2001 में जब स्टीफ़न हॉकिंग भारत आए थे तो दिल्ली के सिरी फ़ोर्ट सभागार में उनका भाषण सुनने का सौभाग्य मुझे भी मिला था. जब हम सभागार के बाहर पहुंचे तो वहां लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई थीं. मेरे साथ जो मित्र थे, वे उन दिनों एक अख़बार के संपादक थे. उनके संवाददाता के रसूख़ की वजह से हमें आगे के ऐसे दरवाज़े से घुसने का मौक़ा मिल गया जो श्रोताओं के लिए बंद था. साथ ही बहुत आगे की पंक्ति में बैठने का मौक़ा भी मिल गया.


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स्टीफन हॉकिंग मंच पर अपनी बिजली से चलने वाली पहियेदार कुर्सी पर बैठे आए. तब उनके शरीर में चेहरे की कुछ मांसपेशियों के अलावा एक हाथ की छोटी अंगुली की कुछ मांसपेशियां काम कर रही थीं. उसी अंगुली से सेंसर जुड़े होते थे जिससे वे अपनी पहियेदार कुर्सी चलाने के अलावा लिखना, पढ़ना और ‘बोलने’ का काम करते थे. वे अपनी आवाज़ भी क़रीब 25 साल पहले खो चुके थे. उन्हें जो कहना होता, वे अपनी अंगुली के ज़रिये कंप्यूटर पर लिखते जो एक यांत्रिक आवाज़ में तब्दील हो जाता. उनका भाषण भी उसी यांत्रिक आवाज़ में हुआ.

हम जैसे लोग, जो विज्ञान तो पढ़े हैं लेकिन ऊंचे स्तर की भौतिकी नहीं पढ़े, उनके लिए भी वह भाषण पूरा समझना नामुमकिन था, जबकि वह बहुत तकनीकी जटिलताओं से भरा नहीं था. सभागार में शायद बहुत ज्यादा लोगों को वह भाषण उतना भी समझ में नहीं आया था, लोग उनके विचार सुनने कम, उन्हें देखने ज्यादा आए थे. उनकी किताब ‘ए ब्रीफ़ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम’ के बारे में भी कहा जाता है कि वह सबसे ज्यादा बिकी, लेकिन सबसे कम पढ़ी गई किताब है. लेकिन यह कोई बुरी नहीं बल्कि अच्छी बात है. अगर लोग स्टीफ़न हॉकिंग जैसे लोगों को देखने के लिए उमड़ते हैं और वे ‘सेलिब्रिटी’ हैं तो यह बताता है कि इस दौर में भी हमारे समाज में ज्ञान के साधकों के लिए सम्मान है. इससे कुछ तो आशा बंधती है.

हमारा वक्त विज्ञान के, ख़ास तौर पर भौतिक विज्ञान के नज़रिये से एक संक्रमण का दौर है. एक ओर भौतिकी एक ऐसे दौर में पहुंच गई है कि लोग ‘भौतिकी के अंत’ की बात करने लगे हैं. इसकी वजह यह है पिछले कई दशकों से भौतिक विज्ञान जैसे एक चक्र में घूम रहा है. आम तौर पर इन दिनों नोबेल पुरस्कार भी ऐसी खोजों पर मिल रहे हैं जो दशकों पहले हुई थीं, या बहुत पुरानी अवधारणाओं के प्रायोगिक सबूत मिलना बड़ी ख़बर हो रहा है. अगर पिछले सालों की सबसे बड़ी उपलब्धियों की चर्चा की जाए तो पहली होगी लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर ( एलएचसी ) के ज़रिये हिग्स बोसॉन के होने का सबूत, जिसकी अवधारणा 50 साल पहले पीटर हिग्स ने सामने रखी थी. दूसरी ‘लेगो’ के ज़रिये गुरुत्वाकर्षण तरंग के अस्तित्व का प्रमाण, जिसका प्रतिपादन सौ साल पहले आइन्स्टाइन ने किया था.

इन दिनों भौतिक विज्ञान कुछ ऐसी जगहों पर जाकर उलझ गया है जिसके आगे रास्ता सूझ नहीं रहा है. कई तरह की अवधारणाएं और सूत्र सामने आ चुके हैं, लेकिन उनमें से कोई भी आज की गुत्थियों को पूरी तरह सुलझाता नहीं लगता या उसके सत्य होने का प्रमाण पाना मुमकिन नहीं लगता. विज्ञान को ऐसी उलझन में डालने का काफी कुछ श्रेय स्टीफन हॉकिंग की सबसे बड़ी खोज हॉकिंग पैरॉडॉक्स या इन्फ़ॉर्मेशन पैरॉडॉक्स को है जिसने आधुनिक विज्ञान के दो आधारस्तंभों, सापेक्षतावाद और क्वांटम मैकेनिक्स के बीच अंतर्विरोध को गहरा कर दिया.

हॉकिंग पैरॉडॉक्स के मुताबिक़ ब्लैक होल से लगातार विकिरण उत्सर्जित होता रहता है जिसके चलते वह एक समय पर पूरी तरह नष्ट हो जाता है. यह बात क्वांटम भौतिकी के सिद्धांतों के विरुद्ध है जिसके मुताबिक़ कोई ‘सूचना’ कभी भी नष्ट नहीं हो सकती. आधुनिक भौतिकी की सबसे बड़ी चुनौतियों मे से एक इस पैरॉडॉक्स या विरोधाभास को सुलझाना है.

लेकिन इस तरह अंधे छोर पर आ जाने का एक मतलब यह नहीं है कि आगे कोई रास्ता नहीं है. इसका ज्यादा संभव अर्थ यह है कि विज्ञान में मौजूदा सैद्धांतिक ढांचे के ज़रिये यहीं तक पहुंचा जा सकता था और अब कोई ऐसी राह खोजी जाए जो विज्ञान की दिशा बदल दे जैसे बीसवीं सदी के शुरू में हुआ था. उन्नीसवीं सदी के अंत में भी यही कहा जाने लगा था कि अब विज्ञान का अंत हो गया है क्योंकि क्लासिकी भौतिकी से जितनी दूर पहुंचा जा सकता था उतना पहुंचा जा चुका था. तभी सापेक्षतावाद और क्वांटम भौतिकी ने सारे विज्ञान को बदल डाला.

आइंस्टाइन अगर इस क्रांति का सूत्रपात करने वाले थे तो स्टीफन हॉकिंग उसे उस तार्किक परिणति तक पहुंचाने वाले प्रमुख लोगों में से थे, जहां एक नई क्रांति की शुरुआत हो सकती है. यह भी प्रासंगिक ही है कि वे ब्लैक होल पर काम करते रहे जिसके बारे में कहा जाता है कि जहां पहुंचकर कुछ भी वापस नहीं आता. हॉकिंग मानते थे कि ऐसा नहीं है. आखिरी दिनों में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं मानना चाहिए कि अगर आप ब्लैक होल में चले गए तो सब कुछ ख़त्म हो गया, वहां से निकलने का रास्ता हो सकता है. उनका कहना था कि शायद ब्लैक होल दूसरे ब्रह्मांडों के द्वार हैं, ब्लैक होल में गई चीज़ें दूसरे ब्रह्मांडों में चली जाती हैं.

यह शायद उनके जीवन का निचोड़ भी था कि जहां अंत दिखता है, वहां शायद एक नई शुरुआत होती है.