बीते कुछ समय के दौरान डिजिटल मीडिया ने लोगों के पढ़ने के तरीकों और अनुभवों में अामूलचूल बदलाव कर दिया है. संभावना जताई जा रही है कि आने वाले समय में लोग कि प्रिंट के बजाय डिजिटल माध्यम को पूरी तरह से अपना लेंगे. मशहूर कंसल्टेंसी फर्म एर्न्स्ट एंड यंग इंडिया और फिक्की ने हाल में एक रिपोर्ट जारी की है. इसके मुताबिक साल 2016 के मुक़ाबले 2017 में भारत में मीडिया औरमनोरंजन का बाज़ार 13 फीसदी की बढ़त के साथ 1.5 लाख करोड़ का हो गया. इस दौरान जहां प्रिंट मीडिया का रेवेन्यू महज़ तीन फीसदी बढ़ा वहीं डिजिटल मीडिया के मामले में यह आंकड़ा 28 फीसदी रहा. इसी प्रकार, जहां, प्रिंट की रीडरशिप 11 फीसदी बढ़ी तो दूसरी तरफ डिजिटल सब्सक्रिप्शन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गयी है.
तो क्या प्रिंट मीडिया डिजिटल मीडिया से पिछड़ रहा है? क्या वह धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा? प्रिंट मीडिया को चुनौती पहली बार मिल रही हो, ऐसा नहीं है. इसके पहले टेलीविज़न क्रांति ने उसके अस्तित्व पर सवाल खड़े किये थे. तब ऐसा नहीं हुआ और गायब होने के बजाय वह उल्टे मज़बूत होकर उभरा. लेकिन इस बार नयी चुनौतियां हैं और उनके हल ज़रा मुश्किल दिखते हैं.
सबसे बड़ी चुनौती तो इंफ़्रास्ट्रक्चर है. इस मामले में डिजिटल ने प्रिंट को बहुत पीछे छोड़ दिया है. 2017 में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफ़ोन बाज़ार बन गया. जानकारों का मानना है इस साल देशभर में लगभग 50 करोड़ ग्राहक इंटरनेट से जुड़ जायेंगे और 2020 तक जनसंख्या का लगभग 53 फीसदी हाई स्पीड ब्रॉडबैंड इस्तेमाल कर रहा होगा. ‘पेटीएम’, ‘वोडा एम-पैसा’, ‘एयरटेल पेमेंट बैंक’ आदि मोबाइल वॉलेट सेवाओं में ज़बरदस्त विस्तार हुआ है. यानी एक बड़ी आबादी का पैसा अब बटुए में नहीं, मोबाइल में रहता है. इससे डिजिटल सब्सक्रिप्शन बढ़े हैं. औसत डाउनलोड स्पीड 8.8 एमबी प्रति सेकंड और फिक्स्ड ब्रॉड बैंड में 18.8 एमबी प्रति सेकंड की रफ़्तार देखी जा रही है. औसत डेटा की खपत बढ़कर 3.9 जीबी प्रति महीना हो गयी है. इन सबके चलते, लोग अब ज़्यादातर समय स्मार्टफोन के साथ बिता रहे हैं. ज़ाहिर है, ख़बरें भी वहीं पढ़ी जाएंगी.
दूसरी तरफ, भारत में अखबारों का वितरण एक चुनौती है.जहां विकसित देशों में अखबार बस स्टैंड, मेट्रो स्टेशन या मॉल्स से ख़रीदे जाते हैं, हमारे यहां वे अल-सुबह घरों में पहुंचाये जाते हैं. यह भी शहरों की बात है. दूरदराज़ के गांवों तक अखबारों या मैगज़ीनों का वितरण अब भी बड़ा प्रश्न है. इंटरनेट और नतीजतन डिजिटल मीडिया के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है. भारत में सिर्फ 38 फीसदी जनसंख्या ही अखबार या मैगज़ीन पढ़ती है. इसके बनिस्बत जिस रफ़्तार से डिजिटल इंफ़्रास्ट्रक्चर बढ़ रहा है उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि 2020 तक देश में 80 करोड़ जनता इंटरनेट से जुड़ जाएगी.
