सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दोषी की सजा में किसी तरह की नरमी को गैरकानूनी बताया है. वेबसाइट बार एंड बेंच के मुताबिक सोमवार को शीर्ष अदालत ने कहा कि जजों को हत्या के मामले में दोषी व्यक्ति को उम्र कैद या फांसी से कम सजा देने का विवेकाधिकार नहीं है. जस्टिस आरके अग्रवाल और जस्टिस अभय मनोहर सप्रे की बेंच ने कहा, ‘भारतीय दंड संहिता की धारा-302 के तहत आजीवन कारावास से कम कोई भी सजा अवैधानिक और अधिकार क्षेत्र से बाहर मानी जाएगी.’
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हत्या के दोषी भरत कुमार रमेश चंद्र बारोट द्वारा गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर आया. निचली अदालत ने दोषी भरत कुमार रमेश चंद्र बारोट को 10 साल की जेल की सजा सुनाई थी, जिसे गुजरात हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया था. वहीं, निचली अदालत के फैसले पर हैरानी जताते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा कि कोई सेशंस जज हत्या के दोषी को 10 साल की सजा कैसे सुना सकता है.
याचिकाकर्ता भरत कुमार रमेश चंद्र बारोट को अदालत ने 2012 में हत्या का दोषी ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में उसने कहा था कि उसे निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान सही से अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला. हालांकि, इसके आधार पर उसे राहत देने से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.
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