापस आ गई और मैंने फाइलें देखनीं और कागज़ों पर दस्तखत करने शुरू कर दिए. मुझे बाद में पता चला कि मैं पहली ऐसी राष्ट्रध्यक्ष थी, जिसने कामकाज के दौरान एक बच्चे को जन्म दिया था. इस तरह मैंने एक महिला प्रधानमंत्री की तरह, महिलाओं की उन्नति के रास्ते में आड़े आने वाली परम्परा की दीवार प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए तोड़ दी.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.