तीसरा, एक तरफ़ जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी के दामों में गिरावट आई है, वहीं प्रिंट मीडिया के सामने कागज़ की उपलब्धता और कीमत, मशीनों के रखरखाव और क्रूड आयल के बढ़ते दाम जैसे बड़े सवाल हैं. फिर, पुरानी ख़बर को संभालकर रखने के बनिस्बत ख़बर का इंटरनेट लिंक रखना आसान है. इंटरनेट आपको बुकमार्क और आर्काइव की सुविधा देता है.
चौथा, इस दलील पर कि अखबारों में विदेशी निवेश भारत की संप्रभुता के लिए ख़तरा हो सकता है, एफ़डीआई की सीमा 26 फीसदी है. वहीं डिजिटल मीडिया ऐसी किसी शर्त के तहत बंधा हुआ नहीं है. वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स अब सब्सक्रिप्शन के ज़रिये मोबाइल फ़ोन में आ जाते हैं. जानकारों के मुताबिक यह हास्यास्पद है कि न्यूज़ चैनल और एफ़एम रेडियो में तो एफ़डीआई की सीमा बढ़ाकर 49 फीसदी कर दी है, लेकिन मीडिया घरानों के मामले में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इसके पीछे इन घरानों का ऐसा न करने के लिए सरकार पर दबाव जिम्मेदार बताया जाता है. कई जानकार मानते हैं कि प्रिंट मीडिया अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है.
पांचवां, वीडियो न्यूज़ का चलन अब ज़ोर पकड़ता जा रहा है. लोग ख़बर पढने के बजाय देखना और तुरंत उस पर प्रतिक्रिया देना पसंद कर रहे हैं. प्रिंट के साथ तो यह संभव ही नहीं है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी इस मामले में डिजिटल मीडिया से एक कदम पीछे है. इन सबको देखते हुए यह कहना कोई मुश्किल नहीं कि डिजिटल मीडिया आने वाले समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में और बड़े बदलाव लाने वाला है.
अर्नेस्ट एंड यंग की रिपोर्ट बताती है कि प्रिंट मीडिया को स्क्रोल (सत्याग्रह इसकी सहयोगी वेबसाइट है) ‘द क्विंट’, और ‘क्वार्ट्ज इंडिया’ जैसे डिजिटल ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टलों से कड़ी टक्कर मिल रही है. लगभग हर बड़ा प्रिंट मीडिया हाउस अब डिजिटल पर काफी जोर दे रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में लगभग 18 करोड़ लोग ख़बरों को डिजिटल माध्यम के ज़रिये पढ़ रहे हैं. लगभग सभी प्रिंट मीडिया घरानों ने अपने न्यूज़ एप जारी कर दिए हैं. देश की 12 प्रमुख भाषाओं में ये न्यूज़ एप विकसित किये जा रहे हैं क्यूंकि आंचलिक इलाकों में हिंदी या स्थानीय भाषा लोगों के पढ़ने का पसंदीदा माध्यम है.
इस माहौल में हिंदी डिजिटल पत्रकारिता का भविष्य काफ़ी चमकीला दिख रहा है. रिपोर्ट के अनुमान से 63 फीसदी लोग हिंदी, 30 फीसदी अन्य मातृभाषाओं और सिर्फ सात फीसदी लोग अंग्रेज़ी भाषा में कंटेंट पढ़ रहे हैं. एर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के हिसाब से एक ओर जहां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों और सर्च इंजनों की विश्वसनीयता घटी है, वहीं पत्रकारिता करने वाले माध्यमों पर लोगों का भरोसा बढ़ा है.
डिजिटल न्यूज़ अब अगले चरण में प्रवेश कर चुकी है. लोग राजनीतिक ख़बरों के अलावा लाइफ़स्टाइल, ऑटोमोबाइल, तकनीक, खेल और सिनेमा के बारे में भी इसी माध्यम से जानना चाहते हैं. कोई ताज्जुब नहीं कि अमूमन हर डिजिटल न्यूज़ पोर्टल अब ऐसी जानकारियां अधिक से अधिक मात्रा में उपलब्ध करवा रहे हैं और लोग उन्हें पसंद भी कर रहे हैं.
तो भविष्य साफ़ नज़र आता है. डिजिटल न्यूज़ पोर्टल आने वाले समय की ज़रूरत बन जायेंगे और साफ़ शब्दों में कहें तो प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को काफ़ी पीछे छोड़ देंगे. अब जहां मीठा होगा, चींटे वहीं जायेंगे. विज्ञापन एजेंसियां यक़ीनन इस चलन से बाखबर हैं.
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