मोदी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच काफी दिनों से थमा टकराव एक बार फिर जोर पकड़ता दिखाई दे रहा है. बीते मंगलवार को गृह मंत्रालय की सिफारिश के बाद दिल्ली के उप-राज्यपाल (एलजी) अनिल बैजल ने केजरीवाल सरकार के नौ सलाहकारों को हटा दिया है. मंत्रालय द्वारा बीती 10 अप्रैल को जारी अधिसूचना में कहा गया था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों के लिए सलाहकार जैसा कोई पद नहीं है. मंत्रालय का यह भी कहना था कि इन नियुक्तियों से पहले राज्य सरकार ने केंद्र की इजाजत भी नहीं ली थी.
उधर, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस फैसले को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने इसे शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे कामों को बेटपटरी करने की साजिश करार दिया है. साथ ही, उपमुख्यमंत्री ने गृह मंत्रालय पर आतिशी मर्लिना को पद से हटाने के लिए यह फैसला लेने का आरोप लगाया. मनीष सिसोदिया ने आगे कहा, ‘जिन लोगों को हटाने का आदेश आया है, उनमें चार काम नहीं कर रहे हैं. इसके अलावा बाकी चार जिस पद पर हैं, वे पहले की सरकारों में भी थे. आप सरकार ने कोई नई नियुक्ति नहीं की है.’ उन्होंने आतिशी मार्लेना के बारे में बताया कि वे शिक्षा से जुड़ी सभी अहम परियोजनाओं पर काम कर रही हैं. मनीष सिसोदिया का यह भी कहना था कि आतिशी सरकार से वेतन के रूप में केवल एक रुपया लेती हैं.
I get a salary of ₹1 from Delhi Government for my role as Advisor to Dy Chief Minister https://t.co/rTWooKa0rH
— Atishi Marlena (@AtishiMarlena) October 1, 2017
आतिशी मार्लेना कौन हैं?
दिल्ली की रहने वाली 36 वर्षीय आतिशी मार्लेना आम आदमी पार्टी (आप) की राजनीतिक मामलों की समिति और राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बतौर सदस्य शामिल हैं. इससे पहले उन्होंने साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी के चुनावी घोषणापत्र तैयार में अहम भूमिका निभाई थी. इसके अलावा वे आप के लिए पार्टी प्रवक्ता की जिम्मेदारी भी निभा चुकी हैं.
मनीष सिसोदिया के सलाहकार का पद-जो फिलहाल विवाद का मुद्दा बना हुआ है, आतिशी ने जुलाई, 2015 में संभाला था. माना जाता है कि बीते तीन वर्षों में दिल्ली में जो भी बदलाव दिखें हैं, इसके पीछे उन्हीं की अहम भूमिका है. दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक और ब्रिटेन स्थित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पढ़ाई (2003) करने वाली आतिशी मार्लेना आम आदमी पार्टी में शामिल होने से पहले शैक्षणिक गतिविधियों से जुड़ी रहीं. दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे उनके माता-पिता मार्क्सवादी विचारधारा के पक्षधर रहे हैं. बताया जाता है कि आतिशी के नाम के बाद मार्लेना लगाना उनके ही माता-पिता का आइडिया था. यह शब्द मार्क्स और लेनिन के मेल से बना है.
बताया जाता है कि आतिशी भी अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में मार्क्सवाद से प्रभावित रहीं. अपनी पढ़ाई करने के बाद उन्होंने हैदराबाद में स्थित एक स्कूल में पढ़ाने का काम किया था. इसके बाद वे मध्य प्रदेश स्थित एक गांव में जैविक खेती और शिक्षा व्यवस्था की बेहतरी से संबंधित गतिविधियों में जुड़ी रहीं. इसके अलावा आतिशी मार्लेना कई गैर-सरकारी संगठनों के साथ भी काम कर चुकी हैं. हिमाचल प्रदेश स्थित संभावना इंस्टीच्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के साथ काम करने के दौरान ही उनकी मुलाकात ‘आप’ संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण के साथ हुई थी.
राजनेता के साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी
राजनीति को विस्तृत और दीर्घकालिक बदलाव का जरिया मानने वाली आतिशी एक बातचीत में खुद को एक राजनेता की जगह एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में देखती हैं. आतिशी बताती हैं कि वे शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता बनाना चाहती थीं. साथ ही, लोगों को इकट्ठा कर दुनिया में बदलाव लाने के बारे में भी सोचती थीं.
राजनीति में अपने कदम रखने को लेकर आतिशी एक साक्षात्कार में बताती हैं कि साल 2011 के जनलोकपाल के लिए अन्ना आंदोलन को उन्होंने सहानुभूति से अधिक संदेह की नजरों से देखा था. लेकिन, जब इससे जुड़े लोगों ने राजनीति में आने का फैसला (2012) किया तो वे भी इसमें शामिल हो गईं. हालांकि, ऐसा नहीं था कि उनके अंदर का एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक राजनेता के बीच आपसी द्वंद न हो. साल 2015 में राजनीति से विराम लेकर आतिशी मध्य प्रदेश के खंडवा में आयोजित जल सत्याग्रह में शामिल हुई थीं. इस दौरान उन्हें अहिंसक विरोध निरर्थक सा लगा और उन्होंने मान लिया कि अपनी आवाज बुलंद करने का एकमात्र जरिया राजनीति ही है. ओंकारेश्वर बांध में पानी का स्तर बढ़ने की वजह से स्थानीय लोगों की जमीन पानी में डूब गई थी. इसके बदले प्रभावितों ने जमीन की मांग की थी और इस मांग के साथ ही उन्होंने जल सत्याग्रह किया था.
दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव
देश में खस्ताहाल सरकारी शिक्षा व्यवस्था की वजह आतिशी मार्लेना निजी स्कूलों से नेताओं के हित जुड़े होने को मानती हैं. एक आलेख में वे कहती हैं कि साल 2015 में जब दिल्ली की सत्ता पर ‘आप’ की सरकार काबिज हुई को उस वक्त सरकारी स्कूलों का बुरा हाल था. कमरे कम थे. बीते 10 वर्षों से शिक्षकों की बहाली नहीं हुई थी. इसके अलावा जो नियुक्त शिक्षक थे, वे क्लास में नहीं जाते थे.
आतिशी मर्लिना आगे लिखती हैं कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए केजरीवाल सरकार ने शिक्षा के बजट को बढ़ाकर पहले की तुलना में दोगुना कर दिया. उनके मुताबिक पहले साल (2015-16) में सरकार ने बुनियादी जरुरतों और समस्याओं पर ध्यान दिया. इसके तहत 8,000 से अधिक क्लासरुम बनाए गए. साथ ही, शौचालयों का भी निर्माण किया गया. इसके बाद शिक्षा व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी) को पहले से अधिक मजबूत किया गया. इस समिति की बागडोर अभिभावकों के हाथों में ही होती है. आतिशी मार्लेना का मानना है कि शिक्षा में सुधार के लिए कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं है.
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