इस संग्रह में शामिल मिस्र की कहानी ‘अंधा, अंधेरा और औरत’ का एक अंश :
‘...उसका जवान अंधा शौहर अकेला चहक रहा था. घर में खामोशी बढ़ रही थी.
सबके बीच एक समझौता हो गया था.
चिराग़ के पास मां अंगूठी उतारकर रख देती थी.
जो अंगूठी पहनता वह चिराग़ बुझा देता और उस अंधेरे में सर्च लाइट की तरह जलती आंखें अब अंधी हो जातीं. कान बहरे हो जाते...
ज्वान क़ारी आखिर कब तक अकेले इस घर की ख़ामोशी तोड़ता. उसके लिए यह जानना बहुत जरूरी था कि आखि़र घर में पहले की तरह सब हंसते, बोलते, गाते क्यों नहीं हैं,...
...घर में फैली इस बार की ख़ामोशी अलग थी. कुछ रहस्यमयी क़िस्म की थी. इस बार उसमें न ग़रीबी थी, न महरूमी, न इंतज़ार था, न सब्र और निराशा की थकान. यह ख़मोशी अपनी तरह की थी. एक मज़बूत क़िस्म का अनोखा अनुबंधन! यह अपने-आप हो गया था बिना किसी शर्त और संवाद के!
विधवा और उसकी बेटियों के बीच!
एक कमरा जहां रात की स्याही में, नई खामोशी बातूनी हो उठी थी.’

कहानी संग्रह : एफ़्रो-एशियाई कहानियां
लेखिका : नासिरा शर्मा
प्रकाशक : लोक भारती
कीमत : 795 रुपये
इंसानों का किस्से-कहानियों से रिश्ता मां की लोरी से शुरू हो जाता है. जैसे हर घर में अनेकों कहानियां पसरी हैं, वैसे ही हममें से हर एक इंसान किसी न किसी कहानी का पात्र है. एक जैसी इंसानी फितरत, एक-सी ही समस्या, कशमकश, बेबसी, विडंबना और खुशी के कारण दुनियाभर की कहानियां किसी न किसी स्तर पर एक जैसी खुशबू और स्वाद देती हैं. नासिरा शर्मा का यह कहानी संग्रह सात एफ़्रो-एशियाई देशों के लेखक-लेखिकाओं की ऐसी ही बेहतरीन कहानियों का स्वाद हमें चखने को देता है.
कहने को तो सारे मजहब इश्क को इबादत और खुदा का दर्जा देते हैं, लेकिन जैसे ही दो अलग धर्मों के लोग मोहब्बत करते हैं तो सबसे पहले उनके मजहब ही उनकी इस इबादत में खलल का कारण बन जाते हैं. इन कहानियों को पढ़कर पता चलता है कि अलग संप्रदाय में इश्क और विवाह, सभी समाजों में एक संगीन जुर्म माना जाता है और यह समाज के सबसे पेचीदा मसलों में से है. इसी मिजाज की मिस्र की एक कहानी है ‘मुहब्बत खु़दा है या अज़ाब’. यहां लेखक अहसान अब्द अल कुदूस ने एक मुस्लिम लड़की और ईसाई लड़के के प्रेम की कठिन डगर का वर्णन किया है. एक बानगी :
‘अगर मैं तुम्हें तुम्हारा मज़हब छोड़ने के लिए कहूं तो क्या तुम इस्लाम छोड़ दोगी?’
इस मसले पर ज़्यादा सोचना नहीं चाहती थी सो झट से बोली, ‘हां’.
इतना कह वह चुप हो गई मगर उसे महसूस हुआ जैसे वह सुरक्षा की कै़द व बंद से आज़ाद हो गई है. वह कहीं की नहीं रही. उसे महसूस हुआ कि उसने हां कहने में जल्दी कर दी है...
...उसने आज से पहले मज़हब के बारे में कभी इतनी गंभीरता से नहीं सोचा था...अगर कल वह मुसलमान नहीं रही तो क्या करेगी, किसकी कसमें खाएगी? जब वह मुसलमान थी तब उसे अहसास ही नहीं था कि इस्लाम इस तरह उसकी ज़िंदगी में ताना-बाना बना बैठा है...
‘ओह मेरे अल्लाह...वह पागल न हो जाए,...सारे धर्म एक ही क्यों नहीं हैं?’
आज किस्म-किस्म की हिंसा जितने ज्यादा सुर्ख लाल रंग में धरती को रंगती जा रही है, दुनिया का रंग उतना ही स्याह होता जा रहा है! सुर्ख और स्याह के मेल से बना यह मटमैला रंग दुनिया के लगभग सभी मुल्कों की धरती पर फैला हुआ है. इस रंग में रंगने से न बड़े बचते हैं और न ही बच्चे, न स्त्री न ही पुरुष. ऐसे ही सुर्ख और स्याह के बीच उपजी फिलिस्तीन की एक बेहद मार्मिक कहानी है ‘मां’. फिलिस्तीन के लघु कथाकार तलत सोकैरत एक दूध पीते बच्चे के वहशी दरिदों के सामने पड़ने का दिल छूने वाला वर्णन करते हुए लिखते हैं :
‘बच्चा मगन हो दूध पी रहा था.
