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कार्टूनिस्ट, पेंटर, लेखक, पत्रकार और पर्यावरणविद आबिद सुरती सबसे ज्यादा अपने कार्टून किरदार ढब्बू जी के लिए पहचाने जाते हैं. ‘केवल’ 83 साल के अतिसंवेदनशील कलाकार सुरती को ‘वन-मैन एनजीओ’ भी कहा जा सकता है. उम्र के इस पड़ाव पर भी वे पानी बचाने के लिए लोगों को न सिर्फ जागरूक कर रहे हैं बल्कि इसके लिए अपने हिस्से का प्रयास भी कर रहे हैं. सत्याग्रह की सहयोगी वेबसाइट स्क्रोल की इस वीडियो रिपोर्ट में आबिद बताते हैं कि उन्होंने बचपन में अपने आस-पास के लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते और लड़ते देखा है इसलिए वे इसकी अहमियत बहुत अच्छे से समझते हैं. एक अखबार में टपकते नल से हजारों लीटर पानी बर्बाद होने की खबर पढ़ने के बाद आबिद सुरती ने ‘द ड्रॉप डेड फाउंडेशन’ नाम से पानी बचाने के अभियान की शुरूआत की थी. इस फाउंडेशन के जरिए वे और उनकी टीम घर-घर जाकर टपकने वाले नल और पाइपलाइन मुफ्त में ठीक करते हैं.

आबिद सुरती इस वीडियो रिपोर्ट में मुंबई में दस साल से चल रहे इस अभियान की कहानी सुनाने के अलावा, अपने काम को मिलने वाली सराहना का भी जिक्र करते हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक सुरती अपनी संस्था द ड्रॉप डेड फाउंडेशन की वेबसाइट और फेसबुक पेज के जरिए भी लोगों को पानी बचाने के इस महाभियान में शामिल होने की प्रेरणा देते हैं. इस वेबसाइट पर कई ऐसे लोगों के उदाहरण देखने-पढ़ने को मिलते हैं जिन्होंने सुरती से प्रेरणा लेकर अपने शहर-कस्बों में पानी बचाने की इस मुहिम को आगे बढ़ाया है.

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पंजाब के पातरान में रहने वाले 26 वर्षीय जगविंदर सिंह को सुपर सिंह के नाम से भी जाना जाता है. बचपन से ही जगविंदर के दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन यह कमी उनके लिए जीवन के किसी भी क्षेत्र में कभी बाधा नहीं बनी. जगविंदर देश के अलग-अलग राज्यों में कई साइकलिंग प्रतियागिताएं जीत चुके हैं और इसके साथ ही पटियाला में हुई 212 किलोमीटर लंबी साइक्लोथॉन पूरी करने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है. साइकलिंग के साथ-साथ जगविंदर पटियाला के ही एक स्कूल में 12वीं तक के बच्चों को ड्रॉइंग सिखाते हैं. साइकिलिंग में जहां जगविंदर ने अब तक 18 अवॉर्ड जीते हैं, वहीं पेंटिंग में कई और पुरस्कार जीतने के साथ उन्होंने दो बार नेशनल लेवल के कॉम्पिटीशन भी जीते हैं. हिस्ट्री टीवी की यह वीडियो रिपोर्ट जगविंदर सिंह की इस जीत का श्रेय उनकी मां की प्रेरणा और कोशिशों को देती है. मां की बदौलत जगविंदर न सिर्फ साइकलिंग और पेंटिंग बल्कि खाना पकाने जैसे घरेलू मगर जरूरी काम भी खुद कर सकते हैं.

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साल 2016 में सुल्तान और दंगल जैसी फिल्में रिलीज़ होने के बाद कुश्ती कुछ दिन चर्चा का विषय रही थी. लेकिन इन फिल्मों की सफलता भी कुश्ती के अखाड़ों की किस्मत बदलने में कोई बड़ी भूमिका नहीं निभा पाई. फर्स्टपोस्ट की यह वीडियो रिपोर्ट मुंबई के लाल बहादुर शास्त्री अखाड़े का हाल दिखाती है. इसकी स्थापना 1972 में हुई थी. इस रिपोर्ट में अखाड़े के कोच नामदेव श्रीराम बडरे कुश्ती का हाल बताते हुए कहते हैं, ‘ज्यादातर पहलवान यहां पर सरकारी नौकरी पाने के लिए कुश्ती सीखते हैं, ऐसे गिनती के ही लोग हैं जो देश के लिए खेलने का इरादा रखते हों.’ इस रिपोर्ट से पता चलता है कि कैसे कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देने वाला यह अखाड़ा आज सुविधाओं के मामले में खस्ताहाल हो चुका है.