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यह वो दौर है जब देश में सिर्फ ‘रक्षकों’ का बोलबाला है, यानी संस्कृति, हिंदुत्व और गाय के रक्षकों का. इसके बावजूद जमीनी सच यह है कि इनसे जुड़ी असल समस्याओं पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है. यह वीडियो रिपोर्ट भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर गायों की अवैध तस्करी की भयानक तस्वीर दिखाती है, साथ ही इस पर दोनों देशों की सरकारों के उदासीन रवैये की झलक भी देती है. एक अनुमान के मुताबिक इस इलाके में हर साल करीब पंद्रह लाख गायों की तस्करी होती है और जो आखिरकार बांग्लादेश में मौजूद चमड़े के अवैध कारखानों के लिए मार दी जाती हैं. इस मामले का दूसरा भयावह पहलू यह है कि बांग्लादेश के इन कारखानों में चमड़ा उत्पादन का काम बेहद असुरक्षित तरीके से होता है. इनकी वजह से बांग्लादेश के साथ-साथ भारत के बड़े इलाके की जलवायु बुरी तरह प्रदूषित हो रही है. यही नहीं, इन कारखानों में हजारों बाल मजदूरों को भी काम पर लगाया गया है. स्क्रोल और डॉइचे वैले की यह वीडियो रिपोर्ट इन सभी मुद्दों की तरफ हमारा ध्यान खींचती है.

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224 और 225 का गुणा क्या होगा? इस सवाल का जवाब बारह साल का चिराग सेकेंडभर में देता है - 50,400. चिराग को इस तरह के गुणा-भाग करने में उतना ही वक्त लगता है जितना कोई कैल्कुलेटर लगाता है. सहारनपुर जिले के तीरपड़ी गांव का रहने वाला यह बच्चा गांव के ही स्कूल में कक्षा आठ का छात्र है. करीब चार साल पहले उसके एक शिक्षक ने यह नोटिस किया कि यह बच्चा उनसे भी तेज गति से गणित के सवालों को हल कर लेता है. चिराग की उम्र तब केवल आठ साल थी और तब उसने 300 तक के पहाड़े याद कर रखे थे. उसकी प्रतिभा का कोई और इस्तेमाल न कर पाने के चलते शिक्षकों ने उसे पहाड़े याद करने का काम ही दे दिया और इसका नतीजा यह हुआ है कि अब चिराग 20 करोड़ तक के पहाड़े सुना सकता है. चिराग का सपना है कि वह बड़ा होकर एक वैज्ञानिक बने, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वे स्कूल से आगे उसकी पढ़ाई का खर्चा उठा पाएं. हालांकि यूट्यूब चैनल इनयूथ की इस वीडियो रिपोर्ट में उसके पिता उसे पढ़ाने का इरादा जताते नजर आते हैं, लेकिन फिलहाल वे बेटे को किसी अच्छे स्कूल भेज पाने में भी असमर्थ हैं.

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साल 2012 के बेहद चर्चित निर्भया कांड के बाद से दिल्ली को ‘बलात्कार की राजधानी’ नाम भी दे दिया गया है. इस हादसे को पांच साल बीत गए हैं, लेकिन क्या इन पांच सालों में महिलाओं के लिए दिल्ली कुछ बेहतर हो पाई है? द गार्जियन की यह वीडियो रिपोर्ट इसी सवाल की पड़ताल करती है. यह वीडियो दिल्ली में रहने वाली आम महिलाओं से हुई बातचीत दिखाता है. इनकी बातों से साफ-साफ पता चलता है कि लोगों की मानसिकता में अब भी कोई खास बदलाव नहीं आया है. इसीलिए दिल्ली में लड़की/लड़कियों के लिए एक तय वक्त के बाद ‘अकेले’ बाहर जाना आज भी खतरे से खाली नहीं है. ये महिलाएं बताती हैं कि तमाम कड़े कानून, पुलिस, स्ट्रीट लाइट्स और सीसीटीवी कैमरे लग जाने से आने वाले छिटपुट बदलावों के बावजूद जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी, लड़कियां आजादी से नहीं जी सकेंगी. महिलाओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देने पर वीडियो एक दिलचस्प और जरूरी सवाल उठाता है. सवाल यह कि क्या महिलाओं को आत्मरक्षा के लिए तैयार करने की बात कहकर समाज यह संदेश देना चाहता है कि वह इतना ही निर्मम रहेगा और लड़कियों को अपनी चिंता खुद करनी चाहिए.