इस बार हम ब्लड प्रेशर की बीमारी के कुछ ऐसे पक्षों के बारे में बात करेंगे, जिनके बारे में आपको लगता है कि आपको सब पता है, लेकिन ऐसा है नहीं. शायद हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर या हाई बीपी) ही एक ऐसी बीमारी है जिसके विषय में सभी को अपनी-अपनी तरह की इतनी गलतफहमियां हैं कि गिनाना कठिन पड़ जाए. बहरहाल हम यहां फिर कोशिश कर लेते हैं.
हाई बीपी के बारे में कुछ सामान्य जानकारियां
हाई बीपी बहुत ही कॉमन बीमारी है. भारत में करीब तीस प्रतिशत लोगों को यह बीमारी है सो आप भी जरूर चेक कराते रहें. अगर आपके परिवार में किसी को हाई बीपी है, या आप मोटे हैं, पड़े-पड़े खटिया या बैठे-बैठे कुर्सी तोड़ते रहते हैं. या फिर आप निष्ठापूर्वक दारू-सिगरेट पीते हैं और आपकी कमर फैलती जा रही है (महिलाओं में 80 और पुरुषों में 90 सेंटीमीटर से ज्यादा हो गई है) तो जान लें कि आप हाई रिस्क ग्रुप में हैं.
‘सर मुझे तो कोई मेंटल टेंशन है ही नहीं’ या ‘अपन तो टेंशन पालते ही नहीं’ ऐसा कहकर कई लोग दावा करते हैं कि उन्हें हाई बीपी नहीं हो सकता. तो दोस्तो यहां समझ लीजिए कि टेंशन यानी मानसिक तनाव का हाई बीपी करने में कोई सीधा रोल नहीं है. इसलिए हर हाल में नियमित जांच जरूरी है.
जरूरी नहीं है कि हाई बीपी में कोई तकलीफ भी हो
मुझसे कई मरीज कहते हैं – ‘डॉक्टर साब, आप बता रहे हैं कि तुम्हें तो हाई बीपी है, पर तकलीफ तो मुझे कोई नहीं है!’ या फिर ‘मैंने यूं ही मेडिकल चेकअप करा लिया और पता चला कि हाई बीपी है. बाकी दिक्कत कोई नहीं है. न सिरदर्द, न चक्कर, न छाती में दर्द, और कुछ भी नहीं. और अगर बीपी 160/100 है तो कुछ तो होना ही चाहिए! मेरे ख्याल से बीपी मापने की आपकी मशीन ही खराब है.’
तकरीबन ऐसी ही बातें कहने वाले मरीजों से मेरा कहना है कि आपको भ्रम है और इसके चलते डॉक्टर पर संदेह न करें. याद रखें कि हाई बीपी में कोई तकलीफ हो ही, यह जरूरी नहीं है.
जब कोई तकलीफ नहीं तो दवा क्यों खाई जाए और परहेज क्यों किया जाए?
यह बात ऊपर से एकदम सही लगती है. लेकिन बीपी की दवाएं नियमित और जीवनभर खाने को आप ऐसे समझें कि आज आप जो दवा ले रहे हैं, वह जीवन बीमा की किस्त चुकाने जैसा है. चुकाने में दिक्कत जरूर होती है, फिर भी हम किस्त चुकाते हैं क्योंकि न जाने कब हमारे ऊपर मुसीबत आ जाए! कुल मिलाकर जान लें कि हाई बीपी की दवाइयां आपको कई मुसीबतों से बचा सकती हैं.
जो नियमित दवाएं नहीं लेते, हाई बीपी के ऐसे मरीजों को पता होना चाहिए कि वे कितना खतरा उठा रहे हैं. बीपी कंट्रोल में नहीं है तो आपको हार्ट अटैक की आशंका दोगुनी, हार्ट फेल्योर की तीन गुनी और किडनी फेल होने की आशंका दोगुनी बढ़ जाती है. इन आपात बीमारियों का कोई बहुत अच्छा इलाज आज भी उपलब्ध नहीं है.
तो फिर हाई बीपी के मरीज क्या करें?
अगर डॉक्टर ने आपको हल्का-सा, बॉर्डर लाइन को छूता हुआ भी हाई बीपी बताया है तो आपको नियमित दवाएं लेकर, नियमित जांच करवाते हुए सुनिश्चित करते रहना चाहिए कि बीपी हमेशा 140/90 के नीचे ही रहे. अगर आपको डायबिटीज़ वगैरह भी है तब तो बीपी और भी कम रहना चाहिए. कुछ बातें और याद रखें :
दवाएं लगभग जीवनभर चलनी हैं, परंतु उनका डोज़ आवश्कतानुसार बदल सकता है. इसलिए भी नियमित बीपी जांच जरूरी है. हर बार का डोज़ जांच के बाद तय होगा. जिस भी अंतराल पर डॉक्टर आपको बुलाए, जांच के लिए जाते रहें.
वज़न कम करें. सिगरेट (या तंबाकू) का सेवन एकदम बंद कर दें. दारू बंद कर दें या इतनी कम कर दें जो शराफत या बीपी का तकाज़ा होता है. कई बार हल्का बीपी तो इतने से ही कंट्रोल हो जाता है.
इसके अलावा नियमित व्यायाम करें. मुगदर घुमाने को नहीं कह रहा. नियमित चालीस मिनट घूम लिया करें बस. बैठे न रहें, एक्टिव रहें. नमक बीपी को बढ़ाता है तो नमक पूरी तरह बंद कर देना चाहिए? कतई नहीं. नमक भी शरीर के लिए जरूरी है. हां, ज्याद न लें. सलाद में न डालें. अचार-चटनी-पापड़ में नमक होता है तो इन्हें कभी-कभार ही खाने के साथ लें.
क्या हाई बीपी में होम्योपैथी या आयुर्वेद या योग थैरेपी ट्राई करें? मैंने इनसे कभी बीपी ठीक होते नहीं देखा. हां, लेकिन कभी ट्राई करें, तो भी दूसरे डॉक्टर से बीपी चेक जरूर करवाते रहें. अगर आपका बीपी 140/90 के नीचे रहता है तो जो ले रहे हैं, ले सकते हैं. मूल मुद्दा है, बीपी कंट्रोल में रखने का, वो चाहे जैसे भी हो.
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