विश्व कैंसर दिवस के मौके पर मैं आज आपको एक ऐसे कैंसर के बारे में बताने वाला हूं जो कई कारणों से अन्य कैंसरों से अलग है. इसे हम आम बोलचाल की भाषा में बड़ी आंत का कैंसर कहते हैं, वहीं तकनीकी-मेडिकल भाषा में इसे कोलो-रेक्टल कैंसर कहा जाता है. बड़ी आंत से लेकर गुदा (रेक्टम) तक के कैंसर इसी में सम्मिलित हैं.
कोलोरेक्टल कैंसर के बारे में जानना क्यों जरूरी है और यह अन्य कैंसरों से कैसे अलग है?
1. फेफड़ों के कैंसर के बाद, सबसे ज्यादा लोग इसी कैंसर से मरते हैं.
2. होने को यह कैंसर किसी को भी हो सकता है, लेकिन यह ज्यादातर आर्थिक रूप से ठीक-ठाक संपन्न, अच्छा खाते-पीते, पैसे वालों की बीमारी ज्यादा है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग ढेर सारी कैलोरी (यानी ठूंस-ठूंसकर) खाते हैं उनको बड़ी आंत का कैंसर ज्यादा होता है.
3. कुछ ऐसी बीमारियां भी हैं जो बड़ी आंत में वर्षों पूर्व से हो सकती हैं और बाद में ये ही कैंसर में बदलकर जानलेवा बन जाती हैं.
4. पच्चीस प्रतिशत बड़ी आंत के कैंसर आनुवांशिक हो सकते हैं. यदि आपके परिवार और एकदम करीब के रिश्तों में दो-तीन पीढ़ियों तक किसी को भी कभी बड़ी आंत के कैंसर होने की जानकारी आपको है तो आप भी सतर्क रहें.

5. दुर्भाग्यवश इस बीमारी का पता देर से ही चलता है. हम पेट की हर तरह की तकलीफ को प्रायः टालते रहते हैं. मानते हैं कि खान-पान में कुछ ऊंच-नीच हो गया होगा. इन तकलीफों को लंबे समय तक नजरअंदाज करने, इनका कोई देसी या घरेलू इलाज करने या खुद ही कोई दवा यहां-वहां से तजबीज करके लेने में हम महत्वपूर्ण समय नष्ट कर डालते हैं. स्वयं डॉक्टर तक कई बार इस महत्वपूर्ण डायग्नोसिस को शुरू में नज़रअंदाज कर देते हैं. और जो कभी कोई समझदार डॉक्टर आपको अपनी कोलोनोस्कोपी जांच करवाने को कह भी दे तो आपको लगता है कि एक जरा-सी कब्ज या पेट दर्द की मेरी शिकायत के लिए इतनी महंगी जांच-पड़ताल क्यों करवाई जाये! कई लोग मानते हैं कि ऐसी जांच तो बस कमीशनखोरी के लिए डॉक्टर की एक घटिया ट्रिक मात्र है. हम मूर्खतापूर्ण होशियारी में पड़कर ऐसी जरूरी जांच भी नहीं कराते. इस तरह समय पर कैंसर की डायग्नोसिस रह जाती है .
6. यह एक ऐसा कैंसर है जिसका सीधा संबंध हमारी भोजन की आदतों से भी जुड़ा पाया गया है. इसकी चर्चा हम आगे करेंगे.
तो ऊपर जिन बातों का जिक्र किया गया है, ये सब इसे एक अलग ही तरह का कैंसर बना डालती हैं.
इस कैंसर का सबसे ज्यादा खतरा किन लोगों को है?
1. बड़ी आंत का कैंसर आनुवांशिक भी हो सकता है. यह बात आपको हमने अभी-अभी बताई भी है. इसे थोड़ा और समझें. आनुवांशिक का मतलब कि अगर आपके भाई, बहन, चाचा, ताऊ, मामा, नाना-नानी, दादा-दादी या परदादा या लकड़दादा तक भी कभी किसी को ऐसा कैंसर हुआ था तो आप इस कैंसर के खतरे के दायरे में हैं. आप कोई तकलीफ होने का इंतजार कतई न करें. पच्चीस वर्ष की आयु हो जाने के बाद हर तीन से पांच सालों के अंतराल में अपनी नियमित कोलोनोस्कोपी जांच कराते रहें. इससे यह कैंसर एकदम शुरुआत में ही पकड़ा जायेगा. तब इसे ऑपरेशन द्वारा पूरा ठीक किया जा सकता है.