मां के मुलायम स्तन, जो प्यार और ममता की गर्मी से भरे हुए थे उसे अपने नन्हे हाथों से पकड़े दूध पीते हुए...अचानक फड़ से दरवाज़े के पट खुले और बाहर का अंधेरा अंदर घुसा. बच्चे ने चौंककर निप्पल छोड़ा और सर घुमा दरवाज़े की तरफ़ देखा और दूसरे पल वह फिर स्तन थाम दूध पीने लगा.
अंधेरे से निकले चेहरे प्रतिशोध से सुलग रहे थे. पलक झपकते ही वह समझ गई और डर से चीख़ी. तत्काल दोनों बाज़ुओं के घेरे में बच्चे को छुपाया जो लगातार निप्पल चूस रहा था.
वे हांफते हुए आगे बढ़े. उसने आंखें बंद कर लीं. एक साथ कई गोलियां सनसनाई और बच्चे पर झुके सर में धंस गई. बाजु़ओं में जकड़ा और सर के बीच फंसा बच्चा दूध पीता रहा.
वे क़रीब आए चाक़ू निकाला और मुलायम स्तन को काट दिया. निप्पल चूसता बच्चा ख़ून और दूध पीता रहा.
यह देख उन्होंने बच्चे को चाक़ू से गोद दिया. जब तक गोदते चले गए जब तक बच्चे के होठों ने खू़न नहीं उगला जिसमें गर्म दूध की मिलावट थी.’
पूरी दुनिया में भाषा, मजहब, संस्कृति, खान-पान आदि चीजों में भारी भिन्नता होने के बावजूद जिन कुछ चीजों में हद दर्जे की समानता है, उनमें से एक है, स्त्रियों के प्रति पुरुषों का व्यवहार. खासतौर से एशियाई मुल्कों में स्त्रियों से पुरुषों या परिवार की चाहतें लगभग एक सी हैं. हमारे देश की ही तरह ईरानी समाज में भी बेटी पैदा करने वाली मांओं की इज्जत नहीं है. यहां तक कि बेटा न पैदा करने के कारण उन्हें तलाक दे दिया जाता है या ऐसे ही छोड़ दिया जाता है. ऐसे ही मिजाज की एक ईरानी कहानी है ‘फ़ात्मा’. इसमें दो बेटियों की मां फ़ात्मा सारी उम्र अपने शौहर के लौटने की राह देखती है. वह लौटता है, लेकिन बेटे पैदा करने वाली नई पत्नी के साथ! ऐसे ही मौके का वर्णन करते हुए लेखक अब्दुल मलिक नूरी लिखते हैं :
‘मां, मेरे बाबा आ रहे हैं’, एकाएक बेटी कह उठी.
‘हां शायद’... मंसूर सामने था... बोला, ‘फ़ात्मा! कैसी हो?’
फ़ात्मा दूसरी अरब औरतों की तरह खु़शी के मौक़े पर भावना के ज्वार से रो सकती थी, ख़ुशी से पागल हो सकती थी मगर यह सब कुछ न कर सकी. उसके पैरों में किसी ने कीलें गाड़ दी थीं.
आवाज़ गले में फंस गई और वह जड़ हो मंसूर के नए ख़ानदान को देख रही थी. जिनसे वह फ़ात्मा का परिचय करा रहा था. ‘यह तुम्हारी हिस्सेदार है. इन बेटों की मां है यह जासिन, यह यासीन, यह सादिया और यह छोटा शैतान महमूद है...चलो..फ़ात्मा को आदर से सलाम करो’...फ़ात्मा ने आंसुओं से सराबोर आंखों को आसमान की तरफ़ उठाया.’
नासिरा शर्मा का यह बेहद उम्दा कहानी संकलन एक ही समय पर दुनिया के कई देशों के कहानीकारों और उनकी बेहतरीन कहानियों से हमें रूबरू कराता है. अलग-अलग मुल्कों की इन कहानियों को पढ़कर यह शिद्दत से अहसास होता है कि दुनियाभर में हंसी, आंसू, बेबसी, लाचारी, मोहब्बत, धोखे, घुटन, संत्रास और ऐसी सभी मानवीय संवेदनाओं के रंग एक ही हैं.
नासिरा शर्मा ने कई भाषाओं की कहानियों का बहुत ही शानदार अनुवाद किया है जिस कारण पाठकों को ये कहानियां अनुदित नहीं लगतीं. इस कहानी संग्रह की एक खासियत यह भी है कि यहां हमें कहानी से पहले उसके कहानीकार का खूबसूरत परिचय पढ़ने को मिलता है. संग्रह की ज्यादातर कहानियां भीतर तक उतरती हैं. पाठक कब किसी पात्र की उंगली थामें मिस्र, ईरान, इज़राइल, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, फिलिस्तीन जैसे देशों के गली-कूचों और आंगन में पहुंच जाएंगे उन्हें पता भी नहीं चलेगा. विश्व साहित्य में रूचि रखने वालों के लिए यह एक बेहतरीन कहानी संग्रह है.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें | सत्याग्रह एप डाउनलोड करें
Respond to this article with a post
Share your perspective on this article with a post on ScrollStack, and send it to your followers.