बीते पखवाड़े के तीन वीडियो जिन्हें देखा जाना चाहिए
दुनिया का पहला गे-राजकुमार| हर ‘नाम’ की धुन |एआईबी का फेमिनिज्म
समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाए या नहीं, इस पर भारत में हालिया सालों के दौरान बहस काफी तेज हुई है. और इन सालों में ही अपने समलैंगिक होने को खुलकर स्वीकार करने वाले और एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर) कम्युनिटी को समर्थन और सुरक्षा देने वाले कई लोग भी सामने आए हैं. इस वीडियो रिपोर्ट में एक ऐसे ही व्यक्ति का जिक्र है जो गुजरात की राजपिपला रियासत के राजकुमार है. मानवेंद्र सिंह गोहिल को दुनिया का पहला समलैंगिक राजकुमार कहा जा सकता है. बीबीसी की इस वीडियो रिपोर्ट में गोहिल अपनी मुश्किलों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि वे लोग जो कभी उन्हें राजसी सम्मान दिया करते थे, उनकी सेक्शुएलिटी के बारे में जानने के बाद अपना व्यवहार बदल चुके हैं. इस बात ने राजकुमार मानवेंद्र सिंह को इतना प्रेरित किया कि उन्होंने अपनी राजसी सपत्ति को एलजीबीटी सेंटर में बदल दिया है. यहां पर वे इस कम्युनिटी के लोगों को आगे बढ़ाने और रोजगार पाने लायक बनाने के लिए काम करते हैं. यह वीडियो बताता है कि इस गे-राजकुमार के कम्युनिटी सेंटर में भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर से लोग आते रहते हैं.
मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव कॉन्गथॉन्ग में एक बेहद सुरीली परंपरा है. यहां पर जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो बच्चे की मां उसके लिए नाम नहीं चुनती बल्कि एक धुन तय कर देती है. इस धुन का कोई मतलब नहीं होता, ये बस मां के दिल से निकली दुआ की तरह होती है - सच्ची और मीठी, जो बाद में उस बच्चे की पहचान बन जाती है. यहां की स्थानीय भाषा में इन संगीतमय नामों को ‘जिंग्रवाई याऊबे’ कहा जाता है. जिंग्रवाई का मतलब होता है - ‘गीत’ और याऊबे का मतलब है - ‘कबीले की महिला पूर्वज.’ जिंग्रवाई याऊबे यहां के मातृप्रधान खासी समुदाय की परंपरा है. ये नाम भी उस महिला को समर्पित होते हैं जिसने कबीले की शुरुआत की थी. एक खास लेकिन अजीब बात यह भी है कि ये नाम सिर्फ मौखिक हैं, इन्हें कहीं लिखा नहीं जाता. साथ ही एक से लगने के बावजूद ये हर घर में अलग-अलग हैं और अगर एक घर में दस बच्चे हैं तो दसों के नाम की धुन भी अलग है. इस परंपरा पर बदलते वक्त का एक अच्छा असर यह हुआ है कि एक महिला ने तो अपने बच्चे का नाम बॉलीवुड गाने ‘कहो न प्यार है’ कि धुन पर रखा है, वहीं बुरा असर यह है कि कॉन्गथॉन्ग की ये सुरीली-अनूठी परंपरा अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है.
‘नारीवाद’ आजकल एक नई तरह का बिजनेस या मार्केटिंग आइडिया भी बन गया है. यह वीडियो नारीवाद के ऐसे ही दुरुपयोग के प्रति हमारा ध्यान खींचता है. दो कॉमेडियन्स - आयुषी जगद और सुमेर नाथु - द्वारा बनाया गया यह वीडियो बताता है कि यूट्यूब चैनल एआईबी कैसे फेमिनिज्म को सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है. इन कॉमेडियन्स का कहना है कि एआईबी की सार्वजनिक छवि नारीवादी होने के बावजूद इस संस्थान में महिलाओं के लिए उतनी जगह नहीं दिखती जितनी पुरुषों के लिए है. वीडियो में ये दोनों अपने तर्कों से इस बात को साबित करते भी दिखते हैं. जानने लायक बात यह भी है कि इस वीडियो को शेयर करते हुए एआईबी ने जवाब दिया है कि वे इन शिकायतों पर गौर करेंगे और भविष्य में ऐसा न हो, इसका ख्याल रखेंगे. फिलहाल, यह वीडियो ‘फेमिनाजी’ कहे जाने वाले लोगों को एक बार खुद पर नजर डालने की बात कहता है.
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