2. यदि आपकी बड़ी आंत में कभी किसी जांच द्वारा पोलिपोसिस (polyposis) नाम की बीमारी की डायग्नोसिस की गई है तो सतर्क होकर किसी अच्छे गैस्ट्रोलॉजिस्ट से जरूर सलाह ले लें. पोलिपोसिस का मतलब है आपकी बड़ी आंत की अंदरूनी झिल्ली पर यहां-वहां छोटी-बड़ी गाठें हो जाना. ये गांठ डंठलनुमा हो सकती हैं और बिना डंठल के भी. बिना डंठल वाले पोलिप में कैंसर होने के चांस ज़्यादा होते हैं. इनके बारे में यदि आपका डॉक्टर सलाह दे तो इन्हें न केवल निकलवा डालें साथ ही बाद में नियमित कोलोनोस्कोपी द्वारा यह भी देखते रहें कि कहीं ये दोबारा न उभर आयें. फिर उभरें तो फिर निकलवा दें क्योंकि ये कैंसर में बदल सकती हैं.
कई बार इस तरह की हजारों गांठें बड़ी आंत में सब जगह यहां से वहां तक हो सकती हैं. ये आनुवांशिक ही होती हैं. इन्हें फेमिलियल मल्टीपल पोलिपोसिस कहते हैं और आगे जाकर ये सौ प्रतिशत कैंसर में तब्दील होती ही हैं. यदि यह बीमारी हो गई हो तो अब बड़ी आंत के कैंसर से बचने का एकमात्र तरीका यह रह जाता है कि ऐसी पूरी ही बड़ी आंत को कोलेक्टोमी के ऑपरेशन द्वारा निकाल दिया जाए. यदि डॉक्टर आपको यह ऑपरेशन कराने की सलाह देता है तो जरूर करा लें. इसे न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी वाला मामला मान लें!
3. यह बीमारी मीट खाने वाले लोगों को ज्यादा होती है. मल की जांच द्वारा यह पाया गया है कि रेड मीट (मटन) खाने वालों के मल में नॉर्मल एनारोबिक बैक्टीरिया की मात्रा बहुत बढ़ी हुई होती है. ये बैक्टीरिया आंतों में मौजूद हमारे पाचन रसों के अंदर मिले बाइल को कैंसर पैदा करने के तत्वों में बदल देते हैं.
4. यह कैंसर मोटे लोगों को ज्यादा होता है, क्योंकि इनमें इन्सुलिन की मात्रा अधिक बनती है. फिर ज्यादा इंसुलिन से कुछ ऐसे तत्व शरीर में बनते जाते हैं जो आंतों में कैंसर जैसी गतिविधियों को जन्म देते हैं. इसीलिए यदि आप अगर मोटे हैं तो अपना वजन कम करें.
5. सिगरेट फूंकने और तंबाकू खाने वालों को भी इस कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है इसीलिए तंबाकू बिलकुल भी न लें. यह यूं भी हार्ट अटैक, लकवा और बड़ी आंत के कैंसर के अलावा मुंह का कैंसर आदि पचासों अन्य बीमारियों का जोखिम बढ़ा देती है.
इस कैंसर के क्या लक्षण हैं और किन स्थितियों में इसको लेकर हमें डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए?
1. यदि आपका खून कम हो जाये और इस एनीमिया का कोई कारण पता न चल रहा हो तो जान लें कि इसका एक कारण बड़ी आंत का कैंसर भी हो सकता है. हर ऐसे एनीमिया में इसकी आशंका होती है. जांच जरूर करा लें.
2. यदि आपका वजन बिना वजह के ही कम होता जा रहा हो.
3. यदि आपको पेट दर्द होता है और यह लगातार की ऐंठन ठीक ही न हो.
4. यदि अचानक ही कुछ महीनों से आपको कब्ज हो गई हो.
5. यदि कभी अपनी टट्टी में आपको खून दिखाई दे (और बवासीर न हो)
6. यदि आप पचास साल या इससे बड़े हैं, या आप ऊपर वर्णित रिस्क की केटेगरी में हैं तो इन सारी तकलीफों को कतई नजरअंदाज न करें. तुरंत अपने डॉक्टर से मिलें. सारी जरूरी जांचें करा लें.
अंतिम बात
क्या किसी दवा से इस कैंसर की आशंका को कम किया जा सकता है?
हां, इस संबंध में ट्रायल तो यही बताते हैं कि एस्प्रिन का नियमित सेवन इसका जोखिम कम कर सकता है. फोलिक एसिड की गोलियां भी ऐसा करती हैं. हां,एन्टी आक्सीडेंट्स या हाई फाइबर डाइट का ऐसा कोई रोल नहीं मिला है. औरतों में मीनोपॉज के बाद दी जाने वाली ईस्ट्रोजन रिप्लेसमेंट थैरेपी भी इस कैंसर से कुछ हद तक बचाव करती है, हालांकि उस थैरेपी की अपनी ही समस्याएं होती हैं जिन पर फिर कभी बात होगी.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.